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गृहयुद्ध से अस्तव्यस्त म्यांमार में भूकंप से 1,700 से अधिक मरे
म्यांमार में शुक्रवार को आये ज़बरदस्त भूकंप से मरने वालों की संख्या 1,700 के पार पहुंच चुकी है। म्यांमार के दूसरे सबसे बड़े मांडले में सबसे अधिक करीब 700 लोगों की मौत की ख़बर है और समाचार एजेंसी एपी के मुताबिक रविवार को यहां शवों के सड़ने दुर्गंध के बीच मलबे में दबे जीवित लोगों की तलाश जारी थी। राजधानी नेपीडॉ में करीब 100 लोगों के मरने की ख़बर है। शुक्रवार दोपहर को यहां 7.7 तीव्रता का भूकंप आया जिसका केंद्र मांडले के निकट था, जिससे कई इमारतें ढह गईं और शहर के हवाई अड्डे जैसे अन्य बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचा।
गृहयुद्ध से जूझ रहे म्यांमार में टूटी सड़कों, बर्बाद पुलों और संचार व्यवस्था में गड़बड़ी के कारण काम करना आसान नहीं है और इस कारण राहत कार्य बाधित हुए हैं।
ग्लोबल क्लाइमेट रिपोर्ट 2024: रिकॉर्ड स्तरों पर सभी प्रमुख सूचकांक
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्लूएमओ) द्वारा जारी जलवायु रिपोर्ट 2024 में वैश्विक तापमान, ग्रीनहाउस गैस के जमाव और समुद्र सतह में वृद्धि के स्तर पर चिंताजनक आंकड़ों का खुलासा किया गया है। रिपोर्ट बताती है कि कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड 800,000 वर्षों में अपने उच्चतम स्तर पर हैं। वैश्विक तापमान के हिसाब से पिछले 10 साल उच्चतम स्तर पर रहे हैं और 2024 पहला कैलेंडर वर्ष हो सकता है जो पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक हो।
समुद्री तापमान वृद्धि के मामले में पिछले 8 सालों ने रिकॉर्ड बनाया है और सैटेलाइट माप की सुविधा उपलब्ध होने के बाद से समुद्र सतह में वृद्धि की दर दोगुनी हो चुकी है जबकि पिछले 3 सालों में ग्लेशियरों की सर्वाधिक बर्फ खत्म हुई है जिससे दुनिया में फ्रेश वॉटर का भारी संकट हो सकता है।
डब्लूएमओ रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2024 में 151 अभूतपूर्व चरम मौसम की घटनायें (एक्सट्रीम वेदर इवेंट) हुई, यानी ऐसी घटनायें जो उस क्षेत्र में अब तक दर्ज की गई किसी भी घटना से बदतर थीं। मिसाल के तौर पर जापान में भीषण गर्मी के कारण लाखों लोग हीटस्ट्रोक की चपेट में आ गए। पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के कार्नरवॉन में हीटवेव के दौरान तापमान 49.9 डिग्री सेल्सियस, ईरान के तबास शहर में 49.7 डिग्री सेल्सियस और माली में राष्ट्रव्यापी हीटवेव के दौरान 48.5 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया।
ताज़े जल के भंडार ग्लेशियरों के अस्तित्व पर संकट, सदी के अंत तक मिट जायेगा कई हिस्सों में इनका वजूद
हिंदू कुश हिमालय (HKH) क्षेत्र आर्कटिक और अंटार्कटिक के बाहर दुनिया बर्फ के सबसे बड़े बर्फ भंडार हैं लेकिन इस क्षेत्र में ग्लेशियर चिंताजनक रफ्तार से पिघल रहे और उनके वजूद को अभूतपूर्व संकट का सामना करना पड़ रहा है। पिछले शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र (यूएन) ने वर्ल्ड वॉटर डेवलपमेंट इंडेक्स रिपोर्ट जारी की जिसे पहली बार विश्व ग्लेशियर दिवस के अवसर पर प्रकाशित किया गया। रिपोर्ट बताती है कि हमारे पर्वत दुनिया के वार्षिक ताजे पानी के प्रवाह का 60% तक प्रदान करते हैं लेकिन 21 शताब्दी के अंत तक दुनिया के बहुत सारे हिस्सों में ग्लेशियरों का वजूद ही खत्म हो सकता है।
पूरी दुनिया में एक अरब से अधिक लोग पहाड़ी क्षेत्रों में रहते हैं, और दो अरब से अधिक लोग अपने पीने के पानी, स्वच्छता और आजीविका के लिए सीधे पहाड़ों से आने वाले जल पर निर्भर हैं। इसलिए ग्लेशियरों के पिघलने के कारण 2 अरब लोगों को पानी की कमी का खतरा है। धरती पर कुल 2,75,000 ग्लेशियर हैं जो 7 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हैं। भारत के हिमालयी क्षेत्र में करीब 10,000 छोटे बड़े ग्लेशियर हैं जो करीब 25,00 किलोमीटर लंबी हिमालयी रेखा में फैले हैं। इनमें स्थित विशाल जल भंडार के कारण इन्हें थर्ड पोल भी कहा जाता है।
लू से निपटने की तैयारी, एनडीएमए ने हीटवेव प्लान का खाका तैयार किया
नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (एनडीएमए) हीटवेव से निपटने के लिए एक राष्ट्रीय रूपरेखा पर काम कर रहा है। इस कार्यक्रम को नेशनल फ्रेमवर्क फॉर हीटवेव मिटिगेशन और मैनेजनमेंट नाम दिया गया है।
रिडिफ वेबसाइट पर प्रकाशित ख़बर के मुताबिक आपदा प्रबंधन के दो अधिकारियों ने कहा कि अत्यधिक गर्मी के कारण मनुष्यों और जानवरों के स्वास्थ्य, शहरी आवास, बुनियादी ढांचे, कृषि और जल सुरक्षा को बहुत बड़ा खतरा है, इसलिए इस नए ढांचे का उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक व्यवधान से बचना है।
लू के प्रभाव को कम करने और प्रबंधन के लिए रूपरेखा का उद्देश्य एचएपी (हीट एक्शन प्लान) को अधिक समुदाय-आधारित, एक्शन लिये जाने योग्य, पर्याप्त संसाधनयुक्त बनाने के तरीके खड़े करना और यह सुनिश्चित करना है कि स्थानीय प्रशासन का रोल इसमें अधिकतम हो। जलवायु परिवर्तन प्रभावों के बढ़ने के साथ ही हीटवेव की मार भी बढ़ रही है। क्लाइमेट सेंट्रल की एक रिपोर्ट बताती है कि दिसंबर 2024 और फरवरी 2025 के बीच 3 महीनों में करीब 40 करोड़ लोगों को यानी दुनिया की लगभग 5 प्रतिशत आबादी को इन तीन महीनों में 30 दिन या अधिक वक्त जानलेवा गर्मी का सामना करना पड़ा। इनमें आबादी तीन-चौथाई आबादी अफ्रीकी लोगों की है।
दक्षिण कोरिया में अब तक की सबसे बड़ी जंगलों की आग से कम से कम 26 मरे
दक्षिण कोरिया में लगी आग में कम से कम 26 लोग मारे गए हैं। यूके के अंग्रेज़ी अख़बार गार्डियन के मुताबिक एक दिन में ही आग का का फैलाव दोगुना हो गया और दक्षिण-पूर्वी प्रांत नॉर्थ ग्योंगसांग में सैकड़ों इमारतें नष्ट हो गईं। देश के आपदा और सुरक्षा प्रभाग के प्रमुख ली हान-क्यूंग ने कहा कि “जंगल की आग ने एक बार फिर जलवायु संकट की क्रूर वास्तविकता को उजागर किया है, जैसा हमने पहले कभी नहीं देखा।” स्काईन्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, जंगल की आग से “बहुत ज़्यादा नुकसान” हुआ, जिसमें 1,300 साल पुराना बौद्ध मंदिर, घर, कारखाने और वाहन नष्ट हो गए, जबकि 43,000 एकड़ से ज़्यादा ज़मीन खाक हो गई।
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार, आग पर अभी केवल 68% काबू पाया जा सका है। न्यूज़वायर ने बताया कि नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ फ़ॉरेस्ट साइंस के वन आपदा विशेषज्ञ ली ब्युंग-डू के अनुसार, तेज़ हवाओं के कारण यह और भी ज़्यादा भड़क गई है और इसका “अकल्पनीय” पैमाने पर बड़ी तेज़ी से फैलाव हुआ है। ली ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक स्तर पर जंगल में आग लगने की घटनाएं और भी ज़्यादा होने वाली हैं, उन्होंने जनवरी में लॉस एंजिल्स के एक हिस्से में लगी आग और हाल ही में उत्तर-पूर्वी जापान में लगी आग के असामान्य समय का हवाला दिया।
वन अधिकार अधिनियम की संवैधानिक वैधता पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, आदिवासी समूहों ने जताई चिंता
सुप्रीम कोर्ट में 2 अप्रैल, 2025 को एक याचिका पर सुनवाई होनी है जिसमें वन अधिकार अधिनियम (फॉरेस्ट राइट्स एक्ट) की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है।
इस मामले पर पिछली सुनवाई 13 फरवरी, 2019 को हुई थी जब शीर्ष अदालत ने 17 लाख आदिवासी परिवारों के व्यक्तिगत अधिकारों को अस्वीकार करके उन्हें बेदखल करने का आदेश दिया था। राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन के बाद उसी महीने आदेश स्थगित कर दिया गया था। अदालत ने राज्य सरकारों को दावों की अस्वीकृति की समीक्षा करने का निर्देश भी दिया था।
विभिन्न संगठनों और आदिवासी समूहों ने 2 अप्रैल की सुनवाई के संभावित प्रभाव पर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने केंद्र और राज्य सरकारों से आग्रह किया है कि वे वन अधिकार अधिनियम का दृढ़ता से बचाव करें। उन्होंने मूलनिवासी समुदायों को सशक्त बनाने और उनकी आजीविका सुनिश्चित करने में अधिनियम के महत्व पर भी जोर दिया।
इसके अतिरिक्त, एफआरए भारत के क्लाइमेट एक्शन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वनों पर निर्भर समुदायों के अधिकारों को कानूनी रूप से मान्यता देकर यह अधिनियम सस्टेनेबल वन प्रबंधन को बढ़ावा देता है जो जैव विविधता संरक्षण और क्लाइमेट रेसिलिएंस के लिए जरूरी है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का आगामी फैसला लाखों वन निवासियों और भारत में वन प्रशासन के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है।
भारत के 2 लाख वेटलैंड्स में केवल 102 कानूनी तौर पर संरक्षित
भारत में 200,000 से अधिक वेटलैंड्स हैं, लेकिन संरक्षण के लिए आधिकारिक तौर पर अधिसूचित केवल 102 हैं। इनमें से भी अधिकांश राजस्थान (75), गोवा (25), उत्तर प्रदेश (1), और चंडीगढ़ (1) में हैं। हिंदुस्तान टाइम्स में जयश्री नंदी की रिपोर्ट के अनुसार, पर्यावरण मंत्रालय ने एक आरटीआई के जवाब में यह आंकड़े दिए हैं।
भारत के क्षेत्र का लगभग 4.8 प्रतिशत वेटलैंड्स हैं। देश की लगभग 6 प्रतिशत आबादी आजीविका के लिए सीधे उन पर निर्भर है। इनमें झीलें, तालाब, नदियां, दलदल और स्वैंप शामिल हैं।
वेटलैंड्स बाढ़ नियंत्रण और कार्बन स्टोरेज में सहायक होते हैं और स्थानीय जैव-विविधता (बायोडायवर्सिटी) के लिए भी जरूरी होते हैं। हालांकि, जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियों के कारण कई वेटलैंड्स खतरे में हैं।
आरटीआई के जवाब में केंद्र सरकार ने कहा कि भूमि और जल राज्य के विषय हैं, इसलिए वेटलैंड्स का संरक्षण उनकी जिम्मेदारी है। इस कारण से नोटिफिकेशन की प्रगति धीमी है। वर्तमान में केवल 102 वेटलैंड्स और 89 रामसर साइट्स कानूनी रूप से संरक्षित हैं।
वेटलैंड्स (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2017, के अंतर्गत राज्य सरकारों को वेटलैंड्स को अधिसूचित करने का अधिकार है।
दिसंबर 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को वेटलैंड्स की पहचान करके सीमांकन पूरा करने का आदेश दिया था। हालांकि, अब तक केवल मणिपुर ने 30 वेटलैंड्स के सीमांकन का काम पूरा किया है।
रामसर कन्वेंशन का “बुद्धिमानी से उपयोग” (वाइज यूज़) का सिद्धांत 2017 के वेटलैंड संरक्षण नियमों में भी दोहराया गया है। हालांकि, इसकी परिभाषा अभी भी अस्पष्ट है और इसमें स्पष्ट दिशानिर्देशों का अभाव है। आलोचकों का कहना है कि नए नियम 2010 के नियमों की तुलना में कमजोर हैं।
नए नियमों के तहत विशेष मामलों में केंद्र सरकार की अनुमति लेकर निषिद्ध गतिविधियां भी की जा सकती हैं। इन नियमों में यह भी उल्लेख नहीं है कि वेटलैंड संरक्षण में स्थानीय समुदाय कैसे मदद कर सकते हैं।
वेटलैंड्स पर्यावरण और स्थानीय समुदायों के अस्तित्व लिए महत्वपूर्ण हैं।
नवंबर में संयुक्त राष्ट्र में राष्ट्रीय अनुकूलन योजना प्रस्तुत करेगा भारत
भारत अपनी राष्ट्रीय अनुकूलन योजना (नेशनल अडॉप्टेशन प्लान) इस साल नवंबर में संयुक्त राष्ट्र (यूएनएफसीसीसी) को प्रस्तुत कर सकता है। उसी समय के आसपास ब्राजील में कॉप30 सम्मलेन जारी रहेगा।
प्लान का उद्देश्य विकास योजनाओं में जलवायु अनुकूलन को एकीकृत करके लोगों, इकोसिस्टम और अर्थव्यवस्थाओं को अधिक रेसिलिएंट बनाना है।
जल, कृषि और स्वास्थ्य जैसे प्रमुख क्षेत्रों पर एक नेशनल स्टीयरिंग कमेटी और वर्किंग ग्रुप्स का गठन किया गया है। योजना में लैंगिक समानता पर भी ध्यान गया है। पर्यावरण मंत्रालय ने इस बात पर जोर दिया कि एनएपी विज्ञान और जमीनी स्तर की जरूरतों से प्रेरित एक दीर्घकालिक रणनीति है।
इस योजना से भारत को जलवायु जोखिमों की समझ बेहतर करने और उनके प्रभाव कम करने के लिए कदम उठाने में सहायता मिलेगी। इससे समुदायों, व्यवसायों और इकोसिस्टम को भविष्य के परिवर्तनों और जलवायु चुनौतियों से बेहतर तरीके से निपटने में भी मदद मिलेगी।
जलवायु परिवर्तन बढ़ा रहा घर के बीमा की लागत
जलवायु परिवर्तन के कारण तूफान, जंगल की आग और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएं अधिक गंभीर स्वरूप ले रही हैं। चरम मौसम की घटनाओं में इस वृद्धि से बीमा कंपनियों ने पिछले साल दुनिया भर में प्राकृतिक आपदाओं से हुए नुकसान के दावों में 140 बिलियन डॉलर से अधिक का भुगतान किया है, जिसके कारण उन्हें लगातार पांचवें साल 100 बिलियन डॉलर से अधिक का नुकसान उठाना पड़ा है।
इन बढ़ते जोखिमों का बेहतर आकलन करने के लिए, बीमा कंपनियां अब भवन निर्माण डेटा में जलवायु विज्ञान को शामिल कर और उन्नत मॉडल बना रही हैं, जो प्राकृतिक आपदओं से होनेवाले संभावित नुकसान की अधिक सटीक समझ प्रदान करते हैं। इससे संवेदनशील क्षेत्रों में रहनेवाले लोगों के लिए घर के बीमा का प्रीमियम भी बढ़ता है।
नतीजतन, कई ऐसे लोग को बढ़े हुए प्रीमियम का भुगतान नहीं कर सकते, वह या तो कम कवरेज का इंश्योरेंस ले रहे हैं या फिर घर का बीमा करवा ही नहीं रहे।
स्थिति को देखते हुए यह आवश्यक है कि ऐसी नीतियां बनाई जाएं जिससे जलवायु आपदाओं से प्रभावित लोगों के लिए सुलभ और सस्ता कवरेज सुनिश्चित किया जा सके।
प्रदूषण नियंत्रण योजना पर आवंटित फंड का 1% से भी कम हुआ खर्च
वित्तीय वर्ष 2024-25 में ‘प्रदूषण नियंत्रण’ योजना के लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को आवंटित 858 करोड़ रुपये में से अब तक 1 प्रतिशत से भी कम का उपयोग किया गया है। यह बात मंगलवार को संसद में पेश एक रिपोर्ट से पता चली।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन पर विभाग-संबंधी स्थायी समिति ने अनुदानों की मांगों (2025-26) की रिपोर्ट पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए मंत्रालय से “आत्मनिरीक्षण” करने और धन के उपयोग न किये जाने के कारणों पर गंभीरता से ध्यान देने को कहा।
योजना के तहत कुल 858 करोड़ रुपये का संशोधित आवंटन था जिसमें से 21 जनवरी तक केवल 7.22 करोड़ रुपये ही व्यय हुआ। पैनल ने को अपने जवाब में मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि इस योजना को जारी रखने के लिए अनुमोदन की प्रतीक्षा के कारण धन का उपयोग नहीं किया जा सका। रिपोर्ट में दिखाया गया है कि पिछले दो वित्तीय वर्षों में, मंत्रालय ने इस योजना के लिए आवंटित सारा बजट खर्च कर दिए।
यह योजना पूरी तरह से केंद्र द्वारा चलाई जाती है। सरकार का नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनसीएपी) इस फंड से चलता है। एनसीएपी के तहत 2026 तक देश भर के 131 शहरों में पार्टिकुलेट मैटर पीएम 10 (सूक्ष्म प्रदूषक) प्रदूषण को कम करने का लक्ष्य रखा है। इनमें 49 शहर दस लाख से अधिक आबादी वाले हैं और बाकी 82 दूसरे शहर हैं जिनके लिए योजना के तहत 3072 करोड़ रुपये 2019-20 से 2025-26 के बीच खर्च किये जाने थे।
फेफड़ों से अधिक दिल को नुकसान पहुंचाता है वायु प्रदूषण: विशेषज्ञ
वायु प्रदूषण केवल हमारे फेफड़ों के लिए ही खतरा नहीं है, बल्कि दिल के दौरे और हृदय रोगों में भी इसका प्रमुख योगदान है। एसोसिएटेड चेम्बर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (एसोचैम) द्वारा आयोजित ‘इलनेस टू वेलनेस’ सम्मलेन में हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ संदीप बंसल ने समझाया कि कैसे प्रदूषण का हमारे दिल पर गहरा प्रभाव पड़ता है। उन्होंने बताया कि पीएम2.5 कण रक्तप्रवाह में प्रवेश करते हैं, जिससे दिल के दौरे पड़ते हैं।
उन्होंने बताया कि सफदरजंग अस्पताल में हुए एक अध्ययन में बढ़ते प्रदूषण और दिल के दौरे के बढ़ते मामलों के बीच संबंध पाया गया। वायु प्रदूषण अब दुनियाभर में होने वाली मौतों का तीसरा प्रमुख कारण है।
गंगा प्रदूषण: एनजीटी के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक
सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल द्वारा बिहार सरकार पर लगाए गए 50,000 रुपए के जुर्माने पर रोक लगा दी है। एनजीटी ने गंगा प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण से संबंधित मामले में निर्देशों का पालन न करने और ठीक तरह से न्यायाधिकरण की सहायता न करने के लिए बिहार सरकार पर अर्थदंड लगाया था।
ट्राइब्यूनल बिहार में गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों की पानी की गुणवत्ता की समस्या का संज्ञान लिया था। इस मामले में राज्य के अधिकारियों को पानी के सैंपल का परीक्षण करने का आदेश दिया गया था। जहां प्रत्येक सहायक नदी गंगा में शामिल होती है, और हर नदी के बिहार में प्रवेश और निकास के स्थानों पर से सैंपल एकत्र किए जाने थे। एनजीटी ने अपने आदेश में कहा कि इन निर्देशों का पालन नहीं किया गया और उसे कोई रिपोर्ट नहीं दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने एनजीटी के आदेश के विरुद्ध बिहार सरकार की याचिका पर केंद्र और दूसरे पक्षों से जवाब मांगा है।
प्रदूषण के कारण काठमांडू में उड़ानें हुईं बाधित
प्रदूषण और धुंध की मोटी परत के कारण सोमवार को काठमांडू घाटी में एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) को ‘बेहद खराब’ स्थिति में पहुंच गया, जिससे त्रिभुवन इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर उड़ानें बाधित हुईं।
प्रदूषणकारी धुंध के कारण करीब आधा दर्जन उड़ानों को डाइवर्ट करना पड़ा, जिसमें एयर इंडिया की दो उड़ानें भी शामिल थीं। एयरपोर्ट के प्रवक्ता के अनुसार, जज़ीरा एयरवेज, एयर इंडिया और फ्लाई दुबई की उड़ानें खराब विजिबिलिटी के कारण उतरने में असमर्थ रहीं। जज़ीरा एयरवेज और एयर इंडिया की दो उड़ानों को वाराणसी डाइवर्ट किया गया, जबकि फ्लाई दुबई की उड़ान को भैरहवा में गौतम बुद्ध अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर ले जाया गया।
अन्य उड़ानों को भी लैंडिंग से पहले देरी का सामना करना पड़ा।
2024 में दुनिया ने जोड़ी रिकॉर्ड नवीकरणीय क्षमता, सोलर सबसे आगे
अंतर्राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा एजेंसी (इरेना) की नवीनतम वार्षिक सांख्यिकीय रिलीज़ से पता चलता है कि पिछले साल दुनिया भर में 585 गीगावाट नई ‘स्वच्छ’ ऊर्जा क्षमता जोड़ी गई, जो एक रिकॉर्ड वार्षिक वृद्धि है। बिज़नेस ग्रीन की रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में शुरू की गई कुल ऊर्जा क्षमता का 92.5 प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा से आया, जो 15.1 प्रतिशत की रिकॉर्ड वार्षिक दर्शाता है।
येल एनवायरनमेंट 360 की रिपोर्ट के अनुसार, सोलर सबसे तेजी से बढ़ने वाला नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत रहा। नई क्षमता में सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी 77 प्रतिशत थी। जबकि पवन ऊर्जा का योगदान 19% रहा।
इरेना के आंकड़ों के अनुसार, चीन ने 2024 में अन्य सभी देशों की तुलना में अधिक अक्षय ऊर्जा क्षमता स्थापित की। जी7 और जी20 देशों में क्रमशः 14.3% और 90.3% नई क्षमता जोड़ी गई। एसोसिएटेड प्रेस के अनुसार, इस वृद्धि के बावजूद, दुनिया अभी भी 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने के अंतर्राष्ट्रीय लक्ष्य तक पहुंचने के रास्ते पर नहीं है। इरेना की गणना के हिसाब से वर्तमान में इस लक्ष्य से 28% कम प्राप्त होने की उम्मीद है।
जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण से भारत के सौर ऊर्जा उत्पादन में गिरावट
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), दिल्ली के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया है कि वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन भारत में सौर पैनलों की दक्षता को कम कर रहे हैं। हालांकि भारत में साल भर में 300 धूप वाले दिन होते हैं, लेकिन प्रदूषण के कारण सौर ऊर्जा उत्पादन प्रभावित हो रहा है। बढ़ता तापमान भी सौर सेल की कार्यक्षमता घटा रहा है। अध्ययन के अनुसार, सदी के मध्य तक सौर पैनलों की दक्षता में 2.3% तक गिरावट आ सकती है, जिससे हर साल 840 गीगावाट-घंटे बिजली का नुकसान होगा। शोध में बेहतर प्रदूषण नियंत्रण और सौर सेल डिज़ाइन में सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया गया है।
भारत का सोलर निर्यात 16% गिरा, आयात में 10% की कमी: मेरकॉम
साल 2024 में भारत के सौर मॉड्यूल और सेल निर्यात 16 प्रतिशत गिरकर 1.5 बिलियन डॉलर पहुंच गया। 2023 में यह 1.8 बिलियन डॉलर था। फोटोवोल्टिक मॉड्यूल सौर निर्यात का 97.7% था, जिसमें से 97.5% अमेरिका ने खरीदा। सोलर मॉड्यूल शिपमेंट की कड़ी निगरानी, और विभिन्न देशों की चीनी घटकों को लेकर चिंताओं के कारण निर्यात में गिरावट आई।
भारत का सौर आयात भी 10.2 प्रतिशत गिरकर 4.5 बिलियन डॉलर हो गया। सोलर मॉड्यूल ने कुल आयात का 65.1% रहा, जबकि सोलर सेल की हिस्सेदारी 34.9% रही। घरेलू सौर उत्पादन को बढ़ावा देने वाली सरकारी नीतियों के कारण आयात में कमी आई। भारत ने 86.5% आयात चीन से किया। इसके बाद वियतनाम और थाईलैंड का नंबर रहा।
फोटो: Paul Brennan/Pixabay
भारत ने ईवी बैटरी निर्माण में प्रयोग होनेवाले घटकों पर से आयात शुल्क हटाया
भारत ने घरेलू मैनुफैक्चरिंग और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए, ईवी बैटरी और मोबाइल फोन में प्रयोग होने वाले प्रमुख कच्चे माल पर आयात शुल्क हटा दिया है।
वित्त मंत्री निर्मला सितारमन ने घोषणा की है कि भारत ईवी बैटरी बनाने में उपयोग किए जाने वाले 35 घटकों और मोबाइल फोन निर्माण में उपयोग किए जाने वाले 28 घटकों पर आयात शुल्क में छूट देगा। इस कदम का उद्देश्य 2 अप्रैल से प्रभावी अमेरिकी टैरिफ के प्रभाव को कम करना है।
भारत और अमेरिका के बीच एक व्यापार सौदे पर बातचीत चल रही है, और भारत अमेरिका से आयात होने वाली आधे से अधिक वस्तुओं के टैरिफ में कटौती पर विचार कर रहा है।
6 महीनों में पेट्रोल करों के बराबर होगी ईवी की कीमत: गडकरी
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने घोषणा की है कि भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) की कीमत छह महीने के भीतर पेट्रोल कारों के बराबर होगी। वर्तमान में, उच्च बैटरी लागत, आयात शुल्क और कम उत्पादन के कारण ईवी महंगे हैं। हालांकि, बैटरी प्रौद्योगिकी और स्थानीय उत्पादन में प्रगति से कीमतों के कम होने की उम्मीद है।
चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर और बैटरी की कम आयु जैसी चुनौतियों के बावजूद, भारत का ईवी बाजार बढ़ रहा है। 2024 में ईवी की बिक्री 27% बढ़कर 1.94 मिलियन यूनिट हो गई, जिसमें टाटा मोटर्स की अग्रणी रहा। यदि गडकरी की भविष्यवाणी के अनुसार कीमतों में गिरावट आती है, तो ईवी एडॉप्शन में तेजी आ सकती है।
टेस्ला को पछाड़ ईवी बिक्री में नंबर 1 बनी चीन की बीवाईडी
चीनी इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) कंपनी बीवाईडी ने पहली बार 100 बिलियन डॉलर से अधिक का वैश्विक राजस्व रिपोर्ट किया है। द टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार “एलोन मस्क की कंपनी टेस्ला को पछाड़ते हुए”, बीवाईडी ने “ईवी बाजार में वर्चस्व स्थापित कर लिया है“।
ईटी की रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में बीवाईडी ने दुनिया भर में 4.27 मिलियन वाहन बेचकर 107 बिलियन डॉलर का राजस्व अर्जित किया, जो टेस्ला की 1.79 मिलियन वाहनों की बिक्री से कहीं अधिक है। इसके विपरीत, टेस्ला ने 97.7 बिलियन डॉलर का राजस्व अर्जित किया, और पहली बार वार्षिक बिक्री 1.1 प्रतिशत की गिरावट का अनुभव किया।
उधर अमेरिका और यूरोप में प्रदर्शनकारियों ने अमेरिकी सरकार में मस्क की भागीदारी के विरोध में टेस्ला के 277 स्टोर्स को निशाना बनाया। मस्क की नीतियों के विरोध के कारण भी टेस्ला की बिक्री और शेयरों में गिरावट देखी जा रही है।
भारत ने पार किया 1 बिलियन टन कोयला उत्पादन का लक्ष्य
भारत ने वित्तवर्ष 2024-25 में एक बिलियन टन कोयला उत्पादन का लक्ष्य प्राप्त कर लिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस लक्ष्य प्राप्ति को भारत के लिए “एक गर्व का क्षण” बताया है। एक सोशल मीडिया पोस्ट में प्रधानमंत्री ने कहा, “एक अरब टन कोयला उत्पादन का ऐतिहासिक मील का पत्थर पार करना एक उल्लेखनीय उपलब्धि है, जो ऊर्जा सुरक्षा, आर्थिक विकास और आत्मनिर्भरता के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को उजागर करता है।”
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि अप्रैल से दिसंबर 2024 तक भारत के कोयला आयात में 8.4 प्रतिशत की गिरावट आई, जिसके परिणामस्वरूप पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में लगभग 5.43 बिलियन अमरीकी डॉलर (42,315.7 करोड़ रुपये) की विदेशी मुद्रा बचत हुई।
कोयला भारत के ऊर्जा क्षेत्र का प्रमुख ईंधन है। देश में स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता का करीब 50 प्रतिशत कोयला बिजलीघर हैं और वास्तविक बिजली उत्पादन का तो लगभग तीन-चौथाई कोयला बिजलीघर ही पूरा करते हैं। इसके अलावा स्टील और सीमेंट जैसे उद्योगों के लिए ज़रूरी बिजली उत्पादन कोयले से ही पूरी की जा रही है।
भारत की तेल आपूर्ति रणनीति को ट्रम्प के नये ऐलान से झटका
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत की तेल आपूर्ति के लिए चिंता बढ़ा दी। ट्रम्प ने सोमवार को ऐलान किया कि भारत और चीन जैसे देशों पर 2 अप्रैल से वेनेजुएला से तेल का आयात करने वाले किसी भी मौजूदा टैरिफ के अलावा 25 प्रतिशत “द्वितीयक टैरिफ” लगाया जायेगा। बढ़ती भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं के बीच ट्रम्प के इस ऐलान को भारत की तेल आयात डायवर्सिफिकेशन रणनीति के लिए एक नई चुनौती के रूप में देखा जा रहा है।
अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस ने ट्रम्प के सोशल मीडिया पोस्ट को छापा जिसमें अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा था कि ट्रंवेनेज़ुएला अमेरिका और उसके द्वारा समर्थित स्वतंत्रता के प्रति बहुत आक्रामक रहा है। इसलिए, कोई भी देश जो वेनेजुएला से तेल या गैस खरीदता है, उसे हमारे देश के साथ किए जाने वाले किसी भी व्यापार पर अमेरिका को 25 प्रतिशत टैरिफ का भुगतान करना होगा। ट्रम्प ने कहा कि टैरिफ 2 अप्रैल से प्रभावी होगा।
भारत ने तीन साल से ज़्यादा समय के अंतराल के बाद दिसंबर 2023 में वेनेजुएला से कच्चे तेल का आयात फिर से शुरू किया, क्योंकि अमेरिका ने वेनेजुएला के तेल क्षेत्र पर प्रतिबंधों में अस्थायी रूप से ढील दी थी। हालांकि, कुछ महीनों के भीतर ही अमेरिकी प्रतिबंध फिर से लागू हो गए, लेकिन कुछ तेल कंपनियों द्वारा प्राप्त विशेष प्रतिबंध छूट के ज़रिए वेनेजुएला के कच्चे तेल की कुछ मात्रा भारत सहित विभिन्न देशों में पहुँचती रही।
ऑइल कंपनियां चाहती हैं जलवायु मुकदमों और रेग्युलेशन केस लड़ने के लिए ट्रम्प की मदद
प्रमुख तेल कंपनियां अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प पर दबाव डाल रही हैं कि वे उन्हें जलवायु मुकदमों और सुपरफंड क्लीनअप लागतों से बचाने में मदद करें। कंपनियों का तर्क है कि जलवायु क्षति के लिए उन्हें उत्तरदायी ठहराना अनुचित है, जबकि आलोचकों का कहना है कि उन्हें ग्लोबल वार्मिंग और प्रदूषण में अपनी भूमिका के लिए तेल कंपनियों को भुगतान करना ही चाहिए।
द वॉल स्ट्रीट जर्नल के अनुसार, एक्सॉन मोबिल और शेवरॉन सहित प्रमुख तेल कंपनियों ने राज्य स्तरीय जलवायु परिवर्तन मुकदमों और विनियमों का मुकाबला करने में सहायता के लिए राष्ट्रपति ट्रम्प से संपर्क किया है, जो जीवाश्म ईंधन उद्योग पर महत्वपूर्ण वित्तीय दंड लगा सकते हैं।
व्हाइट हाउस की बैठक के दौरान, इंडस्ट्री के अधिकारियों ने वर्मोंट और न्यूयॉर्क में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए तेल कंपनियों को वित्तीय रूप से जिम्मेदार ठहराने के उद्देश्य से बनाए गए कानूनों के बारे में चिंता व्यक्त की। इन राज्यों ने कड़े जलवायु नियम बनाए हैं, जिनमें उत्सर्जन दंड के माध्यम से पर्यावरण परियोजनाओं को वित्तपोषित करने के लिए जलवायु सुपरफंड शामिल हैं।