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मॉनसून सामान्य तिथि से 9 दिन पहले ही पूरे भारत पर छाया
दक्षिण-पश्चिम मानसून रविवार को राजधानी दिल्ली पहुंचा और इसने “निर्धारित समय से नौ दिन पहले ही पूरे देश को कवर कर लिया – जब से आईएमडी ने राजधानी के लिए शुरुआत के रिकॉर्ड शुरू किए हैं तब से यह एक ऐसी दुर्लभ मौसम संबंधी घटना है जो 2001 के बाद से केवल पांच बार हुई है, ।”
वर्ष 2001-2025 की अवधि के दौरान दिल्ली पहुंचने के बाद मानसून को पूरे देश को कवर करने में आम तौर पर चार दिनों का औसत लगता है लेकिन इस साल 29 जून का अभिसरण 2020 के बाद से सबसे जल्दी पूर्ण राष्ट्रीय कवरेज है।
मौसम विज्ञान विभाग ने रविवार को एक बयान में कहा, “दक्षिण-पश्चिम मानसून आज 29 जून 2025 को राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा के शेष हिस्सों और पूरी दिल्ली में आगे बढ़ गया है। इस प्रकार, यह सामान्य तिथि 08 जुलाई (सामान्य तिथि से नौ दिन पहले) के मुकाबले 29 जून 2025 को पूरे देश को कवर कर चुका है।”
मॉनसून की पहली बारिश 24 मई को केरल में पहुंची थी – 2001 के बाद से चौथा सबसे शीघ्र आगमन – दक्षिणी तट से दिल्ली तक की 36-दिवसीय यात्रा उसी अवधि में छठी सबसे लंबी यात्रा रही।
आईएमडी ने कहा है कि भारत के अधिकांश हिस्सों में जुलाई में सामान्य से अधिक वर्षा होने की संभावना है। मध्य भारत, उत्तराखंड और हरियाणा में लोगों से बाढ़ के जोखिम के कारण सतर्क रहने के लिए कहा गया है।
एशिया में तापमान वैश्विक औसत से लगभग दोगुनी गति से बढ़ रहा है, अर्थव्यवस्थाएं हो रही हैं प्रभावित: डब्ल्यूएमओ
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने एशिया में जलवायु की स्थिति पर अपनी ताज़ा रिपोर्ट (2024) में कहा गया है कि एशियाई भूभाग वैश्विक औसत से लगभग दोगुनी गति से गर्म हो रहा है, जिससे अधिक चरम मौसमी घटनाओं को बढ़ावा मिल रहा है और क्षेत्र की अर्थव्यवस्थाओं पर भारी असर पड़ रहा है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2024 में एशिया का औसत तापमान 1991-2020 के औसत से लगभग 1.04 डिग्री सेल्सियस अधिक था, जो रिकॉर्ड पर सबसे गर्म या दूसरा सबसे गर्म वर्ष था। बीते साल 2024 में, समुद्र के रिकॉर्ड क्षेत्र में हीटवेव ने अपनी पकड़ बना ली थी। समुद्र की सतह का तापमान रिकॉर्ड पर सबसे अधिक था। एशिया की समुद्री सतह की दशकीय वार्मिंग दर वैश्विक औसत से लगभग दोगुनी थी। महाद्वीप के प्रशांत और हिंद महासागर के किनारों पर समुद्र का स्तर वैश्विक औसत से अधिक हो गया, जिससे तटीय क्षेत्रों के लिए जोखिम बढ़ गया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सर्दियों में बर्फबारी में कमी और गर्मियों में अत्यधिक गर्मी ग्लेशियरों के लिए नुकसानदेह है। रिपोर्ट बताती है, “मध्य हिमालय और तियान शान में, 24 में से 23 ग्लेशियरों को बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ, जिससे ग्लेशियल झील के फटने से बाढ़ और भूस्खलन जैसे खतरे बढ़ गए और जल सुरक्षा के लिए दीर्घकालिक जोखिम पैदा हो गया।”
जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते टर्बुलेंस से विमानों को खतरा: रिपोर्ट
ऑस्ट्रेलिया के ब्रिस्बेन में 4 मई 2024 को क़्वांटस एयरलाइन्स के एक बोइंग 737 विमान में अप्रत्याशित रूप से मौसम खराब होने के कारण यात्रियों और विमान सेवा कर्मियों को चोटें आईं। जांच में पाया गया कि यह तीव्र टर्बुलेंस पायलट की अनुमान से कहीं अधिक था।
एक नए शोध के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण गरज और तूफानों से पैदा होने वाले तेज़ हवाओं के झोंकों — विशेषकर डाउनबर्स्ट्स — की तीव्रता और फ्रीक्वेंसी बढ़ रही है। ये माइक्रोबर्स्ट्स विमान के लिए खासतौर पर टेकऑफ और लैंडिंग के समय बेहद ख़तरनाक हैं।
वैज्ञानिकों ने पूर्वी ऑस्ट्रेलिया में गर्मी और नमी को इसकी मुख्य वजह बताया है।
पूरी दुनिया में शिशु टीकाकरण का ग्राफ़ गिरा, भारत में 14 लाख बच्चों को नहीं लगा टीका
दुनिया में शिशु टीकाकरण कार्यक्रम का ग्राफ गिर रहा है। मेडिकल जर्नल लांसेट का ताज़ा विश्लेषण बताता है कि 2023 में दुनिया में 1.57 करोड़ बच्चे ऐसे थे जिन्हें कोई जीवनरक्षक टीका नहीं लगा और इनमें से 14.40 लाख भारत में थे। भारत उन देशों में है जहां टीकाकरण काफी सफल रहा है लेकिन लांसेट का विश्लेषण कहता है वर्ष 2023 में भारत उन 8 देशों में था जहां दुनिया के आधे बच्चे थे जिन्हें टीका नहीं लगा।
यह शोध वर्ष 2023 के ग्लोबल बर्डन ऑफ डिज़ीज़ के आंकड़ों पर आधारित है जिसमें दुनिया के सभी देशों का 1980 से 2023 तक का आंकड़ा लिया गया उन 11 प्रमुख बीमारियां शामिल हैं जिनके टीके बच्चों के लिए जीवनरक्षक माने जाते हैं। इस विश्लेषण के हिसाब से दुनिया के लगभग 100 देशों में खसरे यानी मीसल्स के टीकाकरण में कमी आई है। यह स्टडी बताती है कि 2010 के बाद के कई वजहों से टीकाकरण का ग्राफ गिरा है और 2019 के बाद कोविड महामारी के कारण इसमें गिरावट आई और इसमें भ्रांतियों और टीके के विरोध की भी भूमिका है।
चीन में मौसम विभाग ने दी एक साथ हीटवेव और बाढ़ की चेतावनी
चीन के राष्ट्रीय मौसम विज्ञान केंद्र (एनएमसी) ने बीते सोमवार (23 जून) को उत्तरी चीन के अधिकांश हिस्सों के लिए हीटवेव के लिए यलो अलर्ट जारी किया। इसमें 35 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान की चेतावनी दी गई – कुछ क्षेत्रों और शहरों में 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान की चेतावनी दी गई। इस बीच, आठ दक्षिणी प्रांतों में मूसलाधार बारिश होने और कुछ क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा होने की आशंका जताई गई।
दक्षिण अफ्रीका में बाढ़ से करीब 100 मरे, पीर्वी केप क्षेत्र में आपातकाल लगाना पड़ा
दक्षिण अफ्रीका के पूर्वी केप क्षेत्र में बीते दिनों भारी बाढ़ से 100 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई जिसमें एक नवजात शिशु भी शामिल है। इसके बाद सरकार को वहां राष्ट्रीय आपदा की घोषणा करनी पड़ी। ख़बरों के मुताबिक “दो बच्चे अभी भी लापता हैं। 9 और 10 जून को ठंड के कारण हुई भारी बारिश के कारण बाढ़ आ गई, जिससे पीड़ित और उनके घर बह गए, अन्य लोग अपने घरों में फंस गए, सड़कें और अन्य बुनियादी ढाँचे क्षतिग्रस्त हो गए और बिजली आपूर्ति बाधित हो गई।”
इस महीने की बाढ़ दक्षिण अफ्रीका में होने वाली प्रतिकूल मौसम घटनाओं की श्रृंखला में एकदम नई है। केप टाउन में पिछले साल, जुलाई में रिकॉर्ड बारिश हुई थी और हज़ारों घर क्षतिग्रस्त हो गए थे। 2022 में, दो तटीय प्रांतों में मूसलाधार बारिश के कारण कम से कम 459 लोगों की मौत हो गई।
जलवायु संकट किसानों के अनुकूलन के बावजूद भी प्रमुख फसलों की पैदावार को कर सकता है प्रभावित
एक नए अध्ययन के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण कुछ महत्वपूर्ण फसलों को “काफी हद तक” उत्पादन हानि हो सकती है। गार्डियन में प्रकाशित ख़बर बताती है कि धरती पर हर एक डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि के साथ मक्का, सोया, चावल, गेहूं, कसावा और ज्वार की पैदावार में प्रति व्यक्ति प्रति दिन 120 कैलोरी तक की कमी आ सकती है।
इसी अध्ययन को कवर करते हुए डेली टेलीग्राफ ने कहा है कि अध्ययन से पता चलता है कि भोजन पर इसका प्रभाव “ऐसा होगा जैसे हर कोई नाश्ता छोड़ देगा”। न्यू साइंटिस्ट ने बताया कि शोधकर्ताओं ने जिन छह प्रमुख फसलों पर अध्ययन किया, उनमें से चावल को छोड़कर सभी को बढ़ते तापमान के साथ भारी नुकसान होने वाला है। अख़बार ने बताया कि “उदाहरण के लिए, वैश्विक मकई की पैदावार सदी के अंत तक लगभग 12% या 28% तक गिरने का अनुमान है और यह इस बात पर निर्भर करेगा कि ग्लोबल वॉर्मिंग न होने की तुलना में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन क्रमशः मध्यम होंगे या बहुत अधिक।”
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संयुक्त राष्ट्र का जलवायु बजट 10% बढ़ाने पर सहमत हुए सभी देश, चीन का योगदान भी बढ़ा
बॉन (जर्मनी) में हाल ही में संपन्न हुई जलवायु वार्ता में शामिल हुए करीब 200 देशों ने यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) के 2026-27 के बजट को 10 प्रतिशत बढ़ाकर 81.5 मिलियन यूरो (लगभग 816 करोड़ रुपए) करने पर सहमति दी।
महत्वपूर्ण बात यह रही कि इस बजट में चीन की हिस्सेदारी को 15 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत कर दिया गया। चीन से अधिक हिस्सेदारी केवल अमेरिका की (22 प्रतिशत) तय की गई। हालांकि अमेरिका इस वार्ता में शामिल नहीं हुआ।
यूएनएफसीसीसी प्रमुख साइमन स्टील ने इस फैसले को मुश्किल समय में सहयोग का “स्पष्ट संकेत” बताया।
हालिया वर्षों में अमेरिका के पेरिस डील से बाहर होने और चीन द्वारा देरी से फंड मिलने के कारण संयुक्त राष्ट्र के जलवायु निकाय को वित्तीय संकट का सामना करना पड़ा है और कई कार्यक्रम रद्द करने पड़े हैं।
बॉन वार्ता में विभिन्न देश ग्लोबल गोल ऑन अडॉप्टेशन (जीजीए) पर भी एक समझौते पहुंचे। पेरिस समझौते के तहत स्थापित यह लक्ष्य विशेष रूप से कमजोर देशों को चरम मौसम की घटनाओं से निपटने में मदद देने के लिए है। हालांकि, यह विवाद बना रहा कि वित्तीय सहायता कौन देगा और कैसे मापी जाएगी।
विकासशील देशों ने इसे अधूरा और विकसित देशों द्वारा जिम्मेदारियों से बचने की कोशिश बताया, जबकि यूरोपीय संघ ने इसे सफल करार दिया। अब निगाहें नवंबर में ब्राज़ील में होने वाले कॉप30 शिखर सम्मेलन पर टिकी हैं।
भारत ने किशनगंगा, रतले विवाद पर आर्बिट्रेशन कोर्ट के फैसले को खारिज किया
भारत ने द हेग-स्थित परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन (पीसीए) द्वारा किशनगंगा और रतले हाइड्रोपॉवर परियोजनाओं पर दिए गए तथाकथित “सप्लिमेंटल अवार्ड” को सख्ती से खारिज कर दिया है। इस फैसले में कथित पीसीए ने कहा था कि भारत द्वारा सिंधु जल संधि स्थगित करने से विवाद के निपटारे पर पीसीए की अधिकारिता “सीमित” नहीं होगी, और उसका निर्णय दोनों पक्षों पर बाध्यकारी है।
जवाब में भारत सरकार ने कहा है कि भारत पीसीए को कभी मान्यता नहीं देता और यह निर्णय अंतर्राष्ट्रीय कानून और सिंधु जल संधि का उल्लंघन है।
विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान पर “झूठे विवाद पैदा कर अंतर्राष्ट्रीय मंचों का दुरुपयोग करने” का आरोप लगाया।
भारत ने अप्रैल में पहलगाम आतंकी हमले के बाद सिंधु जल संधि को स्थगित कर दिया था और कहा कि अब इस संधि के तहत कोई दायित्व बाध्यकारी नहीं है।
इससे पहले भारत सरकार ने विश्व बैंक द्वारा नियुक्त निष्पक्ष विशेषज्ञ (न्यूट्रल एक्सपर्ट) मिशेल लीनो से रतले और किशनगंगा हाइड्रोपॉवर परियोजनाओं पर चल रही कार्यवाही को स्थगित करने का अनुरोध भी किया था।
फ्रांसीसी बांध विशेषज्ञ और अंतर्राष्ट्रीय बांध आयोग के अध्यक्ष रह चुके लीनो को अक्टूबर 2022 में विश्व बैंक ने न्यूट्रल एक्सपर्ट नियुक्त किया था। विश्व बैंक द्वारा नियुक्त न्यूट्रल एक्सपर्ट एक तकनीकी विशेषज्ञ होता है, जो सिंधु जल संधि के तहत भारत-पाकिस्तान के बीच जल विवादों को सुलझाने का माध्यम होता है।
न्यूट्रल एक्सपर्ट का काम है दोनों पक्षों को सुनकर यह तय करना कि इन परियोजनाओं की डिज़ाइन संधि के अनुरूप है या नहीं। पाकिस्तान का आरोप है कि भारत न्यूनतम जल प्रवाह की शर्तों का उल्लंघन कर रहा है।
भारत ने 24 अप्रैल को पाकिस्तान को संधि स्थगन की औपचारिक सूचना दी थी और लीनो से कहा कि वह पहले से तय कार्य योजना (वर्क प्रोग्राम) को रद्द करें। पाकिस्तान ने इस पर आपत्ति जताई है और कार्यवाही जारी रखने की मांग की है।
किशनगंगा (झेलम की सहायक नदी) और रतले (चिनाब) दोनों पर बानी परियोजनाओं को लेकर भारत-पाकिस्तान में लंबे समय से विवाद चल रहा है। भारत का मानना है कि केवल निष्पक्ष विशेषज्ञ को ही इन मामलों पर निर्णय लेने का अधिकार है, जबकि पाकिस्तान ने पीसीए की प्रक्रिया शुरू करवा दी।
सरकार अब चिनाब बेसिन में जल परियोजनाओं को तेज़ी से आगे बढ़ाने और पाकिस्तान की आपत्तियों को दरकिनार करते हुए अपने अधिकारों का प्रयोग करने की दिशा में बढ़ रही है।
जलवायु संकट को और गंभीर बना रही है झूठी जानकारी: रिपोर्ट
एक नई वैश्विक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जलवायु परिवर्तन पर भ्रामक और झूठी जानकारी इस संकट को और गंभीर बना रही है।
इंटरनेशनल पैनल ऑन द इन्फॉर्मेशन एनवायरनमेंट (आईपीआईई) द्वारा 300 अध्ययनों की समीक्षा के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया है कि जीवाश्म ईंधन कंपनियां, दक्षिणपंथी राजनेता और कुछ देश क्लाइमेट एक्शन में बाधा पहुंचा रहे हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सोशल मीडिया पर बॉट्स और ट्रोल्स गलत जानकारियों को तेजी से फैला रहे हैं। ब्राज़ील समेत कई देश इस पर रोक लगाने के लिए संयुक्त राष्ट्र की पहल का समर्थन कर रहे हैं।
दिल्ली में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए पहली बार कृत्रिम वर्षा की तैयारी
दिल्ली सरकार वायु प्रदूषण से निपटने के लिए पहली बार क्लाउड सीडिंग (कृत्रिम वर्षा) का सहारा लेने जा रही है। इस पहल के तहत पांच उड़ानें चलाई जाएंगी, जिनमें प्रत्येक उड़ान लगभग 90 मिनट की होगी और इसमें सीडिंग मिश्रण का छिड़काव किया जाएगा। लाइव मिंट की एक रिपोर्ट के अनुसार यह छिड़काव उत्तर-पश्चिम और बाहरी दिल्ली के कम सुरक्षा वाले हवाई क्षेत्र में लगभग 100 वर्ग किलोमीटर में किया जाएगा।
इस क्लाउड सीडिंग ऑपरेशन की योजना आईआईटी कानपुर ने तैयार की है और इसे तकनीकी समन्वय के लिए भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी), पुणे को सौंपा गया है। पीटीआई के अनुसार इस योजना को 4 जुलाई से 11 जुलाई के बीच लागू किया जाएगा।
दिल्ली के पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने बताया कि “3 जुलाई तक क्लाउड सीडिंग के लिए मौसम अनुकूल नहीं है, लेकिन 4 से 11 जुलाई के बीच की अवधि उड़ानों के लिए प्रस्तावित की गई है।”
यह दिल्ली में अपनी तरह का पहला प्रयास होगा, जिसमें वायु प्रदूषण को कम करने के लिए कृत्रिम वर्षा की मदद ली जाएगी। यदि यह प्रयास सफल रहता है, तो भविष्य में इसे और व्यापक स्तर पर अपनाया जा सकता है।
एनसीएपी पर दिल्ली ने खर्च किया सिर्फ एक-तिहाई फंड
राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के तहत दिल्ली को प्रदूषण नियंत्रण के लिए मिले 42.69 करोड़ रुपए में से अब तक केवल 13.94 करोड़ (32.65%) रुपए खर्च किए गए हैं।
पर्यावरण मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली समेत 14 शहरों ने प्राप्त राशि का 50 प्रतिशत से भी कम उपयोग किया है। नोएडा, फरीदाबाद, विशाखापत्तनम, जालंधर, और वाराणसी जैसे शहरों में भी फंड उपयोग की स्थिति कमजोर है। 2019 में शुरू हुए एनसीएपी के तहत 2026 तक पीएम10 प्रदूषण को 40 प्रतिशत तक घटाने का लक्ष्य रखा गया है, लेकिन अब तक 12,636 करोड़ रुपए में से सिर्फ 71% राशि ही खर्च हो पाई है।
यूरोप में ध्वनि प्रदूषण से हर साल 66,000 मौतें: रिपोर्ट
यूरोपीय पर्यावरण एजेंसी (ईईए) की रिपोर्ट के अनुसार, यूरोप में 11 करोड़ से अधिक लोग हानिकारक ध्वनि प्रदूषण से जूझ रहे हैं, जिससे हर साल करीब 66,000 लोगों की मौतें समय से पहले होती हैं और दिल की बीमारी, मधुमेह व अवसाद के कई मामले सामने आते हैं।
कार, ट्रेन और हवाई जहाज से उत्पन्न ध्वनि प्रदूषण बच्चों समेत करोड़ों लोगों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानकों के अनुसार, प्रदूषण से प्रभावित लोगों की वास्तविक संख्या 15 करोड़ तक हो सकती है। यूरोपीय संघ ने 2030 तक लंबे समय से ध्वनि प्रदूषण से प्रभावित लोगों की संख्या 30% तक कम करने का लक्ष्य रखा है।
विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यदि ठोस कदम नहीं उठाए गए तो यह लक्ष्य हासिल नहीं हो पाएगा।
सेकेंडरी पॉल्यूटेंट्स से होता है एक तिहाई पीएम2.5 प्रदूषण: स्टडी
भारत में पीएम 2.5 प्रदूषण का लगभग एक-तिहाई हिस्सा सेकेंडरी पॉल्यूटेंट्स (प्रदूषकों), विशेषकर अमोनियम सल्फेट से होता है, जो वायुमंडल में सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) और अमोनिया (NH₃) की प्रतिक्रिया से बनता है।
यह खुलासा सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (क्रिया) की एक स्टडी में हुआ है। अध्ययन के अनुसार, देशभर में अमोनियम सल्फेट की औसत सांद्रता 11.9 माइक्रोग्राम/घनमीटर है, जिसमें से 60% SO₂ उत्सर्जन कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांट्स से आता है।
रिपोर्ट के अनुसार भारत विश्व स्तर पर सबसे अधिक मात्रा में SO2 उत्सर्जित करता है, जो 11.2 मिलियन टन है, और NOX के उत्सर्जन में चीन के बाद दूसरे स्थान पर है, जो 9.4 मिलियन टन है और अमोनिया (NH3) का उत्सर्जन 10.4 मिलियन टन है। ये बढ़े हुए स्तर सल्फेट, नाइट्रेट और ओजोन जैसे द्वितीयक प्रदूषकों के व्यापक निर्माण के लिए आदर्श परिस्थितियाँ बनाते हैं। एक बार बनने के बाद, ये कण लंबी दूरी तय कर सकते हैं, शहरों, राज्यों और क्षेत्रों में फैल सकते हैं, जिससे वायु प्रदूषण एक सीमा पार का मुद्दा बन जाता है जो शहरी और ग्रामीण दोनों आबादी को प्रभावित करता है।
हालांकि फ्लू गैस डीसल्फराइजेशन (एफजीडी) सिस्टम अनिवार्य हैं, फिर भी केवल 8% संयंत्रों ने इन्हें स्थापित किया है।
बंद पड़ी कोयला खदानों में हो सकती है 300 गीगावाट सौर ऊर्जा क्षमता स्थापना: जीईएम
ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर (जीईएम) की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, बंद पड़ी कोयला खदानों में लगभग 300 गीगावाट सौर ऊर्जा क्षमता विकसित की जा सकती है।
कार्बनकॉपी ने जीईएम की रिपोर्ट पर बताया कि 5,280 वर्ग किलोमीटर में फैली 446 बंद की जा चुकी खदानें सौर ऊर्जा परियोजनाओं के लिए उपयुक्त हैं।
इन परियोजनाओं से 300 गीगावाट सौर ऊर्जा क्षमता विकसित की जा सकती है, जो वैश्विक स्थापित सौर क्षमता का 15 प्रतिशत है।
चीन ने अब तक 90 बंद खदानों को सौर संयंत्रों में बदला है, जिससे 14 गीगावाट बिजली उत्पन्न हो रही है। ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और ग्रीस सहित 14 अन्य देश भी इस दिशा में शुरुआती प्रयास कर रहे हैं।
जून 2028 के बाद शुरू होने वाली सौर, पवन परियोजनाओं को नहीं मिलेगी ट्रांसमिशन शुल्क में छूट
केंद्रीय विद्युत विनियामक आयोग (सीईआरसी) ने इंटरस्टेट ट्रांसमिशन सिस्टम (आईएसटीएस) शुल्क माफी की समय-सीमा जारी की है।
मेरकॉम की रिपोर्ट के अनुसार, 30 जून 2025 तक चालू होने वाली सौर, पवन या हाइब्रिड अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं को 25 वर्षों तक पूर्ण आईएसटीएस शुल्क माफी मिलेगी। 2025 से 2028 के बीच चालू होने वाली परियोजनाओं को 75% की अपेक्षा 25% तक की छूट दी जाएगी।
30 जून 2028 के बाद चालू होने वाली परियोजनाओं को कोई छूट नहीं दी जाएगी। वहीं बैटरी और पंप स्टोरेज सिस्टम को कुछ शर्तों के साथ 12 से 25 वर्षों तक की छूट मिलेगी।
तमिलनाडु अतिरिक्त ग्रीन एनर्जी स्टोरेज के लक्ष्य के करीब, तीन कंपनियों को 1,000 मेगावाट-ऑवर प्रणाली के लिए मिली निविदा
निवेली लिग्नाइट कॉर्पोरेशन (एनएलसी इंडिया) लिमिटेड की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी एनएलसी इंडिया रिन्यूएबल लिमिटेड सहित तीन कंपनियों को तमिलनाडु में 1000 मेगावाट-ऑवर बैटरी भंडारण सुविधा स्थापित करने के लिए टीएन ग्रीन एनर्जी कॉरपोरेशन लिमिटेड द्वारा जारी निविदा प्रदान की गई।
एनएलसी इंडिया रिन्यूएबल लिमिटेड को 500 मेगावाट-ऑवर बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली प्रदान की गई, बॉन्डाडा इंजीनियरिंग लिमिटेड ने 400 मेगावाट-ऑवर बैटरी भंडारण सुविधा स्थापित करने के लिए बोली जीती, और ओरियाना पावर लिमिटेड 100 मेगावाट-ऑवर भंडारण सुविधा स्थापित करेगी।
इस कदम से तमिलनाडु अतिरिक्त ग्रीन एनर्जी के भंडारण को हासिल करने के करीब पहुंच गया है। ये कंपनियां अधिकतम बिजली मांग के समय दो चक्रों में 1 लाख मिलियन यूनिट बिजली जारी करेंगी।
आईआईटी बॉम्बे ने हिमालयी घरों को गर्म रखने के लिए बनाया सौर ऊर्जा संचालित उपकरण
आईआईटी बॉम्बे के शोधकर्ताओं ने एक सौर-ऊर्जा आधारित उपकरण विकसित किया है, जो हिमालयी क्षेत्रों में सर्दियों के दौरान घरों को गर्म रखने में मदद करेगा। यह प्रणाली स्ट्रोंशियम ब्रोमाइड नमक का उपयोग करती है, जो गर्मियों में सौर ताप संग्रहित कर सर्दियों में छोड़ती है।
यह डीजल हीटर और लकड़ी जलाने के पारंपरिक स्रोतों का स्वच्छ और टिकाऊ विकल्प है। प्रत्येक मॉड्यूल दो गैस सिलेंडरों के बराबर आकार का है और पुनःचार्ज होकर सर्दियों से पहले हिमालयी क्षेत्रों में पहुंचाया जा सकता है।
यह प्रणाली वर्षों तक चल सकती है और लंबे समय में लागत प्रभावी साबित होती है।
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वैश्विक इलेक्ट्रिक कार निर्माताओं के लिए भारत सरकार ने लॉन्च किया पोर्टल
केंद्र सरकार ने भारत में इलेक्ट्रिक कार निर्माण को बढ़ावा देने के लिए ‘भारत में इलेक्ट्रिक यात्री कारों के विनिर्माण को बढ़ावा देने की योजना (एसपीएमईपीसीआई)’ का पोर्टल लॉन्च किया है।
मेरकॉम की रिपोर्ट के अनुसार, भारी उद्योग मंत्रालय (एमएचआई) द्वारा शुरू की गई इस योजना के तहत वैश्विक और घरेलू निर्माता कम से कम 4,150 करोड़ रुपए के निवेश के साथ देश में ईवी उत्पादन इकाइयां स्थापित कर सकते हैं।
आवेदन पोर्टल 21 अक्टूबर 2025 तक खुला रहेगा। योजना के तहत 35,000 डॉलर (करीब 29.9 लाख रुपए) या उससे अधिक मूल्य की पूरी तरह बनी इलेक्ट्रिक कारों के आयात पर 15% सीमा शुल्क की छूट पांच वर्षों तक मिलेगी।
उच्च लागत के बीच इस वर्ष भारत में बैटरी स्टोरेज निवेश $1 बिलियन को पार कर जाएगा: आईईए
अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) के अनुसार, भारत में बैटरी स्टोरेज सिस्टम निवेश $1 बिलियन के आंकड़े को पार करने की उम्मीद है हालांकि उच्च फाइनेंसिंग लागत एक बाधा बनी हुई है। ईटी एनर्ज़ी के मुताबिक बैटरी स्टोरेज निवेश वैश्विक स्तर पर बढ़ रहा है, लेकिन भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए फाइनेंस अभी भी एक चुनौती बनी हुई है।
वर्ष 2024 में बैटरी स्टोरेज सिस्टम में निवेश पिछले वर्ष की तुलना में वैश्विक स्तर पर 45% बढ़ा। कुल 90% से अधिक निवेश के लिए सबसे बड़े योगदानकर्ता अमेरिका, यूरोप और चीन रहे।
उबर, वेमो ने अटलांटा में सेल्फ-ड्राइविंग टैक्सी शुरू की
अल्फाबेट इकाई वेमो के साथ मिलकर उबर टेक्नोलॉजीज मार्च से ऑस्टिन, टेक्सास में अपनी सेवाएं देने के बाद अटलांटा में सेल्फ-ड्राइविंग टैक्सी शुरू करेगी। रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, कंपनी सबसे पहले अटलांटा के 168 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में यात्रा के लिए अपनी सेवा शुरू करेगी।
वेमो के पास सैन फ्रांसिस्को, लॉस एंजिल्स, फीनिक्स और ऑस्टिन में 1,500 से ज़्यादा वाहन हैं जो हर हफ़्ते 250,000 से ज़्यादा राइड चलाते हैं। यह अगले साल अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन में पूरी तरह से ऑटोनॉमस राइड-हेलिंग शुरू करने की भी योजना बना रहा है।
अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों ने रोबोटैक्सियों के कथित यातायात उल्लंघनों के लिए टेस्ला की जांच की
अमेरिका में एक वीडियो सामने आने के बाद वहां के राष्ट्रीय राजमार्ग यातायात सुरक्षा प्रशासन ने टेस्ला से संपर्क किया। इस वीडियो में रोबोटैक्सी को गलत राजमार्ग लेन का उपयोग करते हुए और एक अन्य चालक रहित वाहन को तेजी से पार करते हुए देखा गया। एक बयान में प्रशासन ने कहा है कि कंपनी से इस बारे में और जानकारी मांगी जा रही है।
असल में टेस्ला ने ऑस्टिन, टेक्सास में एक सीमित और सशुल्क परीक्षण सेवा शुरू की है। यह सेवा 18 वर्ष से कम आयु के किसी भी व्यक्ति के लिए उपलब्ध नहीं है, और टेस्ला योजना बना रहा है कि प्रतिकूल मौसम और जटिल चौराहों में वाहन कैसे सुरक्षित और सुगम तरीके से चले।
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ईरान के हमलों के बाद ट्रम्प ने अपनी सरकार से की तेल और गैस उत्खनन के लिए अपील
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपनी सरकार – खास तौर पर अमेरिकी ऊर्जा विभाग – से “ड्रिल, बेबी, ड्रिल” का नारा याद दिलाते हुए आग्रह किया है वह “तुरंत अभी” तेल और गैस की ड्रिलिंग करें। न्यूज़वायर रॉयटर्स ने सोशल वेबसाइट ट्रुथ सोशल पर ट्रम्प के पोस्ट के हवाले से यह ख़बर प्रकाशित की है। अमेरिकी ऊर्जा सचिव क्रिस राइट ने जवाब दिया: “हम इस पर काम कर रहे हैं!” एक अन्य पोस्ट में, ट्रम्प ने बड़े अक्षरों में लिखा: “सभी, तेल की कीमतें कम रखें, मैं देख रहा हूँ! आप दुश्मन के हाथों में खेल रहे हैं, ऐसा न करें।”
लेख में बताया गया है कि यह टिप्पणी “इस आशंका के बीच आई है कि ईरान के परमाणु प्रतिष्ठानों पर अमेरिकी हमलों के बाद मध्य पूर्व से तेल और गैस के प्रवाह में व्यवधान के कारण ऊर्जा की कीमतें बढ़ सकती हैं”। रॉयटर्स ने बताया कि बाइडेन प्रशासन के दौरान अमेरिकी तेल उत्पादन पहले ही रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच चुका है।
न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार, इन गर्मियों में ऊर्जा की लागत में वृद्धि अमेरिकी उपभोक्ताओं और व्यवसायों के लिए विशेष रूप से कठिन साबित हो सकती है, क्योंकि यह लगभग उसी समय हो रही है जब डोनाल्ड ट्रम्प लगभग हर अमेरिकी व्यापारिक साझेदार पर अपने व्यापक, भारी टैरिफ की योजना बना रहे हैं।
वॉल स्ट्रीट जर्नल के मुताबिक “अभी और अधिक कच्चा तेल निकालने की फ्रैकिंग कंपनियों की तत्काल कोई योजना नहीं है,” … इसके पीछे “कारकों की एक लंबी सूची” है, “वैश्विक आर्थिक मंदी से लेकर टैरिफ के दबाव और पहले से ही भरे बाजारों में नए कच्चे तेल की आपूर्ति की लहर” इसके कारण हैं।
ट्रम्प ने कहा कि चीन ईरानी तेल खरीद सकता है, अमेरिकी कच्चा तेल खरीदने का भी आग्रह किया
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा कि इजरायल और ईरान के बीच युद्ध विराम पर सहमति बनने के बाद चीन ईरानी तेल खरीदना जारी रख सकता है। व्हाइट हाउस ने स्पष्ट किया कि यह कदम अमेरिकी प्रतिबंधों में ढील का संकेत नहीं है, रॉयटर्स ने रिपोर्ट किया।
ट्रम्प ने ट्रुथ सोशल पर एक पोस्ट में कहा, “चीन अब ईरान से तेल खरीदना जारी रख सकता है। उम्मीद है कि वो अमेरिका से भी खूब तेल खरीदेंगे।” यह बात उन्होंने ईरान के तीन परमाणु स्थलों पर बमबारी करने के आदेश देने के कुछ ही दिनों बाद कही।
तेल, गैस विस्तार में 70% योगदान 4 ग्लोबल नॉर्थ देशों का
कार्बनकॉपी की रिपोर्ट के अनुसार, 2025 से 2035 के बीच तेल और गैस का जो विस्तार अनुमानित है, उसमें 70 प्रतिशत योगदान चार ग्लोबल नॉर्थ देशों — अमेरिका, कनाडा, नॉर्वे और ऑस्ट्रेलिया — का होगा। ऑयल चेंज इंटरनेशनल ने एक विश्लेषण में चेतावनी दी है कि यदि यह विस्तार जारी रहा, तो भविष्य में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव असहनीय होना तय है।
यदि यह चार देश अपने विस्तार की योजनाएं रोक दें तो 32 अरब टन कार्बन उत्सर्जन टाला जा सकता है, जो दुनिया के सभी कोयला संयंत्रों के सालाना उत्सर्जन का तीन गुना है।
रिपोर्ट ने समृद्ध देशों को 2035 से पहले कड़े कदम उठाने की सलाह दी है।