Vol 2, February 2025 | उत्तराखंड में हिमस्खलन के बाद कई मजदूर फंसे

फोटो: @ITBP_official/X

उत्तराखंड के चमोली में हिमस्खलन के बाद 25 मजदूर लापता

उत्तराखंड के चमोली जिले में भारी बर्फबारी और बारिश के बाद, शुक्रवार को बद्रीनाथ के पास मौजूद माना गांव में हिमस्खलन के कारण सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के 57 श्रमिक फंस गए थे, जिनमें से 32 को सुरक्षित बचाया जा चुका है। हालांकि शेष 25 फंसे मजदूरों के लिए बचाव दल की चिंता बढ़ रही है क्योंकि अंधेरा होने के बाद रहत और बचाव कार्य को अस्थायी रूप से रोकना पड़ा है।

शुक्रवार तड़के हुए हिमस्खलन में बीआरओ का शिविर गहरी बर्फ के नीचे दब गया था। बचाव टीमों ने चरम मौसम और दुर्गम इलाके का सामना करते हुए शुरू में 10 श्रमिकों को बाहर निकाला और बाद में अन्य 22 को सुरक्षित निकालने में भी कामयाब रहे। बचाए गए श्रमिकों में से चार की हालत गंभीर है और उन्हें उपचार के लिए आईटीबीपी के शिविर में ले जाया गया है। भारत-तिब्बत सीमा से 3,200 मीटर की दूरी पर स्थित यह गांव गहरी बर्फ में ढका है, जिससे बचाव कार्य मुश्किल हो गया है। खराब मौसम और हिमस्खलन के खतरे के कारण बचाव कार्य को स्थगित कर दिया गया है।

मुख्य हिमस्खलन के बाद दो और हल्के स्नोस्लाइड हुए। डिफेंस जियोइनफॉर्मेटिक्स रिसर्च इस्टैब्लिशमेंट ने एक दिन पहले हिमस्खलन की चेतावनी दी थी, और मौसम विभाग ने भारी बर्फबारी और बारिश का अनुमान लगाया गया था। इन चेतावनियों के बावजूद, बीआरओ कैंप एक ज्ञात हिमस्खलन-प्रवण क्षेत्र में खुला रहा।

एवरेस्ट पर बर्फ इन सर्दियों में 150 मीटर पीछे खिसकी, सैटेलाइट से मिली जानकारी 

शोधकर्ताओं के अध्ययन के मुताबिक माउंट एवरेस्ट पर बर्फ का आवरण 150 मीटर तक पीछे चला गया है, जो 2024-2025 के सर्दियों के मौसम के दौरान बर्फ जमा होने की कमी का संकेत देता है। अमेरिका के निकोल्स कॉलेज में पर्यावरण विज्ञान के प्रोफेसर, ग्लेशियोलॉजिस्ट मॉरी पेल्टो ने 2 फरवरी को एक ब्लॉग पोस्ट में लिखा था कि अक्टूबर 2023 से लेकर जनवरी 2025 की शुरुआत तक नासा उपग्रह चित्रों का विश्लेषण करने से पता चलता है कि “2024 और 2025 दोनों में जनवरी में हिमरेखा में वृद्धि” दिखती है यानी बर्फ कम हुई है। 

समुद्र तल से 8,849 मीटर ऊपर, माउंट एवरेस्ट पृथ्वी पर सबसे ऊँची चोटी है। हिमालय शिखर नेपाल और तिब्बत के बीच स्थित है। ‘स्नो लाइन’ या हिम रेखा उस सीमा या ऊंचाई को बताती है जहां पर  किसी पर्वत पर बर्फ स्थायी रूप से रहती है। अगर यह हिमरेखा ऊपर खिसक रही हो (जब निचली चोटियों पर बर्फ गल जाये और केवल ऊंचाई पर ही बर्फ रहे) – तो यह एक गर्म जलवायु का सूचक है। पेल्टो ने कहा कि 2021, 2023, 2024 और 2025 सहित हाल की सर्दियों में हालात गर्म और शुष्क बने रहे हैं, जिससे बर्फ का आवरण कम हो रहा है, हिमरेखाएं ऊंची हो रही हैं और जंगल की आग बढ़ रही है।

उन्होंने कहा, हालांकि इस क्षेत्र में प्रत्येक सर्दियों की शुरुआत में कुछ छोटी बर्फबारी की घटनाएं देखी गईं, लेकिन बर्फ का आवरण ठहर नहीं रहा, जिससे पता चलता है कि माउंट एवरेस्ट पर ग्लेशियर 6,000 मीटर से भी ऊपर पीछे हट रहे हैं। उन्होंने कहा कि दिसंबर 2024 में, नेपाल में सामान्य से 20-25 प्रतिशत अधिक तापमान और पूर्व में शुष्क परिस्थितियों के साथ औसत से अधिक तापमान देखा गया। इसके परिणामस्वरूप कोशी प्रांत सहित कई प्रांतों में अत्यधिक सूखा पड़ा। जनवरी 2025 शुष्क बना रहा, लगातार गर्म स्थितियाँ बनी हुई हैं, जिससे उच्च हिम रेखाएँ बनी हुई हैं और दिसंबर की शुरुआत से फरवरी, 2025 की शुरुआत तक बढ़ रही हैं।

महाकुंभ में जलवायु परिवर्तन पर चर्चा, लिए गए यह उपाय

महाकुंभ में जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण और आस्था पर एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण नदियां सूख रही हैं और चरम मौसम की घटनाएं बढ़ रही हैं। इस मौके पर ‘महाकुंभ जलवायु परिवर्तन घोषणापत्र’ जारी करते हुए आदित्यनाथ ने लोगों से आग्रह किया कि एक दूसरे को दोष देने की बजाय, कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन कम करने का प्रयास करें।

इस पहल के तहत राज्य भर में धार्मिक केंद्रों और मंदिरों को पर्यावरण के अधिक अनुकूल बनाया जाएगा। सरकार की योजना सोलर पैनल स्थापित करने, वर्षा जल संग्रह प्रणाली स्थापित करने, कचरे को रीसायकल करने, सिंगल-यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने और पवित्र स्थलों के आसपास हरित क्षेत्र बनाने की योजना है। इसके अतिरिक्त, धार्मिक संगठनों को पर्यावरणीय शिक्षा और सस्टेनेबल प्रैक्टिस को बढ़ावा देने के लिए समर्थन दिया जाएगा।

सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन के कारण गंगा नदी पर मंडरा रहे खतरे पर भी चर्चा की गई। विशेषज्ञों और धर्मगुरुओं ने गंगा नदी की स्थिति पर चिंता व्यक्त की, और इस महत्वपूर्ण जल स्रोत की रक्षा के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता पर जोर दिया।

जानकारों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन पर चर्चा में धार्मिक नेताओं को शामिल करके इसे आम लोगों तक और बेहतर तरीके से पहुंचाया जा सकता है। 

नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक आईफॉरेस्ट सम्मेलन की नॉलेज पार्टनर है। संस्था के सीईओ चंद्रा भूषण कहते हैं कि “धर्म और आस्था में समाज को प्रभावित करने की अपार क्षमता है। क्लाइमेट एक्शन तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक कि यह जनता को सांस्कृतिक और भावनात्मक रूप से प्रभावित न करे। वैज्ञानिकों या नीति निर्माताओं के विपरीत, धार्मिक नेताओं को पता है कि लोगों को यह संदेश कैसे देना है।”

ग्रीन कवर ने उत्सर्जन से अधिक कार्बन को सोखा 

एक अध्ययन से पता चला है कि भारत में ग्रीन कवर ने पिछले 10 सालों में सालाना उत्सर्जित होने वाले कार्बन से अधिक कार्बन को अवशोषित किया है, लेकिन सूखे जैसी चरम जलवायु घटनाओं के दौरान अवशोषण की दर में गिरावट आई। 

भोपाल स्थित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस एडुकेशम एंड रिसर्च (आईआईएसईआर) के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन में जलवायु परिवर्तन मिटिगेशन और एडाप्टेशन में वनस्पति की महत्वपूर्ण भूमिका पर भी जोर दिया गया।

पेड़ और हरी वनस्पतियां प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को अवशोषित करती हैं लेकिन बाकी जंतुओं की तरह ही श्वसन की प्रक्रिया में CO2 वापस हवा में छोड़ देती हैं। इस अवशोषण और उत्सर्जन के अंतर को नेट इकोसिस्टम एक्सचेंज (एनईई) कहा जाता है। शोध करने वाले जानकारों ने बताया है कि पिछले एक दशक में 380 से 530 मिलियन कार्बन प्रति टन सोखा गया। 

कार्बन अवशोषण को लेकर वनस्पति की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर देते हुए शोधकर्ता और पत्र की सह लेखक अपर्णा रवि ने कहा कि कार्बन सीक्वेस्ट्रेशन (पृथक्करण) का स्तर प्रभावशाली है, लेकिन एक्स्ट्रीम क्लाइमेट हो तो इसमें गिरावट आती है।

आईआईएसईआर से जुड़ी एसोसिएट प्रोफेसर धन्यलक्ष्मी पिल्लई ने कहा कि भारत में सदाबहार वन प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से सीओ2 सोखने में अत्यधिक कुशल हैं। हालाँकि, मध्य भारत में पर्णपाती जंगलों ने वातावरण में अधिक कार्बन छोड़ा। 

गर्म मौसम के बावजूद पक्षीप्रेमियों ने देखी 243 प्रजातियां 

पक्षीप्रेमियों का दावा है कि इस साल जल्दी गर्मी की आमद के बावजूद उन्होंने 23 फरवरी को बिग बर्ड डे के दौरान दिल्ली-एनसीआर के इलाके में पक्षियों की 243 प्रजातियां देखीं। जबकि पिछले साल 234 प्रजातियां देखी गईं थी। सबसे अधिक (144) प्रजातियां सुल्तानपुर में देखी गईं, इसके बाद चंदू में (136)। यमुना बायोडाइवर्सिटी पार्क और असोला भट्टी वन्यजीव अभयारण्य जैसे शहरी पार्कों में भी आशाजनक पक्षी गतिविधि देखी गई। उल्लेखनीय प्रजातियों में ओरिएंटल पाइड हॉर्नबिल, वाटर रेल, शॉर्ट-ईयर्ड आउल और भारतीय स्पॉटेड ईगल आदि देखी गईं। 

यमुना बायोडाइवर्सिटी पार्क में लाल-क्रेस्टेड पोर्चर्ड्स को देखा गया, जो एक संकेत है कि इसकी हैबिटैट बहाली की सफलता को दर्शाता है। दिल्ली के सबसे नए पार्क असिता ईस्ट में 82 प्रजातियां देखी गईं, जो संकेत है कि यह बर्डवॉचिंग के लिए एक शानदार जगह हो सकती है। पक्षी विशेषज्ञों का कहना है कि तापमान परिवर्तन पक्षियों और पौधों को प्रभावित कर रहा है। बॉम्बैक्स सेबा जैसे पेड़ों का समय से पहले खिलना जलवायु परिवर्तन का प्रभाव है। इसके बावजूद, दिल्ली के जैव विविधता पार्क स्थानीय और प्रवासी दोनों तरह की पक्षी प्रजातियों की महत्वपूर्ण शरणस्थली हैं। गर्मी के बावजूद भारत के वेटलैण्ड् में इन पक्षियों का आना एक अच्छा संकेत है। 

जीबीएस से 3 और मौतें, लक्षणों से डॉक्टर चिंतित

पिछले हफ्ते के दौरान गिलियन-बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) से महाराष्ट्र में दो और बंगाल में एक मौत की खबर आई। पुणे के दो अस्पतालों में एक 27 वर्षीय महिला और एक 37 वर्षीय पुरुष की मौत हो गई, जबकि कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में मुर्शिदाबाद के एक 22 वर्षीय पुरुष ने दम तोड़ दिया।  इसके साथ ही अबतक जीबीएस से महाराष्ट्र में कुल 21 और बंगाल में 4 मौतें हो चुकी हैं। 

पुणे में डॉक्टर चिंतित हैं कि जीबीएस के कुछ मरीजों में लक्षण तेजी से प्रगति कर रहे हैं। कुछ मरीजों में कुछ ही घंटों के भीतर पक्षाघात निचले अंगों से श्वसन की मांसपेशियों तक पहुँच गया। उदाहरण के लिए, वागोली के एक 34 वर्षीय मरीज ने 2 फरवरी को अपने निचले अंगों में झुनझुनी की शिकायत की, जो केवल छह घंटों में उसके ऊपरी अंगों तक पहुँच गई। इलाज के बावजूद 15 फरवरी को उसका निधन हो गया। जबकि आमतौर पर जीबीएस में मांसपेशियों में कमजोरी धीरे-धीरे विकसित होती है, हाल ही में आए मामलों में तेजी से प्रगति देखी जा रही है। हालांकि कुछ मरीज तुरंत इलाज के बाद तेजी से ठीक भी हो रहे हैं।

फोटो: @IPCC_CH/X

जलवायु अध्ययन की अहम बैठक में अमेरिका की गैरमौजूदगी से बढ़ी चिंताएं

चीन के हांगझू में जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की बैठक सोमवार को शुरू हुई लेकिन अमेरिका वर्तमान में चल रहे सातवें मूल्यांकन चक्र से हट गया है। 

इससे पहले रायटर्स ने जानकारी दी थी कि अमेरिकी सरकार ने अपने वैज्ञानिकों को महत्वपूर्ण संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन बैठकों में भाग लेने से रोक दिया है। इस निर्णय से नेशनल ओशनिक एंड एटमोस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) और यूएस ग्लोबल रिसर्च प्रोग्राम जैसे प्रमुख अमेरिकी संगठनों के वैज्ञानिक प्रभावित होंगे।

इससे पहले, ट्रंप प्रशासन ने पहले पेरिस डील समेत अंतर्राष्ट्रीय जलवायु समझौतों से पीछे हटने और क्लाइमेट रिसर्च के लिए फंडिंग कम करने के फैसले लिए हैं। हिन्दुस्तान टाइम्स में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक, हांग्जो में अमेरिका की अनुपस्थिति से पता चलता है कि वह संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन ही पीछे हट सकता है। विशेषज्ञ इस निर्णय से चिंतित हैं क्योंकि अमेरिका वैश्विक जलवायु प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

अमेरिका के प्रतिष्ठित संगठनों के वैज्ञानिक आईपीसीसी के कई वर्किंग ग्रुप्स के साथ काम करते हैं। इनके द्वारा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों और उससे निपटने के तरीकों (एडाप्टेशन और मिटिगेशन) पर कई गहन वैज्ञानिक रिपोर्ट तैयार होती हैं और उसकी के आधार पर सरकारों को  नीतियां तय करने और हालात का आकलन करने में मदद मिलती है। लेकिन ट्रंप सरकार के इस कदम का मतलब है कि अब अमेरिकी वैज्ञानिक आईपीसीसी की समीक्षा में भाग नहीं लेंगे और अमेरिका आईपीसीसी को फंडिंग नहीं देगा।

क्षतिपूरक वृक्षारोपण के लिए बने कैम्पा फंड से खरीदे आई-फ़ोन, कम्प्यूटर और रसोई उपकरण  

उत्तराखंड विधानसभा में रखी गई एक सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में विकास कार्यों से नष्ट हुए जंगलों की क्षतिपूर्ति के बदले पेड़ लगाने के लिए जमा (कैम्पा) फंड का एक हिस्सा आईफ़ोन, किचन की सामग्री, भवनों को चमकाने और अदालतों के मुकदमें लड़ने पर खर्च कर दिया गया।   नियमों के मुताबिक जब किसी विकास कार्य के लिए किसी एजेंसी (कंपनी) वन क्षेत्र की भूमि दी जाती है तो वह किसी दूसरी जगह वृक्षारोपण के लिए धन जमा कराती है ताकि इस पेड़ कटान की भरपाई हो सके। इसके प्रबंधन के लिए कम्पैनसेटरी फंड मैनेजमेंट एंड प्लानिंग अथॉरिटी (CAMPA) बनाई गई है जो केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अंतर्गत आती है।

लेकिन 31 मार्च 2022 को समाप्त वर्ष के लिए CAG रिपोर्ट में उत्तराखंड में “कैम्पा के कामकाज” पर जो रिपोर्ट दी गई है उसमें उपरोक्त कार्यों के लिए 13.86 करोड़ के फंड को डायवर्ट करने की बात कही गई है। सीएजी का यह मूल्यांकर वर्ष 2019-22 की अवधि का है। इस राशि से वन विभाग के भवनों का रिनोवेशन और मोबाइल और कम्प्यूटर खरीदने का  काम हुआ। राज्य के वन मंत्री सुबोध उनियाल “CAMPA फंड के कामकाज से संबंधित मामला 2019-22 के बीच की अवधि से संबंधित है। CAG की रिपोर्ट में फंड के डायवर्जन जैसे कुछ मुद्दों को लेकर कुछ मुद्दे उठाए गए हैं. मैंने प्रमुख सचिव वन विभाग को मामले की जांच करने का निर्देश दिया है।”

संयुक्त राष्ट्र के क्लाइमेट चीफ ने कहा: मुख्य जलवायु लक्ष्यों में भारत आगे, साफ ऊर्जा से गति तेज़ होगी 

संयुक्त राष्ट्र के जलवायु प्रमुख साइमन स्टील ने कहा है कि भारत पहले से ही प्रमुख जलवायु लक्ष्यों को पूरा कर रहा है और स्वच्छ ऊर्जा और उद्योग का उपयोग करके उसके पास और भी तेजी से बढ़ने का वास्तविक अवसर है।

स्टील ने पीटीआई के साथ एक ईमेल साक्षात्कार में कहा कि एख विशाल और बड़ी आबादी वाला देश होने के कारण भारत में बड़ी संख्या में लोगों को जलवायु प्रभावों का ख़तरा है और इसलिए देश को लोगों, समुदायों, बुनियादी ढांचे और व्यवसायों को अधिक क्लाइमेट प्रभाव झेलने में सक्षम बनाने निवेश करना बड़ा महत्वपूर्ण है। स्टील ने कहा कि भारत ने रिकॉर्ड समय में 100 गीगावॉट क्षमता के बिजली संयंत्र लगाकर और हर गांव में बिजली पहुंचा कर सराहनीय काम किया है।  

स्टील ने पिछले सप्ताह भारत का दौरा किया और देश को “सौर महाशक्ति” बताया। स्टील ने भारत से अपनी पूरी अर्थव्यवस्था को कवर करते हुए एक महत्वाकांक्षी जलवायु योजना विकसित करने की अपील की। उन्होंने कहा कि स्वच्छ ऊर्जा में पूरी दुनिया में जो उछाल है उसे पूरी तरह से अपनाने से भारत की आर्थिक वृद्धि में तेजी आएगी। भारत के प्रयासों की सराहना करते हुए स्टील ने कहा कि कुछ सरकारें केवल बातें करती हैं लेकिन “भारत काम करता है”।

मिर्जापुर में अडानी का थर्मल पॉवर प्रोजेक्ट रोकने की मांग, एनजीटी ने किए सवाल

पर्यावरण एक्टिविस्ट और संरक्षणवादियों ने मिर्ज़ापुर के दादरी खुर्द में प्रस्तावित 1,600 मेगावाट कोयला-आधारित थर्मल पावर प्लांट हेतु चल रहे निर्माण कार्य पर चेतावनी देते हुए, अवैध वन कटाई और हैबिटैट नष्ट किए जाने का आरोप लगाया है।  यह परियोजना अडानी पावर की सहायक कंपनी मिर्ज़ापुर थर्मल एनर्जी (यूपी) प्राइवेट लिमिटेड द्वारा इकोलॉजिकल रूप से संवेदनशील क्षेत्र में विकसित की जा रही है। इस निर्माण कार्य को रोकने के लिए नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल (एनजीटी) में एक याचिका दायर की गई है, जिसकी सुनवाई के दौरान ट्राइब्यूनल ने कंपनी से सवाल किया कि पर्यावरणीय क्लीयरेंस के बिना निर्माण कार्य कैसे शुरू किया जा सकता है। एनजीटी ने कंपनी से एक हलफनामा दायर करने को कहा है। 

इस क्षेत्र को 1952 में एक वन के रूप में अधिसूचित किया जाना था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वन (संरक्षण एवं संवर्धन) अधिनियम 2023 के अनुसार, डीम्ड फॉरेस्ट भूमियों को संरक्षण के दायरे से बाहर कर दिया गया है, जिसके कारण अब उनका प्रयोग परियोनाओं के लिए किया जा सकता है। यह क्षेत्र स्लॉथ भालू, तेंदुए, हाइना और काले हिरन समेत कई लुप्तप्राय प्रजातियों का हैबिटैट है। विंध्यन इकोलॉजी एंड नेचुरल हिस्ट्री फाउंडेशन (वीईएनएचएफ) ने चेतावनी दी है कि यह परियोजना प्रस्तावित स्लॉथ भालू संरक्षण रिजर्व को खतरे में डाल रही है और कई पर्यावरणीय कानूनों का उल्लंघन कर रही है।

क्षेत्र की इकोलॉजी पर खतरे को देखते हुए 2016 में एनजीटी ने वेलस्पन एनर्जी की 1,320 मेगावाट परियोजना को रद्द कर दिया था। बाद में, अडानी ने इस परियोजना को 400 करोड़ रुपए में खरीदा और इसकी क्षमता को बढ़ाकर 1,600 मेगावाट कर दिया। अडानी समूह ने मई 2024 में पर्यावरणीय क्लीयरेंस के लिए आवेदन किया था, जो अभी लंबित है।

फोटो: @MahaKumbh_2025/X

गंगा में प्रदूषित पानी की रिपोर्ट पर एनजीटी सख्त

नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल (एनजीटी) ने प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान गंगा के पानी की गुणवत्ता पर उत्तर प्रदेश सरकार की रिपोर्ट की आलोचना की है, और कहा कि रिपोर्ट में आवश्यक विवरणों की कमी है। इससे पहले केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने संगम के पानी में भारी मात्रा में मानव और पशु अपशिष्ट से पैदा होने वाले फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया की उपस्थिति की सूचना दी थी।

एनजीटी ने सीपीसीबी और उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) दोनों को पानी की गुणवत्ता की निगरानी करने और एक तय समय सीमा के भीतर निष्कर्ष प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था। सीपीसीबी ने 3 फरवरी को अपनी रिपोर्ट दायर की, जिसमें कहा गया कि संगम का जल नहाने के लिए उपयुक्त नहीं है। 

जबकि यूपीपीसीबी कार्रवाई की रिपोर्ट देने करने में विफल रहा, जिसके बाद एनजीटी बोर्ड के अधिकारियों को बुलाकर स्पष्टीकरण माँगा।

सीपीसीबी के निष्कर्षों से पता चलता है कि जनवरी में अलग-अलग तारीखों पर मॉनिटर की जा रही सभी जगहों से एकत्र किए गए पानी के नमूनों में फीकल कोलीफॉर्म का स्तर सीमा से अधिक था।

कैग रिपोर्ट ने दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रण उपायों की खामियों को किया उजागर

महालेखापरीक्षक (कैग) की एक हालिया रिपोर्ट ने दिल्ली सरकार के वायु प्रदूषण नियंत्रण प्रयासों में कई विसंगतियों पर प्रकाश डाला है। द इंडियन एक्सप्रेस ने रिपोर्ट की जानकारी रखनेवाले सूत्रों के हवाले से बताया कि वायु गुणवत्ता मॉनिटरिंग स्टेशनों को पेड़ों और सड़कों के पास रखा गया था, जिससे प्रदूषण की सही रीडिंग नहीं मिली। प्रदूषण नियंत्रण प्रमाण पत्र (पीयूसीसी) जारी करने में भी गंभीर समस्याएं पाई गईं। कुछ प्रमाणपत्र एक ही समय में या 1-2 सेकंड के भीतर कई वाहनों के लिए जारी किए गए। इसके अतिरिक्त, 2018 से 2021 के बीच, केवल 46 से 63 प्रतिशत पंजीकृत वाहनों की प्रदूषण जांच की गई। 

परिवहन विभाग ने तकनीकी मुद्दों को स्वीकार किया और कहा कि पीयूसीसी जारी करने की प्रक्रिया को राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र में स्थानांतरित कर दिया जाएगा। रिपोर्ट पार्किंग विकास निधि के उपयोग में पारदर्शिता की कमी पर भी चिंता जताई गई है। 2014-15 और 2020-21 के बीच, पार्किंग विकास शुल्क के रूप में 673.60 करोड़ रुपए एकत्र किए गए थे, लेकिन इनका उपयोग कैसे किया गया था, इसका कोई स्पष्ट रिकॉर्ड नहीं है। यह रिपोर्ट मौजूदा सत्र के दौरान विधानसभा में रखी जाएगी।

साफ हवा वाले शहरों में आई 39 फीसदी की गिरावट

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक देश में 26 फरवरी 2025 से साफ हवा वाले शहरों की गिनती में करीब 39 फीसदी की गिरावट आई। वहीं उन शहरों की संख्या में दस फीसदी का इजाफा हुआ है, जिनमें वायु गुणवत्ता ‘खराब’ बनी हुई है। 

आंकड़ों के मुताबिक, 27 फरवरी 2025 को बिहार के हाजीपुर में हवा सबसे प्रदूषित रही, जहां वायु गुणवत्ता सूचकांक 272 दर्ज किया गया। इसी तरह बारीपदा देश का दूसरा सबसे प्रदूषित शहर रहा, जहां एक्यूआई 220 दर्ज किया गया।

प्रदूषण के मामले में मोतिहारी तीसरे स्थान पर रहा, जहां सूचकांक 216 दर्ज किया गया है। राजधानी दिल्ली, जो एक दिन पहले प्रदूषण में पहले स्थान पर थी, वहां प्रदूषण में गिरावट दर्ज की गई। हालांकि दिल्ली में अभी भी वायु गुणवत्ता खराब बनी हुई है।

प्रदूषण करने वाली निर्माण गतिविधियों को रोकेगा ग्रेटर चेन्नई कॉरपोरेशन

ग्रेटर चेन्नई कॉरपोरेशन (जीसीसी) ने निर्माण गतिविधियों से प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए प्रस्तावित दिशानिर्देश जारी किए हैं। कॉरपोरेशन पर्यावरण को प्रदूषित करने वाली निर्माण गतिविधियों को रोकने की भी योजना बना रहा है। दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने पर 30,000 से ​​5 लाख रुपए तक का जुर्माना प्रस्तावित है। यदि 15 दिनों के भीतर उल्लंघन को ठीक नहीं किया जाता है तो काम रोका जा सकता है। उल्लंघनों को उच्च-महत्व, मध्यम-महत्व और निम्न-महत्व की श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है। निम्न-महत्व के उल्लंघनों को ठीक करने के लिए 10 दिनों की सीमा निर्धारित है। प्रस्तावित नियम निर्माण परियोजनाओं, बैचिंग प्लांट और रेडी-मिक्स कंक्रीट साइटों पर लागू होंगे।

भारत की सौर क्षमता 204% बढ़ी, अबतक की सबसे बड़ी वृद्धि

भारत ने 2024 में अपनी सौर क्षमता 25.2 गीगावाट की बढ़ोत्तरी की। यह 2023 में 8.3 गीगावाट की वृद्धि तुलना में 204% अधिक है। मेरकॉम के अनुसार, यह देश के इतिहास में उच्चतम वार्षिक क्षमता वृद्धि है। इस वृद्धि के पीछे 87% योगदान बड़ी सौर परियोजनाओं का था, जबकि शेष 13% योगदान रूफटॉप सोलर का था।

सौर क्षमता वृद्धि में राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र अग्रणी रहे। कुल क्षमता में राजस्थान का योगदान 32%, गुजरात का 27% और महाराष्ट्र का 8% था। 

भारत सरकार घरेलू सोलर उद्योग को देगी सब्सिडी

भारत सरकार घरेलू सोलर मैनुफैक्चरिंग उद्योग को बढ़ावा देने के लिए 1 बिलियन डॉलर की सब्सिडी देने की योजना बना रही है। योजना में वेफर्स और इंगोट के घरेलू उत्पादन पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। वेफर्स सिलिकॉन की पतली डिस्क होती है और इंगोट शुद्ध सिलिकॉन का एक बेलनाकार ब्लॉक होता है, जिनका इस्तेमाल सोलर सेल और सर्किट बनाने के लिए किया जाता है।

इस प्रयास का उद्देश्य चीन पर निर्भरता को कम करना और वैश्विक अक्षय ऊर्जा बदलाव का समर्थन करना है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के नेतृत्व में तैयार किए गए इस प्रस्ताव को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शीर्ष सलाहकारों का समर्थन प्राप्त है और जल्द ही कैबिनेट इसकी समीक्षा कर सकती है।

हालांकि, सरकार अभी भी हितधारकों से चर्चा कर रही है और कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है। मौजूदा समय में भारत सौर उपकरणों के लिए बहुत हद तक चीन पर निर्भर करता है। देश की वर्तमान वेफर और इंगोट उत्पादन क्षमता सिर्फ 2 गीगावाट है।

2030 के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए भारत को दुगनी तेजी से बढ़ानी होगी अक्षय ऊर्जा क्षमता: रिपोर्ट

भारत को 2030 तक अपने स्वच्छ-ऊर्जा लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अगले पांच सालों में वार्षिक सोलर और पवन क्षमता वृद्धि को दोगुना करना होगा। ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर (जीईएम) की रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में रिकॉर्ड वृद्धि के बावजूद भारत 2022 तक 175 गीगावाट क्षमता तक पहुँचने के अपने पिछले लक्ष्य से पीछे है। भारत का लक्ष्य 2030 तक कम से कम 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता प्राप्त करना है। वर्तमान में, भारत के पास 165 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि कई अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं प्रगति पर होने के बावजूद, 2024 में भारत के कुल बिजली उत्पादन में जीवाश्म ईंधन का योगदान दो-तिहाई से अधिक था।

ऑफ-ग्रिड परियोजनाओं में सौर पैनलों के लिए आवश्यक दक्षता घटाने का प्रस्ताव

नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) ने ऑफ-ग्रिड परियोजनाओं में उपयोग किए जाने वाले सोलर पैनलों के लिए आवश्यक दक्षता को कम करने का प्रस्ताव दिया है। वर्तमान में, क्रिस्टलाईन सिलिकॉन (सी-एसआई) पैनलों की दक्षता कम से कम 19% होनी चाहिए; प्रस्ताव में इसे 18% करने की बात की गई है। इस परिवर्तन का उद्देश्य लैंप, स्ट्रीटलाइट्स और पंखों जैसे ऑफ-ग्रिड सोलर सोल्युशन लागू करने को और किफायती बनाना है। कैडमियम टेलुराइड (सीडीटीई) थिन-फिल्म पैनलों के लिए दक्षता के मानक अपरिवर्तित रहेंगे। इसके अतिरिक्त, एमएनआरई एक नई सूची, एएलएमएम लिस्ट-I (वितरित अक्षय ऊर्जा) तैयार करने की योजना बना रहा है, विशेष रूप से ऑफ-ग्रिड एप्लीकेशन के लिए।

नई ईवी नीति: निवेश करने वाली विदेशी कंपनियों के लिए आयत शुल्क में भारी कटौती

भारत सरकार एक नई इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) नीति की घोषणा करने की तैयारी कर रही है, जिसके तहत स्थानीय निर्माण में निवेश करने के इच्छुक विदेशी वाहन निर्माताओं के लिए आयात शुल्क में भारी कटौती की जाएगी। नई नीति के तहत प्रीमियम इलेक्ट्रिक कारों पर आयात टैरिफ को 110 प्रतिशत से घटाकर 15 प्रतिशत करके टेस्ला, हुंडई और वोक्सवैगन जैसी कंपनियों को आकर्षित किया जाएगा। हालांकि, टैरिफ में कटौती का लाभ का लाभ उठाने के लिए इन कंपनियों को भारत में कम से कम $500 मिलियन (4,150 करोड़ रुपए) का निवेश करना होगा।

जिन विदेशी कंपनियों को योजना का लाभ लेना है उन्हें: भारत में एक कारखाना स्थापित करके तीन साल के भीतर उत्पादन शुरू करना होगा; शुरुआत में 25% और पांच साल के भीतर 50% कल-पुर्जों को स्थानीय रूप से प्राप्त करना होगा; दूसरे साल में 2,500 करोड़ रुपए और पांचवें साल में 7,500 करोड़ रुपए के राजस्व लक्ष्य को प्राप्त करना ही होगा; चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर पर निवेश को 4% तक सीमित करना होगा। 

टेस्ला अप्रैल 2025 तक कम लागत वाली ईवी के साथ भारतीय बाजार में प्रवेश कर सकती है, जिसकी कीमत लगभग 21 लाख रुपए होगी। हालांकि, कंपनी ने अभी तक भारत में मैनुफैक्चरिंग योजनाओं के बारे में जानकारी नहीं दी है। हालांकि ग्लोबल कैपिटल मार्केट कंपनी सीएलएसए की एक रिपोर्ट के अनुसार, आयात शुल्क में कटौती के बाद भी टेस्ला की सबसे सस्ती कार की कीमत लगभग 35 से 40 लाख रुपए होगी।

टेस्ला ने दिया भारत में रोज़गार का विज्ञापन

टेस्ला के सीईओ ईलॉन मस्क की वाशिंगटन, डीसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मुलाकात के कुछ दिनों बाद ही टेस्ला ने भारत में 14 पदों के लिए आवेदन आमंत्रित किए हैं। इनमें से तेरह नौकरियां मुंबई में स्थित हैं, जिनमें सेवा सलाहकार, पार्ट्स सलाहकार, सेवा तकनीशियन और स्टोर मैनेजर जैसे पद शामिल हैं। जबकि पीसीबी डिजाइन इंजीनियर का पद पुणे के लिए है।

टेस्ला ने अपनी आधिकारिक वेबसाइट के साथ -साथ सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट लिंक्डइन पर इन नौकरियों को सूचीबद्ध किया है। दोनों प्लेटफॉर्मों पर इन नौकरियों के लिए आवेदन किए जा सकते हैं।

रॉयटर्स की खबर के अनुसार, टेस्ला ने मुंबई के बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स और दिल्ली के एरोसिटी में शोरूम के लिए जगहें ली हैं। प्रारंभ में, टेस्ला की योजना अपनी बर्लिन फैसिलिटी से वाहनों को आयात करने की है, और भविष्य में संभावित रूप से पुणे के चाकण क्षेत्र में कंपनी विनिर्माण इकाई स्थापित कर सकती है।

2030 तक भारत में संचालित होंगे 2.8 करोड़ इलेक्ट्रिक वाहन: रिपोर्ट

इंडिया एनर्जी स्टोरेज एलायंस (आईईएसए) ने एक रिपोर्ट में कहा है कि भारत में कुल ऑपरेशनल इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवीएस) की संख्या 2030 तक 28 मिलियन होने की संभावना है। रिपोर्ट के अनुसार बढ़ती मांग और इंसेटिव के कारण ईवी की खरीद बढ़ रही है। वित्त वर्ष 2023-2024 में भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) की संचयी बिक्री 4.1 मिलियन यूनिट से अधिक रही।

आईईएसए ई-मोबिलिटी, ऊर्जा भंडारण और हाइड्रोजन पर काम करने वाला एक गठबंधन है। इसका अनुमान है कि 2030 तक वाहनों की वार्षिक बिक्री में 83% हिस्सेदारी इलेक्ट्रिक दो-पहिया वाहनों की होगी, 10% इलेक्ट्रिक चार-पहिया वाहनों की जबकि वाणिज्यिक वाहन जैसे ट्रक, बसें और तीन-पहिया वाहन बिक्री में 7 प्रतिशत योगदान देंगे।

ट्रंप सरकार ने संघीय इमारतों में ईवी चार्जर्स को बंद करने का आदेश दिया

अमेरिकी सरकार ने संघीय भवनों को इलेक्ट्रिक वाहन चार्जरों का उपयोग करने से रोकने का आदेश दिया है। ब्लूमबर्ग ने एक सूत्र के हवाले से बताया कि सरकारी भवनों और वाहनों का प्रबंधन करने वाली संस्था जनरल सर्विसेज एडमिनिस्ट्रेशन (जीएसए) ने हाल ही में एजेंसियों को एक ईमेल भेजकर इस योजना के बारे में सूचित किया। सरकार और व्यक्तिगत वाहनों दोनों के लिए उपयोग किए जाने वाले चार्जर अब आवश्यक नहीं हैं। जीएसए ने अभी तक इसपर कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं की है।

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने ईवी समर्थन समाप्त करने को एक प्रमुख आर्थिक लक्ष्य बनाया है। इस महीने की शुरुआत में परिवहन विभाग के संघीय राजमार्ग प्रशासन ने भी घोषणा की थी कि वह राजमार्गों पर लगे ईवी चार्जर्स के लिए फंडिंग रोक देगा।

अमेरिका ने ईरान के तेल व्यापार करने वाली 4 भारत-स्थित कंपनियों पर लगाई रोक

अमेरिका ने उन चार भारत स्थित फर्मों पर रोक लगा दी है जो ईरान के साथ आइल ट्रेड कर रही थी। इसके फैसले के कारण 30 से अधिक लोगों और कई जहाज़ों को ब्लैकलिस्ट किया है। जिन कंपनियों पर रोक है उनमें यूएई और हांगकांग के साथ तेल व्यापार में कम कर रही बिचौलिया फर्म, भारत और चीन में काम कर रहे टैंकर ऑपरेटर और मैनेजर और ईरान की राष्ट्रीय तेल कंपनी ऑइल टर्मिनल कंपनी के प्रमुख   शामिल हैं। भारत स्थित जिन चार कंपनियों पर रोक लगाई गई है उन्होंने 2020 और 2024 के बीच पंजीकरण किया था। 

इन पाबंदियों के कारण कोई अमेरिकी नागरिक इन कंपनियों या व्यक्तियों के साथ व्यापार नहीं कर सकता और उल्लंघन करने पर सिविल और आपराधिक पेनल्टी लगाई जा सकती है। भारत ने ट्रम्प के पहले कार्यकाल के दौरान 2019 में ईरान से तेल आयात बंद कर दिया था। ईरान का 1 – 1.5 मिलियन बैरल टन निर्यात होने वाला अधिकांश तेल चीन को ही जाता है जिसने अमेरिकी पाबंदियों की कोई परवाह नहीं की। 

भारत में अमेरिका से कच्चे तेल का आयात डबल, रूसी आयात घटा

अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण फरवरी में भारत का रूसी तेल आयात लगभग एक चौथाई कम हो गया, जबकि अमेरिकी तेल आयात लगभग दोगुना हो गया। भारत  की योजना अमेरिकी ऊर्जा खरीद को दो-तिहाई तक बढ़ाकर 25 बिलियन डॉलर पहुँचाने की है।

इकॉनॉमिक टाइम्स ने ऊर्जा कार्गो ट्रैकर वोर्टेक्सा से प्राप्त आंकड़ों के हवाले से बताया कि फरवरी के शुरुआती 20 दिनों के दौरान, रूसी बंदरगाहों पर भारत जानेवाले टैंकरों में प्रतिदिन औसतन 1.07 मिलियन बैरल (एमबीडी) तेल लोड किया गया, जबकि जनवरी में यह आंकड़ा 1.4 एमबीडी था। वहीं अमेरिकी बंदरगाहों पर भारत जानेवाले जहाजों में औसत लोडिंग 0.2 एमबीडी थी, जो जनवरी में 0.11 एमबीडी से अधिक थी।

450 बिलियन यूनिट तक बढ़ेगी बिजली की मांग, कोयला, गैस के भंडार तैयार

देश में अप्रैल-जून 2025 के दौरान बिजली की खपत 450 बिलियन यूनिट और पीक डिमांड स्केल 270 गीगावाट तक पहुंचने की संभावना है। हिंदू बिज़नेसलाइन ने सरकारी सूत्रों के हवाले से बताया कि इस मांग को पूरा करने के लिए ऊर्जा, कोयला और रेल मंत्रालयों ने व्यापक तैयारियां की हैं।  

ऊर्जा सचिव पंकज अग्रवाल ने कहा है कि 1,800 मेगावाट क्षमता के लिए गैस खरीदने हेतु एक निविदा जारी की गई है। कोयला भंडार पर उन्होंने कहा कि मंत्रालय कई सालों में अपनी सबसे अच्छी स्थिति में है। देश के पास लगभग 21 दिनों का स्टॉक है जो अच्छी तरह वितरित है। अक्टूबर 2024 के बाद से, कोयला मंत्रालय ने उत्पादन में लगातार वृद्धि की है। अप्रैल-जून 2024 के दौरान भारत ने सबसे लंबी हीटवेव का सामना किया, जिस दौरान ऊर्जा की मांग 250 गीगावाट तक पहुंच गई और खपत 452 बिलियन यूनिट के ऊपर थी। कोयले की मांग पिछले साल के मुकाबले 7.3% बढ़ी, फिर भी मंत्रालय ने बिजली की कमी को 0.2-0.4% के बीच सीमित रखा।