जलवायु संकट हो रहा अपरिवर्तनीय, रिकॉर्ड स्तर पर क्लाइमेट संकेतक
जर्मनी के पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट ऑफ क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च के शोधकर्ताओं ने ‘अपरिवर्तनीय जलवायु संकट’ की चेतावनी दी है, क्योंकि 35 प्रमुख जलवायु संकेतकों में से 25 रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गए हैं। चरम मौसम की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं और जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन अब तक के उच्चतम स्तर पर है।
धरती की सतह का तापमान, समुद्र की ऊष्मा, समुद्र का जलस्तर और मानव आबादी में तेजी से वृद्धि हो रही है। मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन भी अभूतपूर्व स्तर पर पहुंच गया है।
इस रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने बर्फ की चादर का पिघलना और जंगलों का नष्ट होना जैसे क्लाइमेट ‘टिपिंग पॉइंट्स’, या बड़े बदलाव के संकेतों को रेखांकित किया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु संकट का ‘नया चरण’ शुरू हो रहा है और अत्यधिक खपत को रोकने और जनसंख्या में वृद्धि को कम करने के लिए परिवर्तनकारी उपायों की तत्काल आवश्यकता है। शोधकर्ताओं ने यह भी कहा कि 2024 में जलवायु परिवर्तन के कारण भारत समेत पूरे एशिया में विनाशकारी हीटवेव और अधिक गंभीर हो गई थी।
मेघालय में बाढ़ से कम से कम 15 लोगों की मौत, गारो हिल्स सबसे ज्यादा प्रभावित
भारत के पूर्वोत्तर राज्य मेघालय में पिछले सप्ताह भारी बारिश के कारण आई बाढ़ और भूस्खलन में कम से कम 15 लोग मारे गए। इसकी सीमा उत्तरी बांग्लादेश से लगती है, जहाँ कम से कम छह लोग मारे गए।
रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, मेघालय में पीड़ितों में एक ही परिवार के सात सदस्य शामिल थे, जो दक्षिण गारो हिल्स जिले में जिंदा दफन हो गये। दो लोगों के वाहन बाढ़ के पानी में बह गए और एक व्यक्ति जो पेड़ गिरने से मारा गया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि बाढ़ ने विशाल कृषि भूमि को जलमग्न कर दिया, जिससे फसलों को काफी नुकसान हुआ, हालांकि पूरी क्षति का आकलन अभी भी किया जा रहा है।
देश में इस साल मानसून के दौरान 934.8 मिमी बारिश दर्ज की गई, जो 2020 के बाद से सबसे अधिक है। सामान्य रूप से मानसून के दौरान 868.6 मिमी वर्षा होती है।
जून-सितंबर के मानसून सीज़न के दौरान दक्षिण एशिया के कई हिस्से बाढ़ से तबाह हो गए हैं। अक्टूबर की शुरुआत में, नेपाल में दो दिनों की लगातार बारिश के कारण घर, सड़कें, बिजली संयंत्र और पुल बह जाने के बाद भूस्खलन और बाढ़ में दर्जनों बच्चों सहित कम से कम 244 लोग मारे गए थे। थिंक टैंक सेंटर फॉर पॉलिसी डायलॉग के एक अध्ययन के अनुसार, अगस्त में बांग्लादेश में बाढ़ से 70 से अधिक लोगों की मौत हो गई और अनुमानित 1.2 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ।
‘परफेक्ट स्टॉर्म’ हेलेन के कारण अमेरिका में 232 मौतें, फ्लोरिडा में मिल्टन ने मचाई तबाही
अमेरिका के दक्षिण-पूर्व क्षेत्रों में आए चक्रवाती तूफ़ान हेलेन के कारण 200 से अधिक लोगों की मौत के कुछ दिनों बाद फ्लोरिडा में हरिकेन मिल्टन ने करीब 24 लोगों की जान ले ली। तूफान के कारण पूरे राज्य में 13 लाख से अधिक लोग बिना बिजली के रहे। द न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार, फ्लोरिडा के तट पर भारी बारिश जारी है और स्थानीय समुदाय तूफान और उसके बाद बाढ़ का सामना कर रहे हैं।
इससे पहले पिछले हफ्ते आए तूफ़ान हेलेन ने नार्थ कैरोलिना, साउथ कैरोलिना, जॉर्जिया, फ्लोरिडा, टेनेसी और वर्जीनिया में तबाही मचाई थी, जिसमें अबतक 232 मौतों की पुष्टि हो चुकी है। हेलेन पिछले 50 वर्षों में मेनलैंड अमेरिका से टकराने करने वाला दूसरा सबसे घातक तूफान साबित हुआ।
टेनेसी राज्य के जलवायु विज्ञानी एंड्रयू जॉयनर ने रॉयटर्स को बताया कि पश्चिमी नार्थ कैरोलिना के कुछ हिस्सों में शायद एक बेहद दुर्लभ घटना देखी गई, जो हर 5,000 साल में केवल एक बार होती है। हेलेन के आने से पहले एक और तूफान ने मैक्सिको की खाड़ी से नमी खींचकर जिससे माउंट मिशेल जैसे क्षेत्रों को भिगो दिया। माउंट मिशेल अप्लेशियन पर्वत का सबसे ऊंचा स्थान है। इसके तल पर स्थित स्वान्नानोआ और ब्लैक माउंटेन जैसे स्थान बुरी तरह प्रभावित हुए थे।
इसके बाद हेलेन तूफ़ान बिलकुल सटीक एंगल पर माउंट मिशेल के ऊपर आया जिससे और भी अधिक वर्षा हुई। जॉयनर के अनुसार यह “परफेक्ट स्टॉर्म” था।
पर्माफ्रॉस्ट आर्कटिक नदियों में तट के कटाव को लगभग आधा कम कर देता है
एक नए अध्ययन के अनुसार, पर्माफ्रॉस्ट की उपस्थिति आर्कटिक नदी में नदी तट के कटाव की दर को लगभग आधा कर देती है। शोधकर्ताओं ने पाया है कि नदी तट के कटाव से वहां पर जमा हुआ संग्रहित कार्बन उत्सर्जित हो सकता है और आर्कटिक के बुनियादी ढांचे और वहां समुदायों को “संकट में” डाल सकता है।
उच्च-आवृत्ति उपग्रह अवलोकनों का उपयोग करके, अध्ययन में पाया गया कि पर्माफ्रॉस्ट-जमीन जो कम से कम दो वर्षों से जमी हुई है-मध्य अलास्का में कोयुकुक नदी के किनारे कटाव दर को 47% कम कर देती है। शोधकर्ताओं ने यह अनुमान लगाने के लिए मॉडलिंग का भी उपयोग किया कि “पर्माफ्रॉस्ट के पूरी तरह पिघलने से आर्कटिक नदियों के माइग्रेशन रेट (नदी का प्रवाह बदलने की दर) में 30-100% की वृद्धि हो सकती है।”
दुनिया भर में बढ़ रहा है जंगलों का कटान, वैश्विक आकलन में चेतावनी
अनुसंधान संगठनों के एक समूह की एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि 2024 वन घोषणा आकलन के अनुसार, वनों की कटाई के कारण 91 लाख फुटबॉल मैदानों या 6.37 मिलियन हेक्टेयर के बराबर वन क्षेत्र धरती से गायब हो गये। यह हानि 140 से अधिक देशों द्वारा 2030 तक वनों की कटाई को खत्म करने के लिए निर्धारित लक्ष्य से 45% अधिक थी। डाउन टू अर्थ (डीटीई) द्वारा उद्धृत रिपोर्ट से पता चला है कि पिछले एक दशक में वनों की कटाई और व्यापक हुई है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले वर्ष यानी 2023 में प्राथमिक उष्णकटिबंधीय वनों – जो कार्बन भंडारण और जैव विविधता संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण हैं – में 3.7 मिलियन हेक्टेयर भूमि नष्ट हो गई, जिससे इन वनों की रक्षा के प्रयासों में 38% की बाधा आई।
इसके अलावा, वन क्षरण – यानी जंगलों का पूर्ण विनाश हुए बिना उन्हें होने वाली क्षति जो वनों की कटाई से 10 गुना अधिक खराब है – से 2022 में 62.6 मिलियन हेक्टेयर प्रभावित हुआ है। रिपोर्ट में वैश्विक रुझानों का विश्लेषण किया गया है, जिसमें कहा गया है कि ब्राजील ने वनों की कटाई को कम करने में कुछ प्रगति की है, लेकिन समग्र रुझान नकारात्मक बने हुए हैं। बोलीविया में वनों की कटाई की दर में वृद्धि जारी है, और इंडोनेशिया में इन क्षेत्रों में पहले की सफलताओं को उलटते हुए तेज वृद्धि देखी गई है।
महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में खनन के लिए काटे जाएंगे 1.23 लाख पेड़
महाराष्ट्र राज्य वन्यजीव बोर्ड ने गढ़चिरौली जिले की एटापल्ली और भामरागढ़ तहसीलों में 1,070 हेक्टेयर वन भूमि को खनन के लिए डाइवर्ट करने के तीन प्रस्तावों को मंजूरी दे दी है। इस परियोजनाओं के लिए लगभग 1.23 लाख पेड़ काटे जाएंगे।
टाइम्स ऑफ़ इंडिया की खबर के अनुसार, पिछली बैठक के केवल आठ दिन बाद आनन-फानन में 9 अक्टूबर को बोर्ड की स्थायी समिति की छठी बैठक बुलाई गई। इस बैठक में एक बड़ी कंपनी द्वारा एक दिन पहले ही जमा किए गए प्रस्तावों को मंजूरी दे दी गई। यह कंपनी सुरजागढ़ में भी लौह अयस्क खनन में शामिल है।
इन प्रस्तावों के तहत दस वन क्षेत्रों में हेमेटाइट और क्वार्टजाइट भंडार की खोज और लौह अयस्क का खनन किया जाना है। यह परियोजनाएं ताडोबा-इंद्रावती बाघ अभयारण्य कॉरिडोर में हैं। हालांकि राज्य के मुख्य वन्यजीव वार्डन ने देहरादून स्थित भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा सुझाए गए संरक्षण उपायों के साथ ही इन्हें मंजूरी दी है।
शर्तों में ताडोबा फाउंडेशन को 4 प्रतिशत संरक्षण शुल्क अदा करने के साथ क्षतिपूर्ति के लिए आस-पास के इलाकों में वृक्षारोपण और डब्ल्यूआईआई के वाइल्डलाइफ मिटिगेशन प्लान का पालन करना भी आवश्यक है।
भूमिगत सड़क/रेलवे सुरंगों से पर्यावरण को नुकसान नहीं: वन सलाहकार समिति
केंद्र सरकार की वन सलाहकार समिति के अनुसार वन क्षेत्रों में भूमिगत रोड/रेलवे टनल के लिए खुदाई करने से जमीन के ऊपर पेड़-पौंधों और वनस्पति को कोई नुकसान नहीं होता है इसलिए इन्हें “एनवायरमेंट फ्रेंडली” गतिविधि माना जाना चाहिए। हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, समिति ने एक राज्य सरकार को पत्र लिखकर यह बात कही है, जिसे परिवेश वेबसाइट पर पोस्ट किया गया है। इस पत्र के द्वारा केंद्र ने ‘वन क्षेत्र में सड़क/रेलवे सुरंगों के निर्माण’ को भूमिगत खनन परियोजनाओं के बराबर मानने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है।
पत्र में यह भी कहा गया है कि “भूमिगत खनन परियोजनाओं में प्रतिपूरक वनीकरण की शर्त नहीं होती है क्योंकि इनसे जमीन के ऊपर की वनस्पति और वन्य जीवन को कोई नुकसान नहीं होता है।” समिति का कहना है कि पर्यावरण मंत्रालय को इसी तर्ज पर स्पष्ट करना चाहिए कि वन क्षेत्र में सड़क/रेलवे सुरंगों के निर्माण की परियोजनाओं में भी प्रतिपूरक वनीकरण की आवश्यकता न रखी जाए।
संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के दौरान संशोधित जैव-विविधता योजना जारी करेगा भारत
भारत ने कुनमिंग-मॉन्ट्रियल ग्लोबल बायोडाइवर्सिटी फ्रेमवर्क (केएम-जीबीएफ) के अनुरूप जैव-विविधता के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय योजना में संशोधन किया है।
समाचार एजेंसी पीटीआई ने सरकारी अधिकारियों के हवाले से बताया कि संशोधित योजना 21 अक्टूबर से 1 नवंबर तक कैली, कोलंबिया में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जैव-विविधता सम्मेलन (कॉप16) के दौरान जारी की जाएगी। 1992 के कन्वेंशन ऑन बायोलॉजिकल डाइवर्सिटी (सीबीडी) के तहत सभी देशों को राष्ट्रीय स्तर पर जैव-विविधता के संरक्षण और उपयोग के लिए एक राष्ट्रीय जैव-विविधता रणनीति और कार्य योजना (एनबीएसएपी) बनाना आवश्यक है।
केएम-जीबीएफ का एक प्रमुख लक्ष्य है 2030 तक दुनिया की कम से कम 30% भूमि और महासागरों की रक्षा करना। 2030 तक जंगलों, आर्द्रभूमि और नदियों जैसे क्षतिग्रस्त इकोसिस्टम को बहाल करना भी इसका लक्ष्य है, ताकि वह साफ पानी और हवा प्रदान करना जारी रखें।
यूरोप के कार्बन टैक्स से भारतीय निर्यात होगा प्रभावित: वित्तमंत्री
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने यूरोपीय संघ के कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (सीबीएएम) को एकतरफा और मनमाना बताते हुए कहा है कि इसके लागू होने के बाद भारत के निर्यात को नुकसान होगा।
सीबीएएम वह टैरिफ हैं जो यूरोपीय संघ (ईयू) में आयातित ऐसी वस्तुओं पर लागू होंगे जिनके निर्माण, प्रोसेसिंग और ट्रांसपोर्ट में बहुत अधिक ऊर्जा खर्च होती है। ईयू ने स्टील, सीमेंट और उर्वरक सहित सात कार्बन-इंटेंसिव क्षेत्रों पर 1 जनवरी, 2026 से कार्बन टैक्स लगाने का फैसला किया है।
वित्तमंत्री के कहा कि भारत ने यूरोपीय संघ से इसको लेकर चिंता व्यक्त की है और सरकार लेनदेन की लागत कम करने के तरीकों पर भी विचार कर रही है। यूरोपीय संघ के इस फैसले से भारतीय निर्यातकों का मुनाफा कम हो सकता है, क्योंकि यूरोप भारत के शीर्ष निर्यात स्थलों में से एक है।
सर्दी का मौसम नजदीक आने के साथ प्रदूषण के स्तर में वृद्धि को देखते हुए दिल्ली सरकार ने पटाखों के उत्पादन, भंडारण, बिक्री और उपयोग पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगा दिया है, जो 1 जनवरी तक प्रभावी रहेगा। गुरुवार को लगातार चौथे दिन दिल्ली की वायु गुणवत्ता खराब श्रेणी में रही और वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 277 पहुंच गया।
इस बीच, सैटेलाइट चित्रों के अनुसार, 10 से 13 अक्टूबर के बीच पराली जलाने की 100 से अधिक घटनाएं देखी गईं। दिल्ली-एनसीआर के लिए केंद्र के वायु प्रदूषण नियंत्रण पैनल ने सोमवार को क्षेत्र की राज्य सरकारों को ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (जीआरएपी) के पहले चरण को लागू करने का निर्देश दिया।
पराली जलाने की घटनाओं के मद्देनज़र सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों पर मुकदमा न चलाने पर हरियाणा और पंजाब की सरकारों को फटकार लगाई है और राज्य के मुख्य सचिवों को 23 अक्टूबर तक स्पष्टीकरण मांगा है।
उधर दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति ने एक रिपोर्ट में कहा है कि वाहन, औद्योगिक उत्सर्जन, सड़कों और निर्माण से उड़ने वाली धूल और बायोमास जलने से निकलने वाला धुआं पिछले दशक में सर्दियों के महीनों के दौरान दिल्ली में वायु प्रदूषण बढ़ने के प्रमुख कारण हैं।
मानव-जनित पारा उत्सर्जन में गिरावट, लेकिन वायुमंडलीय स्तर बढ़ा
मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी को एक नए अध्ययन में पारा प्रदूषण के ‘बेमेल’ आंकड़े मिले हैं, यानि मानव-जनित पारा उत्सर्जन में कमी आई, लेकिन पर्यावरण में पारे का स्तर बढ़ गया। पारा एक न्यूरोटॉक्सिन है जो कोयला संयंत्रों और छोटे पैमाने पर सोने के खनन से उत्सर्जित होता है। इसके उत्सर्जन की मॉडलिंग करना मुश्किल होता है क्योंकि यह है तो धातु लेकिन सामान्य तापमान पर तरल अवस्था में रहता है, इसलिए इसमें अनोखे गुण हैं।
अध्ययन में यह भी कहा गया है कि समुद्र और भूमि जैसे सिंक के द्वारा वातावरण से जो पारा हटाया जाता है वह फिर से पर्यावरण में उत्सर्जित हो सकता है, इसलिए इसके प्राथमिक स्रोत का पता लगाना कठिन होता है।
शोधकर्ताओं ने उत्तरी गोलार्ध के डेटा का विश्लेषण किया, जिसमें 2005 से 2020 तक वायुमंडलीय पारे में 10% की गिरावट देखी गई, लेकिन इसके विपरीत वैश्विक स्तर पर पारे की मात्रा में वृद्धि पाई गई। इन निष्कर्षों के द्वारा प्रदूषण मॉडलों और पारे के व्यवहार की समझ बेहतर की जा सकती है।
अमेरिका में डॉल्फिन मछलियों की सांसों में मिला माइक्रोप्लास्टिक
एक अध्ययन में सारासोटा बे, फ्लोरिडा और बारातारिया बे, लुइसियाना में बॉटलनोज़ डॉल्फ़िन की सांसों में माइक्रोप्लास्टिक फाइबर पाए गए हैं, जो मानव फेफड़ों में पाए जाने वाले फाइबर के ही समान हैं। माइक्रोप्लास्टिक्स उन सूक्ष्म प्लास्टिक कणों को कहते हैं जो हवा, भूमि और महासागरों में मौजूद हैं।
सांस के जरिए अंदर जाने वाले माइक्रोप्लास्टिक मनुष्यों में फेफड़ों में संक्रमण पैदा कर सकते हैं, जिससे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। डॉल्फ़िन पर भी यही खतरा मंडरा रहा है। डॉल्फ़िन वैज्ञानिकों को समुद्री इकोसिस्टम और मानव स्वास्थ्य पर प्रदूषकों के प्रभाव को समझने में मदद करती हैं। मौजूदा अध्ययन प्लास्टिक प्रदूषण की व्यापक समस्या पर प्रकाश डालता है।
आईआईटी के शोधकर्ताओं के खोजा पीएम2.5 में कटौती करने का तरीका
आईआईटी दिल्ली के सेंटर फॉर एटमॉस्फेयरिक साइंसेज के शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन में पाया है कि कम लागत वाले सेंसर का उपयोग करके प्रदूषण की मॉनिटरिंग और कचरा प्रबंधन में सुधार करने से दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों में पीएम2.5 प्रदूषक का स्तर कम हो गया। रिपोर्ट में पाया गया कि जहांगीरपुरी में पीएम2.5 का स्तर 26.6% तक कम हुआ, वहीं रोहिणी में 15.7% और करोल बाग में 15.3% कम हुआ।
इस अध्ययन से पता चलता है कि यदि आंकड़ों के आधार पर रणनीति बनाई जाए तो प्रदूषण कम करने में बड़ी सफलता मिल सकती है। साथ ही जोर दिया गया है कि कचरा जलाया न जाए और क्षतिग्रस्त सड़कों और फुटपाथों की मरम्मत करके धूल प्रदूषण को नियंत्रित किया जाए।
रिपोर्ट में सुझाव दिया गया हाइब्रिड तकनीकों का उपयोग करके राष्ट्रीय स्तर पर मॉनिटरिंग की जानी चाहिए और स्थानीय स्तर पर किए जाने वाले उपायों के प्रभाव का अध्ययन किया जाना चाहिए।
रिकॉर्ड वृद्धि के बावजूद 2030 तक तीन गुनी नहीं हो पाएगी अक्षय ऊर्जा क्षमता: इरेना
अंतर्राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा एजेंसी (इरेना) ने पहली आधिकारिक वैश्विक समीक्षा में पाया है कि पिछले साल रिकॉर्ड वृद्धि के बावजूद, दुनिया 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने का लक्ष्य प्राप्त करने से चूक सकती है। इरेना के महानिदेशक फ्रांसेस्को ला कैमरा ने बाकू में एक प्री-कॉप बैठक में यह कहा। इरेना के आकलन के आधार पर, मौजूदा गति से, दुनिया को 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा में आवश्यक वृद्धि का केवल आधा ही संभव हो सकेगा।
इरेना ने बताया कि सौर ऊर्जा को छोड़कर, अन्य स्रोतों में हो रही वृद्धि 2030 तक नवीकरणीय क्षमता को तीन गुना बढ़ाकर 11.2 टेरावाट तक पहुंचाने के लक्ष्य से लगभग 34% कम है। हालांकि पिछले साल दुनिया भर में रिकॉर्ड 473 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा जोड़ी गई, लेकिन विकास दर अभी भी बहुत धीमी है और 2030 के लक्ष्य को पूरा करने के लिए इसे प्रति वर्ष 16.4% तक बढ़ाने की आवश्यकता है।
भारत ने 2024 की पहली छमाही में 11 गीगावॉट से अधिक सौर मॉड्यूल जोड़े
मेरकॉम के एक अध्ययन में कहा गया है कि भारत ने 2024 के पहले छह महीनों में 11.3 गीगावाट सौर मॉड्यूल और 2-GW सौर सेल क्षमता का निर्माण किया। रिपोर्ट के अनुसार, मैनुफैक्चरिंग बढ़ने के पीछे बढ़ती मांग और अप्रैल 2024 में मॉडल और निर्माताओं की स्वीकृत सूची (एएलएमएम) आदेश को फिर से लागू करना प्रमुख कारण है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जून 2024 तक देश की संचयी सौर मॉड्यूल विनिर्माण क्षमता 77.2 गीगावॉट तक पहुंच गई, और सौर सेल विनिर्माण क्षमता कुल 7.6 गीगावॉट थी। जून 2024 के अंत में 51 गीगावॉट मॉड्यूल क्षमता को एएलएमएम प्रमाणन प्राप्त हुआ।
रूफटॉप सोलर से शहरों में दिन का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है: अध्ययन
रूफटॉप पीवी सोलर का शहरी वातावरण में तापमान पर “अनपेक्षित” प्रभाव पड़ता है। पीवी मैगज़ीन की रिपोर्ट के अनुसार, नए शोध से पता चला है कि रूफटॉप सोलर शहरी वातावरण में दिन के तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा सकते हैं और रात के तापमान को 0.6 डिग्री सेल्सियस तक कम कर सकते हैं।
मैगज़ीन ने कहा कि वैज्ञानिकों के एक अंतरराष्ट्रीय समूह ने एक नया मॉडल बनाया है जो नवीनतम मौसम अनुसंधान और पूर्वानुमान (डब्ल्यूआरएफ) मॉडल का उपयोग करता है, इसमें बिल्डिंग एनर्जी मॉडल (बीईएम) और बिल्डिंग इफेक्ट पैरामीटराइजेशन (बीईपी) को एकीकृत किया गया है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि यह सही ढंग से काम करता है, मॉडल का परीक्षण किया गया और कोलकाता के 10 ऑब्जरवेशन स्टेशनों के वास्तविक डेटा के साथ तुलना की गई। यह उन मॉडलों का उपयोग करके किया गया था जो प्रयोगों के माध्यम से पहले ही सटीक साबित हो चुके हैं।
भारत को 2031 तक अपने पवन ऊर्जा क्षमता में सालाना 22% की वृद्धि करनी होगी
एम्बर ने एक नवीनतम विश्लेषण में कहा है कि भारत को 2032 तक 122 गीगावॉट पवन ऊर्जा पैदा करने के अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए “वार्षिक रूप से पवन ऊर्जा की तैनाती में 22% की वृद्धि” करने की आवश्यकता है। रिपोर्ट में पाया गया कि 21 भारतीय राज्यों ने नवीकरणीय खरीद दायित्वों को पूरा करने और अपने नवीकरणीय ऊर्जा पोर्टफोलियो में विविधता लाने के लिए 2030 तक 100 गीगावॉट से अधिक पवन क्षमता का अनुबंध करने का लक्ष्य रखा है।
केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) ने गुणवत्ता और सर्विस से संबंधित 10,000 से अधिक शिकायतों का समाधान नहीं होने के कारण इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहन निर्माता ओला को नोटिस भेजा है।
समाचार एजेंसी पीटीआई ने सूत्रों के हवाले से खबर दी की राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन पर पिछले एक साल से लगातार ओला इलेक्ट्रिक के खिलाफ शिकायतें आ रही थीं। इन शिकायतों को कंपनी तक पहुंचाया भी गया लेकिन कंपनी ने “शिकायतों के निवारण में बहुत कम दिलचस्पी दिखाई”।
जब सीसीपीए का ध्यान इस ओर गया तो उन्होंने पाया कि साल भर में हेल्पलाइन पर 10,000 से अधिक शिकायतें आईं थीं। सबसे अधिक शिकायतें सर्विस को लेकर थीं, फ्री सर्विस की अवधि/वारंटी के दौरान पैसे लेना, विलंबित और असंतोषजनक सर्विस, वारंटी के दौरान सर्विस से इंकार या देरी, सर्विस के बावजूद बार-बार खराबी आना, प्रदर्शन का विज्ञापन के अनुरूप न होना, और अधिक पैसे लेना आदि शामिल हैं।
भारत में मैनुफैक्चरिंग प्लांट नहीं लगाएगी बीवाईडी
चीनी इलेक्ट्रिक कार निर्माता कंपनी भारत में मैनुफैक्चरिंग प्लांट नहीं लगाएगी क्योंकि सरकार ने इसकी अनुमति नहीं दी है। इसके बजाय, कंपनी ने तय किया है कि वह अधिक कस्टम्स ड्यूटी के बावजूद, अपने वाहनों का आयात करेगी। कंपनी को उम्मीद है कि इस रणनीति के साथ वह भारतीय बाजार में अपने वाहनों की लोकप्रियता बढ़ाने में कामयाब होगी। दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी ईवी निर्माता कंपनी बीवाईडी फिलहाल भारत में तीन मॉडलों का आयात करती है। दूसरी ओर, अफ्रीका में यह 12 बाजारों में फैल गई है।
टेस्ला की ड्राइवरलेस कैब निवेशकों को प्रभावित करने में विफल
द गार्जियन की रिपोर्ट के अनुसार, इलॉन मस्क की बहुप्रचारित ड्राइवर-रहित ईवी ‘साइबरकैब’ का प्रदर्शन इसके प्रचार के अनुरूप नहीं रहा।
इसने निवेशकों पर इतना बुरा प्रभाव डाला कि टेस्ला का स्टॉक 12 प्रतिशत गिर गया, जिससे कंपनी का बाजार मूल्य 60 बिलियन डॉलर कम हो गया। रिपोर्ट के अनुसार, आगामी उत्पाद की विशेषताओं, विशिष्टताओं और रिलीज़ की समयसीमा के बारे में स्पष्ट, विस्तृत जानकारी की कमी के कारण निवेशकों का उत्साह कम हो गया।
साइबरकैब के प्रचार के दौरान मस्क ने कहा था कि 50 सालों में पूरा परिवहन स्वचालित हो जाएगा, और आनेवाले दिनों में शहरों में पार्किंग स्पेस की जरूरत नहीं होगी। हालांकि विश्लेषकों ने कहा कि इवेंट के दौरान वह इसके बारे में विस्तृत जानकारी देने में विफल रहे।
ईवी की ओर बढ़ते रुझान से वैश्विक तेल बाजार होगा प्रभावित: आईईए
अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक स्तर पर, विशेष रूप से चीन में, इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर बढ़ता रुझान, तेल बाजार को प्रभावित करने की कगार पर है।
हाल के वर्षों में, बढ़ती तेल की मांग और उत्सर्जन में वृद्धि के लिए चीन सबसे अधिक जिम्मेदार है, लेकिन अब वहां नई कारों में 40% ईवी हैं, जो वैश्विक स्तर पर ईवी बिक्री का 20% हैं। इससे प्रमुख तेल और गैस उत्पादकों को नुकसान हो रहा है। आईईए की ‘वर्ल्ड एनर्जी आउटलुक 2024’ में कहा गया है कि ईवी को अपनाने की गति देखते हुए अनुमान लगाया जा सकता है कि 2030 तक प्रतिदिन 6 मिलियन बैरल तेल की मांग कम हो जाएगी।
भारत ने 10 लाख वर्ग किलोमीटर के ‘नो-गो’ क्षेत्र में तेल की खोज के हरी झंडी दी
पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने एक कार्यक्रम में घोषणा की कि भारत के 35 लाख वर्ग किलोमीटर तलछटी बेसिन में से 10 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में तेल और गैस की खोज के लिए मंज़ूरी ली गई है। यह बेसिन का एक बड़ा हिस्सा है जिसे पहले “नो-गो” क्षेत्र के रूप में नामित किया गया था। इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक, ओपन एकरेज लाइसेंसिंग पॉलिसी (ओएएलपी) के राउंड 9 में जमा की गई 38% निविदायें हाल ही में स्थापित “नो-गो” श्रेणी में आती हैं। दसवें दौर की बोली आयोजित करने की योजना है।
पुरी ने विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के भारत के प्रयासों पर जोर दिया। उन्होंने घोषणा की, “हम इसे आसान बना रहे हैं।” प्रारंभिक निवेश की भी आवश्यकता नहीं है और सरकार भूकंपीय सर्वेक्षणों में मदद के लिए व्यवसायों को भुगतान करेगी।
लॉबीकर्ताओं के दबाव में यूके ने कार्बन कैप्चर परियोजनाओं के लिए £ 22 बिलियन की सब्सिडी जारी की
अंग्रेज़ी अख़बार गार्डियन की एक रिपोर्ट के अनुसार, कार्बन कैप्चर परियोजनाओं के लिए 22 बिलियन पाउंड की सब्सिडी प्रदान करने का यूके सरकार का कदम जीवाश्म ईंधन उद्योग के बढ़ते दबाव के चलते लिया गया। यूके के आधिकारिक पारदर्शिता रिकॉर्ड के अनुसार, बीपी, एक्सॉनमोबिल और इक्विनोर जैसी प्रमुख तेल और गैस कंपनियों ने कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (सीसीएस) पर चर्चा के लिए 2023 में हुई 44 विदेश मंत्रिस्तरीय बैठकों में से 24 में भाग लिया। यह एक महत्वपूर्ण वृद्धि है, यह देखते हुए कि 2020-22 के दौरान, तेल और गैस कंपनियां आम तौर पर सालाना सात से दस सत्रों में ही भाग लेते थे।
यूके की नीति पिछली कंजर्वेटिव सरकार की चार सीसीएस “क्लस्टर” बनाने की योजना पर आधारित है, जिसमें जीवाश्म ईंधन प्रयोग करने वाले उद्यमों और बिजली स्टेशनों द्वारा जारी CO2 के हिस्से को कार्बन कैप्चर के माध्यम से कैप्चर किया जाएगा। भूमिगत पाइपलाइनें बाद में निकाली गई गैस को भंडारण के लिए उत्तरी और आयरिश समुद्र के नीचे समाप्त हो चुके तेल और गैस भंडारों में ले जाएंगी।
बीपी तेल उत्पादन में नियोजित कटौती को कम करेगा
एनर्जी सेक्टर के अपने प्रतिस्पर्धियों के साथ मूल्य के अंतर को कम करने के प्रयास में, अंतर्राष्ट्रीय पेट्रोलियम कंपनी बीपी दशक के अंत तक अपने तेल और गैस के उत्पादन को कम करने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को छोड़ने जा रहा है। 2020 में, इस कंपनी ने नवीकरणीय ऊर्जा पर खर्च बढ़ाने और 2030 तक तेल और गैस के उत्पादन में 40% की कमी करने का लक्ष्य रखा।
पिछले साल फरवरी में कीमतों में तेज वृद्धि के बाद, लक्ष्य को पहले घटाकर 2019 के उत्सपादन स्तर से 25% कम कर दिया गया था, जिसका अर्थ है कि निगम प्रति दिन केवल लगभग दो मिलियन बैरल का उत्पादन करेगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि अब कंपनी औपचारिक रूप से लक्ष्य को छोड़ने की योजना बना रही है।