Vol 1, August 2024 | मंकीपॉक्स: डब्लूएचओ ने एक बार फिर बजाई अलार्म बेल

मंकीपॉक्स: डब्ल्यूएचओ ने बजाई ख़तरे की घंटी, भारत में भी अलर्ट

स्वीडन और यूरोप के दूसरे हिस्सों के बाद अब पकिस्तान-अधिकृत कश्मीर में भी एम-पॉक्स (जिसे पहले मंकीपॉक्स कहा जाता था)  के मामले मिले हैं।

भारत सरकार ने सभी हवाईअड्डों के साथ-साथ बांग्लादेश और पाकिस्तान की सीमा पर भूमि बंदरगाहों के अधिकारियों को भी सतर्क रहने के लिए कहा है

सरकारी सूत्रों का कहना है कि हालांकि भारत में अभी एम-पॉक्स का कोई केस नहीं है, और किसी बड़े आउटब्रेक का खतरा बहुत कम है, फिर भी बाहर से आनेवाले यात्रियों के बीच कुछ मामले मिलने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है

बुधवार, 14 अगस्त को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने इसे पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी घोषित किया था। साल 2022 और 23 के बीच इसके फैलाव के दौरान भी एम-पॉक्स को पब्लिक हेल्थी इमरजेंसी घोषित किया गया था।  मूल रूप से यह बीमारी अफ्रीकी देशों में फैली थी और कांगो में इसके नये मामले आने और तेज़ी से बढ़ने से पूरे विश्व में अलर्ट है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट बताती है कि 2022 से अब तक कुल  99,000 से अधिक मामले पाये जा चुके हैं और 116 देशों में कम से कम 208 लोगों की मौत हुई है। 

एम-पॉक्स चिकित्सा विज्ञान की भाषा में सेल्फ लिमिटिंग वायरल इंफेक्शन है जो MPVX वायरस से होता है लेकिन लापरवाही की स्थिति में इससे मौत भी हो सकती है। बुखार, सिरदर्द और मांसपेशियों में दर्द के अलावा त्वचा पर चकत्ते होना इसके लक्षण हैं। यह संक्रमित रोगी के साथ स्पर्श होने और यौनसंबंध बनाने से फैलता है।  बीबीसी हिन्दी में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक डब्लू एच ओ के महानिदेशक टेड्रॉस ए गेब्रीयेसुस ने कहा, “एमपॉक्स के एक क्लेड का उभरना, कांगो गणतंत्र में इसका तेज़ी से फैलना और कई पड़ोसी देशों में इसके मामलों की जानकारी मिलना बहुत चिंताजनक है।”

भारत में 2022 में हुए आउटब्रेक के दौरान इस बीमारी के मरीज पहचाने गए थे। जानकारों ने कहा है कि यूरोप में इसके मामले सामने आने और  वहां से लगातार अंतरराष्ट्रीय यात्राओं के कारण भारत के लिए यह सतर्क रहने का समय है। 

अगस्त-सितंबर में सामान्य से अधिक मॉनसून का पूर्वानुमान 

मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) का पूर्वानुमान है कि अगस्त और सितंबर में ला निना की अनुकूल परिस्थितियों के कारण अधिक सामान्य से अधिक बारिश होगी। इसका एक मतलब भूस्खलन और बाढ़ की अधिक संभावना भी है। मॉनसून भारत की कृषि के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत की 52 प्रतिशत कृषि भूमि सिंचाई के लिए बारिश पर निर्भर है। जलायशों से पेय जल आपूर्ति और बिजलीघरों के लिए पानी हेतु भी बारिश का बड़ा महत्व है। 

मौसम विभाग का कहना है कि दीर्घ अवधि औसत (लॉन्ग पीरियड एवरेज) के हिसाब से 422.8 मिमी का 106 प्रतिशत रहेगा। देश में एक जून से अब तक 453.8 मिमी वर्षा हुई है जबकि सामान्य वर्षा का आंकड़ा 445.8 मिमी है। इस 2 प्रतिशत की वृद्धि के कारण शुष्क जून के बाद हमारे सामने सामान्य से अधिक बारिश वाला जुलाई है। 

अगस्त-सितंबर में देश के अधिकांश हिस्सों में सामान्य से अधिक बारिश का अनुमान है। आईएमडी प्रमुख मृत्युंजय महापात्र को मुताबिक पूर्वोत्तर के कुछ हिस्सों, पूर्वी भारत से सटे लद्दाख, सौराष्ट्र और कच्छ और मध्य और प्रायद्वीपीय भारत के कुछ हिस्सों में सामान्य से कम बारिश होने की उम्मीद है।

गर्मियों के हालात मॉनसून के महीनों में भी हो रहे महसूस: शोध 

भारत में गर्मियों का मौसम अधिक लंबा हो रहा है। सितंबर में होने वाले एनवाईसी क्लाइमेट सप्ताह से पहले प्रकाशित एक नई रिपोर्ट के अनुसार, भारत के अधिकांश जिलों में मानसून के महीनों – जून, जुलाई और सितंबर – के दौरान भी अत्यधिक आर्द्र गर्मी का सामना करना पड़ रहा है, जिस आधार पर यह कहा जा सकता है कि 140 करोड़ लोगों के देश में गर्मीकी स्थितियां प्रभावी रूप से बढ़ गई हैं।

अंग्रेज़ी अख़बार द हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक “मैनेजिंग मॉनसून इन वॉर्मिंग क्लाइमेट” नाम की यह रिपोर्ट, जलवायु मॉडलिंग और इसरो, आईएमडी और मौसम पूर्वानुमान के लिए यूरोपीय केंद्र के डेटा पर आधारित तैयार की गई है और इसके विश्लेषण में चार मौसमों को शामिल किया गया: जनवरी-फरवरी, मार्च-अप्रैल-मई, जून-जुलाई-अगस्त-सितंबर और अक्टूबर-नवंबर-दिसंबर। रिपोर्ट बताती है कि 84% से अधिक भारतीय जिले अत्यधिक गर्मी की चपेट में हैं, जिनमें से 70% में अत्यधिक वर्षा की घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि देखी जा रही है।

गुजरात, राजस्थान, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मेघालय और मणिपुर जैसे कुछ प्रमुख राज्य हैं जहां अत्यधिक गर्मी और लगातार अनियमित बारिश दोनों तरह घटनाएं एक साथ देखी जा रही हैं। 

अटलांटिक सागर का तापमान प्रभावित कर रहा अमेरिका में चरम हीटवेव की घटनायें

एक नए अध्ययन में कहा गया है कि अटलांटिक महासागर में समुद्र की सतह का तापमान दक्षिण-पूर्वी अमेरिका में यौगिक आर्द्र गर्मी की चरम सीमा – उच्च तापमान और आर्द्रता की घातक सह-घटना – की आवृत्ति को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है। पृथ्वी-प्रणाली मॉडल का उपयोग करते हुए, शोधकर्ताओं ने कई कारकों का अध्ययन किया जो संभावित रूप से इन चरम घटनाओं के शुरुआत की भविष्यवाणी करने में मददगार हैं।

उन्होंने पाया कि असामान्य रूप से गर्म समुद्र का तापमान वायुमंडलीय सर्कुलेशन को प्रभावित कर सकता है, जिससे मैक्सिको की खाड़ी से लेकर दक्षिण-पूर्वी अमेरिका तक गर्मी और नमी एक साथ हो सकती है। इससे यह निष्कर्ष निकाला गया कि “इस अध्ययन के परिणामों का प्रयोग (आर्द्र गर्मी की एक्सट्रीम घटनाओं के बारे में)    प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों को विकसित करने में किया जा सकता है।”

राज्य में एंटीबायोटिक्स की बिक्री में ₹ 1,000 करोड़ की गिरावट 

केरल में राज्य सरकार के सख्त नियमों के बाद एंटीबायोटिक्स दवाओं की बिक्री में ₹ 1,000 करोड़ की गिरावट हुई है। वैसे राज्य में हर साल ₹ 15,000 करोड़ की दवायें बिकती हैं जिनमें ₹ 4,500 करोड़ की एंटीबायोटिक्स बिका करती हैं लेकिन सरकार ने बिना डॉक्टरी सलाह के एंटीबायोटिक्स के अंधाधुंध प्रयोग को रोकने के लिए सख्त नियम बनाये जिस कारण इनकी बिक्री में गिरावट हुई है। 

यह देखते हुए कि कई संक्रामक वायरस रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एंटीमाइक्रोबिएल रजिस्टेंस) विकसित कर रहे हैं, केरल के राज्य स्वास्थ्य विभाग ने एंटीबायोटिक दवाओं के अत्यधिक उपयोग को रोकने के लिए एक साल पहले हस्तक्षेप किया था। इस प्रयास के तहत, विभाग ने डॉक्टर की सलाह के बिना एंटीबायोटिक्स बेचने वाली दवा दुकानों के लाइसेंस रद्द करने का निर्णय लिया। अधिकारियों ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन जैसे चिकित्सा संगठनों को भी मरीजों को एंटीबायोटिक दवाएं लिखते समय सावधानी बरतने का निर्देश दिया है। 

सड़क निर्माण और भू-उपयोग में बदलाव से शाकाहारी जीवों की आनुवंशिकता पर प्रभाव  

एक नए अध्ययन में पाया गया है कि मध्य भारत में भूमि उपयोग पैटर्न में बदलाव और सड़कों के विकास से बड़े शाकाहारी गौर और सांभर की आनुवंशिक कनेक्टिविटी बाधित हो रही है। 

अध्ययन में कहा गया है कि गौर और सांभर दोनों पर भूमि उपयोग परिवर्तनों का नकारात्मक प्रभाव दिख रहा है, और इसका प्रभाव गौर आबादी पर अधिक स्पष्ट था। 

मोंगाबे की रिपोर्ट के मुताबिक शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि इस तरह के अध्ययन से मध्य भारत जैसे महत्वपूर्ण जैव विविधता से समृद्ध इलाकों में कई लुप्तप्राय प्रजातियों के लिए कनेक्टिविटी बनाए रखने के लिए साक्ष्य-आधारित दृष्टिकोण को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी।

वायनाड भूस्खलन: जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश की तीव्रता 10% बढ़ी

पिछले दिनों केरल के वायनाड जिले में अचानक हुई भारी वर्षा के कारण कई भूस्खलन हुए जिनमें अबतक करीब 231 लोगों के मरने की पुष्टि हो चुकी है। अब एक अध्ययन में सामने आया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा की तीव्रता 10% बढ़ गई थी। भारत, स्वीडन, अमेरिका और ब्रिटेन के 24 शोधकर्ताओं की टीम ने कहा कि दो महीने की मानसून वर्षा से अत्यधिक संतृप्त मिट्टी पर एक ही दिन में 140 मिमी से अधिक वर्षा हुई, जो विनाशकारी भूस्खलन और बाढ़ का कारण बनी। 

रेड क्रॉस रेड क्रिसेंट क्लाइमेट सेंटर के क्लाइमेट रिस्क सलाहकार माजा वाह्लबर्ग ने कहा, “जलवायु गर्म होने के साथ और भीषण वर्षा हो सकती है, इसलिए उत्तरी केरल में भूस्खलन के लिए तैयारी करने की तत्काल आवश्यकता है।”

यदि औसत वैश्विक तापमान दो डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है तो वर्षा की तीव्रता में चार प्रतिशत की और वृद्धि हो सकती है। अन्य शोधकर्ताओं ने भी कहा है कि वायनाड भूस्खलन फॉरेस्ट कवर में कमी, संवेदनशील इलाके में खनन और लंबे समय तक बारिश के बाद भारी वर्षा आदि का मिलाजुला असर था।

काबू में आई ग्रीस के एथेंस में जंगल में लगी भयानक आग

ग्रीस ने एथेंस के पास जंगल में भीषण आग पर सफलतापूर्वक काबू पा लिया है। पिछले कई दिनों से आग ने कहर बरपा रखा था। वर्नावास के पास एक जंगली इलाके में शुरू हुई यह आग तेजी से एथेंस के उत्तरी उपनगरों में फैल गई, जिसके परिणामस्वरूप एक व्यक्ति की मौत हो गई, कई इमारतें नष्ट हो गईं और हजारों लोगों को अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा।

जंगल की आग ने लगभग 10,000 हेक्टेयर (24,710 एकड़) भूमि को नुकसान पहुंचाया और इस क्षेत्र पर काफी प्रभाव डाला है। आग लगने का कारण अभी तक पता नहीं चल पाया है। लगभग 40 डिग्री सेल्सियस तापमान और तेज़ हवाओं के पूर्वानुमान के कारण ग्रीस हाई अलर्ट पर है। संभावना है कि इस तरह की आग की घटनाएं और हो सकती हैं।

वन क्षेत्रों में हाइड्रो परियोजनाओं के सर्वे के लिए अब पर्यावरणीय मंजूरी आवश्यक नहीं

वन क्षेत्रों में हाइड्रोपावर परियोजनाओं के प्रोजेक्ट सर्वे के लिए ड्रिलिंग और 100 पेड़ों तक की कटाई के लिए मंजूरी लेने की अनिवार्यता को केंद्र सरकार ने खत्म कर दिया है। इन सर्वेक्षणों को छूट देते हुए वन सलाहकार समिति (एफएसी) ने कहा कि यह “उतनी व्यापक गतिविधि नहीं है और इससे वन भूमि के उपयोग में कोई स्थाई परिवर्तन नहीं होता है”।

हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट में एफएसी के हवाले से कहा गया है कि “इस तरह की प्रारंभिक ड्रिलिंग परियोजना के डिजाइन, विस्तृत रिपोर्ट की तैयारी और प्रस्तावित विकास परियोजना के वित्तीय प्रावधानों का अनुमान लगाने के लिए जरूरी है”। 

एफएसी ने इस मामले पर विचार केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय के अनुरोध के बाद किया। ऊर्जा मंत्रालय के सचिव ने 28 मई को पर्यावरण मंत्रालय को पत्र लिखकर अनुरोध किया कि 25 बोर होल की ड्रिलिंग और 100 पेड़ों की कटाई के लिए जो छूट खनन परियोजनाओं को दी जाती है, वह हाइड्रो और पंप भंडारण परियोजनाओं को भी मिलनी चाहिए।

साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल (एसएएनडीआरपी) के समन्वयक हिमांशु ठक्कर कहते हैं कि “इससे पहले हाइड्रो परियोजनाएं इस छूट के बिना ही प्लान की गई हैं, इसलिए यह अजीब लगता है कि एफएसी ने बिना इसकी जरूरत का पता लगाए इस मांग को स्वीकार कर लिया”।

पश्चिमी घाटों का 56,000 वर्ग किमी इलाका इकोलॉजिकल रूप से संवेदनशील घोषित

भारत सरकार ने पांचवां ड्राफ्ट नोटिफिकेशन जारी करके पश्चिमी घाटों के 56,800 वर्ग किलोमीटर इलाके को इकोलॉजिकल रूप से संवेदनशील घोषित किया है।  छह राज्यों में फैले इस 56,800 वर्ग किमी इलाके में 13 गांव केरल के वायनाड जिले के भी हैं जहां हाल ही में भूस्खलनों में 200 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। 

कुल मिलाकर इस अधिसूचना के तहत प्रस्तावित इकोलॉजिकल रूप से संवेदनशील इलाके (ईएसए) में गुजरात में 449 वर्ग किमी, महाराष्ट्र में 17,340 वर्ग किमी, गोवा में 1,461 वर्ग किमी, कर्नाटक में 20,668 वर्ग किमी, तमिलनाडु में 6,914 वर्ग किमी और केरल में 9,993.7 वर्ग किमी शामिल हैं। केरल के 9,993.7 वर्ग किमी में भूस्खलन प्रभावित वायनाड जिले के दो तालुकों के 13 गांव हैं।

गौरतलब है कि सरकार की यह अधिसूचना वायनाड में भूस्खलन के एक दिन बाद जारी की गई। विपक्ष ने सरकार पर इस अधिसूचना में देरी करने का आरोप लगाया है और कहा है कि यह देरी वायनाड में हुई घटना के लिए सीधे जिम्मेदार है। 

ड्राफ्ट अधिसूचना में खनन, उत्खनन और रेत खनन पर पूर्ण प्रतिबंध प्रस्तावित है, साथ ही मौजूदा खदानों को मौजूदा खनन पट्टे की समाप्ति पर या अंतिम अधिसूचना जारी होने की तारीख से पांच साल के भीतर (जो भी पहले हो), चरणबद्ध तरीके से बंद कर दिया जाएगा। अधिसूचना में नई थर्मल पावर परियोजनाओं पर भी रोक लगाई गई है और कहा गया है कि मौजूदा परियोजनाएं चालू रह सकती हैं लेकिन उनके विस्तार की अनुमति नहीं होगी।

मौजूदा इमारतों की मरम्मत और नवीनीकरण को छोड़कर, बड़े पैमाने पर निर्माण परियोजनाओं और टाउनशिप को भी प्रतिबंधित करने का प्रस्ताव है।

साल 2010 में इकोलॉजिस्ट माधव गाडगिल की अध्यक्षता में बनी समिति ने पूरे पश्चिमी घाट को ईएसए की श्रेणी में रखने का सुझाव दिया था। लेकिन राज्य सरकारों की आपत्ति के कारण ऐसा नहीं किया गया। तबसे लेकर यह मांग उठती रही है कि पूरे पश्चिमी घाट को इकोलॉजिकल रूप से संवेदनशील घोषित किया जाए।  

विशेषज्ञों का मानना है कि ईएसए कवर की अनुपस्थिति के परिणामस्वरूप सालों से पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधियां जारी रहीं। खनन और निर्माण के लिए बड़े पैमाने पर वनों की कटाई भी होती रही। इसके कारण मिट्टी ढीली हो गई और पहाड़ की स्थिरता प्रभावित हुई, जो भारी बारिश के दौरान भूस्खलनों की मुख्य वजह है, जैसा केरल में हुआ।

पिछले 10 सालों में 1,700 वर्ग किमी से अधिक वन क्षेत्र नष्ट हुआ

केंद्र सरकार के आंकड़ों के अनुसार, डेवलपमेंट गतिविधियों के कारण पिछले 10 वर्षों में 1,700 वर्ग किमी से अधिक का वन क्षेत्र नष्ट हो गया है। हालांकि सरकार का कहना है कि इसकी क्षतिपूर्ति के लिए वनीकरण हेतु भूमि अधिग्रहित कर ली गई है।

वन मंत्री भूपेन्द्र यादव ने राज्यसभा को बताया कि पूर्वोत्तर के पांच राज्यों — अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, नागालैंड, मिजोरम और मेघालय में वन क्षेत्र कम हो गया है, जबकि आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा, कर्नाटक और झारखंड जैसे राज्यों में वन क्षेत्र में वृद्धि देखी गई है।

दिल्ली की आधी वॉटर बॉडीज़ केवल कागज़ों पर 

दिल्ली सरकार द्वारा अप्रैल में शुरू किए गए एक आधिकारिक जमीनी आकलन के अनुसार, दिल्ली के लगभग आधे (49.1%) आधिकारिक जल निकाय यानी बॉटर बॉडीज़ (जैसे तालाब, झीलें या वेटलैंड) अब अस्तित्व में नहीं हैं – वे या तो “गायब” हो गए हैं या उन पर अतिक्रमण कर लिया गया है। राजस्व रिकॉर्ड और उपग्रह डेटा के अनुसार, दिल्ली में 1,367 जल निकाय हैं। हालाँकि, ज़मीनी सच्चाई जानने का अभ्यास काफी अंतर दिखाता है।

अप्रैल में दिल्ली उच्च न्यायालय में दिल्ली सरकार द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, राजधानी में कुल 1,367 दर्ज जल निकाय – झीलें, तालाब और जोहड़ –  थे,  जो कि राजस्व रिकॉर्ड के आधार पर 1,045 से अधिक है, और यह उपग्रह इमेजरी पर आधारित जल निकाय को जोड़ने के कारण है। 

दिल्ली उच्च न्यायालय ने सरकार को जल निकायों का जमीनी स्तर पर पता करने का निर्देश दिया, जिसके बाद उसी महीने दिल्ली राजस्व विभाग और दिल्ली राज्य वेटलैंड प्राधिकरण (डीएसडब्ल्यूए) द्वारा एक अभ्यास शुरू किया गया। अब तक इनमें से 1,291 जल निकायों का आकलन किया है, जिनमें से केवल 656 ही अस्तित्व में पाए गए, और शेष 635 मानचित्रों और अभिलेखों के अलावा कहीं मौजूद नहीं हैं।

दिल्ली और देश के अलग अलग हिस्सों में वॉटर बॉडीज़ का इस तरह गायब होते जाना अंधाधुंध निर्माण और खराब ठोस कचरा प्रबंधन का नतीजा है।

वायु गुणवत्ता मानक कड़े करेगी सरकार, आईआईटी कानपुर को सौंपा काम

देश में बढ़ते वायु प्रदूषण से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों (एनएएक्यूएस) को और सख्त करने की योजना बनाई है। इन मानकों को 2009 से संशोधित नहीं किया गया है। 

मिंट की एक रिपोर्ट में मामले से जुड़े दो अधिकारियों के हवाले से बताया गया है कि सरकार ने मानकों को अपडेट करने का काम आईआईटी कानपुर को सौंपा है, जिसने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और अन्य संस्थानों के विशेषज्ञों का एक पैनल गठित किया है।

केंद्र सरकार 1,000 नए एयर मॉनिटरिंग स्टेशन स्थापित करने की भी योजना बना रही है, खासकर उन शहरों में जिनकी आबादी100,000 से अधिक है। वर्तमान में देश भर के 543 शहरों में 1,504 एयर मॉनिटरिंग स्टेशन हैं।

राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक (एनएएक्यूएस) पर्यावरण और जनसाधारण के स्वास्थ्य को वायु प्रदूषण से बचाने के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा तय किए जाते हैं। 

देश के शहरों में तेजी से बढ़ रहा ग्राउंड-लेवल ओजोन प्रदूषण

एक नए अध्ययन से पता चला है कि भारत के प्रमुख शहरों में ग्राउंड-लेवल ओजोन प्रदूषण बढ़ रहा है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) द्वारा जारी अध्ययन के अनुसार, दिल्ली-एनसीआर देश भर के उन 10 शहरों की सूची में शीर्ष पर है, जिनमें ग्राउंड-लेवल ओजोन (ओ3) की सांद्रता अधिक पाई गई।

अध्ययन के अनुसार, 1 जनवरी से 18 जुलाई के बीच 200 दिनों की अवधि के दौरान दिल्ली-एनसीआर में 176 दिनों तक ग्राउंड-लेवल ओजोन की अधिकता पाई गई। इसके बाद मुंबई-एमएमआर और पुणे दूसरे स्थान पर रहे जहां 138 दिन ग्राउंड-लेवल ओजोन की सांद्रता अधिक थी, तीसरे स्थान पर रहा जयपुर जहां यह 126 दिन तक अधिक रही। सीएसई ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सतत परिवेशी वायु गुणवत्ता मॉनिटरिंग प्रणाली (सीएएक्यूएमएस) के तहत आधिकारिक स्टेशनों से मिले डेटा का उपयोग किया।

ग्राउंड-लेवल ओजोन एक अत्यधिक प्रतिक्रियाशील गैस है और विशेष रूप से सांस की बीमारी वाले लोगों के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा करती है। पीएम2.5, यानि पार्टिकुलेट मैटर के विपरीत यह प्रदूषक गैस अदृश्य होती है। ग्राउंड-लेवल ओजोन सीधे उत्सर्जित नहीं होता है, बल्कि नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) और वाहनों, बिजली संयंत्रों, कारखानों और अन्य स्रोतों से उत्सर्जित वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों के बीच एक जटिल पारस्परिक क्रिया से उत्पन्न होता है।

जर्मन वैज्ञानिकों को मिला प्लाटिक खाने वाला फंगस

जर्मनी में वैज्ञानिकों ने एक प्लास्टिक खाने वाले फंगस की पहचान की है, जो हर साल दुनिया के महासागरों को प्रदूषित करने वाले लाखों टन कचरे की समस्या से निपटने में सहायक हो सकता है। 

लेकिन उन्होंने चेतावनी दी है कि उनका काम प्लास्टिक प्रदूषण के समाधान का केवल एक छोटा सा हिस्सा हो सकता है, और इसके बाद भी जरूरी है कि फ़ूड पैकेजिंग और अन्य मलबे को पर्यावरण में प्रवेश करने से रोका जाए, जहां इसे नष्ट होने में दशकों लगते हैं।

उत्तर-पूर्वी जर्मनी में लेक स्टेक्लिन में एक विश्लेषण से पता चला है कि कैसे कुछ प्लास्टिक पर सूक्ष्म फंगस पनपते हैं, जिनके पास खाने के लिए कोई अन्य कार्बन स्रोत नहीं है, जिससे स्पष्ट रूप से पता चला है कि उनमें से कुछ सिंथेटिक पॉलिमर को नष्ट करने में सक्षम हैं।

लखनऊ में बेकार साबित हो रहे ध्वनि प्रदूषण रोकने के प्रयास

लखनऊ में ध्वनि प्रदूषण के आंकड़ों की निगरानी करने के लिए मॉनिटरिंग नेटवर्क, क्वॉलिटी सेंसर और माइक्रोफोन लगाए गए थे। लेकिन यह सारे प्रयास जमीनी स्तर पर विफल हो रहे हैं। गौरतलब है कि ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम 2000 तथा संविधान के 1950 के अनुच्छेद 21 में, बिना शोरगुल के शान्ति से रहने का अधिकार दिया गया है।

लखनऊ में कुल 10 रियल टाइम एंबिएंट नाइस मॉनिटरिंग स्टेशन बनाए गए हैं। इनकी निगरानी राज्य प्रदषण नियंत्रण बोर्ड के सहयोग से केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा की जाती है। लेकिन इन 10 में से 8 स्थानों पर दर्शाए जा रहे आंकड़ें परेशान करने वाले हैं।

बाकी बचे दो क्षेत्र, जिसमें एक यूपी प्रदूषण बोर्ड, लखनऊ के अपने मुख्यालय में है, और दूसरा औधोगिक क्षेत्र चिनहट में हैं। इन दोनों क्षेत्रों में लगा मीटर कई महीनों से बंद पड़ा है, जबकि मुख्य सर्वर पर आधा-अधूरा आंकड़ा दर्ज हो रहा है।

पीएम-कुसुम योजना: 2026 का लक्ष्य पूरा करने के लिए सुधारों की जरूरत

भारत में खेती का सौरीकरण करने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य के साथ 2019 में शुरू की गई प्रधान मंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (पीएम-कुसुम) योजना संकट में है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) की एक नई रिपोर्ट से पता चला है कि योजना ने केवल 30 लक्ष्य ही पूरे किए हैं, जिससे यह आशंका बढ़ गई है कि शायद यह योजना 2026 का टारगेट पूरा न कर पाए।

अगस्त 7 को जारी की गई इस रिपोर्ट में हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में किए गए सर्वेक्षणों के आधार पर योजना की जमीनी हकीकत का गहन विश्लेषण किया गया है, और इसके सफल कार्यान्वयन के लिए एक व्यापक रोडमैप दिया गया है।

पीएम-कुसुम योजना के तीन भाग हैं: पहला, बंजर भूमि पर मिनी-ग्रिड स्थापित करना; दूसरा, डीजल वाटर पंपों की जगह ऑफ-ग्रिड सोलर पंप लगाना; और तीसरा, इलेक्ट्रिक पंपों को ऑन-ग्रिड सोलर पंपों से बदलना और कृषि फीडर के सौरीकरण के लिए मिनी-ग्रिड स्थापित करना। रिपोर्ट के अनुसार दूसरे भाग में अच्छी प्रगति हुई है, खासकर हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में। लेकिन पहले और तीसरे भाग का कार्यान्वयन पिछड़ रहा है। 

रिपोर्ट में कहा गया है कि सस्ती बिजली की उपलब्धता और बड़े सौर पंपों की लागत के कारण किसान सौर ऊर्जा अपनाने में हिचकिचाते हैं। योजना की सफलता के लिए जरूरी है कि इसका विकेंद्रीकरण करके कार्यान्वयन स्थानीय एजेंसियों के जिम्मे सौंपा जाए जिन्हें जमीनी स्थिति की जानकारी हो। साथ ही किसानों को किश्तों में पैसा चुकाने का विकल्प देने से भी योजना की पहुंच बढ़ेगी।

भारत की ऊर्जा क्षमता में अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी बढ़कर हुई 44%

साल 2024 की दूसरी तिमाही (अप्रैल-जून) के दौरान सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी भारत की कुल स्थापित बिजली क्षमता में 19.4% और स्थापित नवीकरणीय क्षमता में 44.2% हो गई, जबकि पिछले साल इस अवधि में यह आंकड़ा क्रमशः 15.9% और 38.4% था।

तजा आंकड़ों के अनुसार, 2024 की दूसरी तिमाही के अंत में  बड़ी पनबिजली परियोजनाओं सहित भारत की स्थापित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता 196.4 गीगावॉट थी, जो कुल बिजली क्षमता मिश्रण का 44% है। पहली तिमाही के अंत में कुल नवीकरणीय ऊर्जा (190.6 गीगावॉट) की हिस्सेदारी 43.1% थी।

भारत ने पिछली तिमाही के दौरान लगभग 36 बिलियन यूनिट सौर ऊर्जा का उत्पादन किया, जबकि पहली तिमाही में उत्पादन 32 बिलियन यूनिट था। जून 2024 के अंत में देश की कुल स्थापित बिजली क्षमता में बड़ी पनबिजली परियोजनाओं का योगदान 10.5% और पवन ऊर्जा का योगदान 10.4% था। बायोमास और लघु पनबिजली की हिस्सेदारी क्रमशः 2.3% और 1.1% थी।

500 गीगावाट अक्षय ऊर्जा का लक्ष्य हासिल करने के लिए होगा 30 लाख करोड़ रुपए का निवेश: सरकार

केंद्रीय मंत्री प्रल्हाद जोशी ने इस महीने की शुरुआत में राज्यसभा में कहा कि 2030 तक देश के 500 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता के लक्ष्य को पूरा करने के लिए 30 लाख करोड़ रुपए तक के निवेश की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि नवीकरणीय सरकार की शीर्ष प्राथमिकताओं में से एक है और इस वर्ष बजट में परिव्यय दोगुना कर 20,000 करोड़ रुपए से अधिक कर दिया गया है।

उन्होंने कहा कि पिछले 10 सालों में पहले ही 7 लाख करोड़ रुपए का निवेश किया जा चुका है, और “500 गीगावॉट की गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा क्षमता स्थापित करने के लिए (30 लाख करोड़ रुपए का निवेश) अपेक्षित है।”

पीएम सूर्य घर, पीएम कुसुम, नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन, वायबिलिटी गैप फंडिंग (वीजीएफ) और सौर मॉड्यूल के लिए पीएलआई जैसी योजनाओं के लिए भी ऑर्डर दिए गए हैं। “इस सब में 1.60 लाख करोड़ रुपए लगेंगे, उन्होंने कहा।  

जोशी ने कहा कि सरकार ने 2030 तक 500 गीगावॉट की गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता हासिल करने और 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन तक पहुंचने का लक्ष्य रखा है।

भारत में 2028 तक 6 गीगावाट हो जाएगा अक्षय ऊर्जा स्टोरेज: क्रिसिल 

क्रिसिल के रिसर्च के अनुसार, भारत 2028 तक 6 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा (आरई) स्टोरेज क्षमता स्थापित कर सकता है। मार्च 2024 तक यह क्षमता 1 गीगावॉट से कम थी। क्रिसिल ने यह अनुमान क्रियान्वित की जा रही परियोजनाओं और नीलामी की अपेक्षित गति को देखते हुए लगाया है।

एजेंसी ने कहा कि देश के कुल ऊर्जा उत्पादन में अक्षय ऊर्जा की बढ़ती हिस्सेदारी को स्थायी रूप से इंटीग्रेट करने के लिए स्टोरेज में वृद्धि महत्वपूर्ण है। 

“परियोजनाओं के धीमे कार्यान्वयन के बावजूद, अक्षय ऊर्जा विकसित करने की ओर सरकार का प्रयास और पिछले दो सालों के दौरान चौबीसों घंटे नवीकरणीय ऊर्जा का टैरिफ बिजली के अन्य स्रोतों के बराबर हो जाने के कारण, अक्षय ऊर्जा एडॉप्शन की उम्मीद बेहतर हुई है,” क्रिसिल ने कहा।

2030 तक भारत में $48.6 अरब का होगा ईवी बाजार; 13 लाख चार्जरों की जरूरत

इकोनॉमिक टाइम्स में प्रकाशित एक हालिया विश्लेषण के अनुसार, 2030 तक भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) का बाजार बढ़कर 48.6 बिलियन डॉलर (लगभग 3.8 लाख करोड़ रुपए) तक पहुंचने की उम्मीद है। विश्लेषण में कहा गया है कि तब तक देश की सड़कों पर लगभग पांच करोड़ इलेक्ट्रिक वाहन होंगे। इस मांग को पूरा करने के लिए भारत को हर साल 400,000 से अधिक चार्जर और 2030 तक 13.2 लाख चार्जर स्थापित करने की जरूरत होगी।

ईवी बाजार में इस उछाल का कारण है चार्जिंग स्टेशनों में लगभग नौ गुना वृद्धि — जिनकी संख्या फरवरी 2022 में 1,800 से  बढ़कर मार्च 2024 में 16,347 हो गई। भारी उद्योग मंत्रालय ने 16 राजमार्गों और 9 एक्सप्रेसवे पर 1,576 ईवी चार्जिंग स्टेशनों के साथ-साथ कई राज्यों में फैले 2,877 ईवी चार्जिंग स्टेशनों को भी अधिकृत किया है।

हालांकि भारत में दोपहिया और तिपहिया इलेक्ट्रिक वाहनों की अधिकता के कारण यहां चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की मांग सबसे अलग है। इस वाहनों में आम तौर पर एसी स्लो चार्जिंग और बैटरी स्वैपिंग का प्रयोग होता है। जबकि चार-पहिया वाहनों और बसों को एसी और डीसी चार्जिंग के मिश्रण की आवश्यकता होती है। निजी दोपहिया और चारपहिया वाहनों के लिए घरेलू और कार्यस्थल चार्जिंग प्रमुख होगी, जबकि कमर्शियल वाहन सार्वजनिक चार्जिंग नेटवर्क पर निर्भर होंगे।

कंस्ट्रक्शन इलेक्ट्रिक वाहनों पर 1 अक्टूबर से लागू होंगे कड़े सुरक्षा मानक

भारत सरकार केंद्रीय मोटर वाहन नियम, 1989 में संशोधन करके निर्माण उद्योग में प्रयोग होनेवाले इलेक्ट्रिक वाहनों पर कड़े सुरक्षा मानक लागू करने जा रही है। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने नए नियमों का प्रस्ताव दिया है, जिसके तहत 1 अक्टूबर, 2024 से डंपर और एक्सकैवेटर सहित सभी इलेक्ट्रिक कंस्ट्रक्शन वाहनों को कड़े सुरक्षा मानकों का पालन करना होगा।

14 अगस्त को प्रकाशित ड्राफ्ट अधिसूचना द्वारा केंद्रीय मोटर वाहन नियम, 1989 में एक नया नियम जोड़ा गया है। यह नया नियम, 125-ओ, ऑटोमोटिव उद्योग मानक (एआईएस)-174 के अनुपालन को अनिवार्य करता है, जिसमें बैटरी सुरक्षा, इलेक्ट्रिक सिस्टम और समग्र वाहन निर्माण को कवर किया गया है।

इलेक्ट्रिक मोटरसाइकिल लॉन्च के बाद ओला के शेयरों में भारी उछाल

ओला इलेक्ट्रिक मोबिलिटी लिमिटेड द्वारा इलेक्ट्रिक मोटरसाइकिल के तीन मॉडल लॉन्च करने के एक दिन बाद कंपनी के शेयर 20 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज कर अपर सर्किट लिमिट तक पहुंच गए। ओला ग्रुप इलेक्ट्रिक मोटरसाइकिल के दो और मॉडल जल्द ही लॉन्च करेगा।

कंपनी ने 2024-25 की अप्रैल-जून तिमाही के दौरान राजस्व में भी उछाल दर्ज किया। बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) पर इसका स्टॉक 19.99 प्रतिशत बढ़कर 132.76 रुपए पर पहुंच गया। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) पर भी कंपनी के शेयर 20 प्रतिशत बढ़कर 133.08 रुपए पर पहुंच गए।

यूरोप, लैटिन अमेरिका में 100,000 इलेक्ट्रिक कारें चलाने के लिए ऊबर और बीवाईडी के बीच करार

टैक्सी सर्विस कंपनी ऊबर और चीनी वाहन निर्माता बीवाईडी ने यूरोप और लैटिन अमेरिका में ऊबर प्लेटफॉर्म पर 100,000 बीवाईडी मॉडल इलेक्ट्रिक कारें चलाने के लिए साझेदारी की है। दोनों कंपनियों ने कहा कि यह व्यवस्था ऊबर ड्राइवरों को बीवाईडी वाहनों के लिए उचित मूल्य, बीमा, वित्तपोषण और अन्य सेवाएं मुहैया कराएगी। 

बाद में इस साझेदारी का विस्तार मिडिल ईस्ट, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में भी करने की योजना है।

यूरोपीयन यूनियन ने जून में चीनी इलेक्ट्रिक वाहनों पर अंतरिम शुल्क लगाया था, क्योंकि उनका आरोप था कि सरकारी सब्सिडी से चीन में वाहन निर्माताओं को अनुचित लाभ मिलता है। बीवाईडी की कारें अब अमेरिका में नहीं बेची जा रही हैं, क्योंकि चीनी वाहनों के बिक्री मूल्य पर 27.5% का टैरिफ लगाया जाता है।

लेकिन चीनी निर्माता विदेशों में उत्पादन बढ़ा रहे हैं। बीवाईडी ने थाईलैंड में एक संयंत्र खोला है और ब्राजील, हंगरी और तुर्की में कारखाने बनाने की योजना बनाई है।

स्टील को उत्सर्जन के आधार पर लेबल करने की जर्मनी की योजना से भारतीय उद्योग को क्षति होगी

ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनीशिएटिव (GTRI) के ताजा विश्लेषण के आधार पर यह कहा जा रहा है कि जर्मनी ने स्टील के निर्माण में कम इमीशन के जो मानक तय किए हैं उससे भारतीय स्टील उद्योग को घाटा हो सकता है जो पहले ही अधिक आयात और कम निर्यात वाली स्थिति से जूझ रहा है। इन मानकों को लो इमीशन स्टील स्टैंडर्ड (LESS) कहा जाता है और इसमें स्टील के निर्माण पूर्व और निर्माण के दौरान हुए कार्बन डाइ ऑक्साइड के उत्सर्जन के आधार पर उसका वर्गीकरण और लेबलिंग होती है। 

भारतीय व्यापार जगत के लिए, ऐसी लेबलिंग छवि का मुद्दा है जो पश्चिमी देशों को उनके निर्यात को बाधिक कर सकता है। अमेरिका को होने वाले निर्यात में 2021-22 और 2023-24 के बीच 31.2% की गिरावट के कारण अब वह नेट आयातक देश है।  हालांकि भारतीय स्टील उद्योग पर जर्मनी द्वारा निर्धारित मानकों के पालन की कोई कानूनी बाध्यता नहीं है लेकिन चुनौतीपूर्ण वैश्विक बाजार में घरेलू इस्पात उद्योग की प्रतिस्पर्धात्मक ताकत बनाए रखने के लिए, शोध अनुसंधान भारतीय इस्पात कंपनियों और सरकार को सलाह देता है कि वह वो इन नए मानदंडों का पालन करने के लिए कम कार्बन प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढांचे में निवेश जैसे गणनात्मक कदम उठाये। 

चीन ने विवादास्पद दक्षिण चीन सागर में बड़े गैस भंडार की खोज की 

चीन ने दक्षिण चीन सागर में हैनान प्रांत के दक्षिण-पूर्व में एक बड़े गैस फील्ड की खोज की पुष्टि की है। अत्यधिक गहरे पानी में स्थित दुनिया का पहला बड़ा, यह अत्यंत उथला भंडार –  लिंगशुई 36-1 गैस क्षेत्र – है। चीन की सरकारी राष्ट्रीय अपतटीय तेल निगम (CNOOC) के मुताबिक इसमें 100 बिलियन क्यूबिक मीटर से अधिक मूल गैस होने का अनुमान है। । दुनिया में प्राकृतिक गैस के सबसे बड़े आयातक चीन को गैस क्षेत्र की खोज से ऊर्जा क्षेत्र में बड़ी सुरक्षा मिलेगी। 

चीन ने वर्ष 2023 में 180 मिलियन टन तरलीकृत और पाइप गैस के आयात में 64.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च किये थे। दक्षिण चीन सागर में इस भंडार की खोज के बाद चीन और उसके पड़ोसी देशों में तनाव बढ़ सकता है जो साउथ चायना सी पर अपना दावा करते हैं जो कि प्राकृतिक गैस, तेल संसाधनों  और प्रचुर मछली भंडार  के अलावा सामरिक दृष्टि से काफी अहम और विवादास्पद रहा है क्योंकि यह दुनिया के सबसे व्यस्त व्यापार जलमार्गों में है जहां से पूरे विश्व का 20% मूल्य का व्यापार होता है। 

इंडियन ऑयल अपनी रिफाइनिंग क्षमता 25% बढ़ाएगी 

इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार, राज्य के स्वामित्व वाली इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (IOC) भारत की बढ़ती ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए तेल शोधन की अपनी क्षमता को 25% तक बढ़ाने का इरादा रखती है। कंपनी को उम्मीद है कि 2050 तक वह भारत की ऊर्जा जरूरतों का आठवां हिस्सा पूरा कर लेगी। वर्तमान में, इसमें नौ रिफाइनरियां, तेल और ईंधन परिवहन के लिए 20,000 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन, 99 एलपीजी बॉटलिंग संयंत्र, 129 विमानन ईंधन स्टेशन और पेट्रोल पंप और एलपीजी एजेंसियों जैसे 61,000 से अधिक ग्राहक संपर्क बिंदु हैं। 2050 तक, भारत की तेल खपत 2023 में 5.4 मिलियन बैरल प्रति दिन से बढ़कर 8.3 मिलियन बैरल प्रति दिन होने का अनुमान है। कंपनी अपनी वार्षिक रिफाइनिंग क्षमता को 70.25 मिलियन टन से बढ़ाकर 88 मिलियन टन करना चाहती है।

कोल इंडिया और गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया मिलकर कोयले से सिंथेटिक गैस प्रोजेक्ट लगाएंगे

सरकारी कंपनियां कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) और गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (गेल) ने पश्चिम बंगाल में कोयला-से-सिंथेटिक प्राकृतिक गैस परियोजना स्थापित करने के लिए एक संयुक्त उद्यम खड़ा करने का फैसला किया है। इस ज्वाइंट वैंचर  में देश की सबसे बड़ी गैस परिवहन और वितरण कंपनी गेल के पास 49% शेयर होंगे, जबकि सीआईएल के पास 51% शेयर होंगे। 

आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति ने इस साल की शुरुआत में दो परियोजनाओं की स्थापना को मंजूरी दी थी: एक सीआईएल और बीएचईएल के बीच सहयोग के माध्यम से कोयले से अमोनियम नाइट्रेट बनाने के लिए, और दूसरी सीआईएल और गेल के बीच एक संयुक्त उद्यम के माध्यम से कोयले से सिंथेटिक प्राकृतिक गैस के लिए। वर्ष 2030 तक 100 मीट्रिक टन कोयला गैसीकरण के लक्ष्य तक पहुंचने के प्रयास में, सीआईएल ने दो कोयला गैसीकरण संयंत्र स्थापित करने की योजना बनाई है।

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