सबसे लंबे और घातक गर्मियों के मौसम से जूझ रहा है भारत: आईएमडी
साल 2024 पिछले 15 वर्षों में सबसे तीव्र और सबसे अधिक हीटवेव वाले दिनों वाला वर्ष बनने जा रहा है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) द्वारा संकलित आंकड़ों से पता चला है कि देश के 36 उपविभागों में से 14 में 1 मार्च से 9 जून के बीच 15 से अधिक हीटवेव वाले दिन दर्ज किए गए हैं। आम तौर पर मध्य और उत्तर पश्चिम भारत में प्रति वर्ष औसतन लगभग 6-8 लू वाले दिन अपेक्षित होते हैं। लेकिन इस साल पड़ रही अत्यधिक गर्मी के पैमाने और विस्तार से जलवायु वैज्ञानिक भी आश्चर्यचकित हैं।
सबसे अधिक हीटवेव वाले (27) दिन ओडिशा में दर्ज किए गए हैं, इसके बाद राजस्थान (23), गंगीय पश्चिम बंगाल (21), हरियाणा (20), चंडीगढ़ (20), दिल्ली (20) और पश्चिम उत्तर प्रदेश (20) का स्थान रहा। यहां तक कि पहाड़ी क्षेत्र भी हीटवेव से नहीं बचे हैं। जम्मू और कश्मीर में छह दिन, हिमाचल प्रदेश (12), और उत्तराखंड में दो दिन हीटवेव देखी गई। केरल और तमिलनाडु जैसे तटीय क्षेत्रों में क्रमशः पांच और चौदह गर्मी हीटवेव वाले दिन दर्ज किए गए हैं।
आईएमडी अधिकारियों का कहना है कि न्यूनतम तापमान अधिक है और रातों को भी गर्मी से राहत नहीं मिल रही है, इसलिए हीटवेव का घातक प्रभाव बढ़ रहा है।
आईएमडी ने कहा कि बुधवार तक उत्तर भारत के कई हिस्सों में भीषण हीटवेव की स्थिति जारी रहेगी, और उसके बाद उत्तर पश्चिम भारत की ओर आने वाले पश्चिमी विक्षोभ के कारण धीरे-धीरे राहत मिलेगी। देश का एक बड़ा हिस्सा भीषण गर्मी की चपेट में है। प्रयागराज में अधिकतम तापमान 47.6 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया, जबकि उच्च हिमालय में स्थित नुब्रा में 26.2 डिग्री दर्ज किया गया।
मौसम विभाग ने कहा कि उत्तर प्रदेश, हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, झारखंड और बिहार में अधिकांश स्थानों पर अधिकतम तापमान सामान्य से काफी ऊपर (5.1 डिग्री सेल्सियस या अधिक) था। मसूरी, शिमला और रानीखेत जैसे हिल स्टेशनों में तापमान सामान्य से कई डिग्री अधिक दर्ज किया गया है।
विभाग ने कहा कि 12 से 18 जून के बीच मानसून की प्रगति न के बराबर हुई, जिसके कारण जून में औसत से 20 प्रतिशत कम वर्षा हुई है।
अमेरिका के नेशनल ओशनिक एंड एटमोस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन ने गुरुवार को कहा कि पिछले साल वैश्विक तापमान लगातार रिकॉर्ड-स्तर पर रहा। मई 2024 को रिकॉर्ड पर सबसे गर्म मई के रूप में रैंकिंग दी गई थी। महासागरों के तापमान ने भी लगातार 14वें महीने में रिकॉर्ड ऊंचाई दर्ज की।
आईएमडी के महानिदेशक एम महापात्र ने कहा कि हीटवेव का ताजा दौर मुख्य रूप से एक प्रतिचक्रवात के कारण होने की उम्मीद है, जिसके कारण उत्तर पश्चिम भारत में गर्म हवा कम हो रही है। केंद्रीय कैबिनेट सचिव राजीव गौबा ने हीटवेव की स्थिति और जंगल की आग से निपटने के उपायों की समीक्षा के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन समिति (एनसीएमसी) की एक बैठक की। उत्तराखंड में जंगल की आग बुझाने के लिए वायुसेना के हेलीकॉप्टर बांबी बकेट ऑपरेशन चला रहे हैं।
तीन महीनों में हीटवेव ने लीं दर्जनों जानें
यूरोपीय जलवायु एजेंसी कॉपरनिकस के अनुसार, मई 2024 अब तक का सबसे गर्म मई का महीना था। पिछले 12 महीनों — जून 2023 से मई 2024 — में से हर ने उस महीने का तापमान रिकॉर्ड तोड़ा है। उत्तर पश्चिम भारत और मध्य क्षेत्र के कुछ हिस्से मई में प्रचंड गर्मी की चपेट में रहे, कई राज्यों में गर्मी से होनेवाली मौतों की सूचना मिली।
समाचार एजेंसी पीटीआई ने स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया था कि भारत में मार्च से मई तक लगभग 25,000 हीटस्ट्रोक के मामले रिपोर्ट हुए और गर्मी से संबंधित बीमारियों के कारण 56 मौतें दर्ज की गईं। इन आंकड़ों में मतदान के दौरान भीषण गर्मी से होनेवाली चुनाव कर्मियों की मौतें शामिल नहीं हैं। आंकड़ों के अनुसार केवल अंतिम चरण के दर्जन ही लगभग 33 चुनाव कर्मियों की मौत हुई।
भीषण गर्मी: जलाशयों में जलस्तर घटकर हुआ 22%
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, देश के 150 मुख्य जलाशयों की मॉनिटरिंग में पता चला है कि इनमें 39.765 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) पानी बचा है, जो इन जलाशयों की कुल भंडारण क्षमता का सिर्फ 22 प्रतिशत है।
पिछले हफ्ते इन जलाशयों में 23 प्रतिशत पानी बचा था। तापमान बढ़ने के साथ ही पिछले तीन महीनों में जलाशयों के स्तर में हर हफ्ते गिरावट देखी जा रही है।
केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) का डेटा बताता है कि दक्षिणी क्षेत्र भारी नुकसान झेल रहा है और यहां केवल 13 प्रतिशत पानी बचा है। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु सहित इस क्षेत्र में 53.334 बीसीएम की कुल क्षमता वाले 42 जलाशय हैं। इन जलाशयों में मौजूदा भंडारण 7.114 बीसीएम है, जो चिंताजनक रूप से कम है। पिछले साल इसी अवधि के दौरान इनमें 23 प्रतिशत पानी बचा था।
मॉनिटर किए गए 150 जलाशयों की कुल भंडारण क्षमता 178.784 बीसीएम है, जो देश की कुल भंडारण क्षमता 257.812 बीसीएम का लगभग 69.35 प्रतिशत है। इस हफ्ते का लाइव स्टोरेज पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान उपलब्ध स्टोरेज का 79 प्रतिशत (50.549 बीसीएम) और दस साल के औसत (42.727 बीसीएम) का 93 प्रतिशत है। असम, ओडिशा, झारखंड और गुजरात में पिछले साल की तुलना में बेहतर जल भंडारण दिखा। इसके विपरीत, हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और कई दक्षिणी राज्यों में भंडारण का स्तर गिरा है।
वहीं राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में लोग भीषण गर्मी के बीच पानी की गंभीर कमी का सामना कर रहे हैं। बुधवार को भी टैंकरों से पानी भरने के लिए कतारें देखी गईं।
मुंबई में 100 मिमी वर्षा लेकिन इसकी 7 झीलों में पानी का भंडार 6% से कम
मुंबई में इस साल मानसून जल्दी आ गया और अंधेरी सबवे समेत निचले इलाकों में जलभराव की खबर आई। कुछ घंटों के अंतराल में वर्ली, दादर, विक्रोहली, पवई और घाटकोपर में 100 मिमी से अधिक बारिश हुई, जबकि बांद्रा और सांताक्रूज़ सहित पश्चिमी उपनगरों के कुछ हिस्सों में रविवार देर रात 80 मिमी से अधिक बारिश दर्ज की गई।
हालाँकि, मुंबई को जल आपूर्ति करने वाली सात झीलों में ज्यादा बारिश नहीं हुई और सोमवार सुबह उनका कुल भंडार 84,155 मिलियन लीटर या आवश्यक क्षमता का 5.8% ही था जबकि टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित ख़बर के अनुसार पिछले साल इसी तारीख को यहां ज़रूरी क्षमता का 10.3% और 2022 में 14% पानी था।
मौसम विभाग ने कहा कि सामान्य प्रगति के बाद, मानसून रुक गया है। अगले 8-10 दिनों में ज्यादा आगे बढ़ने की उम्मीद नहीं है, इस कारण उत्तर भारत में मॉनसून पहुंचने में देरी होगी जिस वजह से दिल्ली, उत्तर प्रदेश और बिहार के इलाकों में अत्यधिक तापमान और लू चल रही है।
भारत में एक्सट्रीम हीटवेव के पीछे मानव-जनित जलवायु परिवर्तन: रिपोर्ट
एक नए अध्ययन में पाया गया है कि इस साल मई में भारत में चलने वाली हीटवेव का तापमान, देश में पहले देखी गई सबसे गर्म हीटवेव की तुलना में लगभग 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक था। जलवायु वैज्ञानिकों के एक स्वतंत्र ग्रुप ‘क्लाइमामीटर’ द्वारा किए इस अध्ययन में 26 मई से 29 मई के बीच मध्य और उत्तरी भारत के प्रमुख हिस्सों में चलने वाली भीषण हीटवेव की जांच की गई।
इस दौरान देश के 37 से अधिक शहरों में तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से अधिक दर्ज किया गया। भारत और दक्षिणी पाकिस्तान में लू के कारण रिकॉर्ड तापमान दर्ज किया गया, जो नई दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में 45.2 डिग्री सेल्सियस से 49.1 डिग्री सेल्सियस तक रहा।
रिपोर्ट में विश्लेषण किया गया है कि 2001 से 2023 के बीच मई की हीटवेव के दौरान भारत में उच्च तापमान से जुड़ी घटनाओं में क्या बदलाव आया है, और यदि यही घटनाएं 1979 से 2001 के बीच हुई होतीं तो वे कैसी दिखतीं।
रिपोर्ट के अनुसार, तापमान में बदलाव से पता चला है कि पहले की तुलना में वर्तमान जलवायु में इसी तरह की घटनाओं ने तापमान को कम से कम 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ाया है। तापमान के आंकड़ों से पता चला कि उत्तर पश्चिम भारत और पाकिस्तान के दक्षिणी हिस्सों के कुछ क्षेत्रों में पहले की तुलना में 5 डिग्री सेल्सियस तक अधिक गर्मी देखी गई।
फ्रेंच नेशनल सेंटर फॉर साइंटिफिक रिसर्च के डेविड फरांडा ने कहा, “क्लाइमामीटर के निष्कर्ष से पता चलता है कि जीवाश्म ईंधन के कारण भारत में हीटवेव असहनीय तापमान तक पहुंच रही हैं।”
शहरी क्षेत्रों में बदलावों से पता चला है कि नई दिल्ली, जालंधर और लरकाना (पाकिस्तान) पहले की तुलना में 1 डिग्री सेल्सियस से अधिक गर्म हैं। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) द्वारा 53.2 डिग्री सेल्सियस की गलत रीडिंग में संशोधन करने के बाद आंकड़े रिपोर्ट के इस विश्लेषण से मेल खाते हैं।
हालांकि वर्षा में कोई महत्वपूर्ण बदलाव नहीं दिखा, लेकिन हवा की गति में बदलाव के संकेत मिले, जिससे दक्षिणी पश्चिमी क्षेत्रों में हवा की गति 4 किमी/घंटा तक बढ़ सकती है। अध्ययन में यह भी कहा गया है कि पहले इसी तरह की घटनाएं मुख्य रूप से नवंबर और दिसंबर में होती थीं, जबकि वर्तमान जलवायु में ये ज्यादातर फरवरी और मई में हो रही हैं।
रिपोर्ट में हीटवेव को काफी हद तक एक अनोखी घटना के रूप में देखा गया, जिसके लिए ज्यादातर मानव जनित जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। हालांकि इसमें यह भी कहा गया कि तेजी से बढ़ते ग्रीनहॉउस गैस उत्सर्जन के साथ-साथ, प्राकृतक रूप से होने वाली अल नीनो घटना का भी हीटवेव पर प्रभाव पड़ा।
हीटवेव और जलवायु परिवर्तन के संबंध को लेकर दी जा चुकी है चेतावनी
इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) असेसमेंट रिपोर्ट 6 (एआर6) में भारत में हीटवेव और जलवायु परिवर्तन के बीच स्पष्ट संबंध बताया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में हीटवेव को बढ़ाने में जलवायु परिवर्तन विभिन्न तरीकों से योगदान दे रहा है।
आईपीसीसी की रिपोर्टों से पता चला है कि कैसे जलवायु परिवर्तन से भूमि की स्थिति में परिवर्तन होता है, जिससे तापमान और वर्षा प्रभावित होती है। इसके परिणामस्वरूप आर्कटिक क्षेत्रों में बर्फ के आवरण में कमी होती है और सर्दियों में तापमान बढ़ता है। उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उपजाऊ मौसम के दौरान गर्मी कम होने के साथ-साथ वर्षा में वृद्धि देखी जा सकती है।
बढ़ते शहरीकरण और ग्लोबल वार्मिंग के कारण शहर और आसपास के इलाकों में गर्मी बढ़ सकती है, खासकर हीटवेव के दौरान, जिससे दिन के तापमान की तुलना में रात के तापमान पर अधिक प्रभाव पड़ता है।
आईपीसीसी की रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि एशिया में 20वीं सदी के बाद से सतही हवा का तापमान बढ़ रहा है, जिससे पूरे क्षेत्र में हीटवेव का खतरा बढ़ गया है। विशेष रूप से भारत में, हिंद महासागर के बेसिन के गर्म हो जाने और बार-बार होने वाली अल-नीनो की घटना के कारण हीटवेव के दिनों की संख्या और अवधि में बढ़ोत्तरी हुई है। इसके परिणामस्वरूप कृषि और मानव जीवन पर गंभीर प्रभाव पड़ा है। भारत जैसे क्षेत्रों में पहले से ही गर्म शहरों में ग्लोबल वार्मिंग और जनसंख्या वृद्धि के संयोजन से गर्मी का जोखिम बढ़ रहा है, जिससे इन शहरों के आसपास के इलाकों के तापमान में भी वृद्धि हो रही है।
अगले पांच में से कोई एक साल टूटेगा 1.5 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान वृद्धि का बैरियर
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने कहा कि इस बात की 80 प्रतिशत संभावना है कि अगले पांच वर्षों में से एक वर्ष ऐसा होगा जिसमें औद्योगिक युग की शुरुआत की तुलना में कम से कम 1.5 डिग्री सेल्सियस की तापमान वृद्धि रिकॉर्ड की जायेगी। डब्लूएमओ का ये भी कहना है कि 86 प्रतिशत संभावना है कि इन पांच में से कम से कम एक वर्ष 2023 को पछाड़कर एक नया तापमान रिकॉर्ड बनाएगा, जो वर्तमान में सबसे गर्म वर्ष है। डब्लूएमओ के वैश्विक अपडेट में कहा गया है कि इस बात की 47 प्रतिशत संभावना है कि 2024-28 के बीच के पांच सालों वैश्विक औसत तापमान प्री इंडस्ट्रियल युग की तुलना में 1.5 डिग्री ऊपर होगा। पिछले साल की रिपोर्ट में यह कहा गया था कि 2023-2027 के बीच ऐसा होने की एक प्रतिशत संभावना है।
दुनिया के सभी देशों के बीच 2015 में हुई पेरिस संधि के तहत यह सहमति हुई थी कि वैश्विक औसत तापमान वृद्धि को 2 डिग्री से पर्याप्त नीचे रखा जायेगा और प्राथमिकता होगी कि यह 1.5 डिग्री से नीचे रोका जाये ताकि सूखे, अत्यधिक बारिश, बाढ, समुद्र सतह में वृद्धि और चक्रवात के साथ हीटवेव जैसी चरम मौसमी घटनाओं को रोका जा सके।
प्रमुख जलवायु वैज्ञानिकों के एक समूह, इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज के अनुसार, दुनिया को तापमान वृद्धि को 1.5 तक सीमित करने के लिए 2030 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम से कम 43 प्रतिशत (2019 के स्तर की तुलना में) और 2035 तक कम से कम 60 प्रतिशत कम करने की आवश्यकता है।
उत्तराखंड: जंगल की आग में 4 की मौत के बाद दो वनाधिकारी निलंबित
उत्तराखंड में अल्मोड़ा जिले के बिनसर वन्यजीव अभयारण्य में जंगल की आग बुझाने गए चार वनकर्मियों की मौत के बाद, ड्यूटी पर लापरवाही के आरोप में दो वन अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया है।
गुरुवार को बिनसर वन्यजीव अभयारण्य में आग लग गई। इसके बाद आठ वनकर्मियों को आग बुझाने के लिए भेजा गया। हालांकि, जैसे ही टीम अपने वाहन से उतरी, तेज हवाओं के कारण आग बढ़ गई और चार वनकर्मियों की जलकर मौत हो गई, जबकि चार अन्य घायल हो गए।
सरकार द्वारा जारी आदेश के अनुसार, घटना से निपटने में लापरवाही बरतने के आरोप में अल्मोड़ा के उत्तरी कुमाऊं सर्किल के वन संरक्षक कोको रोज़ और सिविल सोयम वन प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी ध्रुव सिंह मर्तोलिया को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है। जबकि कुमाऊं के मुख्य वन संरक्षक पी के पात्रो को तत्काल प्रभाव से देहरादून में उत्तराखंड के मुख्य वन संरक्षक (एचओएफ) कार्यालय से अटैच कर दिया गया है।
घायल वनकर्मियों को पहले हल्द्वानी के सुशीला तिवारी बेस अस्पताल ले जाया गया था। फिर उन्हें बेहतर इलाज के लिए एयरलिफ्ट करके दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ले जाया गया।
पिछले महीने, अल्मोड़ा जिले में एक रेजिन फैक्ट्री जंगल की आग में घिर गई थी और आग बुझाने की कोशिश कर रहे तीन कर्मचारियों की मौत हो गई थी। गर्म और शुष्क मौसम के कारण उत्तराखंड के जंगलों में फिर से आग भड़कने लगी है।
बाकू शिखर सम्मेलन से पहले बॉन में जलवायु वित्त पर नहीं हो पाया समझौता
कॉप29 के पहले संयुक्त राष्ट्र की अर्धवार्षिक जलवायु वार्ता के लिए जर्मनी के बॉन शहर में इकठ्ठा हुए देशों के बीच क्लाइमेट फाइनेंस के महत्वपूर्ण मुद्दे पर आम सहमति नहीं बन पाई।
इस साल का जलवायु महासम्मेलन (कॉप29) नवंबर में बाकू में आयोजित किया जाएगा। उसके पहले नए कलेक्टिव क्वाइंटिफाइड गोल (एनसीक्यूजी) को परिभाषित करने पर बॉन में समझौता होना था। लेकिन इस वार्ता में एनसीक्यूजी पर कोई प्रगति नहीं हो पाई, जिसे लेकर दोनों पक्षों के देशों के प्रतिनिधियों ने निराशा व्यक्त की।
दुनिया के तमाम देश वर्ष के मध्य में होने वाली वार्ता के लिए जर्मनी के बॉन शहर में जमा हुए थे। यहां क्लाइमेट चेंज पर संयुक्त राष्ट्र के फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) के प्रमुख साइमन स्टेल ने सभी देशों से कहा उन्हें 2025 के बाद के लिए नए क्लाइमेट फाइनेंस हेतु “गंभीर तरक्की” करनी होगी।
हालांकि, विकसित और विकासशील देशों में इस बात पर अलग-अलग मत हैं कि कितना पैसा दिया जाना चाहिए, किसे प्रदान करना चाहिए और “जलवायु वित्त” को कैसे परिभाषित किया जाना चाहिए। स्टेल ने देशों से अधिक महत्वाकांक्षी जलवायु योजनाओं के साथ आगे आने का भी आह्वान किया, जिन्हें राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) के रूप में जाना जाता है। इन योजनाओं का अगला दौर 2025 में प्रस्तुत किया जाना है।
इस बीच, रॉयटर्स ने रिपोर्ट दी है कि दो जलवायु कार्यकर्ताओं – अनाबेला रोज़मबर्ग और क्लाइमेट एक्शन नेटवर्क इंटरनेशनल के कार्यकारी निदेशक तसनीम एस्सोप — को गाजा में इज़राइल के युद्ध के खिलाफ प्रदर्शन करने के लिए मंच पर आने के बाद बॉन सम्मेलन से निष्कासित कर दिया गया।
बिहार की दो मानव निर्मित आद्रभूमियों को रामसर स्थल के रूप में मिली मान्यता
बिहार के नागी और नकटी पक्षी अभयारण्यों को रामसर कन्वेंशन के तहत अंतरराष्ट्रीय महत्व की आद्रभूमियों (वेटलैंड्स) के रूप में मान्यता दे दी गई है।
ये मानव निर्मित आद्रभूमियां अनगिनत वनस्पतियों के साथ-साथ कई तरह के जीवों, विशेष रूप से पक्षियों के प्राकृतिक आवास प्रदान करती हैं। गौरतलब है कि यह दोनों ही आद्रभूमियां बिहार के जमुई में स्थित हैं। इनके शामिल होने से भारत में रामसर स्थलों की संख्या बढ़कर 82 हो गई है। भारत में सबसे बड़ा रामसर स्थल पश्चिम बंगाल में सुंदरबन वेटलैंड है जो 4,230 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है।
बता दें कि रामसर कन्वेंशन, आर्द्रभूमियों के संरक्षण के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन है, जिसपर 1971 में ईरान के रामसर शहर में हस्ताक्षर किए गए थे।
क्लाइमेट वैज्ञानिक शीनबॉम बनीं मैक्सिको की पहली महिला राष्ट्रपति
क्लाइमेट साइंटिस्ट रह चुकी क्लॉडिया शीनबॉम, जो पहले मैक्सिको सिटी की प्रमुख रह चुकी हैं, अब देश की पहली महिला राष्ट्रपति चुनी गई हैं। समाचार वेब साइट एक्जिओस के मुताबिक “वामपंथी सत्ताधारी पार्टी मोरेना की सदस्य रह चुकी शीनबॉम ने अपने गुरू और निवर्तमान राष्ट्रपति एन्ड्रेस मैनुअल लोपेज़ ओब्रेडोर की जैसी ही नीतियां प्रस्तावित की हैं।” इसके तहत केंद्रीय शीनबॉम चाहती हैं कि निजी पैसे के बजाय देश में सार्वजनिक निवेश के ज़रिये एनर्ज़ी ट्रांजिशन को बढ़ाया जाये और नवीनीकरणीय ऊर्जा के संयंत्रों को फैलाया जाये और इसमें सरकारी तेल कंपनियों से मदद ली जाये।
न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक शीनबॉम एनर्ज़ी इंजीनियरिंग में पीएच. डी. हैं और वह 2007 में संयुक्त राष्ट्र के क्लाइमेट वैज्ञानिकों के पैनल आईपीसीसी के लेखकों में एक थीं। इसी साल आईपीसीसी को नोबेल पुरस्कार मिला था। अख़बार बताता है कि “भौतिक विज्ञान और ऊर्जा क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय योगदान के लिये उनकी पहचान” है।
कॉप28 के बाद से चरम मौसम की घटनाओं से हुआ 41 अरब डॉलर का नुकसान
एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले साल दिसंबर में दुबई में हुए कॉप28 के बाद से चरम मौसम की घटनाओं के कारण वैश्विक स्तर पर 41 अरब डॉलर से अधिक का नुकसान हुआ है।
ब्रिटेन स्थित एनजीओ क्रिश्चियन एड की रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले छह महीनों में चार चरम मौसम की घटनाओं 2,500 से अधिक लोग मारे गए। वैज्ञानिकों ने साबित किया है कि इन सभी घटनाओं के अधिक संभावित और/या तीव्र होने का कारण जलवायु परिवर्तन है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कॉप28 के बाद से जीवाश्म ईंधन का प्रयोग कम करने या जलवायु आपदाओं से निपटने में विकासशील देशों का समर्थन करने की ओर अपर्याप्त प्रगति हुई है।
रिपोर्ट के अनुसार $41 बिलियन की क्षति का अनुमान भी बहुत कम है। आम तौर पर केवल बीमाकृत नुकसान की ही सूचना दी जाती है, और कई सबसे भयंकर आपदाएं उन देशों में हुई हैं जहां कई लोगों या व्यवसायों के पास बीमा नहीं है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इन आंकड़ों में मानव जीवन को हुई हानि भी पूरी तरह से शामिल नहीं है।
बीएमसी ने लांच किया क्लाइमेट बजट
विश्व पर्यावरण दिवस (5 जून) के अवसर पर, बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) ने साल 2024-25 के लिए एक क्लाइमेट बजट का अनावरण किया। बीएमसी के अधिकारियों ने कहा कि यह देश का पहला और ओस्लो, न्यूयॉर्क और लंदन के बाद वैश्विक स्तर पर चौथा शहरी नगर निकाय है, जिसने क्लाइमेट बजट लॉन्च किया है। यह मौजूदा वित्तीय बजट से अलग बजट नहीं है बल्कि जलवायु के अनुरूप किए जा रहे सभी कार्यों को इस बजट में शामिल किया गया है।
हरियाणा सरकार वायु प्रदूषण से निपटने के लिए 10,000 करोड़ रुपए की परियोजना शुरू करेगी
हरियाणा ने वायु प्रदूषण से निपटने के लिए विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित 10,000 करोड़ रुपए की परियोजना की घोषणा की, जिसकी शुरुआत एनसीआर जिलों से होगी। इस परियोजना में अत्याधुनिक प्रयोगशालाएँ स्थापित करना और चार मौजूदा प्रयोगशालाओं का आधुनिकीकरण करना शामिल है। इसके अधिकांश संसाधनों का उपयोग क्षेत्रीय हस्तक्षेपों के माध्यम से परिवहन, उद्योग, निर्माण और सड़क की धूल, बायोमास जलने और घरेलू प्रदूषण के मुद्दों को सीधे संबोधित करने के लिए किया जाएगा।
राज्य की योजना इंट्रा-सिटी और इंटर-सिटी यात्रा के लिए सार्वजनिक परिवहन को विद्युतीकृत करने और निजी उपयोग के लिए ईवी को अपनाने को प्रोत्साहित करने की है। पुराने, अधिक प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों को चरणबद्ध तरीके से हटाने के लिए, ईवी के बदले में उन्हें स्क्रैप करने के लिए उच्च प्रोत्साहन की पेशकश की जाएगी। उद्योग को बॉयलरों के लिए स्वच्छ ईंधन पर स्विच करने और सख्त उत्सर्जन मानकों का अनुपालन करने वाले जनरेटर खरीदने या रेट्रोफिटिंग के माध्यम से स्वच्छ डीजल जनरेटर सेट का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहन दिया जाएगा।
सीवेज उपचार संयंत्र मानदंडों के उल्लंघन के लिए ₹6 लाख मुआवजा दे अमेज़ॅन: एनजीटी
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने हाल ही में एक आदेश को बरकरार रखा है जिसमें ई-कॉमर्स दिग्गज अमेज़ॅन को हरियाणा के बिलासपुर में अपने पूर्ति केंद्र में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) मानकों के उल्लंघन के लिए मुआवजा देने का निर्देश दिया गया है, बार और बेंच ने बताया।
आउटलेट ने कहा कि चेयरपर्सन जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव और विशेषज्ञ सदस्य डॉ. ए सेंथिल वेल ने उल्लंघन के दिनों की संख्या पर पुनर्विचार करने के बाद मुआवजे की राशि को लगभग ₹13 लाख से घटाकर ₹6 लाख कर दिया।
राजहंसों की मौत पर सिडको, वन विभाग, आर्द्रभूमि प्राधिकरण को एनजीटी ने जारी किया नोटिस
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने सिटी एंड इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (सिडको), राज्य वन विभाग और वेटलैंड अथॉरिटी को नोटिस जारी कर नवी मुंबई के नेरुल में डीपीएस झील के पास लगभग 12 राजहंसों (फ्लेमिंगो) की मौत पर जवाब मांगा है। इंडियन एक्सप्रेस ने रिपोर्ट किया.
एनजीटी के आदेश ने 28 अप्रैल को इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट पर प्रकाश डाला कि राजहंसों की मौत का कारण “लाइट पॉल्यूशन” (तेज रोशनी से होनेवाला प्रदूषण) हो सकता है, जो उनकी नाजुक आंखों के कारण पक्षियों की नज़र को आंशिक रूप से ख़राब कर देता है। इसमें कहा गया है कि नई स्थापित एलईडी लाइटें उड़ते समय पक्षियों को भटकाती हैं और गुमराह करती हैं, जिसके बाद वे इधर-उधर टकरा कर घायल हो जाते हैं।
एनजीटी ने अपने आदेश में यह भी कहा कि सिडको द्वारा निर्मित ऊंची सड़कों के कारण जलजमाव हो रहा है और झील में पानी नहीं जा रहा। सिडको ने इस तथ्य को नज़रअंदाज़ किया कि राजहंस आमतौर पर बहते पानी के क्षेत्रों में निवास करते हैं। ट्रिब्यूनल ने भविष्य में विकास कार्यों के लिए झील क्षेत्र का उपयोग करने के सिडको के इरादे और झील के प्राकृतिक आवास की रक्षा के लिए एचसी के नोटिस पर ध्यान न देने पर भी गौर किया।
मानव दवाओं द्वारा जानवरों में हो रहा है मौलिक परिवर्तन – अध्ययन
द गार्जियन की रिपोर्ट के अनुसार, वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि आधुनिक फार्मास्युटिकल और अवैध दवा प्रदूषण विश्व स्तर पर वन्यजीवों के लिए एक बड़ा खतरा बनता जा रहा है। आउटलेट ने लिखा है कि ब्राउन ट्राउट मेथामफेटामाइन का “आदी” होता जा रहा है और यूरोपीय पर्च अवसाद की दवा के कारण शिकारियों के प्रति अपना डर खो रहा है।
अध्ययन में कहा गया है कि एक्सपोज़र के कारण कुछ जानवरों के व्यवहार और शरीर रचना में अप्रत्याशित परिवर्तन हो रहे हैं। सीवेज जलमार्गों में पाए जाने वाले सांद्रता में प्रोज़ैक जैसे एंटीड्रिप्रेसेंट्स के साथ मादा स्टार्लिंग संभावित साथियों के लिए कम आकर्षक हो जाती हैं, नर पक्षी अधिक आक्रामक व्यवहार करते हैं और बिना खुराक वाले समकक्षों की तुलना में उन्हें लुभाने के लिए कम गाते हैं।
गर्भनिरोधक गोली ने कुछ मछलियों की आबादी में लिंग परिवर्तन का कारण बना दिया है – जिससे संख्या में गिरावट आई है और स्थानीय विलुप्त होने की घटनाएं हुई हैं क्योंकि नर मछलियां मादा अंगों में वापस आ गई हैं। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि इंसानों पर इसके अनपेक्षित परिणाम हो सकते हैं।
1980 से 2020 तक 135 मिलियन असामयिक मौतों के पीछे है PM2.5 और जलवायु परिवर्तनशीलता : अध्ययन
एक नए अध्ययन में पाया गया है कि सूक्ष्म कण पदार्थ (पीएम 2.5) ने 1980 और 2020 के बीच दुनिया भर में 135 मिलियन लोगों की समय से पहले जान ले ली। शोध में PM2.5 प्रदूषण के स्तर को बढ़ाने में अल नीनो-दक्षिणी दोलन, हिंद महासागर द्विध्रुव और उत्तरी अटलांटिक दोलन जैसी जलवायु घटनाओं की भूमिका पर प्रकाश डाला गया।
अध्ययन में पाया गया कि 1980 से 2020 तक, 33.3% असामयिक मौतें स्ट्रोक से जुड़ी थीं, 32.7% इस्केमिक हृदय रोग से जुड़ी थीं और शेष मौतें क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज, निचले श्वसन संक्रमण और फेफड़ों के कैंसर के कारण थीं। अध्ययन अवधि के दौरान पीएम2.5 प्रदूषण के कारण अनुमानित 98.1 मिलियन असामयिक मौतों के साथ एशिया सबसे आगे रहा। चीन और भारत क्रमशः 49 मिलियन और 26.1 मिलियन मौतों के मामले में सबसे आगे हैं।
नवीकरणीय ऊर्जा समेत अन्य क्षेत्रों में 500 बिलियन डॉलर के निवेश के अवसर देगा भारत
भारत 2030 तक स्वच्छ ऊर्जा वैल्यू चेन (नवीकरणीय, हरित हाइड्रोजन और ईवी) समेत दूसरे सेक्टरों में 500 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक के निवेश के अवसर दे रहा है। इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क फॉर प्रॉस्पेरिटी (आईपीईएफ) के क्लीन इकोनॉमी इन्वेस्टर फोरम में वाणिज्य सचिव सुनील बर्थवाल ने यह घोषणा की।
14-सदस्यीय आईपीईएफ ब्लॉक को 23 मई, 2022 को टोक्यो में अमेरिका और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के अन्य भागीदार देशों द्वारा संयुक्त रूप से लॉन्च किया गया था। इन देशों की दुनिया के आर्थिक उत्पादन में 40% और व्यापार में 28% हिस्सेदारी है।
मूडीज़ रेटिंग्स ने एक ताज़ा रिपोर्ट में कहा है कि 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता लक्ष्य प्राप्त करने के लिए, भारत को इस क्षेत्र में 190 बिलियन डॉलर से 215 बिलियन डॉलर के निवेश की आवश्यकता होगी। भारत का लक्ष्य 2030 तक 500 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता हासिल करना है, जिसमें लगभग 44 गीगावॉट की वार्षिक क्षमता वृद्धि होगी।
हालांकि, नवीकरणीय ऊर्जा, विशेषकर सौर ऊर्जा, में लगातार वृद्धि के बावजूद, मूडीज़ को उम्मीद है कि कोयला अगले आठ से दस वर्षों तक भारत के बिजली उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
2024 में जीवाश्म ईंधन के मुकाबले स्वच्छ ऊर्जा में दोगुना निवेश होगा: आईईए
अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, इस साल लो-कार्बन बिजली उत्पादन में होने वाला निवेश, जीवाश्म ईंधन से उत्पादित बिजली से 10 गुना अधिक होगा। नवीकरणीय ऊर्जा और परमाणु ऊर्जा के साथ-साथ इलेक्ट्रिक वाहन, पावर ग्रिड, ऊर्जा भंडारण, लो-एमिशन ईंधन, दक्षता में सुधार और हीट पंप सहित स्वच्छ ऊर्जा में वैश्विक निवेश इस वर्ष 2 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है।
वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा निवेश 2023 में पहली बार जीवाश्म ईंधन से अधिक रहा और 2024 में जहां कोयला, गैस और तेल में 1 ट्रिलियन डॉलर का निवेश होने का अनुमान है, वहीं स्वच्छ ऊर्जा में इससे दोगुना निवेश हो सकता है।
हालांकि, आईईए के कार्यकारी निदेशक फ़तिह बिरोल ने कहा कि तेल और गैस पर अभी भी बहुत अधिक खर्च हो रहा है, जो दुनिया के जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के मार्ग में बाधक है।
नवीकरणीय क्षेत्र में नौकरी की मांग 23.7% बढ़ी: रिपोर्ट
विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर आई एक रिपोर्ट बताती है कि भारत में 2023-24 के दौरान नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में नौकरी की मांग में 23.7 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। स्टाफिंग कंपनी टीमलीज सर्विसेज की एक रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2023 में यह वृद्धि 8.5 प्रतिशत थी। वित्त वर्ष 2024 में नौकरी छोड़ने की दर घटकर 33.5 प्रतिशत हो गई है, जबकि 2022-23 में यह 38.8 प्रतिशत थी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि टियर II और III शहरों में मांग असाधारण रूप से अधिक है, क्योंकि अधिकांश नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएं यहीं स्थित हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि संचालन, रखरखाव और तकनीकी भूमिकाओं में पदों की अत्यधिक मांग है, वहीं सोलर पीवी और पवन टरबाइन टेक्नीशियन और इंस्टॉलर, रूफर, प्रोडक्शन ऑपरेटर, स्टोरेज ऑपरेटर और अपशिष्ट प्रबंधन विशेषज्ञों की मांग भी बढ़ रही है।
फ्लोटिंग सोलर से पूरी हो सकती है कई देशों की 16% बिजली की मांग
एक नए अध्ययन में पाया गया है कि दुनिया भर के दस लाख से अधिक जल निकायों पर कुल 15,000 टेरावाट ऑवर क्षमता के फ्लोटिंग सोलर लगाए जा सकते हैं। अध्ययन में पाया गया है कि यदि इन जल निकायों की सतह के 10% हिस्से को भी कवर किया जाए तो फ्लोटिंग सौर फोटोवोल्टिक्स के द्वारा “कुछ देशों की औसतन 16% बिजली की मांग” पूरी की जा सकती है। अध्ययन में कहा गया है कि इस प्रकार, सोलर पीवी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं को डीकार्बनाइज़ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
लेकिन एक महत्वपूर्ण बात फ्लोटिंग सोलर पैनलों के जलीय इकोसिस्टम पर पड़ने वाले प्रभाव की भी है। हालांकि इस बारे में अभी विस्तृत और ठोस आंकड़े उपलब्ध नहीं है लेकिन पर्यावरण विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अगर बड़े स्तर पर जल निकायों पर सोलर पैनल बिछाए गए तो यह फ्रेश इकोसिस्टम पर दीर्घकालिक असर डाल सकते हैं।
चार्जिंग टाइम है 61% ईवी मालिकों की सबसे बड़ी समस्या: रिपोर्ट
सस्टेनेबिलिटी और उत्सर्जन में कटौती के लिए 77 प्रतिशत भारतीयों ने इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) का इस्तेमाल शुरू किया है, लेकिन बैटरी चार्जिंग में लगने वाला समय उनकी सबसे बड़ी चिंता का विषय है। आईसीआईसीआई लोम्बार्ड जनरल इंश्योरेंस ने यह अध्ययन किया है कि कैसे इलेक्ट्रिक वाहनों की बढ़ती लोकप्रियता से वाहन इंश्योरेंस का परिदृश्य बदल रहा है। यह रिपोर्ट प्रमुख भारतीय शहरों में 500 से अधिक ईवी मालिकों के सर्वेक्षण के आधार पर तैयार की गई है।
रिपोर्ट के अनुसार, 61% ईवी मालिकों के लिए बैटरी चार्जिंग का समय सबसे बड़ी चिंता है, इसके बाद आते हैं सीमित ड्राइविंग रेंज (54%) और अपर्याप्त चार्जिंग स्टेशन (52%)। मुंबई, चेन्नई और बेंगलुरु में यूजर्स बैटरी चार्जिंग टाइम को लेकर ज्यादा चिंतित हैं। जबकि दिल्ली और हैदराबाद में सीमित ड्राइविंग रेंज एक आम समस्या है। उच्च प्रारंभिक लागत भी कार खरीदने वालों और विशेष रूप से पहली बार खरीदने वालों के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है।
जल्द ही अतिरिक्त बैटरी ऊर्जा ग्रिड को वापस बेच सकेंगे ईवी मालिक
ऊर्जा वितरण कंपनियां एक नई तकनीक विकसित कर रही हैं, जिसके द्वारा इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) के मालिक उनके वाहन की बैटरी में स्टोर की हुई अतिरिक्त ऊर्जा ग्रिड को वापस बेच सकते हैं। इकॉनॉमिक टाइम्स (ईटी) की एक रिपोर्ट के अनुसार, यह वाहन-से-ग्रिड (वी2जी) तकनीक रूफटॉप सोलर योजनाओं की तरह है। इसका उपयोग करते हुए, ईवी मालिक कम मांग वाली अवधि के दौरान अपने वाहनों को चार्ज करते हैं और फिर जब उनके वाहन खड़े होते हैं, तो वह उनमें संग्रहीत बिजली बेच सकते हैं, खास तौर पर बिजली की अत्यधिक मांग की स्थिति में।
इसके अतिरिक्त, वितरण कंपनियां यह भी पता लगा रही हैं कि क्या अत्यधिक मांग की स्थिति में इलेक्ट्रिक वाहनों का उपयोग पूरक बिजली भंडार के रूप में किया जा सकता है या नहीं।
चीन से इलेक्ट्रिक वाहन आयात पर 48% तक टैरिफ लगाएगा ईयू
यूरोपीय संघ (ईयू) अगले महीने से चीन से आयातित इलेक्ट्रिक कारों पर 48% तक अतिरिक्त शुल्क लगाएगा। इस कदम से यूरोप और चीन के बीच बढ़ता व्यापारिक तनाव और गहरा गया है। इस कदम से ईवी खरीदने की लागत भी बढ़ेगी। पिछले साल सब्सिडी की जांच के बाद, यूरोपीय आयोग ने कहा कि उसने औपचारिक रूप से बीवायडी, गीली और एमजी के मालिक एसएआइसी सहित सभी निर्माताओं को बैटरी-इलेक्ट्रिक कारों पर 4 जुलाई के आसपास लागू होने वाले शुल्क के बारे में सूचित कर दिया है।
चीन के ईवी निर्माता अपने देश में लगातार उन्नत होती प्रौद्योगिकी और कीमतों में बढ़ती प्रतिस्पर्धा के बीच, आक्रामक रूप से अपने उत्पाद यूरोप में भेज रहे हैं।
टीवीएस मोटर ने जांच के लिए वापस मंगाईं ई-स्कूटर की चुनिंदा इकाइयां
टीवीएस मोटर कंपनी ने कहा है कि वह 10 जुलाई, 2023 और 9 सितंबर, 2023 के बीच निर्मित आईक्यूब इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों को निरीक्षण के लिए वापस ले रही है। कंपनी ने एक बयान में कहा है कि वह इन इकाइयों के ब्रिज ट्यूब का निरीक्षण करेगी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि लंबी अवधि के उपयोग के दौरान वाहन के संचालन में कोई समस्या न आए। कंपनी ने कहा है कि यदि आवश्यक हुआ तो वह प्रभावित स्कूटरों में सुधार करेगी, जिसके लिए ग्राहक को कोई भुगतान नहीं करना होगा।
मई में गैस से चलने वाले बिजलीघरों से उत्पादन में हुआ भारी उछाल
अंग्रेज़ी समाचार पत्र इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक भीषण गर्मी और नए नियम भारत में गैस से चलने वाली बिजली के उपयोग को बढ़ा रहे हैं। अब अगले दो वर्षों में तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) के आयात में उल्लेखनीय वृद्धि होने की उम्मीद है। ग्रिड इंडिया के आंकड़ों के मुताबिक, अप्रैल और मई में देश में गैस से चलने वाले संयंत्रों में बिजली का उत्पादन पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में दोगुना से अधिक होकर 8.9 बिलियन किलो-वॉट आवर (kWh) हो गया। कोविड-19 महामारी के बाद यह पहली बार है कि हिस्सेदारी के मामले में गैस से चलने वाली बिजली ने कोयले से उत्पादन के इतने बड़े हिस्से में जगह बनाई है।
मई में, कुल बिजली उत्पादन में कोयले की हिस्सेदारी गिरकर 74% हो गई, जबकि पिछले साल इसी महीने में यह 75.2% थी, जबकि गैस की हिस्सेदारी 1.6% से लगभग दोगुनी होकर 3.1% हो गई। उद्योग के अधिकारियों ने कहा कि पिछले सप्ताह समाप्त हुए 43-दिवसीय लोकसभा चुनावों के दौरान बिजली कटौती से बचने के लिए बंद पड़े गैस से चलने वाले बिजली संयंत्रों के संचालन को मजबूर करने के लिए एक आपातकालीन धारा लागू की गई, जिससे गैस का उपयोग भी बढ़ गया, क्योंकि बिजली कटौती ऐतिहासिक रूप से एक प्रमुख चुनावी मुद्दा रही है। मार्च 2025 में समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष में गैस से चलने वाला बिजली उत्पादन 10.5% बढ़ने की उम्मीद है। पिछले वर्ष इसमें 35% की सालाना वृद्धि हुई थी।
संयुक्त राष्ट्र प्रमुख ने वैश्विक जीवाश्म ईंधन कंपनियों के विज्ञापनों पर पाबंदी की अपील की
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुट्रिस ने ग्लोबल वार्मिंग से संबंधित गंभीर नई वैज्ञानिक चेतावनियां जारी कीं और घोषणा की कि जीवाश्म ईंधन की बड़ी कंपनियां “जलवायु अराजकता की गॉडफादर” हैं। गुट्रिस ने कहा कि तंबाकू पर प्रचार पर प्रतिबंध की ही तरह, हर देश में उनके विज्ञापन पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। न्यूयॉर्क में एक महत्वपूर्ण भाषण में, गुट्रिस ने चेतावनी दी कि दुनिया “जलवायु संकट के दौर” का सामना कर रही है और आपदा को रोकने के प्रयास असफल हैं। उन्होंने समाचार और तकनीकी मीडिया से जीवाश्म ईंधन कंपनियों से विज्ञापन स्वीकार करके “धरती के विनाश” में भागीदार न बनने का आग्रह किया।
उन्होंने कहा कि 1.5 डिग्री का लक्ष्य “अभी भी लगभग संभव है,” और कार्बन उत्सर्जन को कम करने और विकासशील देशों के लिए जलवायु वित्तपोषण बढ़ाने के लिए देशों द्वारा बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। उन्होंने ग्लोबल वार्मिंग के खिलाफ लड़ाई में मदद के लिए जीवाश्म ईंधन कंपनियों के मुनाफे पर “अप्रत्याशित” कर लगाने का भी आह्वान किया।
भारत और दक्षिण कोरिया के साथ गैस आपूर्ति के लिए टोटलएनर्जी का सौदा
फ्रांस की बहुराष्ट्रीय पेट्रोलियम कंपनी टोटलएनर्जीज ने लंबी अवधि में एलएनजी की आपूर्ति के लिए इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन और कोरियाई साउथ-ईस्ट पावर के साथ सौदा किया है। इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन के साथ समझौते के तहत, टोटल एनर्जी 2026 से 10 वर्षों तक भारत को सालाना 800,000 मीट्रिक टन एलएनजी की आपूर्ति करेगी। कोरिया की साउथ-ईस्ट पावर के साथ समझौते में 2027 से शुरू होकर पांच वर्षों के लिए दक्षिण कोरिया को सालाना 5,00,000 मीट्रिक टन एलएनजी की आपूर्ति शामिल है। ये समझौते टोटल के विश्वव्यापी एलएनजी आपूर्ति पोर्टफोलियो के लिए मध्यम अवधि के आउटलेट हैं और इसके एलएनजी कारोबार के विस्तार के लक्ष्य के अनुरूप हैं।
भारत के शीर्ष रिफाइनर-इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन-ने पहले संयुक्त अरब अमीरात की अबू धाबी गैस लिक्विफिकेशन कंपनी लिमिटेड (एडीएनओसी एलएनजी) से प्रति वर्ष 1.2 मिलियन मीट्रिक टन एलएनजी आपूर्ति प्राप्त करने के लिए एक दीर्घकालिक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जो 2026 से 14 वर्षों के लिए शुरू होगा।