धरती पर दूसरा सबसे अधिक गर्म साल हो सकता है 2020

क्लाइमेट साइंस

Newsletter - December 10, 2020

चढ़ता पारा: धरती का बढ़ता तापमान और अमेरिका, साइबेरिया और ऑस्ट्रेलिया के जंगलों की भीषण आग के बीच माना जा रहा है कि 2020 अब तक दूसरा सबसे गर्म साल होगा। फोटो: CalMatters

धरती पर दूसरा सबसे अधिक गर्म साल हो सकता है 2020

जहां देश के भीतर अगले कुछ महीने कड़कड़ाती ठंड का पूर्वानुमान है उधर विश्व मौसम संगठन (WMO) का कहना है कि साल 2020 धरती पर दूसरा सबसे गर्म साल हो सकता है। इससे पहले साल 2016 धरती पर सबसे अधिक गर्म साल रिकॉर्ड किया गया था। संयुक्त राष्ट्र की संस्था WMO की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2020 में तापमान 1850-1900 के बीच वैश्विक औसत तापमान से 1.2 डिग्री  ऊपर दर्ज किया गया है जो 2016 के बाद से सबसे गर्म है और 2019 से थोड़ा ही कम है। इस साल अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और साइबेरिया में जंगलों की आग और सूखे जैसी घटनाओं के साथ कई हिस्सों में अत्यधिक गर्मी महसूस की गई।  

सर्दियों में इस बार सामान्य से अधिक ठंड

सामान्य से अधिक मॉनसून के बाद अब इस साल नॉर्मल से अधिक ठंड के लिये तैयार रहिये। मौसम विभाग (IMD) का पूर्वानुमान है कि  इस बार दिसंबर से फरवरी के बीच पारा सामान्य से अधिक गिरेगा हालांकि इसमें यह नहीं बताया गया है कि देश के किस हिस्से में सबसे अधिक शीतलहर महसूस होगी। जानकारों के मुताबिक इस असामान्य ठंड की वजह प्रशांत महासागर के भूमध्यरेखीय क्षेत्र में ला निना प्रभाव हो सकता है जो साउथ चीन और साइबेरिया से शीतलहर लाता है। 

छत्तीसगढ़: कोयला बिजलीघर से हुआ राख रिसाव  

छत्तीसगढ़ के रायगढ़ ज़िले में एनटीपीसी प्लांट की फ्लाई एश (कोयले की राख) के कारण जल प्रदूषण का ख़तरा पैदा हो गया है। नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन का लारा प्लांट उड़ीसा की सीमा पर है। पिछले महीने 23 नवंबर को करीब 9 घंटे तक इस प्लांट से प्रदूषित राख निकलती रही और प्लांट के करीब सुखनारा नाले में गई। इससे राख मिश्रित गारा फसल लगे खेतों में फैल गया और डर है कि यह महानदी में बने हीराकुंड जलाशय को प्रदूषित करेगा। उड़ीसा के लखनपुर ब्लॉक की 6 ग्राम पंचायतें इस पावर प्लांट की ज़द में आती हैं और राख के रिसाव का यह मामला उड़ीसा विधानसभा में भी उठा।  कोयला बिजलीघरों से राख का रिसाव पावर प्लांट्स की लापरवाही को दिखाता है और यूपी के सोनभद्र सिंगरौली ज़िले से इस तरह रिसाव की ख़बरें लगातार आती रही हैं। 

वृक्षारोपण और जंगल बचाने का खर्च तेज़ी से बढ़ेगा 

वृक्षारोपण और वन संरक्षण, क्लाइमेट चेंज के खिलाफ सबसे कारगर उपायों में गिना जाता है लेकिन शोध बताते हैं कि अब आने वाले दिनों में पेड़ लगाने और जंगलों को बचाने की कीमत तेज़ी से बढ़ती जायेगी। नेचर कम्युनिकेशन में छपे एक अध्ययन के मुताबिक साल 2055 तक इमीशन में ज़रूरी 10% कमी के लिये भूस्वामी को प्रति वर्ष $39300 करोड़ देने होंगे ताकि धरती की तापमान वृद्धि 1.5 डिग्री से नीचे रखी जा सके। शोधकर्ताओं ने ग्लोबल टिंबर नाम के प्राइस मॉडल के आधार पर यह गणना की है।


क्लाइमेट नीति

फोटो: Pexels

ग्लोबल वॉर्मिंग में बढ़त जारी, UN रिपोर्ट में चेतावनी

संयुक्त राष्ट्र की ताज़ा रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2020 में कोरोना महामारी के कारण CO2 उत्सर्जन के ग्राफ में कमी के बावजूद धरती सदी के अंत तक 3 डिग्री तापमान वृद्धि की ओर बढ़ रही है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण प्रोग्राम (UNEP) की यह रिपोर्ट पेरिस संधि के तहत किये गये वादे को पूरा करने के लिये अधिकतम इमीशन और वास्तविक इमीशन के बीच के अंतर का विश्लेषण करती है और इसे इमीशन गैप रिपोर्ट कहा जाता है। वर्तमान रिपोर्ट इमीशन गैप रिपोर्ट – 2020 है। रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में कुल ग्रीन हाउस गैस इमीशन (लैंड यूज़ बदलाव को शामिल करके) नये रिकॉर्ड स्तर पर 59.1 गीगाटन CO2 के बराबर रहा। ग्लोबल ग्रीन हाउस गैस इमीशन 2010 से औसतन 1.4% सालाना  बढ़ रहा है। पिछले साल जंगलों में भयानक आग के कारण इमीशन में वृद्धि 2.6% रही। 

संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना महामारी के कुछ वक्त बाद इमीशन में फिर से उछाल आ गया है। महामारी के बाद अगर विकास योजनाओं को उत्सर्जन में ध्यान रखकर संचालित किया जाये – यानी अगर साफ ऊर्जा का इस्तेमाल बढ़े और ग्रीन सेक्टर में अधिक नौकरियों का सृजन हो – तो 2030 तक ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को 25% तक कम किया जा सकता है। महत्वपूर्ण है कि 80% इमीशन के लिये दुनिया के 20 बड़े देश (G-20) ज़िम्मेदार हैं और उन्हें इस दिशा में बदलाव के लिये पहले करनी होगी। 

जीवाश्म ईंधन का उत्पादन बढ़ने से राह मुश्किल 

दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की तैयारी या अनुमान के मुताबिक अगले कुछ सालों में उनके जीवाश्म ईंधन उत्पादन में 2% की बढ़त होगी जबकि उन्हें धरती की तापमान वृद्धि 1.5 डिग्री के नीचे रखने के लिये अगले दस सालों तक इसे सालाना 6% घटाने की ज़रूरत है। यह बात अग्रणी रिसर्च संस्थाओं द्वारा तैयार प्रोडक्शन गैप रिपोर्ट के विशेष अंक में कही गई है। इस रिपोर्ट में पेरिस संधि के तहत तय किये गये लक्ष्य और तमाम देशों के उत्पादन में अंतर की गणना की गई है। रिपोर्ट कहती है कि पेरिस संधि के तहत तय लक्ष्य हासिल करने के लिये वैश्विक स्तर पर कोयले, कच्चे तेल और गैस के उत्पादन में क्रमश: 11%, 4% और 3% वार्षिक कमी होनी चाहिये। कोरोना महामारी के कारण कुछ वक्त के लिये ईंधन का उत्पादन ज़रूर घटा लेकिन अब प्रोडक्शन में फिर उछाल वांछित और वास्तवित उत्पादन स्तर में अंतर बढ़ा रहा है। 

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने NHAI को फटकारा 

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने पर्यावरण संरक्षण के लिये लापरवाह रुख अपनाने के लिये राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) को फटकार लगाई है। कोर्ट ने कहा कि वाहनों द्वारा होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिये हाइवे के दोनों ओर पेड़ लगाना बेहद अनिवार्य है। एनजीटी ने कहा कि प्राधिकरण की यह दलील बिल्कुल स्वीकार योग्य नहीं है कि सड़क प्राइवेट कंपनियां (ठेकेदार) बनाती हैं और यह उनका काम है। कोर्ट ने कहा कि प्राधिकरण भले ही हाइवे निर्माण के लिये काम दूसरी एजेंसियों को दे लेकिन इससे उसकी (प्राधिकरण की) ज़िम्मेदारी खत्म नहीं हो जाती। एनजीटी प्रमुख आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह बात कही। महत्वपूर्ण है कि एनजीटी पहले भी अथॉरिटी को अपने ढुलमुल रवैये के लिये लताड़ लगा चुका है। 

कोरोना ने ऊर्जा इस्तेमाल का ग्राफ बदला: IEA

कोरोना ने लाइफ स्टाइल में जो बदलाव किये हैं उससे व्यवसायिक और रिहायशी भवनों में बिजली इस्तेमाल का ढर्रा तो बदला ही है बल्कि यात्रा के पैटर्न में भी बदलाव आया है। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (IEA) की ताज़ा रिपोर्ट (एनर्जी एफिशेंसी – 2020) में कहा गया है कि इसके कारण साफ ऊर्जा के इस्तेमाल की दिशा में तरक्की धीमी होगी और जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और बिजली की मांग की दिशा में किये जा रहे प्रयासों पर चोट पहुंच सकती है। 

रिपोर्ट कहती है कि निर्माण क्षेत्र में व्यवसायिक के बजाय रिहायशी इमारतों के लिये अधिक बिजली इस्तेमाल हो रही है क्योंकि कोविड के कारण लोग घरों से अधिक काम करने लगे हैं। इसी तरह घरों में बिजली की खपत 20% तक बढ़ी है।  उधर कोविड के कारण लोगों के यात्रा के ज़रिये बदले हैं। किसी भी मोड से लम्बी यात्रायें बहुत कम हो गई हैं और माना जा रहा है कि साल 2020 में कमर्शियल एविएशन में 60% और रेल यात्रा में कुल 30% की कमी दर्ज होगी। 

न्यूज़ीलैंड में क्लाइमेट इमरजेंसी, कार्बन न्यूट्रल बनने की शपथ

न्यूज़ीलैंड की प्रधानमंत्री जसिंडा एडर्न ने देश में क्लाइमेट इमरजेंसी की घोषणा कर दी है और कहा है कि सरकारी क्षेत्र साल 2025 तक क्लाइमेट न्यूट्रल हो जायेंगे। हालांकि जानकार इस कदम को ‘सांकेतिक’ बता रहे हैं और उनका कहना है कि न्यूज़ीलैंड के इमीशन कट करने के लिये सरकार को बहुत कुछ करना होगा। न्यूज़ीलैंड यूके, जापान, कनाडा और फ्रांस के साथ  उन देशों की सूची में शामिल हो गया है जिन्होंने क्लाइमेट चेंज के ख़तरे को देखते हुए आपातकाल की घोषणा की है।


वायु प्रदूषण

प्रदूषण में अव्वल: दिल्ली और पूरा एनसीआर रीज़न प्रदूषण के लिये जाना जाता है लेकिन गाज़ियाबाद पिछले कुछ हफ्तों से वायु प्रदूषण में नंबर वन बना हुआ है। फोटो: Reuters

गाज़ियाबाद दो हफ्ते में 7 बार बना भारत का सबसे प्रदूषित शहर

पिछले पखवाड़े गाज़ियाबाद सात बार भारत का सबसे प्रदूषित शहर पाया गया। केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड यानी (CPCB) के मीटरों द्वारा मापे गये एयर क्वॉलिटी इंडेक्स (AQI) में 22 नवंबर से 5 दिसंबर के बीच देश के 100 सबसे प्रदूषित शहरों की लिस्ट में गाज़ियाबाद कम से कम सात बार नंबर-1 रहा।  पिछले शनिवार गाज़ियाबाद का AQI 434 रिकॉर्ड किया गया जब वह सबसे प्रदूषित था। जानकारों का कहना है कि शहर में इतने प्रदूषण के लिये स्थानीय कारक अहम हैं जिनमें भवन और सड़क जैसे निर्माण कार्यों के साथ वाहन और औद्योगिक इकाइयों का चलना शामिल हैं। 

एनसीआर में साफ ईंधन का इस्तेमाल अनिवार्य 

केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड (CPCB) के नये नियमों के मुताबिक अब राजधानी दिल्ली से लगे इलाकों (एनसीआर) में नई औद्योगिक इकाइयों को पीएनजी और सीएनजी जैसे कम प्रदूषण वाले ईंधन ही इस्तेमाल करने होंगे। यह आदेश नई यूनिटों के लिये है क्योंकि पुरानी इकाइयां साफ ईंधन के इस्तेमाल में सुस्त और अनमनी हैं। उद्योगों का कहना है कि सीपीसीबी ने यह फैसला प्रदूषण में सालाना उछाल के वक्त जल्दबाज़ी में प्रतिक्रिया स्वरूप लिया है क्योंकि एनसीआर में 75% उद्योग ऐसे इलाकों में हैं जहां पीएनजी कनेक्शन नहीं है। ऐसे में बोर्ड के फैसले का पालन कैसे हो पायेगा। 

सुप्रीम कोर्ट ने फोक्सवेगन पर मुकदमा रद्द करने से किया इनकार

सुप्रीम कोर्ट ने जर्मन ऑटोमोबाइल कंपनी फोक्सवेगन के खिलाफ कार में इमीशन चीटिंग डिवाइस से जुड़े मामले में एफआईआर रद्द करने से इनकार कर दिया है।  सर्वोच्च अदालत ने स्कोडा को खारिज करते हुए कहा कि ऐसा करना एक अपवाद होना चाहिये न कि सामान्य नियम। इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी कंपनी के खिलाफ एफआईआर रद्द करने की याचिका ठुकरा दी थी हालांकि कंपनी पुलिस द्वारा चार्जशीट फाइल करने तक अपने किसी अधिकारी को रोकने में कामयाब हो गई है। कंपनी के खिलाफ कार में “चीट डिवाइस” (उत्सर्जन मामले में धोखाधड़ी करने वाला यंत्र) लगाने का मामला है।


साफ ऊर्जा 

साफ ऊर्जा उत्पादन किफायती: वुड मैंकेंजी के मुताबिक 2030 तक भारत में रिन्यूएबल एनर्जी नये कोयला बिजलीघरों से मिलने वाली पावर से 56% सस्ती होगी। फोटो: Reuters

कोल पावर के मुकाबले साफ ऊर्जा उत्पादन 56% सस्ता

एनर्जी और रिसर्च कन्सल्टेंसी ग्रुप वुड मैकेंजी का नया अध्ययन बताता है कि एशिया में भारत और ऑस्ट्रेलिया ही दो मार्केट हैं जहां साफ ऊर्जा की कीमत नये कोयला आधारित बिजली से कम है। इस रिपोर्ट के मुताबिक साल 2030 तक सारे एशिया में रिन्यूएबिल पावर, सस्ते जीवाश्म ईंधन के मुकाबले कम होगी।  भारत में रिन्यूएबिल एनर्जी नये कोयला बिजलीघरों से मिलने वाली पावर से 56% सस्ती होगी। ऑस्ट्रेलिया इस मामले में दूसरे नंबर पर होगा जहां साफ ऊर्जा और नये कोयला प्लांट से बिजली उत्पादन के खर्च में अंतर 47% होगा। भारत में किफायती निर्माण और सस्ते मज़दूरों के साथ रिन्यूएबिल संसाधनों का होना असरदार रहेगा और इस क्षेत्र में उसका दबदबा रहेगा। 

फ्लोटिंग विन्ड पावर क्षमता 2050 तक हो जायेगी 2000 गुना 

भारत की फ्लोटिंग पवन ऊर्जा क्षमता साल 2050 में वर्तमान 100 मेगावॉट से बढ़कर 250 गीगावॉट (250000 मेगावॉट) हो जायेगी। एक नई रिपोर्ट के मुताबिक 2050 में फ्लोटिंग विन्ड एनर्जी दुनिया की कुल बिजली सप्लाई के 2% के बराबर होगी। नॉर्वे स्थित रिस्क मैनेजमेंट और क्वालिटी असेसमेंट कंपनी DNV GL ने कहा है कि फ्लोटिंग पवन ऊर्जा की कीमत 2050 तक 70% गिर जायेगी। उद्योगों को प्रौद्योगिकी में सुधार के लिये उच्च मानकों और रिस्क मैनेजमेंट की ज़रूरत होगी। 

भारत और स्वीडन स्मार्ट ग्रिड सेक्टर में करेंगे साझा रिसर्च 

भारत और यूरोपीय देश स्वीडन स्मार्ट ग्रिड सेक्टर में नई प्रौद्योगिकी का विकास करेंगे और दोनों ने अपने देशों की कंपनियों से प्रस्ताव मांगे हैं। जिन प्रस्तावों को हरी झंडी मिलेगी उन्हें भारत के डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (डीएसटी) और स्वीडन के स्वीडिश एनर्जी एजेंसी से वित्तीय मदद मिलेगी। कंपनियों की इस साझेदारी में रिसर्च संस्थान जैसे यूनिवर्सिटी वगैरह शामिल हो सकती हैं। डीएसटी इसमें 18 करोड़ तक की फंडिंग करेगी जबकि स्वीडन 2.5 करोड़ स्वीडिश क्रोना का सहयोग करेगा। ये प्रोजेक्ट 1 जनवरी 2022 से शुरू होकर 31 दिसंबर 2023 तक चलेगा।


बैटरी वाहन 

अच्छी ख़बर: लीथियम आयन बैटरी की कीमत गिर रही है जो इलैक्ट्रिक कार बाज़ार और उपभोक्ताओं के लिये अच्छी ख़बर है। फोटो: GE

बैटरी की कीमत $110 /kWh तक गिरी

लीथियम आयन इंटेलिजेंस फर्म, बेंचमार्क मिनिरल इंटेलिजेंस (BMI) के मुताबिक लीथियम आयन बैटरी की कीमत $110 प्रति किलोवॉट-घंटा तक गिर गई है। यह कार इंडस्ट्री के “टिपिंग पॉइंट” यानी लक्ष्य $100 प्रति किलोवॉट-घंटा के बहुत करीब है। बैटरी की कीमत साल 2010 में $1100 प्रति किलोवॉट-घंटा थी और 2019 आते-आते यह $156 तक पहुंची। बैटरी के दामों में यह क्रांतिकारी बदलाव टेक्नोलॉजी में बड़ी छलांग के कारण संभव हो पाया है। इसे दुनिया की सबसे बड़ी बैटरी कार निर्माता टेस्ला भी मान रही है। यह बदलाव उपभोक्ताओं को पुरानी आईसी इंजन कारों से हटकर बैटरी कारों के इस्तेमाल के लिये प्रेरित करेगा। 

टाटा ने BEST को 26 इलैक्ट्रिक बसों की डिलिवरी की 

टाटा मोटर्स ने बृह्न्मुंबई इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई एंड ट्रांसपोर्ट (बेस्ट) को 26 इलेक्ट्रिक बसों की सप्लाई कर दी है। पब्लिक ट्रांसपोर्ट में अधिक से अधिक इलेक्ट्रिक बसों को सड़क पर उतारने की मुहिम के तहत बेस्ट ने टाटा को 340 बैटरी बसों का ऑर्डर दिया है जिनमें से 26 बसों की पहली खेप डिलिवर की गई है। टाटा शिवाजी नगर, वर्ली, मलवानी और बैकबे में चार्जिंग की सुविधा भी उपलब्ध करायेगा। इन बसों में शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के लिये चढ़ने उतरने की सुविधा के साथ वाइ-फाइ सुविधा भी है।


जीवाश्म ईंधन

चलते रहेंगे: भले ही पुराने कोयला बिजलीघर इमीशन को लेकर मानकों को पूरा न करते हों लेकिन पावर मिनिस्ट्री ने पीपीए खत्म होने के बाद भी उनसे सस्ती बिजली सप्लाई जारी रखने का सुझाव दिया है। फोटो: Indian Express

बिजली खरीद अनुबंध खत्म होने के बाद भी चलते रहेंगे कोल प्लांट

पावर मिनिस्ट्री ने सुझाव दिया है जिसके मुताबिक पुराने कोयला बिजलीघरों को उनके वर्तमान बिजली खरीद अनुबंध (पीपीए) समाप्त होने के बाद भी बिजली सप्लाई करते रहने देना चाहिये।   ऊर्जा मंत्रालय ने ताज़ा प्रस्ताव में कहा है कि कोयला बिजलीघर  या कोल प्लांट से उपभोक्ताओं को सस्ती बिजली मिलती रहेगी। महत्वपूर्ण है कि इनमें कई कोयला बिजलीघर ऐसे हैं जिन्हें बन्द किया जाना है क्योंकि वह पर्यावरण मंत्रालय द्वारा तय इमीशन मानकों का पालन नहीं करते हैं। अब बिजली मंत्रालय ने साफ किया  है कि वही कोल प्लांट बन्द होंगे जिनसे काफी महंगी बिजली मिल रही होगी। यह दिलचस्प है कि जहां बिजली मंत्रालय यह सुझाव दे रहा है वहीं पंजाब, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा और दिल्ली में वितरण कंपनियां कोयला बिजलीघरों से अनुबंध खत्म होने का इंतज़ार कर रहे हैं क्योंकि इनसे मिल रही बिजली महंगी है और बाज़ार में अन्य स्रोतों से सस्ती बिजली उपलब्ध है। 

जापान: जीवाश्म ईंधन का रोल होगा 50% से कम 

जापान की सत्ताधारी पार्टी के सांसदों ने प्रस्ताव रखा है कि बिजली क्षेत्र में कार्बन छोड़ने वाले जीवाश्म ईंधन (कोयला, तेल और गैस आदि) का प्रयोग तेज़ी से घटाया जाये।  प्रयोग में भारी कमी का प्रस्ताव रखा है। सत्ताधारी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी) के 100 से अधिक सांसदों वाले ग्रुप ने कहा है कि 2030 तक पावर सेक्टर में जीवाश्म ईंधन का हिस्सा 50% से कम होना चाहिये। अभी जापान के पावर जेनरेशन में 75.8% जीवाश्म ईंधन है। अगर जापान इस इरादे में कामयाबी हासिल करता है तो साफ ऊर्जा का हिस्सा वर्तमान 18% से बढ़कर करीब 50% हो जायेगा। जापान की यह कोशिश साल 2050 तक नेट-ज़ीरो कार्बन इमीशन का लक्ष्य पाने के लिये भी ज़रूरी है। जापान भारी उद्योगों के लिये हाइड्रोज़न पर भी निवेश कर रहा है जिसमें ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन कम होता है।  

अलास्का में ड्रिलिंग के ठेके देकर जाना चाहते हैं ट्रम्प 

नये राष्ट्रपति जो बाइडन के पदग्रहण से पहले निवर्तमान डोनाल्ड ट्रम्प कुछ ड्रिलिंग के ठेके जारी करना चाहते हैं। यह ड्रिलिंग कॉन्ट्रेक्ट अलास्का में संवेदनशील आर्कटिक नेशनल वाइल्ड लाइफ रिफ्यूज़ (ANWR) इलाके में दिये जाने हैं। ट्रम्प प्रशासन डेमोक्रेट राष्ट्रपति बाइडेन के व्हाइट हाउस में आने से पहले नीलामी की जल्दी में है। महत्वपूर्ण है कि डेमोक्रेम नेताओं के अलावा, आदिवासी समुदाय और  पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इस नीलामी का जमकर विरोध किया है और माना जा रहा है कि ऐसे ठेकों के खिलाफ अदालत में अपील होगी। दिलचस्प है कि ट्रम्प प्रशासन भले ही ठेके बेचने के लिये ज़ोर लगा रहा हो लेकिन ड्रिलिंग कंपनियां इस नीलामी में खास दिलचस्पी नहीं दिखा रही और बड़े बैंकों और वित्तीय संस्थानों ने इसमें फंडिंग से इनकार कर दिया है।