हिमालय में फिर बाढ़ ने उठाये गंभीर सवाल

क्लाइमेट साइंस

Newsletter - February 12, 2021

आपदा की चपेट में: उत्तराखंड में आई बाढ़ में करीब 200 लोगों की जान ले ली है | Photo: Hridayesh Joshi

उत्तराखंड में बाढ़ ने उठाये जलवायु परिवर्तन के सवाल

उत्तराखंड के चमोली ज़िले में अचानक बाढ़ से जहां 200 से अधिक लोगों के मरने की आशंका है वहीं जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों की बहस को नये सिरे से शुरू कर दिया है। पिछले रविवार (7 फरवरी) को ऋषि गंगा नदी में अचानक आई बाढ़ से दो हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट तबाह हो गये और आधा दर्जन छोटे बड़े पुल टूट गये। एक निजी कंपनी की 13.5 मेगावॉट की हाइड्रो पावर परियोजना तो पूरी तरह नष्ट हो गई जबकि नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन की  520 मेगावॉट तपोवन-विष्णुगाड़ निर्माणाधीन परियोजना को भारी नुकसान पहुंचा है। इन दोनों ही प्रोजेक्ट में करीब 200 लोगों के मरने की आशंका है। रविवार को कुछ लोगों को ज़रूर बचाया गया लेकिन उसके बाद से 30 से ज़्यादा शव निकाल लिये गये हैं।

शुरुआती रिपोर्ट बताती हैं कि ऋषि गंगा नदी एक ग्लेशियर से अचानक हिमखंड और मलबा आया जिससे बाढ़ आई। कुछ विशेषज्ञ इस घटना को क्लाइमेट चेंज के बढ़ते प्रभावों से जोड़ रहे हैं। संवेदनशील पर्वतीय इलाकों में जहां लकड़ी और पत्थर का परम्परागत इस्तेमाल होता था वहां सीमेंट के अंधाधुंध इस्तेमाल से हीट-आइलैंड प्रभाव भी बढ़ रहा है।

उपग्रह से मिल रही नई तस्वीरों के आधार पर अनुमान लगाया जा रहा है कि इस बाढ़ की वजह ताज़ा बर्फ के विशाल टुकड़ों का मलबे के साथ अचानक नदी में आ जाना था जिससे एक एवलांच की घटना हुई और 30-40 लाख घन मीटर पानी नदी में आ गया।

समुद्र जल स्तर अधिक तेज़ी से बढ़ेगा

नई क्लाइमेट रिसर्च बताती है कि इंटरनेशनल पैनल फॉर क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी ) ने सदी के अंत तक समुद्र जल स्तर में जो 1.1 मीटर की बढ़ोतरी का अनुमान लगाया था वह बहुत कम है। एक साइंस जर्नल ओएस लेटर्स में प्रकाशित रिसर्च के मुताबिक वास्तविक समुद्र जल स्तर वृद्धि कहीं अधिक तेज़ी से होगी।

आईपीसीसी के अनुमान आइस शीट, ग्लेशियर और समुद्र जल स्तर मेंर्मिंग के माडलों पर आधारित हैं लेकिन यह मॉडल सीमित उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर भविष्यवाणी करते हैं। मिसाल के तौर पर 1990 के दशक में शुरू हुई सेटेलाइट निगरानी के पहले अंटार्कटिक में पिघल रही बर्फ को लेकर बहुत कम आंकड़े उपलब्ध हैं। ताज़ा रिसर्च में हर एक डिग्री तापमान वृद्धि के साथ समुद्र जल स्तर में बढ़ोतरी की गणना की गई है जिसे “ट्रांज़िएंट सी लेवल सेंसटिविटी” कहा जाता है। इस रिसर्च के नतीजे हाल में किये गये उन कुछ अध्ययनों से मेल खाते हैं जिनमें कहा गया है कि समुद्र जल स्तर पहले किये गये शोध के मुकाबले तेज़ी से बढ़ेगा।

पश्चिम ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में आग

पश्चिम ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में आग से अब तक 80 से अधिक घर तबाह हो गये हैं। अभी तक आग का कारण पता नहीं है लेकिन तेज़ हवायें आग बुझाने के काम में बाधा डाल रही हैं। इस महीने ऑस्ट्रेलिया में लगी उस भीषण आग को एक साल पूरा हो गया है जिसमें 34 लोग मारे गये और पूर्वी तट की  1.8 करोड़ हेक्टेयर ज़मीन बर्बाद हो गई। जानकार इस आग के पीछे जलवायु परिवर्तन प्रभाव को वजह बता रहे हैं और इस दिशा में किसी तरह के बड़े कदम उठाने में नाकामयाबी के लिये सरकार की आलोचना हो रही है।

मानव जनित ध्वनि प्रदूषण करता है समुद्री जीवन को प्रभावित

जिस प्रकार प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन समुद्री जीवन के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं उसी तरह मानव जनित शोर भी समुद्री जीवों को प्रभावित कर रहा है। समुद्र में नावों का ट्रैफिक, मछली पकड़ने की मशीनें, पानी के अंदर तेल और गैस का उत्खनन, समुद्र तटों पर निर्माण और अन्य मानवीय गतिविधियां समुद्री जीवों के लिए एक दूसरे का सुनना दूभर कर रही हैं

समुद्र के भीतर ध्वनि, पारिस्थितिकी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि समुद्री जानवर शिकार को पकड़ने, साथियों को आकर्षित करने और अपने क्षेत्र की रक्षा करने के लिए ध्वनि का उपयोग करते हैं

यह रिपोर्ट ‘‘द साउंडस्केप ऑफ द एंथ्रोपोसीन’’ शीर्षक से साइंस जर्नल में प्रकाशित हुई है। इसने 500 से अधिक अध्ययनों का विश्लेषण किया है जिन्होंने समुद्री जीवन पर शोर के प्रभाव का अध्ययन किया है। लगभग 90% अध्ययनों में समुद्री स्तनधारियों, जैसे व्हेल, सील और डॉल्फ़िन को काफी नुकसान पहुंचा, और 80% में मछली और अकशेरुकी पर प्रभाव पाया गया।

“कई समुद्री प्रजातियों के लिए, संवाद करने की उनकी कोशिशों को उन ध्वनियों से ढक दिया जा रहा है जो मनुष्यों ने पैदा की हैं,” सऊदी अरब के रेड सी रिसर्च सेंटर के समुद्री पारिस्थितिक विशेषज्ञ और पेपर के सह-लेखक कार्लोस डुटर्ट ने कहा। उनके मुताबिक लाल सागर दुनिया के प्रमुख शिपिंग गलियारों में से एक है, जो एशिया, यूरोप और अफ्रीका की यात्रा करने वाले बड़े जहाजों से भरा है। कुछ मछली और अकशेरूकीय अब नीरव क्षेत्रों में जाकर बचते हैं, क्योंकि ध्वनि प्रभावी रूप से उनके लाल सागर निवास स्थान को खंडित करती है।


क्लाइमेट नीति

सलाह का असर: कार्बन बजट से लेकर क्लाइमेट प्रभावों के प्रति सुरक्षा की बहस को प्रभावित करती हैं सलाहकार संस्थायें | Photo: Worldoil.com

जलवायु परिवर्तन पर सलाहकारों की बात का पड़ता है असर: शोध

एक नये शोध में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन पर बनी सलाहकार समितियों का प्रभाव पिछले कुछ सालों में बढ़ा है। टेलर एंड फ्रांसिस में छपे शोध में यूनाइटेड किंगडम  कमेटी ऑन क्लाइमेट चेंज को इस शोध में एक केस स्टडी की तरह लिया गया। शोध कहता है कि न केवल कार्बन बजट जैसे विषय पर राजनीतिक बहस में इन सलाहकार बॉडीज़ का प्रभाव है बल्कि बिजली और बाढ़ सुरक्षा के लिये होने वाले खर्च पर भी इनकी सलाह का असर पड़ता है। शोध कहता है कि यूके कमेटी ने बिना राजनीतिकरण किये नीति नियंताओं को भरोसमंद जानकारी दी।

बजट 2021-22 : कई कार्यक्रमों के फंड में कटौती  

सरकार ने पर्यावरण मंत्रालय का बजट पिछले साल के मुकाबले इस साल करीब सवा दो सौ करोड़ रूपये कम किया है। पिछले साल दिये गये 3,100 करोड़ रुपये के मुकाबले इस साल सरकार ने पर्यावरण मंत्रालय को 2,870 करोड़ रुपये आवंटित किये हैं। पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इस कटौती पर चिन्ता जताई है और सरकार के इरादों पर सवाल खड़े किये हैं। क्लाइमेट चेंज एडाप्टेशन फंड, नेशनल एडाप्टेशन फंड और इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ वाइल्डलाइफ हैबीटाट जैसे कार्यक्रमों के फंड में सबसे अधिक कटौती हुई।

वैसे केंद्र सरकार ने 10 लाख से अधिक आबादी वाले 42 शहरों के लिये अतिरिक्त 2,217 करोड़ रुपये दिये हैं लेकिन यह धन किस हिसाब से खर्च होगा यह अभी स्पष्ट नहीं है। यह धन नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनसीएपी) में दिये गये पैसे से अलग है।  पर्यावरण मंत्रालय के बजट में एयर क्वॉलिटी मैनेजमेंट कमीशन के प्रशासनिक खर्चों के प्रशासनिक खर्चों के लिये 20 करोड़ रुपये रखा गया है। यह कमीशन दिल्ली-एनसीआर की हवा को साफ करने के मिशन के तहत बनाया गया है।

बजट 2021-22 : पेट्रोल और डीज़ल के टैक्स में कमी नहीं

डीज़ल और पेट्रोल के आबकारी कर में कमी की मांग के बावजूद – जो कि पिछले कुछ समय में बहुत तेज़ी से बढ़े हैं – केंद्र सरकार अपने रुख पर अड़ी है और उसने किसी कटौती का ऐलान नहीं किया। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन ने इसके बजाय कुछ बदलाव कर इसमें एक कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर टैक्स भी जोड़ दिया। सरकार गेल, इंडियन ऑइल और हिन्दुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन की तेल और गैस पाइप लाइन के शेयर भी बेचेगी।


वायु प्रदूषण

पुराना कबाड़ में: सरकार को उम्मीद है नई वाहन स्क्रैप नीति से ऑटोमोबाइल का बाज़ार बढ़ेगा और वायु प्रदूषण कर रहे वाहन सड़कों से हटेंगे | Photo: Autocar India

बजट: जल्द आयेगी वाहन स्क्रैप पॉलिसी, एक करोड़ वाहनों की होगी छुट्टी

केंद्र सरकार ने बजट में एक स्वैच्छिक वाहन स्क्रैपिंग पॉलिसी का ऐलान किया है जिसकी वजह से करीब एक करोड़ पुराने वाहन सड़क से हटाये जायेंगे जो अभी चल रहे हैं। इसके तहत 20 साल से पुराने निजी वाहन और 15 साल से अधिक पुराने सरकारी वाहनों का फिटनेस टेस्ट कराया जा सकता है।

रोड ट्रांसपोर्ट और हाइवे मिनिस्टर नितिन गडकरी इस बारे में फरवरी के मध्य तक एक नीति जारी कर सकते हैं। गडकरी का कहना है कि यह नीति भारत को दुनिया का नंबर – 1 ऑटोमोबाइल निर्माता बनायेगी।  गडकरी का कहना है कि पुराना वाहन कबाड़ में डालने के बाद लोगों को नये वाहन पर कुछ छूट मिलेगी और वह नया वाहन ज़रूरी खरीदेंगे। और इससे पैदा होने वाली तेज़ी करीब 35 हज़ार नई नौकरियां पैदा होंगी और ऑटोमोबाइल बाज़ार का आकार मौजूदा साढ़े चार लाख करोड़ से छह लाख करोड़ हो जायेगा।

समय से पूर्व होने वाली हर पांच में से एक मौत के पीछे है जीवाश्म ईंधन

अब तक जीवाश्म ईंधन (कोयला, तेल, गैस आदि) को जितना खतरनाक माना जाता था वह स्वास्थ्य के लिये उससे कहीं अधिक हानिकारक है।  एक नई स्टडी से पता चला है कि दुनिया में समय से पहले होने वाली हर पांच में से एक मौत का कारण जीवाश्म ईंधन है। भारत में 30% से अधिक मौतों के पीछे कारण जीवाश्म ईंधन से हो रहा प्रदूषण है। भारत में हर साल करीब 25 लाख लोग वायु प्रदूषण से मर जाते हैं।

इन्वायरोमेंटल रिसर्च नाम के जर्नल में छपे शोध में कहा गया है कि चीन, भारत, यूरोप और उत्तर-पूर्व अमेरिका को कोयले, तेल और गैस से होने वाले प्रदूषण की सबसे अधिक मार झेलनी पड़ती है और यहां कुल 87 लाख लोगों की जान जाती है। स्टडी कहती है कि यद्यपि भारत ने 2012 से प्रदूषण स्रोतों पर नियंत्रण किया है लेकिन दिल्ली जैसे बड़े प्रदूषित शहरों में एयर क्वालिटी सुधरने के कोई संकेत नहीं हैं। देश के भीतर उत्तर प्रदेश में 2012 में समय से पूर्व सर्वाधिक मौतें (4.7 लाख) हुईं। इसके बाद  बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश का नंबर है।

लॉकडाउन के बाद दक्षिण भारत में प्रदूषण बढ़ा: सीएसई

दिल्ली स्थित संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरेंमेंट (सीएसई) ने अपने विश्लेषण में कहा है कि इस साल कोरोना वायरस लॉकडाउन के बाद सर्दियों में  दक्षिण भारत के शहरों में प्रदूषण स्तर बढ़ रहे हैं। सीएसई का कहना है कि यह एक भ्रम साबित हुआ है कि दक्षिण भारत में वायु प्रदूषण देश के अन्य भागों की तुलना में कम होता है। विश्लेषण कहता है कि यद्यपि लॉकडाउन के दौरान पार्टिकुलेट मैटर का स्तर घटा लेकिन जाड़ों के आने के साथ यह बढ़ गया। दक्षिण भारत के बड़े शहरों में पीएम 2.5 का सालाना औसत गिरा है लेकिन छोटे शहरों और कस्बों में इसका स्तर बढ़ा। विश्लेषण कहता है कि दक्षिण भारत में सर्दियों का तापमान उत्तर भारत के शहरों के मुकाबले अधिक होता है और यह माना जाता है कि मौसमी कारक अपेक्षाकृत साफ हवा के पक्ष में होंगे लेकिन यह सही नहीं है।


साफ ऊर्जा 

ग्राफ गिरा: साल 2020 में अचानक भारत का सौर और पवन ऊर्जा में बढ़ोतरी का ग्राफ गिरा है | Photo: Brookings Institute

भारत के सौर और पवन ऊर्जा बढ़ोतरी का ग्राफ ढला

भारत ने साल 2020 में अपनी सौर और पवन ऊर्जा क्षमता में केवल 4,908 मेगावॉट की बढ़ोतरी की। यह बात ब्रिज टु इंडिया की रिपोर्ट में कही गई है। बड़े स्तर पर सोलर और विन्ड पावर जेनरेशन में वृद्धि 2,620 मेगावॉट और 1.309 मेगावॉट रही जो पिछले साल के मुकाबले क्रमश: 60% और 40% की कमी है। छतों पर 979 मेगावॉट के सोलर पैनल ही लगाये जा सके जो पिछले साल लगायी गई रूफ टॉप के मुकाबले 36% की कमी है। रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना महामारी ने जो वित्तीय और ऑपरेशन चुनौतियां खड़ी कीं वह इस समस्या के पीछे है।

IEA: सोलर करेगा कोल पावर की बराबरी

अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) ने अपने इंडिया एनर्जी आउटलुक – 2021  में कहा है कि साल 2040 तक भारत का सौर ऊर्जा उत्पादन कोयले से मिलने वाली बिजली उत्पादन क्षमता की बराबरी कर सकता है। इसकी वजह है कि रिन्यूएबल एनर्जी की दरें घट रही हैं और सरकार ने 2030 तक 450 गीगावाट साफ ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य रखा है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में बैटरी स्टोरेज के मामले में दुनिया का सबसे अग्रणी देश बनने की क्षमता है और भारत 2040 तक 140-200 गीगावॉट बैटरी क्षमता बढ़ा सकता है।

भारत के CO2  इमीशन 2040 तक 50% बढ़ सकते हैं और भारत चीन के हालांकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि बाद दुनिया का सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक देश होगा।

चीन: कंपनियों के लिये न्यूनतम 40%  साफ ऊर्जा खरीद की शर्त

चीन की प्रस्तावित नीति में ग्रिड कंपनियों के लिये यह शर्त रखी गई है कि वह साल 2030 के बाद अपनी कुल खरीद का 40% उन स्रोतों से लेंगे जो जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल नहीं कर रहे। रायटर के मुताबिक क्षेत्रीय फर्म धीरे-धीरे अपनी साफ ऊर्जा खरीद – साल 2020 में 28.2%  –  बढ़ाकर 2030 में इसे 40% तक ले जायेंगी। चीन ने कहा है वह 2060 तक कार्बन न्यूट्रल देश हो जायेगा।


बैटरी वाहन 

स्विच इंडिया: दिल्ली सरकार की इस नीति का लक्ष्य कार बैटरी चार्जरों की संख्या बढ़ाना है ताकि लोग अधिक बैटरी वाहन खरीदें | Photo: CitySpidey News

दिल्ली: केजरीवाल ने शुरु किया “स्विच दिल्ली”

दिल्ली के खतरनाक प्रदूषण स्तर से लड़ने और नागरिकों को बैटरी वाहनों के फायदे समझाने के लिये मुख्यमंत्री केजरीवाल ने 4 फरवरी से “स्विच दिल्ली” अभियान शुरू किया। इस अभियान के तहत शॉपिंग मॉल, मार्केट कॉम्प्लेक्स और रिहायशी कॉलोनियों को ईवी चार्जर लगाने के लिये प्रोत्साहित किया जायेगा। प्रशासन ने राजधानी में 100 जगहों पर 500 ईवी चार्जिंग स्टेशन लगाने का टेंडर निकाला है।  दिल्ली सरकार का कहना है कि अब 6 महीनों के अंदर वह सभी विभागों के लिये बैटरी कार ही लेना शुरू करेगी।

आईआईटी स्टार्ट अप ने विकसित की ज़िंक आधारित बैटरी

आईआईटी कानपुर में एक स्टार्ट अप ने ज़िंक आधारित बैटरी विकसित की है जिसे बड़ी शेल जैसी बड़ी कंपनियां लीथियम आयन बैटरी का सुरक्षित और सस्ता विकल्प मान रही हैं।  इस स्टार्टअप का नाम ऑफग्रिड एनर्ज़ी लैब है और इसने कृषि और जानवरों के चारे में इस्तेमाल होने वाले नमक के बिना सॉल्वेंट वाले ज़िंक जेल विकसित किया है जो बैटरी के लिये इलैक्ट्रोलाइट की तरह काम करता है। इसमें आग नहीं लगती, तापमान का असर नहीं पड़ता और इसे रखने के लिये साफ और सूखे कमरे नहीं चाहिये जिससे इसकी कीमत 35% तक कम है।   

फोर्ड ने किया जीएम के साथ जंग का ऐलान

जनरल मोटर्स की कड़ी प्रतिद्वंदी फोर्ड मोटर कंपनी भी बैटरी वाहनों के उस ईवी मॉडल पर – खासतौर से पिकअप ट्रक, व्यवसायिक वाहन और एसयूवी पर निशाना साधने के लिये –  साल 2025 तक 2,200 करोड़ अमेरिकी डॉलर निवेश करेगी।  फोर्ड ने मस्तंग मैक ई के साथ बैटरी कारों की दुनिया में सफल प्रयोग किया है। इसकी नई फंडिंग रणनीति इलैक्ट्रिक और आटोमेटिक वाहनों की दुनिया में 2,900 करोड़ निवेश का हिस्सा है।


जीवाश्म ईंधन

प्रदूषण को फंडिंग: ब्राज़ील में तेल और गैस प्रोजेक्ट्स को फंडिंग यूके की जल्द लागू होने वाली नीति के खिलाफ है | Photo: CDN Statistics

यूके इस साल के अंत तक ब्राज़ील में तेल और गैस प्रोजेक्ट को करेगा फाइनेंस

एक खोजी न्यूज़ रिपोर्ट से पता चला है कि यूनाइटेड किंगडम की एक एक्सपोर्ट क्रेडिट एजेंसी, यूके एक्सपोर्ट फाइनेंस ब्राज़ील में समुद्र के भीतर एक तेल और गैस प्रोजेक्ट पर पैसा लगायेगी। यह काम यूके  के भीतर या बाहर सरकार द्वारा तेल और गैस में फाइनेंसिंग पर पाबंदी से ठीक पहले किया जा रहा है। अगर यह प्रोजेक्ट शुरू हुआ तो यह निर्माण और ऑपरेशन से ही हर साल यह 20 लाख टन CO2 छोड़ेगा। इसके अलावा इसके हाइड्रोकार्बन से चलने वाली कारें 8 लाख टन अतिरिक्त CO2 छोड़ेंगी।

अभी इसे हरी झंडी नहीं मिली है लेकिन इस प्रस्ताव की भारी आलोचना हो रही है क्योंकि यूके ने पहले जीवाश्म ईंधन के हर तरह के प्रोजेक्ट्स की फाइनेंसिंग बैन की थी। यूके में इसी साल 2021 में जलवायु परिवर्तन महासम्मेलन COP-21 होना है जिसमें पेरिस डील के आगे के रास्ते पर विचार होगा। साल 2016 में पेरिस डील के लागू होने के बाद से  यह कंपनी जीवाश्म पर 350 करोड़ पाउण्ड की फंडिंग कर चुकी है।

ग्रीनपीस: यूके के समुद्र में जानबूझ कर जलाई जा रही गैस

ग्रीनपीस की एक पड़ताल कहती है कि यूके के उत्तरी समुद्र तट के भीतर साल 2019 में इतनी गैस जानबूझ कर जलाई गई जो 10 लाख घरों में हीटिंग के लिये पर्याप्त है। तेल कुंओं से निकलने वाली फालतू गैस को जलाने की ये प्रक्रिया “फ्लेरिंग” कही जाती है। ग्रीनपीस की पड़ताल में पाया गया है कि कंपनियों ने पिछले पांच साल में  इन कुंओं से 2 करोड़ टन CO2 वातावरण में छोड़ी गई है। महत्वपूर्ण है कि इस तरह गैस को जलाने से बचा जा सकता है। नॉर्वे ने 1970 से ही इस पर रोक लगाई हुई है। सबसे बड़े प्रदूषकों में से एक शेल ने कहा है कि उसने पिछले पांच साल में “फ्लेरिंग” 19% कम की है जबकि बीपी का कहना है कि वह 2027 तक इसे बन्द कर देगा।