वायु प्रदूषण बच्चों और महिलाओं पर कर रहा भारी चोट

क्लाइमेट साइंस

Newsletter - January 15, 2021

हद से बाहर: नये शोध बताते हैं कि ग्लोबल वॉर्मिंग का ‘बेक्ड इन’ प्रभाव इतना अधिक है कि धरती को बचाने के वर्तमान लक्ष्य अपर्याप्त हैं | Photo: Pinterest

‘बेक्ड इन ग्लोबल वॉर्मिंग’ के आगे बेअसर हैं तापमान वृद्धि रोकने के प्रयास

एक नये शोध में कहा गया है कि ‘बेक्ड-इन ग्लोबल वॉर्मिंग’ का बढ़ता असर तमाम देशों द्वारा तय किये गये उन लक्ष्यों को बेअसर बताने के लिये पर्याप्त है, जो इन देशों ने पेरिस संधि के तहत अब तक तय किये हैं। लगातार गर्म होती धरती में एक स्थिति ऐसी आती है जब सारे ग्रीन हाउस गैस इमीशन रोक दिये जायें तो भी धरती गर्म होती रहती है। इसे ‘बेक्ड-इन ग्लोबल वॉर्मिंग’ या ‘बेक्ड-इन क्लाइमेट चेंज’ कहा जाता है। नेचर क्लाइमेट चेंज नाम के जर्नल में छपा शोध कहता है कि हालांकि अवश्यंभावी  विनाश लीला को रोका तो नहीं जा सकता लेकिन अगर सभी देश तेज़ी से ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन रोकने की दिशा में काम करें तो इसे सदियों तक टाला ज़रूर जा सकता है।

स्थित कितनी ख़तरनाक है इसका अंदाज़ा लगाने के लिये उत्तरी ध्रुव में जंगलों की आग और अटलांटिक के चक्रवाती तूफान जैसी घटनाओं को देखना होगा। साल 2020 को सबसे गर्म साल बनाने में इन कारकों का अहम रोल रहा जबकि इस साल की शुरुआत में अल निना का ठंडा प्रभाव भी था। साल 2020 तापमान के  मामले में 2016 के बराबर रहा और धरती पर अब तक का सबसे गर्म साल बना।  पिछले 6 साल लगातार तापमान के मामले में रिकॉर्ड तोड़ने वाले रहे हैं और 2011-20 तक का दशक दुनिया में सबसे गर्म दशक बन गया है।

जलवायु परिवर्तन पर काम करने वाली कॉपरनिक्स क्लाइमेट चेंज सर्विस ने जो आंकड़े जारी किये हैं उसमें यह बात सामने आई है। आंकड़े बताते हैं कि पिछला साल 1981-2010 के मुकाबले 0.6 डिग्री अधिक रहा जबकि उद्योगीकरण से पहले के (1850-1900) के स्तर से यह 1.25 डिग्री अधिक रहा। यूरोप का तो ये आधिकारिक रूप से सबसे गर्म साल रहा।  साल 2020 में भी CO2 इमीशन में बढ़त जारी रही।

सैटेलाइट डाटा अलर्ट से मिली जंगल बचाने में मिली मदद

सैटेलाइट डाटा की मदद से मुफ्त अलर्ट ने अफ्रीका में जंगलों का कटान कम किया है। यह बात एक शोध में सामने आई है।  डाउन टु अर्थ मैग्ज़ीन में छपी ख़बर बताती है कि अफ्रीका के 9 देशों में 2016-18 के बीच पहले के सालों के मुकाबले जंगलों के कटान में 18% गिरावट हुई। कैमरून, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक और कांगो इन देशों में शामिल हैं। घाना और आइवरी कोस्ट में प्राइमरी फॉरेस्ट की क्षति साल 2019 में पहले के मुकाबले 50% घटी। साल 2016 में शुरू किये गये अलर्ट ग्लोबल फॉरेस्ट वॉट नाम के इंटरफेस के ज़रिये भेजे गये। यह अलर्ट सिस्टम हर 8 दिन में वन क्षेत्र और प्लांटेशन वाले इलाकों में तस्वीरों की तुलना कर जंगल के कटने पर उन लोगों को अलर्ट भेजता है जिन्होंने इस सेवा का सब्स्क्रिप्शन लिया हो। इस तकनीक की एक बंदिश ये है कि बादलों के लगे होने पर यह उस क्षेत्र में काम नहीं करती।

संरक्षित वन क्षेत्र में जंगलों का कटान सबसे अधिक घटा। जानकारों के मुताबिक या तो भेजे गये अलर्ट से सरकारों को वर्तमान नीति लागू करने में सहायता मिली या फिर इनसे प्रभावी वन संरक्षण नीति बनाने में मदद हुई।  इस शोध में अमेरिका, अफ्रीका और एशिया के भूमध्य रेखा और उसके आसपास बसे 22 देशों का अध्ययन किया गया  और जानने की कोशिश की गई कि क्या इन अलर्ट की मदद से जंगल कटान रोकने में मदद मिली। जहां अफ्रीकी देशों में सकारात्मक परिणाम दिखे वहीं अमेरिका और एशिया महाद्वीप में संगठनों को दिये गये अलर्ट के बाद भी पेड़ों का कटान नहीं घटा।

यूपी-बिहार में खराब मौसम की सबसे अधिक चोट

मौसम की मार (एक्स्ट्रीम वेदर) के मामले में साल 2020 भारत के दो बड़े राज्यों यूपी और बिहार के लिये सबसे ख़राब रहा। मौसम विभाग ने जो जानकारी दी है उसके मुताबिक तूफान आने, बिजली गिरने और शीतलहर के कारण दोनों ही राज्यों में 350 से अधिक लोग मरे।  आंकड़े बताते हैं कि भारी बारिश और बाढ़ के कारण पूरे देश में पिछले साल कुल 600 लोगों की मौत हुई जिनमें 54 बिहार और 48 यूपी में मरे। इसी तरह बिजली गिरने और तूफान से पूरे देश में 815 लोगों की जान गई जिनमें यूपी के 220 और बिहार के 280 लोग थे। इसी तरह शीतलहर से (1 जनवरी तक) मरने वाले 150 लोगों में 88 यूपी और 45 बिहार के हैं।


क्लाइमेट नीति

फिर अधिग्रहण: कोरबा में खनन के लिये अधिग्रहण की केंद्र सरकार की कोशिश से विवाद हो सकता है क्योंकि राज्य सरकार यहां एलीफेण्ट कॉरिडोर की योजना बना रही है | Photo: Scroll.in

कोरबा में कोयला खनन के लिये वन भूमि का अधिग्रहण करेगी सरकार

केंद्र सरकार छत्तीसगढ़ के कोरबा में कोयला खनन के लिये वन भूमि लेना चाहती है और मदनपुर साउथ कोल ब्लॉक में 712.072 हेक्टेयर के लिये एक नोटिफिकेशन जारी किया है। इसमें करीब 490 हेक्टेयर संरक्षित वन भूमि है। केंद्र सरकार यहां कोल बियरिंग एरिया क़ानून (1957) की मदद ले रही जिसके तहत कोयले वाले इलाकों का खनन के लिये लिया जा सकता है लेकिन राज्य के वन अधिकारी इस पर कुछ स्पष्ट नहीं बोल रहे। केंद्र के इस कदम से इसलिये भी विवाद हो रहा है क्योंकि छत्तीसगढ़ सरकार इस इलाके को हाथी रिज़र्व बनाने पर विचार कर रही है। 

पश्चिमी घाट से रेल ट्रैक को वाइल्ड लाइफ बोर्ड की मंज़ूरी

नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ (NBWL) ने टिनाइघाट-कास्टरलॉक-कारन्ज़ॉल रेलवे ट्रैक को डबल करने वाले प्रोजेक्ट के लिये मंज़ूरी दे दी है। यह रेल ट्रैक संरक्षित पश्चिमी घाट के घने जंगलों से जाता है। इस प्रोजेक्ट के लिये कर्नाटक की 10.45 हेक्टेयर भूमि ली जायेगी जिस पर डंडेली वाइल्डलाइफ सेंक्चुरी है। इस क्षेत्र में वर्तमान रेल लाइन के कारण कई वन्य जीवों की मौत हुई है और अभी कोयला ट्रांसपोर्ट के लिये इस ट्रैक को डबल किया जा रहा है।

उधर राजस्थान सरकार ने एक नई वन नीति का खाका तैयार किया है जिससे अंधाधुंध खनन पर लगाम लगने की संभावना है। देश के सबसे बड़े राज्य में अगले 10 साल तक जंगलों के प्रबंधन और संरक्षण के लिये यह नीति बनाई जा रही है। पर्यावरण से जुड़ी ख़बरों  की जानकारी देने वाली वेबसाइट मोंगाबे इंडिया में छपी ख़बर के मुताबिक ड्राफ्ट पॉलिसी में संरक्षित वन क्षेत्र बढ़ाने, जैव विविधता और वन्य जीवों को बचाने के साथ खनन को नियंत्रित करने के उपाय किये गये हैं।  इस ड्राफ्ट पॉलिसी के तहत राज्य में गैरकानूनी खनन की जानकारी देने वाले सतर्क नागरिकों (व्हिसिलब्लोवर) के लिये एक गुप्त फंड भी बनाया जायेगा। क्षेत्रफल के हिसाब से देश का सबसे बड़ा राज्य होने के बावजूद राजस्थान में वनभूमि केवल 4.86% है। सरकार ने अपनी इस ड्राफ्ट पॉलिसी में 15 जून तक सभी संबंधित पक्षों से सुझाव देने को कहा है।

कड़े क्लाइमेट लक्ष्य घोषित करने से चूके कई देश  

जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभाव धरती पर लगातार दिख रहे हैं लेकिन ज़्यादातर देशों ने ग्लोबल वॉर्मिंग रोकने के लिये संयुक्त राष्ट्र में अपडेटेड प्लान जमा नहीं किया है।   इस अपडेटेड प्लान के तहत तमाम देशों को 31 दिसंबर तक यह बताना था कि 2030 तक कार्बन इमीशन कम करने के घोषित कदमों को वो कैसे और कड़ा बनायेंगे।   सभी देशों ने पेरिस संधि के तहत सदी के अंत तक धरती की तापमान वृद्धि 2 डिग्री से कम रखने और हो सके तो 1.5 डिग्री  का संकल्प किया है। हालांकि यूके और यूरोपियन यूनियन के 27 देशों समेत कुल 70 देशों ने अपना प्लान जमा कर दिया है लेकिन चीन भारत, कनाडा, इंडोनेशिया और सऊदी अरब जैसे देशों ने अपना प्लान जमा नहीं किया है। रूस, मैक्सिको और ऑस्ट्रेलिया ने अपने वर्तमान संकल्प को ही दोहराया है। चीन, रूस, ऑस्ट्रेलिया और भारत दुनिया के उन देशों में हैं जो काफी कार्बन इमीशन करते हैं। अमेरिका को डोनाल्ड ट्म्प वे पेरिस डील से अलग कर लिया था और अब जो बाइडेन के सत्ता संभालने के बाद  अमेरिका फिर से क्लाइमेट डील का हिस्सा बनेगा लेकिन उससे कितने ज़मीनी बदलाव होंगे इस पर सबकी नज़र है।


वायु प्रदूषण

हवा पर असर: आईपीसीसी की ताज़ा आकलन रिपोर्ट के हिसाब से जानलेवा वायु प्रदूषकों का स्तर दक्षिण एशिया में अपेक्षाकृत अधिक तेज़ी से बढ़ रहा है। फोटो – The Indian Express

वायु प्रदूषण: बच्चों में एनीमिया और महिलाओं में गर्भपात के ख़तरे

यह सर्वविदित है कि वायु प्रदूषण केवल फेफड़ों को नहीं बल्कि शरीर के हर अंग और यहां तक कि प्रत्येक कोशिका को नुकसान पहुंचाता है।  लेकिन अब शोध बताते हैं कि हवा में घुला ज़हर बच्चों में एनीमिया के ख़तरे को भी बढ़ा रहा है। आईआईटी दिल्ली स्थित सेंटर फॉर एटमॉस्फियरिक साइंस और हावर्ड विश्वविद्यालय के टी.एच. चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ की रिसर्च में यह बात सामने आई है। शोध बताता है कि आउटडोर प्रदूषण का 5 साल से कम उम्र के बच्चों में एनीमिया यानी खून की कमी से संबंध है। रिसर्च कहती है कि पीएम 2.5 कणों की मात्रा में 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की बढ़ोतरी से एनीमिया के स्तर में औसतन 1.9% बढ़ोतरी होती है और हीमोग्लोबिन  0.07 ग्राम प्रति डेसीलीटर घट जाता है। इस रिसर्च के लिये 2015-16 के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के आंकड़े इस्तेमाल किये गये।

इसी तरह लांसेट की रिसर्च में पाया गया है कि वायु प्रदूषण गर्भपात  (प्रेगनेन्सी लॉस) के खतरे को बढ़ाता है। अंदाज़ा है  कि दक्षिण एशिया में हर साल 3.49 लाख प्रेगनेन्सी लॉस पीएम 2.5 कणों के बढ़ते प्रभाव के कारण है। यह पूरे क्षेत्र में 2000-2016 के बीच कुल प्रेगनेन्स लॉस (गर्भपात, बच्चे की कोख में मृत्यु) का 7% है। भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में  इन मामलों की अच्छी खासी संख्या है।

प्रदूषण कर रहे बिजलीघरों से खरीद में बंगाल सबसे आगे, गुजरात भी पीछे नहीं

पश्चिम बंगाल जिन कोयला बिजलीघरों से बिजली खरीदता है वो सबसे अधिक प्रदूषण कर रहे हैं। यह बात दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरेंमेंट (सीएसई) के अध्ययन से पता चली है। बंगाल जिन थर्मल पावर प्लांट से बिजली खरीदता है उनमें से ज़्यादातर ने हानिकारक सल्फर डाई ऑक्साइड (SO2) इमीशन को नियंत्रित करने के लिये कदम नहीं उठाये हैं।  प्रदूषण के मानकों के लिये इन शोधकर्ताओं ने ताप बिजलीघरों की चिमनियों से हो रहे सल्फर इमीशन को ही आधार बनाया क्योंकि नाइट्रोजन के ऑक्साइडस के लिये मानक पहले ही काफी ढीले किये जा चुके हैं। अब सल्फर के मानकों को ढीला करने के लिये भी बिजली मंत्रालय दबाव बना रहा है। भारत में मानव गतिविधियों से होने वाले इमीशन में 50% से अधिक हिस्सा ताप बिजलीघरों से निकलने वाली SO2 का है।

सीएसई के इस शोध में देखा गया कि बिजलीघरों ने सल्फर डाइ ऑक्साइड के उत्सर्जन को रोकने के लिये क्या कदम उठाये हैं। जो पावर प्लांट मानकों को पूरा करते हैं या उन्होंने टेक्नोलॉजी लगाने के लिये ठेके दिये हैं उन्हें पीले यानी साफ ऊर्जा की श्रेणी में रखा गया।  जिन पावर प्लांट्स ने सल्फर नियंत्रक टेक्नोलॉजी के लिये ठेके देने कि प्रक्रिया शुरू कर दी है उन्हें नारंगी और जिनके पास कोई प्लान नहीं है उन्हें लाल ज़ोन में रखा गया।  नारंगी और लाल श्रेणी के पावर प्लांट्स को अनक्लीन यानी प्रदूषण फैलाने वाली श्रेणी में रखा गया। शोध में पाया गया है कि राष्ट्रीय स्तर पर क्लीन पावर स्टेशन से औसतन केवल 42% बिजली ली जा रही है। बंगाल केवल 16% बिजली, गुजरात 29% और तेलंगाना 26% बिजली क्लीन कैटेगरी के प्लांट से ले रहे हैं।.

केंद्र पराली से निपटने के उपाय ढूंढे: सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार से कहा कि वह एक शपथ पत्र दायर कर बताये कि भविष्य में पराली जलाने से निपटने के लिये क्या “पुख्ता उपाय” किये जा रहे हैं। दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में जाड़ों में होने वाले प्रदूषण का बड़ा हिस्सा पराली के धुंयें से आता है। चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े र जस्टिस ए एस बोपन्ना और जस्टिस रामासुब्रमण्यन की बेंच ने यह आदेश उस अपील की सुनवाई में दिया जिसमें कहा गया था कि पराली प्रदूषण के हालात फिर सामने आयेंगे। पिछले महीने उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि वह दिल्ली-एनसीआर और आसपास के इलाकों में वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिये बनी एयर क्वॉलिटी मैनेजमेंट कमीशन (CAQM)  के काम से संतुष्ट नहीं है।


साफ ऊर्जा 

फिर लगी रोक: आंध्र प्रदेश हाइकोर्ट ने फिलहाल राज्य का एक मेगा सोलर टेंडर रोक दिया है। इस पर अगली सुनवाई फरवरी में होगी | Andhra Wishesh

आंध्र प्रदेश हाइकोर्ट ने 6.4 गीगावॉट के प्रोजेक्ट पर स्टे लगाया

आंध्र प्रदेश हाइकोर्ट ने आंध्र प्रदेश ग्रीन एनर्जी कॉरपोरेशन (एपीजीईसीएल) से कहा है कि वह कोर्ट के अगले नोटिस तक हाल में निकाले गये 6.4 गीगावॉट के टेंडरों में किसी तरह का एग्रीमेंट न करे। पिछली 6 जनवरी को टाटा पावर रिन्यूएबल एनर्जी ने कोर्ट में अपील की थी जिसके बाद अदालत ने यह रोक लगाई। टाटा पावर के मुताबिक कॉर्पोरेशन द्वारा इन टेंडरों से जुड़े अनुबंध की प्रक्रिया इलेक्ट्रिसिटी एक्ट के खिलाफ है। वेबसाइट मरकॉम ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि टाटा का यह भी कहना है कि यह प्रक्रिया पावर मिनिस्ट्री और साफ ऊर्जा (एमएनआरई) मंत्रालय की गाइडलाइंस के खिलाफ है और इससे आंध्र प्रदेश इलेक्ट्रिसिटी रेग्युलेटरी कमीशन के वैधानिक अधिकार का हनन होता है। दिसंबर की शुरुआत में 6.4 गीगावाट के ये टेंडर किसानों को पावर सप्लाई करने के मकसद से निकाले गये थे। अब इस मामले में कोर्ट में अगली सुनवाई 15 फरवरी को होगी।  

ग्रीन एनर्जी प्रोजेक्ट्स के लिये तालमेल

नेशनल हाइड्रो पावर कॉर्पोरेशन (एनएचपीसी) ने इंडियन रिन्यूएबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी (इरेडा) के साथ एक एमओयू साइन किया है ताकि देश में अक्षय ऊर्जा के प्रोजेक्ट बढ़ाये जा सकें। एनएचपीसी का कहना है कि अगले 3 सालों में वह 7.5 गीगावॉट के सोलर (जिसमें फ्लोटिंग भी शामिल हैं) प्रोजेक्ट लगाकर इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाहता है। पिछले एक महीने में इरेडा का यह दूसरा एमओयू है। इससे पहले दिसंबर में इरेडा ने हिमाचल के एसजेवीएन के साथ ग्रीन एनर्जी प्रोजेक्ट के लिये एमओयू किया था। इसके अलावा पावर मिनिस्ट्री के संयुक्त उपक्रम – एनर्जी एफिसिएंसी सर्विसेज़ लिमिटेड (ईईसीएल)  ने राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) के साथ पैक्ट किया ताकि प्राधिकरण के भवनों में ग्रीन साफ ऊर्जा प्रोजेक्ट लगें और एनर्जी एफिसिएंसी बढ़े।  हाइवे अथॉरिटी का कहना है कि इस पैक्ट के तहत हाइवेज़ का विकास और रखरखाव, ई मोबिलिटी सेवा को लागू करना और साफ ऊर्जा प्रोजक्ट लगाना शामिल है।

सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन घटा सकती है टेंडर साइज़

सोलर एनर्ज़ी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (एसईसीआई) अपने ताज़ा टेंडर की क्षमता घटाने के साथ साथ इसकी लोकेशन भी बदल सकती है। पहले एसईसीआई का टेंडर 2,500 मेगावॉट का था जिसे कर्नाटक के कोप्पल ज़िले के सोलर पार्क में लगना था लेकिन अब इसकी क्षमता घटाकर कुल1,800 मेगावॉट कर दी गई है और इसके लिये अलग जगहों का चुनाव किया जा रहा है। 2,500 मेगावॉट के टेंडर को पिछली 10 अप्रैल को जारी किया गया था। तब से इसमें बिडिंग की तारीख 6 बार बढ़ाई जा चुकी है।

मध्य प्रदेश सरकार की दुनिया के सबसे बड़े फ्लोटिंग सौर पावर प्लांट की योजना

मध्य प्रदेश सरकार ने दावा किया है कि वह नर्मदा पर ओंकारेश्वर बांध में दुनिया का सबसे बड़ा फ्लोटिंग सौर बिजलीघर बनायेगी। खंडवा ज़िले में बनने वाला यह 600 मेगावॉट का सौर पावर प्लांट 2022-23 में बनना शुरू होगा। विश्व बैंक, इंटरनेशनल फाइनेंस कॉर्पोरेशन और पावर ग्रिड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया ने इस प्रोजेक्ट के लिये आपसी सहमति दे दी है। इस बांध के जलाशय में करीब 2000 हेक्टेयर क्षेत्र में इस सौर बिजलीघर के पैनल तैरेंगे।


बैटरी वाहन 

स्मार्ट खेल: चीन के गीली ऑटो ग्रुप और अमेरिका की कंपनी एप्पल दोनों स्मार्ट कार लाने की तैयारी कर रहे हैं जो बिना किसी ड्राइवर के भी चल सकेगी | Photo: Business Journal Daily

स्मार्ट बैटरी कार के लिये बाइडू ने जीली और एप्पल ने ह्युन्दई के साथ मिलाया हाथ

चीनी इंटरनेट कंपनी बाइडू ने स्वचालित बैटरी कारों के लिये जीली ऑटो ग्रुप से हाथ मिलाया है। जीली चीन की सबसे तेज़ी से बढ़ रही ऑटो कंपनी है। ये दोनों कंपनियां मिलकर ऐसी स्मार्ट इलैक्ट्रिक कार बना रही हैं जो बिना  ड्राइवर के चल सके। वोल्वो और लोटस जैसी ब्रान्ड की मालिक जीली इस कार की बॉडी बनायेगी जबकि बाइडू ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल करके स्वचालित ड्राइविंग फीचर वाला सॉफ्टवेयर डेवलप करेगी। महत्वपूर्ण है कि इसके द्वारा बनाये गये ऑटोनॉमस कार सॉफ्टवेयर, अपोलो की अभी टेस्टिंग चल रही है।

वहीं ख़बर है कि अमेरिकी कंपनी एप्पल इलैक्ट्रिक कार लाने की तैयारी में है जिसके लिये वह खुद बैटरी भी तैयार करेगी। अभी एप्पल की इस बारे में दक्षिण कोरियाई कंपनी ह्युन्दई से बात चल रही है और कार का ‘बीटा’ मॉडल (टेस्टिंग के लिये) 2024 तक आ सकता है।

नॉर्वे ने बनाया इलैक्ट्रिक कारों की बिक्री का रिकॉर्ड

नॉर्वे दुनिया का पहला देश बन गया है जहां साल 2020 में जितनी कारें बिकीं उनमें 50% से अधिक इलैक्ट्रिक कारें रहीं। एक इंडस्ट्री ग्रुप ने ये आंकड़े प्रकाशित किये हैं। आंकड़ों के मुताबिक जहां 2019 में सड़क पर उतरी नई कारों में बैटरी कारों का हिस्सा 42.4% वहीं 2020 में बिकीं नई कारों में 54.3% इलैक्ट्रिक कारें हैं। दिसंबर में तो नॉर्वे में बिकने वाली 66.7% कारें इलैक्ट्रिक कारें थी।  ऑडी ई-ट्रॉन और टेस्ला मॉल 3 सबसे अधिक बिकने वाले मॉल रहे। नॉर्वे पश्चिम यूरोप में तेल का सबसे बड़ा उत्पादक है फिर भी भारी सब्सिडी के कारण वहीं इलैक्ट्रिक कारों का बाज़ार फैल रहा है। इस देश का इरादा है कि साल 2025 तक सभी नई कारें “ज़ीरो इमीशन” वाली हों।

कैसे हासिल होगा दस लाख बैटरी दुपहिया बेचने का लक्ष्य

साल 2020 में भारत में केवल 25,735 हाइ स्पीड इलैक्ट्रिक टू-व्हीलर बिके। इससे फेम- 2 (FAME-II) योजना के तहत मार्च 2022 तक 10 लाख बैटरी दुपहिया बेचने का लक्ष्य नामुमकिन लग रहा है। पिछले हफ्ते सोसायटी ऑफ मैन्युफैक्चरर्स ऑफ इलैक्ट्रिक वेहिकल्स (SMEV) ने यह बात कही। फेम -2 अप्रैल 2019 में शुरू की गई थी। सोसायटी ने कहा कि जहां 2019 में 27,224 हाइ स्पीड टू व्हीलर बिके वहीं 2020 में कई इंसेंटिव के बावजूद यह सेल 5 गिर गई और फेम-2 योजना का (तीन साल के भीतर 10 लाख बैटरी दुपहिया बेचने)  लक्ष्य अब हासिल होता नज़र नहीं आ रहा।


जीवाश्म ईंधन

सख़्ती से परहेज़: केंद्रीय बिजली मंत्रालय ने कोयला बिजलीघरों से हो रहे SO2 प्रदूषण मानकों को ढीला करने की मांग की है | Photo: Saur Energy

प्रदूषण मानकों में ढिलाई चाहता है बिजली मंत्रालय

केंद्रीय बिजली मंत्रालय ने कोयला आधारित ताप बिजलीघरों के लिये SO2 इमीशन मानकों को ढीला करने की मांग की है। पिछली 2 जनवरी को पर्यावरण मंत्रालय को भेजे एक सरकारी पत्र में बिजली मंत्रालय ने असंभव डेडलाइन और कई इलाकों में अनावश्यक शर्तों का हवाला दिया है। महत्वपूर्ण है कि  देश में मानव जनित गतिविधियों से होने वाले इमीशन का आधे से अधिक हिस्सा कोयला पावर प्लांट्स से निकलने वाले SO2 का है। वैसे पर्यावरण मंत्रालय ने साल 2015 में सल्फर और नाइट्रोज़न समेत पार्टिकुलेट मैटर के लिये मानकों को तय किया था जिन्हें 2017 से लागू होना था।  हालांकि बिजली कंपनियों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील कर इस पर असमर्थता जताई और समय सीमा 2022 तक समय सीमा बढ़वा ली लेकिन अब तक 50%  से अधिक कोयला बिजलीघरों ने इस बारे में आवश्यक कदम नहीं उठाये हैं। नाइट्रोजन इमीशन के मानक पहले ही कमज़ोर किये जा चुके हैं और अब सल्फर डाई ऑक्साइड के मानक ढीले होने से नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम पर भी असर पड़ेगा।

पांच लाख करोड़ की अर्थव्यवस्था के लिये गृहमंत्री को कोयले पर भरोसा

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा है कि भारत ने 5 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का जो लक्ष्य रखा है उसमें  कोयला क्षेत्र महत्वपूर्ण रोल अदा करेगा। कोल माइनिंग शुरू करने के लिये सिंगल विन्डो क्लीयरेंस का उद्घाटन करते हुए शाह ने सोमवार को कहा कि इस दशक में  सरकारी और निजी फर्म द्वारा कोयला क्षेत्र में 4 लाख करोड़ रुपये निवेश की संभावना है। शाह ने दावा किया कि इसके लिये रोड मैप तैयार है। गृहमंत्री ने कहा कि सरकार ने पिछली दस किस्तों में कुल 116 कोयला खदानों को अनुमति दी है और कमर्शियल कोल माइनिंग के लिये पहले दौर में 19 कोल माइन को ठेके दिये गये।