प्रदूषित इलाकों में है कोरोना का अधिक ख़तरा

क्लाइमेट साइंस

Newsletter - April 23, 2021

समंदर पर असर: ग्लोबल वॉर्मिंग ने बढ़ा दी है समुद्र में ऑक्सीज़न घटने की रफ्तार| Photo: Canva

ग्लोबल वॉर्मिंग: समुद्र में तेज़ी से घट रही है ऑक्सीज़न

धरती का बढ़ता तापमान समुद्र में ऑक्सीज़न कम कर रहा है। पिछली एक सदी में ग्लोबल वॉर्मिंग के प्रभावों के कारण 2% ऑक्सीज़न कम हो गई है। नेचर कम्युनिकेशन में प्रकाशित GEOMAR हेल्महोल्ट्स सेंटर फॉर ओशन रिसर्च की नई मॉडलिंग बताती है कि अगर अभी हो रहे सारे कार्बन उत्सर्जन रोक भी दिये जायें तो भी दुनिया भर के महासागरों के जल में घुली  ऑक्सीज़न की मात्रा में चार गुना क्षति तय है। 

रिसर्च के नतीजे बताते हैं कि अगली कुछ सदियों में गहरे समुद्र में प्री-इंडस्ट्रिल लेवल (1850 के स्तर से) की ऑक्सीज़न से 10% की गिरावट तय है लेकिन CO2 इमीशन रुक जायें तो समुद्र सतह पर ऑक्सीज़न की हानि कमोबेश रुक जायेगी। समुद्र में घुली ऑक्सीजन जलीय जंतुओं और वनस्पतियों के लिये अनिवार्य है और समुद्री जैव विविधता इसी पर निर्भर है। इसलिये ऑक्सीज़न हानि की बढ़ती दर चिन्ता का विषय है। 

ग्लोबल वॉर्मिंग से बिगड़ेगा मॉनसून का मिज़ाज 

एक नई रिसर्च ने चेतावनी दी है कि अगर ग्लोबल वॉर्मिंग पर रोक नहीं लगी तो भारत में अधिक असामान्य मॉनसून देखने को मिलेगा। भारत में मॉनसून के लंबी अवधि के आंकड़ों के विश्लेषण के बाद पोट्सडैम इंस्टिट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पेक्ट रिसर्च ने यह बात कही। रिसर्च बताती है कि बारिश में बढ़ोतरी हिमालयी, बंगाल की खाड़ी के उत्तर पूर्वी इलाके और पश्चिमी घाट में अधिक दिखाई देगी। हालांकि म्यांमार और दक्षिण-पश्चिमी तट पर कुछ मॉडल्स ने बारिश में कमी की भी संभावना दिखाई 

उधर मौसम विभाग ने पिछले हफ्ते इस साल के मॉनसून का लंबी अवधि का पूर्वानुमान जारी किया। इसके मुताबिक 2021 में दक्षिण-पश्चिम मॉनसून – जो जून से शुरू होकर सितम्बर तक चलता है – सामान्य रहेगा। भारत में यह लगातार तीसरे साल सामान्य मॉनसून है हालांकि पिछले कुछ सालों में बहुत कम अंतराल में अत्यधिक बारिश देखी जा रही है। 

उड़ीसा: पांच साल में गज-मानव टकराव में 500 से अधिक मरे

उड़ीसा में पिछले पांच साल में हाथियों और इंसानों के बीच टकराव में कुल 528 लोग मारे गये। इसके अलावा 443 लोगों को चोटें भी आईं। एक नॉन प्रॉफिट  संगठन वाइल्डलाइफ सोसायटी ऑफ ओडिशा  ने जो आंकड़े जारी किये हैं उनसे यह बात पता चली है। करीब एक चौथाई मौतें गर्मियों के महीनों – अप्रैल से जून के बीच – हुईं। वाइल्डलाइफ सोसायटी ऑफ ओडिशा ने यह गणना अप्रैल 2017 से अप्रैल 2021 के बीच की हैं। विश्लेषण बताता है कि जंगल के भीतर जाने वाले इंसानों पर हाथियों के हमले की घटनायें तेज़ हुई है। ग्रामीण अक्सर नॉन टिम्बर उत्पाद जैसे महुआ, आम, कटहल, काजू आदि बटोरने जाते हैं। यह ऐसा मौसम होता है जब जंगल में चारे और पानी कमी के कारण हाथी भी फलों पर निर्भर करते हैं। सोसायटी के सचिव विश्वजीत मोहंती का कहना है कि वन विभाग ने हाथियों के हमलों में तेज़ी के बावजूद इस दिशा में कुछ खास काम नहीं किया है। इस ख़बर को विस्तार से डाउन टु अर्थ में पढ़ा जा सकता है


क्लाइमेट नीति

फिर वही मुहिम: सरकार ने एक बार फिर से जंगलों से जुड़े कानूनों में वृहद बदलाव की तैयारी शुरू कर दी है। Photo: Canva

भारतीय वन कानून में फिर बदलाव की तैयारी

मोदी सरकार एक बार फिर से इंडियन फॉरेस्ट एक्ट (1927) में बदलाव करने की योजना बना रही है। हालांकि पिछली बार सरकार की ऐसी कोशिश का पर्यावरण और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने जमकर विरोध किया था और उसे पीछे हटना पड़ा था। 

वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने पिछली 8 अप्रैल को सलाहकार एजेंसी के चयन के लिये विज्ञापन (एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट) जारी किया ताकि इस क़ानून में संशोधन का खाका तैयार हो सके। करीब 100 साल पुराने इस कानून में बदलाव कर सरकार वन उत्पादों और लकड़ी से जुड़े कई वन क़ानूनों को एक में सम्मिलित करना चाहती है। सरकार ने 3 साल पहले क़ानून में बदलाव की कोशिश की थी। पर्यावरण मंत्रालय के नये नोटिफिकेशन के मुताबिक, “पिछली कोशिश में, जो कि 2017 में शुरू की गई, पहला ड्राफ्ट सार्वजनिक किया गया था। 

उस पर जो टिप्पणियां मिलीं उसके आधार पर तय किया गया है भारतीय वन कानून – 1927 में अधिक वृहद और व्यवहारिक संशोधन किये जा सकते हैं।” इस रिपोर्ट को विस्तार से मोंगाबे इंडिया पर यहां पढ़ा जा सकता है।  

यूरोपीय यूनियन में क्लाइमेट कानून पर सैद्धांतिक सहमति 

अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन द्वारा आमंत्रित शिखर वार्ता के ठीक एक दिन पहले यूरोपीय यूनियन के देशों ने एक “यूरोपियन क्लाइमेट कानून” पर सैद्धांतिक सहमति बना ली। इस  प्रस्तावित क़ानून के तहत यूरोपीय देश 2030 तक अपने – 1990 के स्तर की तुलना में – ग्रीन हाउस गैस इमीशन में 55% कमी करेंगे और 2050 तक नेट-ज़ीरो का दर्जा हासिल करेंगे। इस क्लाइमेट लॉ को कार्बन इमीशन मुक्त दुनिया बनाने की दिशा में नये कदम की आधारशिला के तौर पर देखा जा रहा है। 

क्लाइमेट कानून पर सहमति के साथ ही यूरोपियन कमीशन ने भी  “हरित निवेश” के लिये मानक तैयार किये हैं। इससे यह परिभाषा तय होगी कि कौन सा कदम साफ ऊर्जा की दिशा उपाय माना जाये। 

जो नये मानक बनाये जा रहे हैं उनमें वही निवेश को क्लाइमेट के लिये मददगार माना जायेगा जो या तो लोगों, प्रकृति और संसाधनों पर हो रहे जलवायु परिवर्तन प्रभाव को कम करता हो या फिर ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को रोकने में मदद करता हो। 

यूके: क्लाइमेट समिट से पहले “सबसे महत्वाकांक्षी” कदम का ऐलान 

यूके ने नया लक्ष्य तय किया है जिसके तहत वह 2035 तक 1990 के उत्सर्जन स्तर के 78% के बराबर ग्रीन हाउस गैस इमीशन घटायेगा। यूके सरकार ने इस “दुनिया का सबसे महत्वाकांक्षी” इमीशन कट लक्ष्य बताया है। इसकी मदद से देश 2050 तक नेट ज़ीरो दर्जा हासिल करने का तीन-चौथाई रास्ता तय कर लेगा। प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने यह ऐलान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन द्वारा आयोजित क्लाइमेट शिखर वार्ता से ठीक पहले किया। इस शिखर वार्ता में दुनिया के 40 देशों के राष्ट्राध्यक्ष हिस्सा ले रहे हैं और इसका मकसद नेट ज़ीरो की दिशा में मज़बूत पहल का फ्रेमवर्क तैयार करना है।


वायु प्रदूषण

कोरोना और प्रदूषण: नई रिसर्च कहती है कि कोरोना हवा में प्रदूषण का सहारा लेकर तेज़ी से फैलता है। Photo: Canva

हवा से फैलता है कोरोना: लांसेट

लांसेट में प्रकाशित एक नई स्टडी के मुताबिक कोरोना (थूक या छींक की छोटी बूंदों के बजाय)  हवा से अधिक फैल रहा है। अब तक के स्वास्थ्य संबंधी उपाय हवा से संक्रमण को ध्यान में रखकर नहीं किये गये हैं और लोगों के अधिक बीमार पड़ने के पीछे यह भी एक वजह है। इस रिसर्च को लिखने वाले 6 शोधकर्ताओं ने 10 सुबूतों के आधार पर कोरोना के हवा के माध्यम से फैलने की बात कही है।  जानकार कहते हैं कि इससे स्पष्ट है कि जो लोग  जितना अधिक प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं उन्हें यह बीमारी होने का ख़तरा भी उतना ही अधिक है।    

वायु प्रदूषण से उद्योगों को सालाना 9500 करोड़ डॉलर का नुकसान 

मुंबई स्थित दलबर्ग एडवाइजर्स, क्लीन एयर फंड और भारतीय उद्योग महासंघ (सीआईआई) के एक साझा अध्ययन में पता चला है कि हर साल इंडस्ट्री को वायु प्रदूषण के कारण 9500 करोड़ अमेरिकी डॉलर के बराबर नुकसान होता है। यह हानि देश में वसूले गये सालाना टैक्स के 50% के बराबर है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि देश भर में मज़दूरों को वायु प्रदूषण से पैदा बीमारियों के कारण साल में कुल 130 करोड़ दिन छुट्टी लेनी पड़ती है जिससे 600 करोड़ डॉलर की हानि होती है। रिसर्च के मुताबिक प्रदूषित हवा का असर श्रमिकों की संज्ञानात्मक और शारीरिक प्रदर्शन पर पड़ता है जिसका असर उत्पादकता पर दिखता है। 

राज्यों की जवाबदेही तय करने के लिये एनजीटी ने बनाई टास्क फोर्स 

वायु प्रदूषण पर सरकारों की जवाबदेही तय करने के लिये देश की ग्रीन कोर्ट – नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल – ने 8 सदस्यों की नेशनल टास्क फोर्स गठित की है। यह कमेटी वायु प्रदूषण से निपटने के लिये उठाये कदमों को मॉनीटर करेगी। कोर्ट ने कहा कि ऊंचे पदों पर अधिकारियों को नागरिकों के प्रति संवैधानिक और क़ानूनी ज़िम्मेदारी निभाने के लिये एक ट्रस्टी की तरह काम करना चाहिये। कोर्ट ने यह भी कहा कि वर्तमान ख़राब हालात से निपटने के लिये कोई जादुई छड़ी नहीं है। सांस की बीमारियों से होने वाली मौतों के मामले में भारत दुनिया में नंबर वन है। 

अदालत के मुताबिक लापरवाही करने वाले और निर्देशों का पालन न करने वाले कर्मचारियों की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) में नोट और तनख्वाह से मुआवज़े की वसूली जैसे कदम अनिवार्य हैं। नेशनल टास्क फोर्स में पर्यावरण, शहरी विकास, कृषि और स्वास्थ्य मंत्रालय के अलावा पेट्रोलियम, ट्रांसपोर्ट और पावर मिनिस्ट्री के अधिकारी होंगे और केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के अधिकारियों को इसमें शामिल किया जायेगा। 


साफ ऊर्जा 

साफ ऊर्जा की ओर: भारत की सरकारी कोयला पावर और खनन कंपनी एनएलसी (आईएल) ने अपनी ग्रीन एनर्जी क्षमता में उल्लेखनीय बढ़ोतरी की है। Photo: Canva

एनएलसी ने साफ ऊर्जा उत्पादन क्षमता 39% बढ़ाई

कोयला खनन और बिजली उत्पादन से जुड़ी सरकारी कंपनी एनएलसी-आईएल ने साल 2020-21 में अपनी ग्रीन एनर्जी क्षमता में 39% इजाफा किया हालांकि उसकी खनन क्षमता इस दौरान 66% बढ़ी। कंपनी ने इस साल बैटरी स्टोरेज के साथ  सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता 17.5 मेगावॉट बढ़ाई जबकि लिग्नाइट आधारित पावर प्रोडक्शन में 500 मेगावॉट की बढ़ोतरी की। अब एनसीएल और उसकी सहयोगी कंपनियों की कुछ क्षमता 6000 मेगावॉट से अधिक है। 

इस कंपनी ने कोल इंडिया के साथ पूरे भारत में सौर और ताप ऊर्जा के लिये – कोल लिग्नाइट ऊर्जा विकास लिमिटेड  संयुक्त उपक्रम किया है। यह उपक्रम सौर ऊर्जा पैनल लगाने संबंधी कार्यों के लिये निविदायें आमंत्रित कर रहा है। मरकॉम के इंडिया सोलर टेंडर ट्रेकर के मुताबिक, एनसीएल इंडिया ने अब तक 2.9 गीगावॉट के सोलर पावर प्रोजेक्ट के टेंडर निकाले हैं। 

कोविड -19 : दूसरी लहर के कारण सौर उद्योग ने मांगी चार महीने की मोहलत 


भारत में कोरोना की दूसरी लहर के कारण श्रम और आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान ने सौर ऊर्जा क्षेत्र में चल रही सभी परियोजनाओं पर चार महीने की रोक लगा दी है। नेशनल सोलर एनर्जी फेडरेशन के अनुसार इस देरी का कारण  सरकारी अधिकारियों की अनुपस्थिति, लॉकडाउन, कर्मचारियों की कमी और लटके कार्य हैं. 


परियोजनाओं को रद्द करने और डेवलपर द्वारा भुगतान न किए जाने पर भारी पेनल्टी हो सकती है। राजस्थान, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में पूर्ण या आंशिक लॉकडाउन देखा गया  है, जिसके कारण काम में रुकावट आई।

अमेज़न ने ख़रीदे नौ यूटिलिटी स्केल अक्षय ऊर्जा परियोजनाएं 

ब्लूमबर्ग के मुताबिक, ई कॉमर्स कंपनी अमेज़न ने अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, स्पेन और स्वीडन में नौ नए यूटिलिटी स्केल विंड और सोलर प्रोजेक्ट्स की योजनाओं की घोषणा की है.  अमेज़न अब अक्षय ऊर्जा कि दुनिया का सबसे बड़ा कॉर्पोरेट खरीदार बन गया है। कंपनी ने घोषणा की कि यह 2025 तक वैश्विक व्यापार के लिए 100 प्रतिशत रिन्यूएबिल ऊर्जा का इस्तेमाल करेंगे.
इसके अलावा अमेज़न के पास वैश्विक स्तर पर 206 नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएं होगी, जिसमें 8.5 गीगावाट (GW) की बिजली उत्पादन क्षमता के साथ आउटलेट जोड़ा गया है।

फेसबुक ने भारत में की साफ ऊर्जा डील, नेट ज़ीरो हासिल करने का दावा 

सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक ने एक भारतीय कंपनी के साथ पवन ऊर्जा (विन्ड पावर) खरीदने का अनुबन्ध किया है। फेसबुक के मुताबिक किसी दक्षिण एशियाई देश के साथ इस प्रकार की यह पहली डील है। फेसबुक का दावा है कि साल 2020 में दुनिया भर में उसका काम साफ ऊर्जा के इस्तेमाल पर ही चला और कंपनी ने नेट ज़ीरो हासिल कर लिया है। 

फेसबुक ने 32 मेगावॉट पवन ऊर्जा की डील मुंबई स्थित क्लीनमैक्स के साथ की है। दोनों कंपनियों का कहना है कि यह अनुबन्ध विन्ड और सोलर के एक बड़े ऊर्जा सप्लाई प्रोजेक्ट का हिस्सा है। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने पिछले साल कहा था कि सोशल नेटवर्किंग कंपनियों को चला रहे डाटा सेंटर दुनिया की कुल बिजली का 1% इस्तेमाल करते हैं और  फेसबुक के लिये भारत दुनिया में सबसे बड़ा बाज़ार है। 

हाइड्रोजन पर भारत करेगा 20 करोड़ डॉलर खर्च 

साफ ऊर्जा को प्रोत्साहन के लिये हाइड्रोजन का इस्तेमाल एक विकल्प माना जाता है। अब साफ ऊर्जा मंत्रालय के  वरिष्ठ अधिकारी ने उद्योगपतियों के साथ वेब मीटिंग में कहा है कि सरकार हाइड्रोजन को बढ़ावा देने के लिये अगले 5 से 7 साल में 20 करोड़ अमेरिकी डॉलर का निवेश करेगी। 

भारत ने अपनी तेल और गैस कंपनियों से कहा है कि वह इस वित्तीय वर्ष के अंत तक सात हाइड्रोजन पायलट प्लांट लगाये। पूरी दुनिया में सरकारें और बड़ी कंपनियां ग्रीन हाउस गैस इमीशन कम करने के लिये हाइड्रोजन टेक्नोलॉजी पर काम कर रही हैं  हालांकि अभी इसके प्रयोग और लागत पर तस्वीर साफ नहीं हुई है। केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने भी एक ऑनलाइन कॉन्फ्रेंस में कहा कि सरकार ट्रांसपोर्ट ईंधन के रूप में हाइड्रोजन मिश्रित नेचुरल गैस का प्रयोग – जिस एच-सीएनजी टेक्नोलॉजी कहा जाता है – बढ़ाने के प्रयास कर रही है। 


बैटरी वाहन 

महत्वपूर्ण क्रांति: बैटरी वाहनों में वायरलेस चार्जिंग पर बड़े शोध हो रहे हैं। दक्षिण कोरिया ने विश्व मानकों के अनुरूप टेक्नोलॉजी विकसित करने का दावा किया है। Photo: Canva

दक्षिण कोरिया: वायरलेस चार्जिंग की उम्दा तकनीक

दक्षिण कोरिया ने ऐलान किया है कि वह बैटरी वाहनों में चार्जिंग टेक्नोल़ॉजी के लिये उम्दा तकनीक विकसित करेगा जो विश्व मानकों के अनुरूप होगी। कोरिया इलैक्ट्रिक वाहनों के लिये  50 किलोवॉट क्षमता तक की वायरलेस चार्जिंग टेक्नोलॉजी पर काम कर रहा है और इस सिलसिले में उसकी प्रौद्योगिकी और मानक एजेंसी ने दुनिया के विशेषज्ञों से वेब-वार्ता की। कोरिया का दावा है कि वह ग्लोबल स्टैंडर्ड के हिसाब से घंटे भर में 80% बैटरी चार्जिंग की टेक्नोलॉजी लायेगा। बैटरी वाहनों के लिये वायरलेस चार्जिंग की कोशिश अब नई क्रांति है और नॉर्वे जैसे यूरोपीय देशों ने इस पर काम शुरू कर दिया है।  

बैटरी वाहन बिक्री में तिपहिया वाहन अव्वल 

दिल्ली स्थित काउंसिल ऑफ एनर्जी एंड इन्वायरेंमेंट (सीईईडब्लू) ने बैटरी वाहनों की बिक्री को लेकर जो आंकड़े जुटाये हैं उनके मुताबिक साल 2020-21 में कुल इलैक्ट्रिक वाहनों की बिक्री में 65% तिपहिया वाहन थे। रजिस्टर हुए सारे वाहनों में ईवी का हिस्सा 0.88% था जो अब तक का सर्वाधिक है। देश में साल 20-21 में कुल 1,35,000 बैटरी वाहन बिके जिससे पिछले 10 साल में बिके कुल इलैक्ट्रिक वाहनों की संख्या 6,38,000 हो गई है। अप्रैल 2020 से यूपी इस मामले में अव्वल रहा जिसका हिस्सा कुल बिक्री का 23% रहा। त्रिपुरा में प्रति हज़ार आईसी वाहनों में 52 बैटरी वाहन बिके जो एक रिकॉर्ड है। 

अमेरिका: 2035 तक सारे वाहन हो सकते हैं इलैक्ट्रिक 

बैटरियों की गिरती कीमतों और उम्दा टेक्नोलॉजी के चलते  2035 तक अमेरिका में बिकने सभी वाहन इलैक्ट्रिक हो सकते हैं। उनमें कार और ट्रक शामिल हैं। यह बात यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, बर्कले स्टडी में सामने आई है। शोधकर्ताओं का मानना है कि इससे कई लाख करोड़ डॉलर काफी धन की बचत होगी और जलवायु संकट की रफ्तार को कम करने में मदद मिलेगी। 

अभी अमेरिका के कुल वाहनों की बिक्री में केवल 2% ही बैटरी वाहन हैं। गैस और डीज़ल से चलने वाले वाहनों की तुलना में लोग महंगी इलैक्ट्रिक कारों को पसंद नहीं करते क्योंकि चार्जिंग पॉइंट मिलेंगे इसका भी उन्हें भरोसा नहीं। अब नई रिसर्च बताती है कि अगले पांच साल में इलैक्ट्रिक कारों की कीमत पेट्रोल कारों के बराबर हो जायेगी। तेज़ गति से बैटरी कारों के लिये खड़ा होता मूलभूत ढांचा ग्राहकों का भरोसा बढ़ायेगा और इससे साल 2050 तक कम से कम 2.7 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर बचेंगे।


जीवाश्म ईंधन

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“सबसे किफायती” दर पर बिजली के लिये और कोल प्लांट

लगता है कि पर्यावरण कार्यकर्ताओं के मुखर विरोध और साफ ऊर्जा की गिरती कीमतों के बावजूद सरकार अभी और कोयला बिजलीघर लगा सकती है। समाचार एजेंसी रायटर के मुताबिक भारत के नये ड्राफ्ट नेशनल इलेक्ट्रिसिटी प्लान (एनईपी) में कहा गया है कि “कोयला बिजली उत्पादन का अब भी सबसे सस्ता स्रोत है।” यह ड्राफ्ट 2018 के  नेशनल इलेक्ट्रिसिटी प्लान का नया रूप है और हाल में सौर और पवन ऊर्जा की सस्ती (दो रुपये/ किलोवॉट-घंटा) टेंडर निलामी के बावजूद इसमें कोयले के पक्ष में तर्क हैं। 

वैसे बिजली उत्पादन में कोयले का योगदान लगातार दूसरे साल (2020 में) गिरा है। भारत की ताप बिजली कंपनी नेशनल थर्मल पावर ने भी पिछले साल सितंबर में कहा कि अब वह नये कोयला बिजलीघरों के लिये ज़मीन अधिग्रहण नहीं करेगी। 

फ्रांस: कम दूरी की घरेलू उड़ानों पर रोक, ट्रेन से होगी यात्रा  

 फ्रांस ने कम दूरी की उड़ानों पर रोक लगाने का फैसला किया है। इस नीति के तहत अगर यात्रा का समय ढाई घंटे से कम है तो मुसाफिरों को ट्रेन पकड़नी होगी। पहले यह शर्त चार घंटे की थी लेकिन एयरलाइंस के विरोध के बाद इसे घटाया गया। यह फैसला फ्रांस द्वारा इमीशन कम करने के लिये है क्योंकि ट्रेन के बजाय उतनी ही दूरी हवाई जहाज से तय करने में 77 गुना अधिक CO2 उत्सर्जन होता है। महत्वपूर्ण है कि यूरोप में उम्दा ट्रेन सुविधा है और बाकी यूरोपीय देश भी ऐसे कदम ले सकते हैं। ऐसी ही एक पहल में नवंबर 2020 में ऑस्ट्रियन एयरलाइन ने वियना और ग्राज़ के बीच उड़ान बन्द कर दी। इस दूरी को यात्री अब ट्रेन से 3 घंटे में तय किया जाता है।