असम: ऑइल इंडिया के कुंएं में लगी आग से भीषण तबाही

Newsletter - June 11, 2020

दुर्घटना या लापरवाही: असम में ऑइल इंडिया लिमिटेड के गैस कुएं में लगी आग से हज़ारों बेघर हो गये हैं और कम से कम दो राहतकर्मियों की जान गई है | Photo– Special arrangement

असम: ऑइल इंडिया के कुंएं में लगी आग से भीषण तबाही

असम के तिनसुकिया इलाके में ऑइल इंडिया लिमिटेड के कुंएं में मंगलवार को लगी आग से भीषण तबाही हो गई। इससे ऑइल इंडिया के कम से कम दो कर्मचारियों की मौत हो गई और कुछ लोग लापता बताये जा रहे हैं।  गुरुवार सुबह ख़बर लिखे जाने तक आग पर काबू नहीं पाया गया है था हालांकि सिंगापुर से अग्नि शमन विशेषज्ञों की एक टीम मौके पर पहुंच गई थी। ऑइल इंडिया ने मर गये दो कर्मचारियों के लिये कुल 1.60 करोड़ रुपये के मुआवज़े का ऐलान किया है।

ख़बरों के मुताबिक इस कुएं से पिछली 27 मई से लगातार गैस लीक हो रही थी। प्रशासन का कहना है कि करीब 2,500 परिवारों को इस क्षेत्र से हटाया गया है। मंगलवार को अचानक आग भड़क जाने के बाद अब कम से कम 7,000 लोगों को एक दर्जन राहत कैंपों में भेजा गया है। यह कुआं ऑइल इंडिया की फील्ड का हिस्सा है। असम के डिब्रू-सैखोवा नेशनल पार्क से लगे इस इलाके में इसके अलावा 16 और कुएं हैं।

डाउन टु अर्थ मैग्ज़ीन में छपी इस ख़बर के मुताबिक स्थानीय लोग और पर्यावरण के जानकार ऑइल इंडिया के इस प्रोजेक्ट और इस क्षेत्र में चल रही गतिविधियों पर सवाल उठा रहे हैं और इस पूरी घटना को लापरवाही का नतीजा बताते हैं। डिब्रू-सैखोवा नेशनल पार्क में 40 स्तनधारियों के अलावा 500 तरह के पक्षी और मछलियों की 100 से अधिक प्रजातियां हैं। घटना के बाद बर्बाद हुए इलाके के साथ कुछ मरी हुई डॉल्फिन की तस्वीरें भी सामने आयीं। पहले कोरोनावायरस और फिर अम्फान से हुई तबाही के बाद यह आग स्थानीय लोगों के लिये नया सिरदर्द लेकर आयी है।


क्लाइमेट साइंस

तूफान और बाढ़: पूर्वी तट पर आये तूफान अम्फान के कारण असम को बाढ़ का सामना करना पड़ा तो दूसरी और पश्चिमी तट पर आये निसर्ग ने कम से कम 4 लोगों की जान ले ली। फोटो: Deccan Herald

भारत में 10 दिनों के भीतर आया दूसरा चक्रवात, बाढ़ में डूबा असम

अरब सागर से उठे चक्रवाती तूफान निसर्ग की वजह से कम से कम 4 लोगों की मौत हो गई और करोड़ो रूपये का नुकसान हो गया। इस तूफान के कारण मायानगरी मुंबई का तो कोई नुकसान नहीं हुआ लेकिन रायगढ़ ज़िले की 15 में 8 तहसीलों में घरों, भवनों और झुग्गी-झोपड़ियों को मिलाकर 5 लाख से अधिक ढांचों को नुकसान पहुंचा। कई भवनों की छतें उड़ गईं और बिजली के हज़ारों खम्भे गिर गये। पूर्वी तट पर आये तूफान अम्फान के बाद 10 दिन के भीतर यह भारत के तट से टकराने वाला दूसरा तूफान बना। हालांकि निसर्ग ने अम्फान जैसी तबाही नहीं मचाई फिर भी बार-बार कम अंतराल में आ रहे चक्रवात अब मौसम विज्ञानियों और आपदा प्रबंधकों के लिये सिरदर्द बन रहे हैं।

उत्तर पूर्वी राज्य असम के 9 ज़िलों में अम्फान तूफान के कारण हुई लगातार मूसलाधार बारिश से  बाढ़ का कहर टूट पड़ा है। करीब 3 लाख लोगों के जीवन पर अभी इसका पड़ा है। वैसे तो बाढ़ असम में हर साल आती है लेकिन चक्रवात अम्फान की वज़ह से इसका प्रकोप कुछ पहले ही हो गया। कोरोना महामारी के वक्त राहत कैंपों में ठूंसे गये लोगों के बीच यह समस्या और तेज़ी से बढ़ने का ख़तरा है।

समुद्र तटों पर 3 करोड़ से अधिक लोगों को ख़तरा

एक नये शोध में बताया गया है कि दुनिया भर में समुद्र तटीय इलाकों में रहने वाले करीब 3.1 करोड़ लोग “अत्यधिक असुरक्षित” हैं। यह ख़तरा चक्रवाती तूफानों और समंदर के जल स्तर के बढ़ने की वजह से है। इन कारकों के पीछे जलवायु परिवर्तन का हाथ बताया गया है।  लेकिन शोध यह भी बताता है कि इस असुरक्षित आबादी के करीब 25% हिस्से के पास इन खतरों से बचने के लिये प्राकृतिक ढाल का रक्षा कवच मौजूद है।

साइंस पत्रिका प्लोस वन (PLOS ONE) में छपे शोध में कहा गया है कि जिन 3.1 करोड़ लोगों को तूफानों और समुद्र सतह के बढ़ने से ख़तरा है उनमें से 85 लाख लोगों को मैंग्रोव और कोरल रीफ यानी प्रवाल भित्तियां कुछ हद तक सुरक्षा कवच प्रदान कर सकती हैं। 

कोरोना की पाबंदियों के बावजूद CO2 रिकॉर्ड स्तर पर

कोरोना वायरस के कारण लागू लॉकडाउन और अर्थव्यवस्था पर चोट के बावजूद मई के महीने में औसत CO2 स्तर पिछले साल (मई – 2019) के मुकाबले अधिक रहा।  यूनिवर्सिटी ऑफ केलिफोर्निया, सेंट डियागो ने जो आंकड़े जारी किये हैं वह बताते हैं कि हवाई की मोना लोआ वेधशाला में CO2 का स्तर 417 पार्ट प्रति मिलियन (पीपीएम) पाया गया। मई के महीने में CO2 इतने ऊंचे स्तर पर कभी नहीं पाई गई। पिछले साल मई में यह स्तर 414.7 पीपीएम था।

दुनिया के कई देशों में कोरोना महामारी के कारण लागू पाबंदियों से इमीशन 26% तक कम हुए हैं लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि पौंधों का मिट्टी, और नमी के साथ कैसा बर्ताव रहता है इसके वृहद प्रभाव को निरस्त करने में यह गिरावट कामयाब नहीं हुई। अमेरिका की कोलेराडो स्टेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने दुनिया में सबसे साफ हवा वाली जगह खोजने का दावा किया है।

है एक जगह जहां कोई प्रदूषण नहीं!

समाचार वेबसाइट डी-डब्लू हिन्दी में छपी एक ख़बर के मुताबिक वैज्ञानिकों ने यह जगह सुदूर दक्षिण ध्रुव के पास खोजी है। अंटार्कटिका के इस हिस्से में इंसान का नामोनिशान नहीं है और हवा में कोई प्रदूषण नहीं पाया गया।  यह खोज ऑस्ट्रेलियाई मरीन नेशनल फेसलिटीज़ के शोधकर्ताओं द्वारा जुटाये गये नमूनों के आधार पर किया गया है। वायु प्रदूषण दुनिया में लाखों लोगों की मौत का कारण बनता है। कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में छपे शोध बता चुके हैं कि भारत में हर साल 10 लाख से अधिक लोगों की मौत वायु प्रदूषण के कारण होती है। दुनिया के 20 प्रदूषित शहरों में से 15 भारत के हैं। ऐसे में दक्षिणी ध्रुव के पास खोजी गई प्रदूषण रहित जगह इंसान ख्वाब में ही हासिल कर सकता है।


क्लाइमेट नीति

विनाश जारी: सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 22 राज्यों की करीब साढ़े ग्यारह हेक्टयर वनभूमि पिछले साल गैर वानिकी प्रोजेक्ट्स के लिये दी गई | Photo: ThoughtCo

मध्य प्रदेश में लॉकडाउन के दौरान वन क्षेत्र में काटे गये पेड़

कोविड-19 महामारी के दौरान मध्यप्रदेश के वन क्षेत्र में बहुत सारे पेड़ काटे जाने के आरोपों के बाद अब वन और राजस्व अधिकारियों द्वारा एक जांच कराई जा रही है। इससे पहले साल 2019 में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में एक रिपोर्ट दी थी जिसमें कहा गया था कि मध्यप्रदेश के कलियासोट और कर्वा बांध के बीच वन क्षेत्र को गैर-वानिकी गतिविधियों के लिये इस्तेमाल किया जा रहा है और इसके लिये ज़रूरी अनुमति नहीं ली गई है।  

तब एनजीटी ने राज्य के वन विभाग से 30 अप्रैल (2020) तक पूरे क्षेत्र की मैपिंग करने और वन क्षेत्र को अपने अधिकार में लेने को कहा था। यह काम लॉकडाउन के दौरान भी होना था जो कि 24 अप्रैल को लागू किया गया। याचिकाकर्ता ने एनजीटी से कहा है कि लॉकडाउन के वक्त इस क्षेत्र में पेड़ों का घनत्व घटाने के लिये जमकर वृक्ष काटे गये ताकि यह इलाका वन क्षेत्र में न आये।

वनभूमि का गैर वानिकी योजनाओं  के लिये दिया जाना जारी

केंद्र सरकार ने माना है कि वन भूमि को गैर-वानिकी कार्यों के लिये दिया जाना जारी है। पिछले साल 1 जनवरी और 6 नवंबर के बीच 22 राज्यों की कुल 11467.83 हेक्टेयर (114.68 वर्ग किमी) वनभूमि ऐसे कामों के लिये दी गई जो जंगल से जुड़े नहीं थे। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की 2019-20 की सालाना रिपोर्ट यह बताती है कि हस्तांतरण कुल 932 नॉन-फॉरेस्ट्री प्रोजेक्ट्स के लिये वन (संरक्षण) कानून 1980, के तहत किया गया। एक तिहाई से ज़मीन उड़ीसा में 14 प्रोजेक्ट्स के लिये दी गई। उसके बाद तेलंगाना और झारखंड का नंबर आता है। 

बिजली कंपनियों ने उत्सर्जन नियंत्रण के लिये मांगा और वक़्त

बिजली कंपनियों ने अपने पावर प्लांट से निकल रहे हानिकारक इमीशन रोकने के लिए एक बार फिर एक्सटेंशन मांगा है। अबकी बार कंपनियों ने बैंकों से कर्ज़ न मिल पाने के अलावा कोरोना का बहाना बनाया है। एसोसिएशन ऑफ पावर प्रोड्यूसर्स ने देश के बिजली मंत्री को पत्र लिखकर इमीशन नियंत्रण के उपकरण लगाने के लिये और वक़्त मांगा है। यह बिजली कंपनियों को दूसरी बार मिलने वाली छूट होगी जिन्हें पहले 2017 तक इमीशन कंट्रोल टेक्नोलॉजी लगानी थी और अब 2022 तक छूट दी जा चुकी है।

EU: साफ ऊर्जा के इस्तेमाल का असर दिखा, इमीशन गिरे

यूरोपीय इन्वायरेंन्मेटल एजेंसी की ताज़ा रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2018 में यूरोप के ग्रीन हाउस गैस इमीशन लगातार गिरे। अब तक इस साल के ही पूरे आंकड़े उपलब्ध हैं। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2017 के मुकाबले 2018 में इमीशन 2.1% कम हुये के स्तर से 23% कम थे। संयुक्त राष्ट्र की क्लाइमेट डील के तहत 1990 के इमीशन, यूरोपियन यूनियन के लिये कार्बन इमीशन कम करने की बेस लाइन है। उत्सर्जन में इस कमी के पीछे कोयले का इस्तेमाल घटाने के साथ सौर और पवन ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ाना प्रमुख कारण हैं। यूरोपियन आयोग के वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा है कि कोरोना रिकवरी प्लान पर जो 75,000 करोड़ यूरो खर्च किये जा रहे हैं उससे यूरोपियन यूनियन के उन लक्ष्यों पर कोई असर नहीं पड़ेगा जो जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये तय किये गये हैं।  कमीशन के मुताबिक ग्रीन ट्रांसपोर्ट लाने, साफ ऊर्जा से चलने वाले उद्योग स्थापित करने और घरों के नवीनीकरण के लिये 15,000 करोड़ यूरो इन दिशा में काम करने के लिये 15,000 करोड़  का फंड बनाया जायेगा।


वायु प्रदूषण

फिर वही हालात: लॉकडाउन में छूट मिलते ही राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण सबसे तेज़ उछाल हुआ है | Photo: The Weather Channel

दिल्ली: रिकॉर्ड गिरावट के बाद वायु प्रदूषण में सबसे तेज़ उछाल

लॉकडाउन में मिली आंशिक छूट के बाद दिल्ली में वायु प्रदूषण बाकी महानगरों के मुकाबले सबसे अधिक तेज़ी से उछला है। दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरेंमेंट (सीएसई) ने आंकड़ों के आधार पर यह बात कही है। सीएसई की रिपोर्ट कहती है कि 23 मार्च को लॉकडाउन लगाये जाने के बाद दिल्ली में वायु प्रदूषण 80% घट गया था। सीएसई ने दिल्ली, मुंबई, कोलकाता,चेन्नई, हैदराबाद और बंगलुरू में PM 2.5 के स्तर का अध्ययन किया जिससे पता चलता है कि लॉकडाउन के पहले और आखिरी चरण के मुकाबले दिल्ली के प्रदूषण में 4 से 8 गुना बढ़ोतरी हुई है जबकि बाकी शहरों का प्रदूषण 2 से 6 गुना बढ़ा है। 

विशाखापट्टनम गैस लीक: दक्षिण कोरियाई कंपनी मौतों के लिये ज़िम्मेदार

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने दक्षिण कोरियाई फर्म एल जी पोलीमर्स को विशाखापट्टनम गैस लीक कांड के शिकार 12 लोगों की मौत के लिये “पूरी तरह” ज़िम्मेदार ठहराया है। ट्रिब्यूनल ने इस बारे में जांच के लिये गठित पैनल की रिपोर्ट को उद्धत करते हुए कहा कि कंपनी ने स्टोरेज टैंक की ठीक से देखभाल नहीं की जिसमें अत्यधिक हीटिंग और ऑटो-पोलिमराइज़ेशन के कारण 7 मई को प्लांट से ज़हरीली स्टाइरीन गैस का रिसाव हुआ। कोर्ट ने कहा कि कंपनी द्वारा जमा कराये गये 50 करोड़ से पुनर्निर्माण और पीड़ितों को अंतरिम राहत देने का काम होगा जिसके लिये कोर्ट ने एक पैनल का गठन किया।

दूसरी ओर केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने कहा है  कि एल जी पोलीमर्स का प्लांट बिना पर्यावरणीय अनुमति के चल रहा था और राज्य सरकार ने उसकी अर्ज़ी अभी स्वीकृति के लिये केंद्र को नहीं भेजी थी। कंपनी ने माना कि 1997 से 2019 तक प्लांट बिना सरकार की अनुमति के चल रहा था।

UK: कोरोना के कहर को वायु प्रदूषण से न जोड़ना आश्चर्यजनक

जानकारों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने उस रिपोर्ट की कड़ी आलोचना की है जिसमें अल्पसंख्यक समुदाय में फैल रहे कोरोना के मामलों का वायु प्रदूषण से कोई रिश्ता नहीं बताया गया है। यह रिपोर्ट पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड रिव्यू (पीएचई) ने छापी है जिसमें कहा गया कि अल्पसंख्यकों में कोरोना का संक्रमण “बहुत अधिक” हुआ लेकिन वायु प्रदूषण से कोई रिश्ता नहीं बताया गया है।

पीएचई द्वारा इस तथ्य की अनदेखी को “आश्चर्यजनक” और “पूरी तरह से गैर-ज़िम्मेदाराना” बताया गया है। जानकारों का कहना है कि धनाड्य लोगों के मुकाबले अल्पसंख्यक सबसे प्रदूषित हवा वाली बस्तियों में रहते हैं और कोरोना का प्रदूषित हवा से क्या रिश्ता है यह पहले ही सिद्ध हो चुका है

CO2 इमीशन कम करने के लिये EU ने दी कार कंपनियों को चेतावनी

यूरोपियन यूनियन क्लाइमेट एजेंसी का कहना है कि साल 2018 में नई कारों का कार्बन उत्सर्जन लगातार दूसरे साल बढ़ा और SUV कारों की बिक्री बढ़ने से हालात बिगड़े हैं। अब भले ही कोरोना के कारण कार उद्योग को झटका लगा है लेकिन यूरोपियन यूनियन के कार्यकारी आयोग ने कार निर्माताओं से कहा है वह कारों के CO2 इमीशन को इस साल से लागू होने वाले मानकों के हिसाब से कम करें।  कंपनियों को 2018 के मुकाबले कारों के उत्सर्जन 27% घटाने होंगे। साल 2020 के लिये रखे गये लक्ष्य के मुताबिक नई कारों के लिये CO2 इमीशन की सीमा 95 ग्राम CO2/ किमी रखी गई है।


साफ ऊर्जा 

कोरोना के बावजूद मज़बूत: सौर ऊर्जा क्षेत्र से एक अच्छी बात है कि कर्ज़ की ब्याज़ दरों में गिरावट से सोलर पावर सस्ती हुई है। फोटो – Constructive Review Online

कोरोना से बेअसर रहीं सोलर की सस्ती दरें

ऊर्जा क्षेत्र पर से जुड़ी दो बड़ी एजेंसियों इरीना (IRENA) और ईफा (IEEFA) के जानकारों का कहना है कि कोरोना की वजह से सोलर पावर की गिरती कीमतों पर कोई असर नहीं पड़ा। ईफा के विश्लेषकों ने तो यह तक कहा है कि कोरोना के कारण सौर ऊर्जा संयंत्र लगाना और सस्ता हो गया। ईफा ने यह भी बताया है कि महामारी के कारण बाज़ार में ब्याज की दरें घट गईं जिससे सौर ऊर्जा की दरें और सस्ती हुई। पिछले एक साल में सोलर प्लांट लगाने की कीमत 20% कम हुई है और इसकी वजह से अप्रैल और मई में सोलर ने नये रिकॉर्ड बनाये।

उधर इरीना (IRENA)  के ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि पिछले 10 साल में सौर ऊर्जा की दरों में 82% से अधिक गिरावट हुई है। समुद्र तट (onshore)  और समंदर के भीतर (offshore) पवनचक्कियों से मिलने वाली बिजली की दरों में 40% और 30% की गिरावट दर्ज हुई है। 

साफ ऊर्जा स्टार्ट-अप को बढ़ाने के लिये दो बड़े ग्रुप आये साथ

केलिफोर्निया स्थित गैर लाभकारी अंतर्राष्ट्रीय संगठन न्यू एनर्जी नेक्सस और एक अन्य नॉन प्रॉफिट क्लाइमेट कलेक्टिव ने मिलकर न्यू एनर्जी नेक्कस इंडिया बनाया है। इसका उद्देश्य दक्षिण एशिया में ऐसे स्टार्ट अप कंपनियों का एक नेटवर्क तैयार करना है जो उद्यमिता और नई सोच के साथ साफ ऊर्जा की दिशा में काम करें।

ये दोनों ग्रुप अपने अनुभव के बूते वैश्विक नेटवर्क को बढ़ाना चाहते हैं ताकि स्टार्ट अप कंपनियां साफ ऊर्जा क्षेत्र में पैर जमा सकें। न्यू एनर्जी नेक्सस ने साल 2016 में आयोजित भारत के पहले सोलर हैकाथॉन के दौरान क्लाइमेट कलेक्टिव से हाथ मिलाया था। तब से दोनों ही संगठन इस क्षेत्र में साथ काम कर रहे हैं।

खाली ज़मीन पर रेलवे लगायेगी 3,000 मेगावॉट के सोलर पैनल

लॉकडाउन के दौरान अपनी खस्ताहाल सेवाओं के लिये आलोचना का केंद्र बनी रेलवे का कहना है कि वह खाली पड़ी ज़मीन पर 3,000 मेगावॉट क्षमता के सोलर पैनल खड़े करेगी। बजट में सरकार ने रेल की पटरियों  के साथ-साथ सोलर पावर का नेटवर्क खड़ा करने की बात कही थी। रेलवे यह काम एक-एक हज़ार मेगावॉट के 3 चरणों में पूरा करेगी।  पहला और तीसरा चरण पब्लिक-प्राइवेट साझेदारी के तहत होगा। सरकारी कंपनी रेलवे एनर्जी मैनेजमैंट कंपनी लिमिटेड  टेंडर निकालने, निरीक्षण और बिजली सप्लाई के लिये ज़िम्मेदार होगी। रेलवे ट्रैक्स की कुल लम्बाई करीब 1,25000 किलोमीटर है और इसे प्रतिवर्ष 1200 करोड़ यूनिट बिजली चाहिये होती है। रेलवे का लक्ष्य है कि वह साल 2030 तक कार्बन न्यूट्रल हो जाये।

अडानी ग्रीन लगायेगी 8,000 मेगावॉट का सोलर प्लांट

अडानी ग्रीन ने कहा है कि उसने 8,000 मेगावॉट का सोलर प्लांट लगाने के लिये एक सरकार के साथ  अनुबंध किया है। यह प्रोजेक्ट  600 करोड़ अमेरिकी डॉलर यानी करीब 45,000 करोड़ रुपये का होगा। कंपनी का कहना है कि वह देश के अलग अलग हिस्सों में  साल 2022 तक 2,000 मेगावॉट क्षमता के सौर ऊर्जा संयंत्र लगा लेगी और बाकी काम 2025 तक पूरा होगा। इस ऐलान के साथ कंपनी के शेयर में 5% (करीब 300 रुपये) का उछाल आ गया।


बैटरी वाहन 

ग्रीस बनेगा ग्रीन?: EV ग्रीस के वाहनों का एक बहुत छोटा हिस्सा है लेकिन कुछ लुभावनी योजनाओं से इनकी संख्या बढ़ानी की कोशिश हो रही है | Photo: Xinhua News

ग्रीस: बैटरी वाहनों के लिये 10 करोड़ यूरो का फंड

ग्रीस की सरकार ने अपने क्लाइमेट एक्शन प्लान के तहत 10 करोड़ यूरो (830 करोड़ रुपये) के फंड की घोषणा की है। इस पैकेज के तहत 14,000 निजी बैटरी कार ग्राहकों को 15% की सब्सिडी दी जायेगी। ग्रीस में अभी केवल 1,000 बैटरी कार हैं जो वहां के कुल कारों का 0.3% ही हैं जबकि जर्मनी में यह आंकड़ा 10% है। अब ग्रीस ने यह लक्ष्य रखा है कि 2030 तक एथेंस में बिकने वाली हर तीसरी कार बैटरी कार हो। इस लक्ष्य को पाने के लिये बैटरी कार चालकों को फ्री पार्किंग जैसी सुविधा के साथ बैटरी टैक्सियों को कीमतों में 25% छूट दी जायेगी।  

जर्मनी के सभी पेट्रोल पंपों में होगी चार्जिंग सुविधा, टाटा और एमजी भारत में लगायेंगे सुपर फास्ट चार्जर

जर्मन सरकार के नये आदेश के मुताबिक देश के सभी 14,118 पेट्रोल पंपों में ईवी चार्जिंग पॉइन्ट लगाये जायेंगे ताकि बैटरी कार चालक बेफिक्र रहें। जर्मनी में अभी 27,730 ईवी चार्जिंग स्टेशन हैं लेकिन सरकार का लक्ष्य कम से कम 70,000 चार्जिंग स्टेशन बनाना है। इनमें से 7,000 फास्ट चार्जिंग पॉइन्ट होंगे ताकि लोगों का रुझान बैटरी कारों के लिये बढ़े। इधर भारत में टाटा मोटर्स और एमजी मोटर्स मिलकर 50Kw डीसी सुपरफास्ट चार्जर लगायेंगे ताकि भारत में बैटरी वाहनों की ओर ग्राहक आकर्षित हों। 

सोडियम आयन बैटरी के उत्साहजनक नतीजे होंगे नया मील का पत्थर

वॉशिंगटन स्टेट यूनिवर्सिटी और पैसेफिक नॉर्थवेस्ट नेशनल लेबोरेट्री के शोधकर्ताओं ने अब एक सोडियम-आयन बैटरी बनाई है जो लीथियम आयन बैटरी की जगह ले सकती है। शोधकर्ताओं ने इस बैटरी के “अब तक के सर्वश्रेष्ठ नतीजे” हासिल करने का दावा किया है। यह 1000 बार इस्तेमाल हो जाने के बाद भी अपनी 80% चार्जिंग क्षमता बनाये रखती है। यह रिसर्च ACS एनर्जी लेटर्स नाम की साइंस पत्रिका में छपी है। इस प्रयोग की कामयाबी एक बड़ा मील का पत्थर हो सकती है क्योंकि लीथियम आयन बैटरी काफी महंगे और दुर्लभ लीथियम और कोबाल्ट जैसे तत्वों से बनती है जबकि सोडियम आयन बैटरी को बनाने में समंदर से भरपूर मिलने वाले सोडियम से बन सकती हैं लेकिन अभी समस्या यह है कि ये बैटरी लीथियम आयन जितनी चार्जिंग स्टोर नहीं कर पाती।


जीवाश्म ईंधन

“क्लीन कोल” की आड़ नहीं: चीन में “क्लीन कोल” की आड़ में जीवाश्म ईंधन के लिये आकर्षक फंडिंग नहीं मिलेगी लेकिन इस नीति पर ड्रेगन टिका रहे तभी बात बनेगी | Photo: SCMP.com

चीन: “क्लीन कोल” प्रोजेक्ट्स को नहीं मिलेगा आसान कर्ज़

पीपुल्स बैंक ऑफ चायना ने “क्लीन कोल” को बिजली उत्पादन के उन ईंधनों और टेक्नोलॉजी की लिस्ट से हटा दिया है जिन्हें ग्रीन बॉन्ड योजना के तहत कर्ज़ मिलता है। हालांकि पहले कोल वॉशिंग प्लांट्स और कोयला बिजलीघरों में प्रदूषण कम करने वाली टेक्नोलॉजी को इस बॉन्ड योजना के तहत कर्ज़ मिलता था। बैंक के इस कदम के बाद माना जा रहा है कि साफ ऊर्जा के लिये अधिक कर्ज़ अब सौर और पवन ऊर्जा के संयंत्रों को मिलेगा और उन स्टील मिलों को दिया जायेगा जो अपने उत्सर्जन मानकों को सुधारने की कोशिश कर रही हैं।

“क्लीन कोल” को 2015 में ग्रीन बॉन्ड लिस्ट में रखा गया था लेकिन इससे होने वाले प्रदूषण को लेकर उठे विरोध को देखते हुए अब ये फैसला लिया गया है। हालांकि इस फैसले का असर 6,000 मेगावॉट के उस अल्ट्रा-लो इमीशन कोल  प्रोजेक्ट पर नहीं पड़ेगा जिसे पिछले साल हरी झंडी मिली थी।

जर्मनी: 2038 की डेडलाइन के बावजूद नये कोल प्लांट को मंज़ूरी

उत्तर-पश्चिम जर्मनी के डाटेल्न शहर में देश का सबसे बड़ा कोयला बिजलीघर लगाया गया है। यह बिजलीघर 1,100 मेगावॉट का है जिसमें चार यूनिट हैं और यह 45% से अधिक दक्षता (प्लांट लोड फैक्टर) पर काम करेगा। महत्वपूर्ण है कि जर्मनी ने कोयला बिजलीघरों को बन्द करने के लिये 2038 की डेडलाइन रखी है और देश में कोयले के प्रयोग के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के बावजूद ये प्लांट लगाया जा रहा है।  दावा किया जा रहा है कि इस कोल प्लांट से एक लाख घरों में बिजली और हीटिंग की सुविधा मिलेगी और अपनी अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी के कारण यह न्यूनतम इमीशन (NOx, SO2, PM आदि) करेगा।

उधर ऊर्जा क्षेत्र से जुड़ी एजेंसी इरीना (IRENA) का कहना है कि कोल प्लांट के मुकाबले सौर ऊर्जा के संयंत्र किफायती हैं। इरीना की रिपोर्ट कहती है कि अगर बिजली कंपनियां 5,00,000 मेगावॉट तक के कोयला प्लांट की बजाय सोलर या विन्ड एनर्जी के संयंत्र लगायें तो सालाना 2,300 करोड़ डॉलर बचाने के साथ 2019 के 5% इमीशन कम कर सकेंगे।  बड़े स्तर पर सोलर लगाना अब 2010 के मुकाबले 80% सस्ता हो गया है।

CO2 इमीशन नियंत्रण: विमानन कंपनियां चाहती हैं छूट

कोरोना दौर में बिजनेस प्रभावित होने से परेशान दुनिया भर की एयरलाइन कंपनियां अगने 5 साल के लिये उन शर्तों में छूट चाहती हैं जो संयुक्त राष्ट्र ने तय की हैं। ग्लोबल वॉर्मिंग के लिये एविएशन उद्योग से होने वाला इमीशन भी ज़िम्मेदार है। संयुक्त राष्ट्र ने विमानन कंपनियों के 2019 और 2020 के इमीशन को औसत मानते हुए उन पर साफ एविएशन टेक्नोलॉजी लगाने या दूसरे सेक्टरों में इमीशन कट करने के लिये फंडिंग देने की शर्त रखी है। लेकिन कोरोना महामारी के कारण यह तय है कि साल 2020 में कंपनियों के इमीशन स्तर नीचे रहेंगे और उसके बाद ट्रैफिक बढ़ने पर उन्हें अपेक्षाकृत अधिक रकम चुकानी पड़ सकती है। इसी को लेकर कंपनियों ने अब फिलहाल इन शर्तों पर छूट की मांग की है।  इस बारे में आखिरी फैसला 8 से 26 जून के बीच मॉन्ट्रियल में होने वाली वार्ता में लिया जायेगा।