Newsletter - June 25, 2020
कोयले पर क्यों आमादा है सरकार?
मोदी सरकार ने कमर्शियल माइनिंग के लिये कोल ब्लॉक नीलामी का फैसला किया और झारखंड सरकार 24 घंटे में इसे चुनौती देने सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन नीलामी शुरू होने से पहले ही सरकार के इस फैसले विरोध कर रहे थे। सरकार ने कुल 41 खदानों की नीलामी का फैसला किया है लेकिन राजनीतिक विरोधी इसे केंद्र सरकार का एकतरफा फैसला बता रहे हैं। छत्तीगढ़ के वन मंत्री ने भी राज्य के कम से कम 4 कोल ब्लाकों को इस नीलामी से बाहर रखने के लिये केंद्र को चिट्ठी लिखी है।
आखिर सरकार को कोयला इतना क्यों लुभा रहा है। पिछले कुछ वक्त से सरकार बार-बार कह रही है कि 2030 तक भारत में सबसे अधिक बिजली की खपत होगी। बहुत से लोगों को लगता है इस भविष्यवाणी में भारत की विकास कथा निहित है लेकिन इसी में ऊर्जा क्षेत्र के विरोधाभास भी छुपे हुये हैं। कोयला भारत के ऊर्जा क्षेत्र में अभी अहम बना रहेगा लेकिन दुनिया भर में इसका साम्राज्य हिल रहा है। बीएचपी और रियो टिंटो जैसी अंतरराष्ट्रीय माइनिंग कंपनियां कोयला खनन से अपना हाथ खींच रहीं हैं लेकिन भारत ने कोयला खनन क्षेत्र में नियम ढीले कर और 100% विदेशी पूंजी की अनुमति देकर निवेशकों और कंपनियों को लुभाने की कोशिश की है।
भारत में अब तक निजी कंपनियों को केवल स्टील, सीमेंट और पावर के लिये कोयला निकालने हेतु खनन की अनुमति दी जाती थी। लेकिन अब कमर्शियल माइनिंग की अनुमति से खेल बदल गया है। महत्वपूर्ण है कि कोयला बिजलीघर अपने काले गंदे धूंए से लगातार हवा में ज़हर घोल रहे हैं और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब तक प्रदूषक नियंत्रक टेक्नोलॉजी नहीं लगा रहे।
पूरी दुनिया में अब कोयला छोड़कर गैस का इस्तेमाल बढ़ रहा है। अमरीकी सरकार इसे आज़ादी का प्रतीक मानती है और कहती है कि यह प्रति यूनिट कोयले के मुकाबले 50% कम CO2 छोड़ती है। साल 2018 के आंकड़े बताते हैं भारत में कुल बिजली का 6.2% प्राकृतिक गैस से बनता है जबकि दुनिया का औसत 24% है। माना जा रहा है कि साल 2030 तक 15% बिजली गैस से बनेगी। पेट्रोलियम और गैस मंत्रालय का “द विज़न 2030” दस्तावेज़ कहता है गैस की घरेलू मांग 2013 और 2030 के बीच 6.8% की दर से बढ़ेगी लेकिन रसोई गैस की खपत 2014 से 8.86% बढ़ी है। अनुमान है कि गैस की खपत 2012-13 में 86.5 यूनिट प्रति दिन के मुकाबले 2030 में 354 यूनिट प्रति दिन हो जायेगी। बहुत से आंकड़े हैं जो कोयले की विफलता और गैस के बढ़ते दबदबे के विरोधाभास को दिखाते हैं लेकिन सरकार का मौजूदा फैसला चौंकाने वाला है। सच ये है कि साल 2010 से 2018 के बीच 573 गीगावॉट के कोल पावर प्लांट कैंसिल हुए। कर्नाटक, तमिलनाडु और राजस्थान जैसे बड़े राज्य समझ रहे हैं कि कोयला हाथी पालने जैसा है। निवेशकों को कोयले के लिये लुभाया जा रहा है पर उनका झुकाव गैस की तरफ है। सवाल है कि क्या ये दोनों ही ईंधन एक साथ अपनी जगह बना सकते हैं। जो तथ्य उपलब्ध हैं वह बताते हैं कि इस करीबी लड़ाई में गैस को प्राथमिकता मिलेगी और कोयले को बढ़ावा देना महंगा पड़ सकता है।
क्लाइमेट साइंस
रेड अलर्ट: भारत की पहली जलवायु परिवर्तन आंकलन रिपोर्ट
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा जारी भारत के पहले जलवायु परिवर्तन आंकलन में कहा गया है कि सदी के अंत तक धरती का तापमान 4.4 डिग्री तक बढ़ जायेगा। इसकी वजह से बाढ़, सूखे और चक्रवाती तूफानों के गंभीर संकट पैदा होंगे। पिछले शुक्रवार को आधिकारिक रूप से जारी की गई यह रिपोर्ट कहती है कि भारतीय रीज़न में अब तक 0.7 डिग्री की तापमान वृद्धि दर्ज की गई है जो पूरी तरह ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन की वजह से है। रिपोर्ट कहती है कि अगर तुरंत कार्बन उत्सर्जन काबू करने के उपाय नहीं किये गये तो हीट वेव्स (लू के थपेड़ों) में 3 से 4 गुना की बढ़त होगी और ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से ही समुद्र जल स्तर में करीब 30 सेंटीमीटर यानी 1 फुट बढ़ जायेगी। कोलकाता, चेन्नई और मुंबई जैसे महानगरों समेत तटीय इलाकों के लिये यह एक गंभीर चुनौती होगी।
प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने ऑइल इंडिया को दिया क्लोज़र नोटिस वापस लिया
असम के तिनसुकिया में ऑइल फील्ड में लगी आग के बाद प्रदूषण नियंत्रण कंट्रोल बोर्ड ने ऑइल इंडिया लिमिटेड को जो क्लोज़र नोटिस दिया था उसे सशर्त वापस ले लिया है। असम प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने नोटिस वापस लेने की सहमति संबंधित जो चिट्ठी भेजी है उसमें लिखा है कि ऑइल इंडिया हानिकारक कचरे के निपटारे के बारे में बोर्ड को जानकारी देगा। ऑइल इंडिया ने एक विस्तृत शपथ पत्र के साथ 24 लाख रुपये जुर्माने के तौर पर जमा किये हैं।
उधर भारतीय वन्य जीव संस्थान (WII) ने अपनी प्राथमिक रिपोर्ट में कहा है कि जब तक समुचित आपदा प्रबंधन नेटवर्क स्थापित नहीं हो जाता इस क्षेत्र में नये कुओं (प्रोजेक्ट्स) पर काम नहीं होना चाहिये। 27 मई को OIL के एक कुंए से गैस का रिसाव शुरू हुआ जिसके बाद वहां ज़बरदस्त आग लग गई जिसे अब तक पूरी तरह नहीं बुझाया जा सका है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस घटना के बाद न केवल स्थानीय लोहित नदी का जल पूरी तरह से प्रदूषित हो गया है बल्कि प्रदूषण ने मागुरी मोटापुंग वेटलैंड को भी बर्बाद कर दिया है।
मॉनसून पहुंचा दिल्ली, उत्तर-पश्चिम में होगी झमाझम बारिश
मॉनसून अपने तय समय से कुछ पहले ही राजधानी दिल्ली पहुंच गया है। बुधवार को मॉनसून की पहली फुहार पड़ी। इससे पहले सोमवार सुबह दिल्ली में हुई बरसात से मौसम विभाग का पूर्वानुमान सही साबित हुआ। इस बरसात से लोगों को राहत मिली। पिछले 3-4 साल के मुकाबले इस साल मॉनसून की गाड़ी पटरी पर दिख रही है। आंकड़े बताते हैं कि 20 जून तक ही देश में 28% अतिरिक्त (सरप्लस) बरसात रिकॉर्ड हो गई थी जबकि पिछले साल इस वक्त तक सामान्य से 25% कम बरसात हुई थी। भारत की 55% कृषि बरसात पर निर्भर है अब देखना होगा कि इस साल की भरपूर बारिश का कितना फायदा किसानों को मिलता है।
जलवायु परिवर्तन को लेकर दुनिया भर में फिक्र: सर्वे
दुनिया के 40 देशों में इस बात को लेकर सर्वेक्षण किया गया कि लोगों में जलवायु परिवर्तन के असर को लेकर कितनी फिक्र है और नतीजे एकतरफा आये। यह ऐसा मुद्दा है जिसकी सभी को फिक्र है। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के रॉयटर्स इंस्टिट्यूट ने सालाना डिजिटल रिपोर्ट जारी की है। केवल 3% लोगों को लगता है कि क्लाइमेट चेंज कोई गंभीर मुद्दा नहीं है। हर 10 में 7 प्रतिशत लोगों ने तो कहा कि यह बहुत गंभीर या अत्यधिक गंभीर मुद्दा है।
इस सर्वेक्षण के दौरान चिली, कीनिया, साउथ अफ्रीका औऱ फिलीपीन्स के नागरिकों ने सबसे अधिक (85-90%) चिन्ता जताई जबकि बेल्जियम, डेनमार्क, स्वाडन, नॉर्वे और नीदरलैंड जैसे देशों के नागरिकों को सबसे कम (50% या कम) परवाह दिखी।
डेयरी उद्योग के कार्बन इमीशन की किसी को परवाह नहीं: रिपोर्ट
क्या कार्बन इमीशन के मामले में डेयरी उद्योग को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है। इंस्टिट्यूट फॉर एग्रीकल्चर एंड ट्रेड पॉलिसी (IATP) की ताज़ा रिपोर्ट बताती है कि दुनिया की 13 सबसे बड़ी डेरी कंपनियों का कुल कार्बन इमीशन यूनाइटेड किंगडम के कार्बन उत्सर्जन के बराबर है। दो सालों के भीतर (2015-17) इस सेक्टर के इमीशन 11% बढ़े हैं। IATP ने अमीर देशों से कहा है कि इस तथ्य को देखते हुये वह डेरी और मीट उत्पादों का उपयोग सीमित करें।
क्लाइमेट नीति
कोयला खानों की नीलामी से उठे सवाल
“आत्मनिर्भर” अभियान के तहत मोदी सरकार ने 18 जून को पांच राज्यों की 41 कोयला खदानों की नीलामी का ऐलान किया। इनमें से 29 खदानें तो देश के तीन राज्यों झारखंड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में ही हैं। इन खदानों से अधिकतम उत्पादन 22.5 करोड़ टन तक बताया गया है। सरकार का कहना है कि इस खनन से भारत का कोयला आयात घटेगा जिससे विदेशी मुद्रा बचेगी और वह आत्मनिर्भर बनेगा। पावर के अलावा स्टील, सीमेंट और खाद उद्योग के मद्देनज़र ये फैसला लिया गया है। सरकार का कहना है कि इससे करीब ₹ 33,000 करोड़ का निवेश आयेगा और राज्यों को हर साल ₹ 20,000 करोड़ की राजस्व मिलेगा। साथ ही 2.8 लाख नौकरियों का दावा किया गया है।
उधर मज़दूर संगठनों ने सरकार के इस कदम का विरोध किया है और कहा है कि कोयले को कमर्शियल माइनिंग के लिये न खोला जाये। झारखंड और छत्तीसगढ़ सरकारों ने भी इस फैसले का विरोध किया है। झारखंड ने तो इस नीलामी को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
आंध्र प्रदेश: पावर सेक्टर बजट का 57% कृषि के लिये मुफ्त बिजली में खर्च होगा
आंध्र प्रदेश सरकार ने एनर्ज़ी सेक्टर के लिये बजट में ₹ 6984.73 करोड़ रखा है जबकि पिछले साल यह बजट ₹11,639 करोड़ था। उससे भी अहम बात यह है कि इसमें से ₹ 4000 करोड़, कृषि क्षेत्र में “नौ घंटे मुफ्त बिजली के लिये खर्च किये जायेंगे”। यह खर्च पूर्व मुख्यमंत्री के नाम पर घोषित YSR 9 घंटे मुफ्त बिजली योजना के तहत किया जा रहा है। आंध्र प्रदेश ग्रीन इनर्जी कार्पोरेशन (APGEC) इसके लिये राज्य भर में कुल 8 GW से 10 GW क्षमता के सौर ऊर्जा के पैनल लगायेगी।
साफ ऊर्जा की राह के रोड़े हटायेगा जर्मनी
जर्मनी साफ ऊर्जा के राह से अड़चनें हटाने के लिये कानूनों में बदलाव कर रहा है। समाचार एजेंसी रायटर ने कहा है कि जर्मन सरकार देश में कुल सौर ऊर्जा के लिये अब तक रखी गई 52 GW की सीलिंग हटा रही है। इसके अलावा वह घरों से 1000 मीटर दूर पवन चक्कियों को लगाने की अनुमति दे रही है। जर्मनी का लक्ष्य है कि 2030 तक उसकी कुल ऊर्जा का 65% हिस्सा क्लीन एनर्जी हो।
वायु प्रदूषण
क्लीन एयर टेक्नोलॉजी: सुप्रीम कोर्ट ने बिजली कंपनियों की मांग ठुकराई
सुप्रीम कोर्ट ने कोयला बिजलीघरों की उस मांग को ठुकरा दिया है जिसमें प्रदूषण नियंत्रक टेक्नोलॉजी के लिये तय डेडलाइन को 2 साल और बढ़ाने को कहा गया था। कोयला बिजलीघरों को चिमनियों पर सल्फर डाइ ऑक्साइड (SO2) को रोकने के लिये उपाय (FGD टेक्नोलॉजी) करने थे। ये कोयला बिजलीघर पहले ही कोर्ट से दो किश्तों में 5 साल का एक्सटेंशन ले चुके हैं लेकिन अब भी माना जा रहा है कि देश भर में कम से कम 50% बिजलीघर 2022 की समय सीमा का पालन भी नहीं कर पायेंगे। कंपनियों ने कोर्ट में इस देरी के लिये टेक्नोलॉजी की ऊंची कीमत और “तकनीकी दुशवारियों” का हवाला दिया था। इस बार कोर्ट ने समय सीमा को और बढ़ाने से मना कर दिया है।
शहरों की प्रदूषण नियंत्रण योजना में क्षेत्रीय तालमेल का ज़िक्र नहीं
एक नये अध्ययन में पाया गया है कि नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (NCAP) में शामिल 102 शहरों के पास कोई क्षेत्रीय तालमेल का मैकेनिज्म नहीं है जिससे शहर की सीमाओं पर प्रभावी तरीके से वायु प्रदूषण रोका जाये। दिल्ली स्थित रिसर्च संस्था काउंसिल ऑन एनर्जी इनवायरेन्मेंट एंड वॉटर (CEEW) के अध्ययन में यह बात सामने आयी है। यह शोध बताता है कि राज्यों ने भी बिना प्रदूषण उत्सर्जन के स्रोतों को नियंत्रित किये प्लान लागू कर दिये हैं।
जानकार बताते हैं कि किसी शहर में सीमा के बाहर से 30% तक प्रदूषण आता है। सीमा के बाहर मौजूद प्रदूषण का स्रोत शहर की हवा में 50% प्रदूषण का कारण बन सकता है। मिसाल के तौर पर अक्टूबर के महीने में दिल्ली के प्रदूषण में पड़ोसी हरियाणा, पंजाब औऱ यूपी जैसे राज्यों में फसल की पराली जलाने से निकलने वाला धुंआं प्रदूषण की बड़ी वजह होता है। देश के प्रदूषित महानगरों की हवा साफ करने के लिये NCAP को जनवरी 2019 में बड़े इंतज़ार के बाद शुरू किया गया लेकिन इसके कमज़ोर प्रावधानों के कारण यह सवालों के घेरे में है।
BS-IV कार बिक्री: सुप्रीम कोर्ट ने कार डीलरों को फटकारा
सुप्रीम कोर्ट ने ऑटो डीलरों को इस बात के लिये फटकारा है कि उन्होंने कोर्ट के 27 मार्च के उस आदेश की अवहेलना की जिसके तहत कार डीलरों को BS-VI वाहनों के मॉडल बेचने के लिये 10 दिन का अतिरिक्त समय दिया गया था। अदालत ने डीलरों को दिल्ली में 1.05 लाख कारों को बेचने और रजिस्टर करने की अनुमति दी थी लेकिन अदालत को बताया गया कि डीलरों ने इस बीच 2.55 लाख कारें बेचीं।
कोर्ट ने फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन से वाहन बिक्री और पंजीकरण की जानकारी मांगी है और केंद्र सरकार से भी कहा है कि यह बताया जाये कि 27 मार्च के आदेश के बाद कितने वाहन बिके और रजिस्टर हुए। इस साल पहली अप्रैल से भारत ने महानगरों में दुनिया की सबसे क्लीन BS-VI टेक्नोलॉजी (यूरो – VI) अपना ली है।
साफ ऊर्जा
सोलर यंत्र: भारत 1 अगस्त से चीन पर लगायेगा अधिक शुल्क?
भारत इस साल अगस्त से चीनी सौर उपकरणों के आयात पर बेसिक कस्टम ड्यूटी 20% बढ़ा सकता है। इस साल 29 जुलाई को वर्तमान 15% सेफगार्ड ड्यूटी का प्रावधान खत्म होगा। सरकार का बेसिक कस्टम ड्यूटी बढ़ाने से चीन से आने वाले सोलर सेल, मॉड्यूल और इनवर्टर महंगे हो जायेंगे। साफ ऊर्जा मंत्रालय इस बारे में कामर्स मिनिस्ट्री को एक प्रस्ताव भेजने की तैयारी में है। माना जा रहा है कि सरकार पहले से हो चुके अनुबंधों पर यह नये बढ़े टैक्स नहीं लगायेगी। चीनी उत्पादों का अपनी कम कीमत के कारण भारत के घरेलू बाज़ार में दबदबा है। इसी वजह से सरकार ने अभी इन उत्पादों पर 15% की सेफगार्ड ड्यूटी लगाई हुई है।
सौर ऊर्जा: 2020 की पहली तिमाही में भारत, अमेरिका और चीन आगे
साल 2020 की पहली तिमाही (जनवरी-मार्च) में सौर ऊर्जा क्षमता बढ़ाने के मामले में चीन और अमरीका के साथ भारत अव्वल देश रहा। चीन ने सबसे अधिक 4 गीगावॉट के सोलर पैनल लगाये। दूसरा नंबर अमेरिका का रहा जिसने 3.6 गीगावॉट सोलर पावर जोड़ी। भारत ने इस बीच कुल 1.1 गीगावॉट के सोलर पैनल लगाये। जहां अमेरिका के लिये यह सौर पहली तिमाही का एक रिकॉर्ड था वहीं साल 2019 की पहली तिमाही के मुकाबले भारत में 43% कम सौर ऊर्जा क्षमता लगी। साल 2016 की आखिरी तिमाही के बाद यह भारत का सबसे निराशाजनक प्रदर्शन था। चीन की सौर ऊर्जा क्षमता के ग्राफ में भी साल 2019 की पहली तिमाही के मुकाबले 1.2 गीगावॉट की गिरावट हुई। जनवर-मार्च 2019 में चीन ने 5.2 गीगावॉट के सोलर पैनल लगाये थे।
सौर और पवन ऊर्जा कंपनियों को ₹ 94 करोड़ का भुगतान
भुगतान में देरी का निबटारा करते हुए सरकारी कंपनी सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन इंडिया (SECI) ने पिछले महीने कंपनियों को कुल $ 1.25 करोड़ (करीब 94 करोड़ रुपये) का भुगतान किया। इसके अलावा कंपनियों को कुल $ 1.38 करोड़ (करीब 103 करोड़ रुपये) जीएसटी रकम भी चुकाई गई। मार्च में साफ ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) ने सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन और नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन को चेतावनी दी थी कि सौर और पवन ऊर्जा कंपनियों को दो महीने में ये भुगतान किये जायें वरना उन्हें इस पर सरचार्ज देना होगा।
फ्रांस की कंपनी भारत में 2 GW के साफ ऊर्जा संयंत्र लगायेगी
फ्रेंच कंपनी EDF भारत में साल 2022 तक 2 गीगावॉट क्षमता के बराबर सौर और पवन ऊर्जा लगायेगी। “इलेक्ट्रसिटे डि फ्रांस” नाम की लंदन स्थित यह कंपनी भारत के हाइड्रो पावर सेक्टर में भी पैर पसारने की सोच रही है। कंपनी कहती है वह 2030 तक दुनिया भर में स्थापित साफ ऊर्जा की वर्तमान क्षमता (50 GW) से दुगना कर देना चाहती है।
बैटरी वाहन
चीन: बैटरी कार चलाओ, पैसे कमाओ
चीनी सरकार ने एक नई योजना शुरू की है जिसमें बैटरी कार चलाने या कार का बिल्कुल इस्तेमाल न करने पर कार मालिक को भुगतान किया जायेगा। यह एक तरह की कार्बन क्रेडिट स्कीम है जिसमें अभी 10 लाख कार मालिकों को लिया जा रहा है ताकि बीजिंग की सड़कों पर वाहनों का प्रदूषण कम हो सके। अगर कोई पेट्रोल या डीज़ल कार चालक तीन साल के दौरान कुल 200 दिन कार नहीं चलाता तो इससे वह एक टन कार्बन इमीशन कम करेगा। बीजिंग में नगरपालिका अधिकारियों का ‘एक टन कैम्पेन’ के तहत 10 लाख कार मालिकों को शामिल करने का लक्ष्य है। स्कीम के तहत कार मालिकों को क्रेडिट पॉइन्ट मिलेंगे जिससे उन्हें इमीशन के लिये किसी जुर्माने में राहत मिलेगी।
UK: दुनिया की सबसे बड़ी लिक्विड एयर बैटरी का निर्माण शुरू
दुनिया की सबसे बड़ी लिक्विड एयर बैटरी का निर्माण हाइव्यू पावर ने शुरू कर दिया है। 250 MWh क्षमता की ये बैटरी 2022 से ऑनलाइन हो जायेगी। इस प्रोजेक्ट में अतिरिक्त साफ ऊर्जा का इस्तेमाल हवा को तरल बनाने में होगा जो कि टैकों में स्टोर की जायेगी। गैसीय अवस्था में रिलीज़ कर इसका इस्तेमाल टर्बाइन चलाने के लिये होगा जिससे बिजली बनेगी। इससे 2 लाख घरों में 5 घंटे के लिये बिजली सप्लाई की जा सकेगी।
पेरिस संधि का पालन साबित करने के लिये “बैटरी पासपोर्ट”
ग्लोबल बैटरी अलायंस (GBA) ने डिजिटल मोहर और वेरिफिकेशन टूल वाला “बैटरी पासपोर्ट” लॉन्च किया है। इससे पता लग सकेगा कि किसी इलैक्ट्रिक वाहन में जो बैटरी इस्तेमाल हो रही है वह पर्यावरण संरक्षण नियमों के हिसाब से बनी है या नहीं। महत्वपूर्ण है कि लीथियम-आयन बैटरियां बहुत दुर्लभ धातुओं से बनती हैं जो गरीब और विकासशील देशों (अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका) में पायी जाती हैं। इसलिये इसके लिये होने वाले खनन को लेकर पहले ही बहस चल रही है। फिलहाल ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से बने इस बैटरी पासपोर्ट को दुनिया के 42 संगठनों और कंपनियों ने अनुमोदित कर दिया है जिनमें माइक्रोसॉफ्ट, फोक्सवेगन, यूनिसेफ और विश्व बैंक शामिल हैं।
जीवाश्म ईंधन
कोयला: ऑस्ट्रेलिया में खनन को फास्ट ट्रैक मंज़ूरी
ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड में 100 करोड़ अमेरिकी डॉलर निवेश वाली कोयला खदान को फास्ट ट्रैक हरी झंडी दी जा रही है। यह खदान अडानी ग्रुप को दी गई कार्माइकल माइन से दोगुना बड़ी है और इसमें दुनिया की एक बड़ी माइनिंग कंपनी ग्लेनकोर प्लेक कोल ने पैसा लगाया है। कोयले से होने वाले हानिकारक इमीशन और उसके क्लाइमेट पर प्रभाव को लेकर विरोध के बावजूद क्वींसलैंड सरकार ने इसे मंज़ूरी का समर्थन किया है। सरकार का कहना है कि यह एक “महत्वपूर्ण और सकारात्मक कदम ” हो जो कोरोना महामारी के आर्थिक झटके से निकलने में मदद करेगा।
हालांकि दूसरी आंकड़े बताते हैं कि पिछले 16 साल में पहली बार ग्लोबल एनर्जी मिक्स में कोल पावर का हिस्सा गिरकर 27% रह गया है। जर्मनी और अमेरिका जैसे देशों में खपत का घटना इसकी एक बड़ी वजह है।
लावारिस तेल कुंए बने पर्यावरण के लिये मुसीबत
अमेरिका की पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (EPA) की नई रिपोर्ट कहती है कि लावारिस छोड़ दिये गये 32 लाख तेल और गैस के कुंओं से साल 2018 में 28 किलोवॉट मीथेन का रिसाव हुआ। यह रिसाव 160 लाख बैरल कच्चे तेल से होने वाले कार्बन उत्सर्जन के बराबर ख़तरनाक है। इन कुओं से भू-जल भी प्रदूषित हो रहा है लेकिन यह सिर्फ अमेरिकी तेल/गैस कुंओं की बात नहीं है। दुनिया भर में ऐसे 2.9 करोड़ तेल कुंए हैं जिनमें से ज़्यादातर चीन, रूस और सऊदी अरब में है।