एक नये शोधपत्र के मुताबिक भारत के पश्चिमी तट पर पिछले कुछ सालों से लगातार उठ रहे चक्रवाती तूफानों का संबंध क्लाइमेट चेंज से है। अभी अरब सागर से उठे चक्रवात ताउते ने भीषण तबाही मचाई जिसमें कम से कम 12 लोगों की मौत हो गई और हज़ारों करोड़ का नुकसान हुआ। शोधपत्र कहता है कि जिस तीव्रता के साथ ये चक्रवात पश्चिमी तट से टकरा रहे हैं वह संकेत है कि ग्लोबल वॉर्मिंग इसके पीछे एक कारण है।
ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण समुद्र का पानी गरम हो रहा है और साइक्लोन 28 डिग्री और उससे अधिक तापमान पर बहुत उग्र होने लगते हैं। पिछले सौ सालों में अरब सागर का तापमान बहुत तेज़ी से बढ़ा है। ताउते के अलावा ओखी, गोनू, क्यार और निसर्ग जैसे तूफान पश्चिमी तट पर पिछले 15 सालों में आ चुके हैं। क्यार और गोनू तो सुपर साइक्लोन थे लेकिन वह समुद्र में रहे और तट पर नहीं टकराये। ओखी भी समुद्र में रहा लेकिन उसके कारण 130 मछुआरों की मौत हुई। अब तक तट से दूर रहने वाले साइक्लोन अब लगातार पश्चिमी तटरेखा से टकरा रहे हैं।
महत्वपूर्ण है कि भारत के पूर्वी तट पर – जहां समंदर के पास अधिक लोग नहीं रहते – ही अब तक शक्तिशाली और विनाशक तूफान आते रहे हैं। हुदहुद, फानी, तितली, गज और फाइलिन इसका उदाहरण हैं लेकिन अब पश्चिमी तट पर हर साल मॉनसून से पहले चक्रवातों का आना और उनकी तीव्रता बढ़ना चिन्ता का विषय है क्योंकि यहां तटरेखा पर आबादी घनी है। भारत के करीब 70 ज़िले तटरेखा से लगे हैं और बढ़ते चक्रवातों से नुकसान करीब 25 करोड़ लोगों की जीविका को भी क्षति पहुंचा रहा है।
पर्यावरणीय संकट झेल रहे 100 में 43 शहर भारत में
विश्व में पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन से पैदा खतरों से घिरे देशों में भारत और चीन सबसे ऊपर हैं। जिन 100 देशों पर पर्यावरणीय आपदाओं का संकट सबसे अधिक है उनमें से 43 भारत में और 37 चीन में हैं। यह बात इन्वारेंन्मेंटल रिस्क आउटलुक 2021 नाम की रिपोर्ट में है जिसमें दुनिया के 576 देशों को इस ख़तरे के हिसाब से सूचीबद्ध किया गया है। यह महत्वपूर्ण है कि सबसे संकटग्रस्त 100 में से 99 शहर एशिया में हैं जिन पर प्रदूषण, जल संकट, सूखा और चक्रवात जैसी मौसमी आपदाओं का साया है।
मिट रही हैं मुक्त प्रभाव से बह रही नदियां
दुनिया में बेरोकटोक बह रही नदियों कम होती जा रही है जिनका पानी साफ और ताज़ा है। । यह बात एक नये शोध में पता चली है जो कहता है कि दुनिया में केवल 17 प्रतिशत मुक्त रूप से बह रही अभी संरक्षित इलाकों में हैं। स्पष्ट रूप से इसका असर जलीय जीवन पर पड़ रहा है क्योंकि नदियों और उनके तट मछलियों, कछुओं और घड़ियालों समेत कई छोटे-बड़े जन्तुओं और वनस्पतियों का बसेरा हैं। अध्ययन बताता है कि 1970 के बाद से – यानी पिछले 50 सालों में – इस जलीय जीवन में 84 प्रतिशत गिरावट हुई है। नदियों पर बांध बनाने, उनका मार्ग बदलने और मानव जनित प्रदूषण नदियों के प्रवाद खत्म होने और जलीय जीवन नष्ट होने के लिये सर्वाधिक ज़िम्मेदार है। शोधकर्ताओं का कहना है कि ताज़ा पानी जीवन के लिये तो ज़रूरी है लेकिन जैव विविधता, खाद्य श्रंखला, आपूर्ति और करोड़ों लोगों की अर्थव्यवस्था और संस्कृति के लिये भी नदियों का निरंतर प्रवाह आवश्यक है। जो नदियां बची रही हैं उनमें से ज़्यादातर संरक्षित क्षेत्र में बह रही हैं।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
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