ऊर्जा क्षेत्र में सर्वे करने वाली संस्था IEEFA – जिसने NPA की श्रेणी में रखे गये 12 थर्मल पावर प्लांट्स (ताप बिजलीघरों) की समीक्षा की – ने बताया है कि देश के कई अन्य कोयला बिजलीघर भी आर्थिक बदहाली में हो सकते हैं। अभी 2018 तक संसदीय समिति को ऐसी सिर्फ 34 यूनिटों के बारे में सूचना दी गई है। कुल 12 ताप बिजलीघरों की ऊंची लागत को देखते हुये IEEFA का निष्कर्ष है कि साफ ऊर्जा के संयंत्र लगते तो इतनी ही बिजली उत्पादन क्षमता 30% कम खर्च पर हासिल की जा सकती थी। जिन 12 NPA की समीक्षा की गई उनमें चेन्नई में प्रस्तावित 4000 मेगावॉट का प्लांट भी है जो 5-6 रुपये प्रति यूनिट में बिजली देगा। अगर यह प्लांट बना तो इससे कहीं कम कीमत पर सौर और पवन ऊर्जा की उपलब्धता होने की वजह से इस प्लांट का घाटे में जाना तय है।
भारत में 2030 तक जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल सबसे अधिक
पेट्रोलियम और गैस मंत्री ने दावा किया है कि 2030 तक भारत जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल के मामले में दुनिया की सभी बड़ी अर्थव्यस्थाओं को पार कर जायेगा। यह दावा भारत की ऊर्जा ज़रूरतों के संदर्भ में किया गया है जो मूलत: तेल और गैस पर निर्भर हैं। इससे पहले IEEFA ने हिसाब लगाया था कि भारत की कोल पावर अपने 2030 के तय 266.8GW के लक्ष्य को नहीं छू पायेगी और उत्पादन इससे करीब 26 GW कम रहेगा। इसके पीछे कोयला प्लांट की बढ़ती लागत, कड़े उत्सर्जन मानक और पानी की कमी मुख्य कारण बताये गये। उधर मंत्री जी कहना है कि भारत में बिजली की खपत 4.5% की सालाना दर से बढ़ेगी जबकि दुनिया की औसत वृद्धि दर 1.4% है हालांकि भारत की बिजली ज़रूरतों में बायोमास को जोड़ा जायेगा।
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