भारत सरकार का अक्षय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) ने बिजली नियामक सीईआरसी से अनुरोध किया है कि पवन और सौर ऊर्जा कंपनियों के लिए लाए जा रहे सख्त नए नियमों को धीमी गति से लागू किया जाये।
ये नियम विचलन निपटान तंत्र (डीएसएम ) से जुड़े हैं। इसके तहत, ग्रीन एनर्जी कंपनियों को अपनी बिजली आपूर्ति का जो अनुमान (forecasting) देना होता है, और जो वे वास्तव में ग्रिड को सप्लाई करते हैं, उसके बीच का अंतर (विचलन) कम करने का प्रस्ताव है। अगर यह विचलन ज्यादा होता है, तो कंपनियों पर भारी जुर्माना लगाने की तैयारी थी।
मंत्रालय और उद्योग जगत का कहना है कि ये नियम जल्दबाजी में लागू हुए तो ग्रीन एनर्जी में निवेश धीमा हो जाएगा। जो मुख्य कारण बताये गये हैं उनमें पहला है मौसम की मार: पवन और सौर ऊर्जा का उत्पादन सीधे मौसम की अनिश्चितता पर निर्भर करता है। कंपनियों के लिए 100% सटीक पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं है।
दूसरा कारण है छोटे डेवलपर्स को खतरा: उच्च जुर्माने से छोटे और मध्यम डेवलपर्स का मुनाफा खत्म हो जाएगा, जिससे वे नई परियोजनाएं लगाने से कतराएंगे।
मंत्रालय ने सीईआरसी को सुझाव दिया है कि जुर्माने लगाने के बजाय, भविष्य की परियोजनाओं में ऊर्जा भंडारण (Storage) को अनिवार्य किया जाए। इससे आपूर्ति स्थिर होगी और भारत के 500 गीगावाट ग्रीन एनर्जी के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करने में मदद मिलेगी।
भूमि सीमित होने के कारण फ्लोटिंग सोलर और फार्म-PV पर जोर दे रहा भारत
भारत अब नवीकरणीय ऊर्जा विस्तार में नए मॉडल अपना रहा है — जहाँ जमीन कम है, वहाँ फ्लोटिंग सोलर (Floating Solar) और खेतों-पर स्थापित सोलर PV (Farm PV) योजनाओं को बढ़ावा मिल रहा है। बिजनेस स्टैंडर्ड में प्रकाशित समाचार के मुताबिक भारत बढ़ती ऊर्जा मांग, भूमिसंकीर्णता और जलवायु लक्ष्यों के मद्देनज़र इन विकल्पों को कारगर मान रहा है। विश्लेषकों के अनुसार, तैरते सोलर प्लांट जलाशयों, बांधों और जलाश्रित क्षेत्रों पर स्थापित होते हैं, इसलिए कृषि-भूमि व जंगलों पर दबाव नहीं पड़ता। यह जमीन व जल दोनों बचाता है, साथ ही जलमंडल तापवृद्धि को धीमा कर आर्थिक-पर्यावरणीय संतुलन बनाये रखता है।
Farm PV मॉडल में खेतों या कृषि योग्य जमीन पर ही सोलर पैनल लगाए जाते हैं – इससे किसानों को खेती व ऊर्जा दोनों का लाभ मिलता है, और भूमि उपयोग संघर्ष कम होते हैं। Experts मानते हैं कि इस तरह के संयोजन से भारत का 500 GW नॉन-फॉसिल ऊर्जा लक्ष्य अधिक व्यावहारिक हो जाएगा।
हालांकि अभी ये विकल्प बड़े पैमाने पर नहीं फैले हैं, पर सरकारी नीतियाँ, टेक्नोलॉजी सुधार और निवेश प्रवृत्ति इस ओर संकेत दे रही हैं। आने वाले सालों में तैरते सूर्य-पावर और फार्म-PV देश की ऊर्जा क्रांति की कुंजी बन सकते हैं।
भारत की रूफटॉप सोलर क्षमता में 161% बढ़ी
भारत ने वर्ष 2025 के पहले नौ महीनों में 4.9 गीगावॉट रूफटॉप सोलर क्षमता जोड़ी, जो पिछले साल की इसी अवधि में दर्ज 1.9 गीगावॉट के मुकाबले 161% अधिक है। यह जानकारी मेरकॉम इंडिया की Q3 2025 रूफटॉप सोलर मार्केट रिपोर्ट में दी गई है।
तीसरी तिमाही में देश ने 2.1 गीगावॉट रूफटॉप सोलर क्षमता जोड़ी, जो पिछली तिमाही के 1.6 गीगावॉट की तुलना में 29% ज्यादा और सालाना आधार पर 164% अधिक है। तिमाही के दौरान जोड़ी गई कुल सौर क्षमता में रूफटॉप सोलर की हिस्सेदारी 24.1% रही।
भारत में बिजली उत्पादन 4% बढ़ा, नवीकरणीय ऊर्जा ने दिलाई बढ़त
जुलाई-सितंबर 2025 तिमाही में भारत का बिजली उत्पादन 3.6% बढ़कर 484.07 बिलियन यूनिट पर पहुंच गया। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन में 18.6% की तेज वृद्धि हुई, जिसने कोयला आधारित बिजली में 1.6% और परमाणु उत्पादन में 18.6% की गिरावट की भरपाई कर दी।
इस तिमाही में देश ने रिकॉर्ड 16,071 मेगावॉट नई क्षमता जोड़ी, जिसमें 83% हिस्सा गैर-फॉसिल स्रोतों का रहा। भारत की कुल स्थापित क्षमता सितंबर के अंत तक 500.9 गीगावॉट हो गई, जिसमें आधे से ज्यादा हिस्सा अब स्वच्छ ऊर्जा का है। निवेश भी मजबूत बना हुआ है, जिससे ऊर्जा बदलाव की रफ्तार और बढ़ी है।
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