गुजरात सरकार ने सभी सरकारी पेट्रोल-डीजल वाहनों को चरणबद्ध तरीके से इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) में बदलने की योजना तैयार की है। सरकारी सूत्रों के अनुसार, सभी विभागों को जल्द ही पेट्रोल और डीजल वाहनों को हटाने के लिए विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए जाएंगे। यह प्रस्ताव वलसाड में चल रहे चिंतन शिविर में भी चर्चा के लिए रखा जाएगा।
सूत्रों ने बताया कि गुजरात नवीकरणीय ऊर्जा में अग्रणी रहा है, लेकिन इलेक्ट्रिक मोबिलिटी अपनाने में राज्य काफी पीछे है। इंडिया इलेक्ट्रिक मोबिलिटी इंडेक्स के अनुसार, गुजरात वर्तमान में 16वें स्थान पर है, जो दर्शाता है कि सुधार की बड़ी गुंजाइश है।
अधिकारियों का कहना है कि राज्य की ईवी नीति कई इंसेंटिव देती है, लेकिन सरकारी विभागों में ईवी का इस्तेमाल अब भी काफी सीमित है। अधिकतर सरकारी और नगर निकायों के वाहन अभी भी पेट्रोल पर चलते हैं, जबकि चार्जिंग स्टेशन मुख्य रूप से शहरी इलाकों तक सीमित हैं।
सरकार जीएसआरटीसी की बसों को भी चरणबद्ध तरीके से इलेक्ट्रिक में बदलने पर विचार कर रही है, खासकर उन रूटों पर जहां इलेक्ट्रिक वाहन आर्थिक और तकनीकी रूप से उपयुक्त हैं। अधिकारियों के अनुसार, विभागवार लक्ष्य तय कर, जिलों में चार्जिंग नेटवर्क बढ़ाकर और सार्वजनिक परिवहन में ईवी पायलट प्रोजेक्ट शुरू कर स्वच्छ परिवहन के लक्ष्य को तेजी से हासिल करने की योजना है।
भारत: ईवी पंजीकरण 20 लाख यूनिट के पार
भारत का इलेक्ट्रिक वाहन बाजार 2025 में नई ऊंचाई पर पहुंच गया है। इस साल ईवी पंजीकरण 2.02 मिलियन (20 लाख) यूनिट पार कर गया, जो 2024 के पूरे साल के आंकड़े — 1.95 मिलियन (19.5 लाख) — से अधिक है। यह बढ़ोतरी मजबूत मांग, नए मॉडल और स्वच्छ परिवहन को बढ़ावा देने वाली नीतियों के कारण हुई है।
इलेक्ट्रिक दोपहिया सबसे आगे रहे, जिनकी बिक्री 12 लाख यूनिट तक पहुंच गई। इलेक्ट्रिक कारों और SUVs के 1.56 लाख पंजीकरण हुए, जो पिछले साल से 57% ज्यादा है। ई-रिक्शा और ई-थ्री-व्हीलर की बिक्री लगभग स्थिर रही।
एक रिपोर्ट के अनुसार, टाटा, मारुति, हुंडई और एमजी जैसी कंपनियां तेजी से अपने ईवी मॉडल और उत्पादन क्षमता बढ़ा रही हैं, जबकि बेहतर चार्जिंग सुविधाएं भी ग्राहकों का भरोसा बढ़ा रही हैं।
‘बैकडोर बैन’ के ज़रिए ईवी अनिवार्य करने की योजना बना रहा ईयू
यूरोपीय संघ 2030 तक किराए और कॉर्पोरेट कार बाजारों में तेज़ी से इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) को अनिवार्य करने की योजना बना रहा है।
वाहन उद्योग इसे पेट्रोल गाड़ियों पर ‘बैकडोर बैन’ बता रहा है। मौजूदा प्रस्ताव के तहत बड़े व्यवसायों को ज्यादातर ईवी खरीदने की बाध्यता होगी, जबकि 2035 के अंतर्दहन इंजन (आईसीई) प्रतिबंध में ढील देने पर भी विचार चल रहा है। जर्मनी ने इस कोटा प्रणाली का विरोध किया है। उद्योग का कहना है कि चार्जिंग ढांचे और मांग की कमी से फ्लीट नवीनीकरण धीमा होगा, पुरानी पेट्रोल कारें सड़कों पर बनी रहेंगी, और ईवी की रीसेल वैल्यू पर भी दबाव पड़ेगा।
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