ब्राज़ील के बेलेम में सम्पन्न कॉप30 जलवायु सम्मेलन ने फॉसिल फ्यूल (कोयला, तेल-गैस) को चरणबद्ध तरीके से बंद करने का कोई स्पष्ट रोडमैप तय नहीं किया, जिससे वैश्विक जलवायु कार्रवाई की विश्वसनीयता सवालों के घेरे में है।
समापन दस्तावेज – जिसे ‘Mutirão (मुटिराव)’ कहा गया — में फॉसिल ईंधन का नाम ही नहीं आया। कइयों की उम्मीदों के बावजूद, कोयला व ग़ैर-नवीकरणीय जीवाश्म ईंधन से हटने का कोई तय समय-सारिणी या प्रतिबद्धता शामिल नहीं की गई।
हालाँकि सम्मेलन ने जलवायु अनुकूलन (adaptation) के लिए फंडिंग बढ़ाने, वनों की रक्षा और शुद्ध-ऊर्जा संक्रमण की चर्चा शुरू करने जैसे कदम उठाए, लेकिन फॉसिल ईंधन पर निर्भरता समाप्त किए बिना तापमान वृद्धि और जलवायु अस्थिरता की चुनौतियों से निपटना मुश्किल बनेगा। विशेषज्ञों और जलवायु कार्यकर्ताओं ने इस समझौते को ‘कमज़ोर और असंतोषजनक’ बताया है, क्योंकि जीवाश्म ईंधन बंद करने पर विचार न करना – 1.5° C लक्ष्य को पुख्ता अंदाज़ा देने में विफलता है।
कॉप30 दिखाता है कि राजनीतिक सहमति, तेल-गैस उत्पादक देशों के प्रभाव और अर्थव्यवस्था की भूख के बीच संतुलन बनाए रखना, जलवायु आपातकाल (climate emergency) से निपटने से कहीं ज़्यादा कठिन हो गया है। अब अधिक दृढ़, वैज्ञानिक-निर्धारित और जवाबदेह कदमों की दरकार है।
फॉसिल-फ्यूल लॉबी के कारण क्लाइमेट एक्शन से भटक रहा विश्व
एक ताज़ा रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि वैश्विक जलवायु एक्शन अब ‘समय से पूरी तरह पीछे’ है — और इसका प्रमुख कारण है जीवाश्म ईंधन उद्योग की राजनीति व ज़बरदस्त लॉबिंग।
रिपोर्ट के अनुसार, 194 देशों द्वारा हिस्सा लेने वाले हाल के COP30 सम्मेलन में, कोई ठोस योजना नहीं बन सकी कि कोयला-तेल-गैस जैसे फॉसिल ईंधन का चरणबद्ध बंद कैसे हो। फॉसिल-फ्यूल पर निर्भरता, लॉबिस्ट दबाव और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी ने हर प्रयास को कमजोर कर दिया।
फॉसिल फ्यूल के खिलाफ बने मंच (Fossil Fuel Non-Proliferation Treaty initiative) के निदेशक ने स्पष्ट रूप से कहा कि कॉप30 के परिणाम से स्पष्ट है कि हम ‘जलवायु आपात काल’ से निपटने के पथ से भटक गए हैं। उन्होंने आगाह किया कि यदि फॉसिल-फ्यूल पर निर्भरता नहीं छोड़ी गई, तो जलवायु संकट और गहरा होगा — विशेषकर गरीब और संवेदनशील देशों के लिए।
रिपोर्ट ने यह भी दिखाया कि दुनिया के कई हिस्सों में ‘ग्रीन एनर्जी’ के प्रति रुचि है और उसकी ओर संक्रमण हो रहा है, लेकिन औद्योगिक लॉबी, आर्थिक हित और रणनीतिक संकुचन के कारण बदलाव बहुत धीरे हो रहा है। अगर अब सक्रिय और न्यायपूर्ण “फॉसिल-फ्यूल से मुक्ति के साथ हरित ऊर्जा, नयी नीति नहीं अपनाई गई – तो जलवायु आपदा की तीव्रता और सामान्य हो जाएंगी।
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