Vol 1, November 2025 | ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखना अब संभव नहीं

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1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा पार होना तय, कॉप30 में छिड़ी तीखी बहस

दुनिया के बड़े जलवायु विशेषज्ञ और नेता अब मान रहे हैं कि ग्लोबल वार्मिंग की 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा निश्चित रूप से पार होने वाली है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने कॉप30 में बताया कि इस सीमा का ‘ओवरशूट’ रोकना अब लगभग असंभव है। यह साल भी इतिहास का दूसरा या तीसरा सबसे गर्म साल बनने की राह पर है।

लेकिन यह केवल विज्ञान का मुद्दा नहीं है — देशों के बीच राजनीतिक बहस भी तेज है। यूरोपीय संघ चाहता है कि कॉप30 के आधिकारिक दस्तावेज़ में 1.5 डिग्री सेल्सियस की चेतावनी साफ-साफ लिखी जाए। वहीं, अरब समूह और भारत का कहना है कि ‘डराने वाली भाषा’ वैज्ञानिक रूप से सही नहीं है और इससे विकासशील देशों पर अनुचित दबाव पड़ेगा।

नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और लघुद्वीपीय देश कहते हैं कि उनके लिए 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य ‘जीवित रहने’ का सवाल है। वे 2035 की जलवायु योजनाओं को मजबूत करने और अधिक वित्तीय सहायता की मांग कर रहे हैं।

नए वैज्ञानिक आंकड़ों के अनुसार स्थिति और गंभीर है। ग्लोबल कार्बन बजट 2025 रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया का कार्बन उत्सर्जन अगले वर्ष 1.1% बढ़ेगा और 1.5 डिग्री सेल्सियस का बचा हुआ कार्बन बजट 2030 से पहले खत्म हो जाएगा। अमेरिका, यूरोपीय संघ, चीन और भारत — सभी के उत्सर्जन 2025 में बढ़ने का अनुमान है।

विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि जितनी देर दुनिया 1.5 डिग्री सेल्सियस से ऊपर रहेगी, खतरा उतना बढ़ेगा — लेकिन तेजी से उत्सर्जन कटौती की जाए तो लंबे समय में स्थिति सुधर सकती है।

दक्षिण भारत में बारिश, मध्य और उत्तर भारत में सर्दी ने दी दस्तक

इस सप्ताह देश में मौसम दो हिस्सों में बंटा दिखा। दक्षिण भारत में गरज-चमक के साथ तेज बारिश जारी रही। तमिलनाडु, केरल, तटीय आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के कुछ हिस्सों में 18 नवंबर तक भारी बारिश की संभावना है। वहीं मध्य और उत्तर भारत में समय से पहले ठंड बढ़ गई। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में तापमान सामान्य से नीचे चला गया। मुंबई में भी ठंड महसूस हुई और प्रदूषण बढ़ा। पूर्वोत्तर में हल्का कोहरा छाया रहा, जबकि बाकी इलाकों में मौसम सामान्य रहा। 

2025 भी रहेगा बेहद गर्म साल: यूएन

संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि 2025 इतिहास के सबसे गर्म सालों में शामिल हो सकता है। हालांकि यह 2024 को पार नहीं करेगा, लेकिन दूसरा या तीसरा सबसे गर्म साल बनने की संभावना है। डब्ल्यूएमओ के अनुसार, 2025 के पहले आठ महीनों का तापमान औद्योगिक काल से पहले के स्तर से 1.42 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा।

रिपोर्ट में कहा गया है कि तेज कदम उठाकर सदी के अंत तक तापमान कम किया जा सकता है। आर्कटिक और अंटार्कटिक में समुद्री बर्फ तेजी से घट रही है और चरम मौसम बढ़ रहा है।

जलवायु परिवर्तन और खाद के गलत उपयोग से घट रही मिट्टी की कार्बन मात्रा: शोध 

आईसीएआर ने एक अध्ययन में पाया गया है कि जलवायु परिवर्तन और खाद के गलत उपयोग से भारत की कृषि भूमि में मिट्टी की कार्बन मात्रा कम हो रही है। छह साल तक चले इस अध्ययन में 620 जिलों के ढाई लाख से ज्यादा नमूनों की जांच हुई। रिपोर्ट बताती है कि तापमान, बारिश और ऊँचाई का कार्बन स्तर पर बड़ा असर पड़ता है। राजस्थान और तेलंगाना जैसे गर्म राज्यों में मिट्टी में कार्बन कम मिला, जबकि पहाड़ी इलाकों में ज्यादा। धान और दाल वाले क्षेत्रों में कार्बन अधिक रहा। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी यूपी में असंतुलित खाद उपयोग के कारण गिरावट ज्यादा दिखी।

गोवा में अब पूरे साल खतरा बना हुआ है डेंगू

स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने कहा है कि गोवा में डेंगू अब सिर्फ बरसात तक सीमित नहीं रहा बल्कि पूरे साल फैल रहा है। कारण है जलवायु परिवर्तन से होने वाली बे-समय बारिश, साथ ही पर्यटकों और कामगारों की लगातार आवाजाही। अधिकारियों ने स्वास्थ्य केंद्रों को निर्माण स्थलों और मजदूर बस्तियों पर विशेष नजर रखने के निर्देश दिए हैं, क्योंकि एडीज मच्छर राज्य में पहले से मौजूद है। लोगों से कहा गया है कि कहीं भी पानी जमा न होने दें और बुखार होने पर तुरंत जांच करवाएँ। गोवा में अक्टूबर में 11 और इस साल कुल 84 मामले दर्ज हुए, जो पिछले साल के 511 मामलों से काफी कम हैं।

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फाइनेंस पर विवाद के बीच शुरू हुआ कॉप30 महासम्मेलन

ब्राज़ील के शहर बेलेम में कॉप30 की शुरुआत के साथ एक स्पष्ट संदेश दे दिया गया — यह कार्यान्वयन (इम्प्लीमेंटेशन) कॉप है, और इसका मुख्य फोकस अनुकूलन (अडॉप्टेशन) पर होगा। सम्मेलन में 195 देशों के 47,000 से अधिक प्रतिनिधि पहुंचे। कॉप30 के अध्यक्ष आंद्रे कोरेआ दो लागो ने कहा कि अमेरिका की गैर-मौजूदगी और यूरोप की कमजोर जलवायु नीतियों के बीच दुनिया को समाधान के लिए ग्लोबल साउथ की ओर देखना चाहिए।

भारत ने समता, समान किंतु विभेदित दायित्व (Common but Differentiated Responsibilities-CBDR) और स्पष्ट क्लाइमेट फाइनेंस की मांग के साथ विकासशील देशों की आवाज को मजबूती दी। भारत ने ग्लोबल गोल ऑन अडॉप्टेशन को मजबूत करने और क्लाइमेट फंडिंग की एक समान परिभाषा तय करने की भी जरूरत बताई।

सम्मलेन की शुरुआत में ही कई विवादित मुद्दे सामने आए, जैसे टैरिफ, संशोधित एनडीसी, द्विवार्षिक पारदर्शिता रिपोर्ट और फाइनेंस से जुड़ा आर्टिकल 9.1। पहले दो दिनों में सम्मलेन स्थल पर विरोध प्रदर्शन भी हुए, जिसके बाद यूएनएफसीसीसी प्रमुख साइमन स्टील ने सुरक्षा व्यवस्था की आलोचना की और अत्यधिक गर्मी व बाढ़ के बीच बेहतर सुविधाओं की मांग की।

ट्रॉपिकल फॉरेस्ट फॉरएवर फैसिलिटी (टीएफएफएफ) की शुरुआत रही एक बहुत बड़ा कदम रहा। इसे अब तक 5.5 अरब डॉलर से ज्यादा की प्रतिबद्धताएँ मिलीं। यह ग्लोबल साउथ द्वारा संचालित पहला बड़ा क्लाइमेट फाइनेंस फंड है। यह फंड जंगल बचाने वाले देशों को प्रति हेक्टेयर 4 डॉलर देगा, जिसमें 20% राशि स्थानीय और आदिवासी समुदायों के लिए तय होगी।

वित्त पर चर्चा में आईएचएलईजी रिपोर्ट प्रमुख रही। रिपोर्ट ने कहा कि उभरती अर्थव्यवस्थाओं को 2035 तक हर साल 3.2 ट्रिलियन डॉलर की जरूरत होगी। इसमें पब्लिक ग्रांट, प्राइवेट कैपिटल, कार्बन मार्केट, विकासशील देशों के बीच आपसी सहयोग और एमबीडी सुधारों पर आधारित एक मजबूत वित्त मॉडल की मांग की गई। रिपोर्ट ने विकासशील देशों से कहा कि वे बड़े निवेश खींचने के लिए अपने देश-स्तरीय निवेश प्लान मजबूत और विश्वसनीय बनाएं।

कॉप30 में बढ़ी चिंता: जलवायु पर झूठी जानकारी का बड़ा खतरा

कॉप30 के दौरान जलवायु संबंधी गलत जानकारी बड़ा मुद्दा बनकर उभरी है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप समेत कई नेता अब भी जलवायु परिवर्तन को झूठ या बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया दावा कहते हैं। रिपोर्टों के अनुसार जुलाई से सितंबर 2025 के बीच ऐसी गलत जानकारी 267% बढ़ी और 14,000 से ज्यादा मामले दर्ज हुए। एआई से बने फर्जी वीडियो और झूठे बयान तेजी से फैल रहे हैं। ऊर्जा कंपनियों द्वारा नवीकरणीय ऊर्जा के खिलाफ हजारों भ्रामक दावे फैलाए गए हैं। भारत में स्थिति खासकर संवेदनशील है क्योंकि 57% लोग प्राकृतिक गैस को जलवायु के लिए अच्छा मानते हैं। इस चुनौती से निपटने के लिए यूएन और ब्राज़ील ने मिलकर एक नया ग्लोबल इनिशिएटिव ऑन इन्फॉर्मेशन इंटेग्रिटी शुरू किया है, ताकि झूठी जानकारी को रोका जा सके और जलवायु चर्चाओं में सच को केंद्र में रखा जा सके।

संशोधित एनडीसी भी नहीं होंगे पर्याप्त: यूएनईपी रिपोर्ट 

यूनाइटेड नेशंस एनवायरमेंट प्रोग्राम (यूएनईपी) की एमिशंस गैप रिपोर्ट ने चेतावनी दी है कि दुनिया अब भी पेरिस समझौते के लक्ष्यों से दूर है। रिपोर्ट कहती है कि अगर सभी मौजूदा एनडीसी पूरी तरह लागू भी हो जाएं, तब भी तापमान 2.3–2.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा। मौजूदा नीतियां इसे 2.8 डिग्री सेल्सियस तक ले जा सकती हैं। 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य अस्थायी रूप से पार होना अब तय माना जा रहा है।

2024 में उत्सर्जन 57.7 GtCO2e तक पहुंच गया, जिसमें भारत, चीन और इंडोनेशिया की बढ़ोतरी सबसे ज्यादा थी। यूएन प्रमुख एंटोनियो गुटेरेश ने कॉप30 से स्पष्ट योजना और मजबूत वित्तीय प्रतिबद्धताओं की मांग की।

स्वास्थ्य की अनदेखी कर रहा है क्लाइमेट फाइनेंस: रिपोर्ट

कॉप30 से पहले जारी हुई एक नई रिपोर्ट ने कहा कि वैश्विक क्लाइमेट फाइनेंस में सार्वजनिक स्वास्थ्य की जरूरतों को नजरअंदाज किया जा रहा है। 2004 से अब तक कुल बहुपक्षीय क्लाइमेट फाइनेंस का सिर्फ 0.5% यानी 173 मिलियन डॉलर ही स्वास्थ्य अनुकूलन पर खर्च हुआ। जबकि 87% राष्ट्रीय योजनाओं में स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी गई है। भविष्य में 18% जलवायु-जनित स्वास्थ्य जोखिम दक्षिण एशिया में होने की संभावना है, लेकिन उसे कोई सीधे स्वास्थ्य अनुकूलन फंड नहीं मिला।  हीटवेव, बीमारियों और चरम मौसम से परेशान भारत को 2050 तक 2.4 ट्रिलियन डॉलर की जरूरत होगी। रिपोर्ट ने अनुदान आधारित फंडिंग और बेहतर समन्वय की मांग की।

फोटो: परिधि चौधरी

दिल्ली में हवा ज़हरीली; अभिभावकों और कार्यकर्ताओं का इंडिया गेट पर प्रदर्शन

दिल्ली में बिगड़ती वायु गुणवत्ता के खिलाफ 9 नवंबर को अभिभावकों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने इंडिया गेट पर विरोध प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों ने स्वच्छ हवा सुनिश्चित करने के लिए सरकार से तत्काल कार्रवाई की मांग की।

बिना अनुमति एकत्र होने के कारण कई प्रदर्शनकारियों को बाद में हिरासत में ले लिया गया। हालांकि दिल्ली में प्रदूषण में गिरावट आई है, लेकिन अभी भी वायु गुणवत्ता ‘बेहद खराब’ बनी हुई है। प्रदूषण का स्तर निर्धारित मानकों से 2,300 फीसदी अधिक है। जबकि ग्रेटर नोएडा में वायु गुणवत्ता सूचकांक यानी एक्यूआई 50 अंक उछलकर 418 तक पहुंच गया।

शहरों में रहने वाले भारतीयों के फेफड़ों में पहुँचते हैं हर रोज़ पहुंच रहे कम से कम 190 प्लास्टिक कण

एक शोध में ‘नई वायु प्रदूषक श्रेणी’ — सांस के साथ अंदर जाने वाले माइक्रोप्लास्टिक्स — की पहचान हुई है। ये माइक्रोप्लास्टिक्स इतने छोटे होते हैं कि मानव फेफड़ों के गहरे हिस्सों तक पहुँच सकते हैं। द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, यह पॉलिमर धूल हवा में स्वतंत्र रूप से तैरती नहीं, बल्कि गतिविधियों के कारण हवा में मिलती है।

कोलकाता, दिल्ली, मुंबई और चेन्नई के भीड़भाड़ वाले बाजारों से वायु कण एकत्र किए गए। रिपोर्ट के अनुसार, चेन्नई के एक व्यस्त बाजार में सांस लेने वाला व्यक्ति 8 घंटे में लगभग 190 प्लास्टिक कण अंदर ले सकता है। कोलकात में यह आंकड़ा 370 और दिल्ली में 300 पाया गया है।

पंजाब प्रदूषण बोर्ड ने प्लास्टिक कचरा बढ़ाने पर 14 बड़ी कंपनियों को तलब किया

पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीपीसीबी) ने हाल ही के एक ऑडिट में राज्य में प्रदूषण बढ़ाने के लिए ज़िम्मेदार पाई गई 14 बड़ी कंपनियों को स्पष्टीकरण के लिए बुलाया है। बोर्ड ने इन कंपनियों से प्लास्टिक प्रदूषण रोकने के लिए ठोस कार्रवाई की मांग की है।

पीपीसीबी अध्यक्ष ने कहा कि कंपनियाँ ज़िम्मेदारी से नहीं बच सकतीं और उनसे जवाबदेही और ठोस कदमों की उम्मीद की जाती है। “प्लास्टिक वेस्ट ब्रांड ऑडिट 2025” के आधार पर पता चला कि बरामद 11,880 ब्रांडेड प्लास्टिक पैकेजिंग में से 59% प्लास्टिक कचरे – जिसे रीसाइकल नहीं किया जा सकता – के लिए ये 14 ब्रांड ज़िम्मेदार थे।

ग्रीस के नीले समंदर माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण से दूषित

भूमध्य सागर क्षेत्र में बढ़ता ओवरटूरिज़्म और भारी समुद्री यातायात ग्रीस के समुद्रों में प्रदूषण बढ़ा रहा है। रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, ग्रीक वैज्ञानिकों ने समुद्र तल पर माइक्रोप्लास्टिक जांचने के लिए शेलफिश (मसल्स) — जो फ़िल्टर फीडिंग जीव हैं — का उपयोग किया।

वैज्ञानिकों ने पाया कि पूरा भूमध्य सागर माइक्रोप्लास्टिक का हॉटस्पॉट बन चुका है। उन्होंने बताया कि इसकी मात्रा अभी मनुष्यों के लिए हानिकारक नहीं है, लेकिन टीम द्वारा विश्लेषित हर प्रजाति में माइक्रोप्लास्टिक मौजूद है।

इंग्लैंड और वेल्स में कम-आय वाले इलाकों में सबसे खराब वायु प्रदूषण

एक अध्ययन में पाया गया कि इंग्लैंड और वेल्स के कम-आय वाले इलाकों में वायु प्रदूषण की सबसे गंभीर स्थिति है — जबकि कुल मिलाकर प्रदूषण में गिरावट आई है। विशेषज्ञों ने इसे “पर्यावरणीय अन्याय” बताया। द गार्जियन की रिपोर्ट के अनुसार, इसका सबसे अधिक प्रभाव रंगभेद का सामना करने वाले समुदायों पर पड़ता है, और ऐसे अधिकतर इलाके लंदन और मैनचेस्टर में स्थित हैं।

2025 में भारत की एक-तिहाई बिजली गैर-जीवाश्म ईंधनों से उत्पन्न

पवन, सौर, लघु जलविद्युत और परमाणु जैसी गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों ने 2025 में भारत की कुल ऊर्जा उत्पादन का एक-तिहाई हिस्सा पैदा किया। ET Energyworld की रिपोर्ट के अनुसार, चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में इसकी हिस्सेदारी पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में उल्लेखनीय रूप से बढ़ी।

अप्रैल–सितंबर 2025 के दौरान भारत का गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित घरेलू उत्पादन (थर्मल और भूटान से आयात को छोड़कर) 301.3 बिलियन यूनिट रहा, जो देश की कुल बिजली का 31.3% है।

2030 तक प्रमुख पवन ऊर्जा उपकरणों के लिए भारत बना रहेगा प्रमुख निर्यात केंद्र

भारत तटीय (inshore) पवन ऊर्जा उपकरणों के लिए एक महत्वपूर्ण निर्यात केंद्र बना रहेगा, जो वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखला में भारत की बढ़ती भूमिका को दर्शाता है।

भारत के पास वर्तमान में पवन टरबाइन विनिर्माण की 20GW से अधिक क्षमता है, जो घरेलू मांग और निर्यात दोनों को पूरा करती है। भारतीय निर्माता वैश्विक नैसेल (nacelle) विनिर्माण क्षमता के लगभग 12% के लिए ज़िम्मेदार हैं, और 165GW से अधिक वैश्विक क्षमता में लगभग 20GW का योगदान करते हैं।

भारत ने अक्टूबर में 2,000 MW से अधिक के नवीकरणीय ऊर्जा टेंडर जारी किए

एशियन पावर की रिपोर्ट के अनुसार, अक्टूबर 2025 में भारत ने परियोजना विकास श्रेणी के तहत 2,330MW के नवीकरणीय ऊर्जा टेंडर जारी किए। वहीं विभिन्न डेवलपर्स को 3,600MW से अधिक की परियोजनाएँ भी आवंटित की गईं।

नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, पिछले महीने SECI सहित जिन टेंडरों को जारी किया गया, उनमें 1,200MW/ 4,800 MWh पीक पावर सप्लाई टेंडर शामिल है, जिसमें ISTS-सम्पर्कित नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं से सह-स्थित भंडारण प्रणालियों के साथ फर्म और डिस्पैचेबल पावर की आपूर्ति शामिल है।

जिंदल ग्रुप ने नवीकरणीय क्षमता बढ़ाकर 13.3 GW स्थापित क्षमता हासिल की

JSW एनर्जी ने अपनी नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का विस्तार करते हुए कुल 13.3GW परिचालन क्षमता हासिल की है। ScanX News के अनुसार, अब कंपनी की कुल स्थापित क्षमता 13,295MW हो गई है, जिसमें नवीकरणीय ऊर्जा अब कुल क्षमता का 57% योगदान देती है।

हालाँकि, कंपनी को कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने इसके उस अनुरोध को खारिज कर दिया जिसमें APTEL के निर्णय (जो CERC के 1,000MW बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली के टैरिफ संबंधी आदेश का समर्थन करता है) को रोकने की मांग की गई थी।

जर्मनी और मिस्र के बीच 50 मिलियन यूरो का नवीकरणीय ऊर्जा ग्रिड कनेक्शन ऋण-स्वैप समझौता

जर्मनी और मिस्र ने दो पवन ऊर्जा संयंत्रों को राष्ट्रीय ग्रिड से जोड़ने वाली परियोजनाओं को वित्त देने के लिए 50 मिलियन यूरो के ऋण-स्वैप समझौते पर हस्ताक्षर किए। डेली न्यूज़ रिपोर्ट के अनुसार, यह समझौता मिस्र की बिजली संचरण कंपनी (EETC) के प्रमुख और जर्मन विकास बैंक KfW के एक अधिकारी के बीच हुआ।

मंत्रालय ने कहा कि यह समझौता मिस्र के बिजली और नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र के लिए जर्मन सरकार के समर्थन का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य कार्बन उत्सर्जन कम करना और स्वच्छ ऊर्जा की ओर संक्रमण को बढ़ावा देना है।

फोटो: Melonemond/Pixabay

ईवी प्रोमोशन के लिए पेट्रोल-डीज़ल कारें हों प्रतिबंधित: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि लग्जरी पेट्रोल और डीजल कारों को चरणबद्ध तरीके से बंद करना इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) को बढ़ावा देने की दिशा में एक प्रभावी शुरुआत हो सकती है। न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति जॉयमल्या बागची की पीठ एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें सरकार की ईवी नीतियों को प्रभावी ढंग से लागू करने की मांग की गई थी।

न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि बाजार में अब बड़े और सुविधाजनक इलेक्ट्रिक वाहन उपलब्ध हैं, जो वीआईपी और बड़ी कंपनियों द्वारा इस्तेमाल होने वाली ‘गैस गज़लर’ कारों का विकल्प बन सकते हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि पहले चरण में सिर्फ हाई-एंड कारों पर प्रतिबंध लगाने पर विचार किया जा सकता है, जिससे आम लोगों पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने बताया कि सरकार भी इस विचार के पक्ष में है और 13 मंत्रालय इस दिशा में काम कर रहे हैं। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि ईवी चार्जिंग स्टेशनों की कमी अभी बड़ी चुनौती है। कोर्ट ने कहा कि जैसे-जैसे ईवी की संख्या बढ़ेगी, चार्जिंग स्टेशन भी बढ़ेंगे। कोर्ट ने ईवी नीति की समीक्षा की आवश्यकता पर भी संकेत दिया। मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद होगी।

भारतीय ईवी बाजार में तेजी से बढ़ रही चीनी कंपनियां

भारत के इलेक्ट्रिक वाहन बाजार में अब चीन समर्थित कंपनियों की हिस्सेदारी तेजी से बढ़ रही है। भारतीय बाजार में अभी तक टाटा मोटर्स और महिंद्रा का दबदबा रहा है, लेकिन दो वर्षों से भी कम समय में बीवाईडी, एमजी और वोल्वो जैसी कंपनियां मिलकर भारतीय ईवी बाजार का लगभग एक-तिहाई हिस्सा हासिल कर चुकी हैं। खरीदार बेहतर तकनीक और लंबी रेंज के कारण इन ब्रांडों को पसंद कर रहे हैं।

विशेषज्ञों के अनुसार, चीनी कंपनियों ने उपभोक्ताओं को अधिक विकल्प देने के साथ उन्नत बैटरी तकनीक और प्रीमियम फीचर्स के प्रसार को भी तेज किया है। इसके बावजूद भारतीय कंपनियां अभी भी ईवी बिक्री में अग्रणी बनी हुई हैं।

ओला ने वित्तीय वर्ष 2026 के लिए राजस्व अनुमान घटाया, अब मुनाफे पर ज़ोर

ओला इलेक्ट्रिक ने वित्त वर्ष 2026 के लिए अपना कुल रेवेन्यू अनुमान कम कर दिया है। कंपनी अब ज़्यादा बिक्री (वॉल्यूम) के बजाय मुनाफे (प्रॉफिटेबिलिटी) पर ध्यान दे रही है। रॉयटर्स के अनुसार, इस घोषणा के बाद कंपनी के शेयर 5% गिर गए, जबकि इससे पहले गिरावट 0.8% थी।

ओला की बिक्री में कमी का एक कारण बाजार हिस्सेदारी में गिरावट है। अब इस क्षेत्र में बजाज ऑटो और टीवीएस मोटर्स जैसी पुरानी कंपनियाँ तेजी से आगे निकल रही हैं।

टेस्ला के सह-संस्थापक ने नया प्लांट शुरू किया, ईवी बाज़ार में गिरावट की आशंका

टेस्ला के सह-संस्थापक जेबी स्ट्राबेल ने अपनी बैटरी रीसाइक्लिंग कंपनी, रेडवुड मैटेरियल्स, का नया प्लांट शुरू किया है, जो ईवी बैटरियों से ज़रूरी खनिज निकालकर दोबारा इस्तेमाल के लिए देगा। ब्लूमबर्ग के अनुसार, टेस्ला को आने वाले समय में ईवी बाज़ार की धीमी रफ्तार का सामना करना पड़ सकता है।

रेडवुड ने एक नई इकाई — रेडवुड एनर्जी — भी शुरू की है, जो खराब हो चुकी ईवी बैटरियों को बड़े पैमाने की बिजली भंडारण प्रणालियों में बदलती है। कंपनी ने ऊर्जा भंडारण की तैनाती तेज करने के लिए 350 मिलियन डॉलर की नई फंडिंग भी जुटाई है।

ओपीईसी ने 2026 तक आपूर्ति-मांग संतुलन का अनुमान लगाया, तेल कीमतों में फिर गिरावट

रॉयटर्स के अनुसार, पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन ओपीईसी ने 2026 में आपूर्ति और मांग के संतुलन का अनुमान लगाया है, जो पहले के आपूर्ति घाटे के अनुमान के विपरीत है। इस अनुमान के चलते तेल की कीमतें प्रति बैरल 2 डॉलर से अधिक गिर गईं।

अमेरिकी सरकार द्वारा बाज़ार को पुन: खोलने से आर्थिक गतिविधियों और कच्चे तेल की मांग को बढ़ावा मिलने की संभावना है। अमेरिका द्वारा जल्द ही अपना नया आउटलुक जारी करने की संभावना भी है।

तेल स्रोतों में बदलाव के बीच रिलायंस स्पॉट मार्केट में मध्य-पूर्वी क्रूड बेचने की तैयारी में

रिलायंस इंडस्ट्रीज मध्य-पूर्वी क्रूड — जैसे मुरबान और अपर जाकुम — को स्पॉट मार्केट में बेचने की तैयारी कर रही है। ब्लूम्सबर्ग ने बताया कि यह कदम इसलिए खास है क्योंकि कंपनी आमतौर पर इन ग्रेड्स की बड़ी खरीदार रहती है।

रिलायंस पहले ही इराकी बसरा मीडियम क्रूड का एक कार्गो एक ग्रीक खरीदार को बेच चुकी है। पश्चिमी प्रतिबंधों के चलते रूसी तेल खरीदना मुश्किल और जोखिम भरा होने के बाद भारत के रिफाइनर अपनी आपूर्ति में विविधता लाने की कोशिश कर रहे हैं।

पर्यावरणीय चिंताओं को लेकर राजगढ़ के ग्रामीणों का खनन परियोजनाओं के खिलाफ विरोध प्रदर्शन

छत्तीसगढ़ के राजगढ़ जिले के धरमजयगढ़ क्षेत्र के दर्जनों गांवों के हजारों आदिवासी एक प्रस्तावित निजी कोयला खनन परियोजना की सार्वजनिक सुनवाई रद्द करने की मांग को लेकर कलेक्टर कार्यालय के बाहर धरना दिया। हसदेव–राजगढ़ वन क्षेत्र, जो खनन प्रदूषण और मानव–हाथी संघर्ष से जूझ रहा है, उद्योग विस्तार और आदिवासी अधिकारों के बीच एक नया विवाद का केंद्र बन गया है।

चीन पर निर्भरता कम करने के लिए अमेरिका ने 10 नए क्रिटिकल मिनरल्स को सूची में जोड़ा

अमेरिकी प्रशासन ने स्थानीय उत्पादन बढ़ाने और विदेशी देशों—विशेष रूप से चीन—पर निर्भरता घटाने के लिए अपनी क्रिटिकल मिनरल्स सूची का विस्तार किया है। रॉयटर्स के मुताबिक सूची में कॉपर और कोयला जैसे खनिज शामिल किए गए हैं। सरकार इनके संबंधित प्रोजेक्ट्स को प्रोत्साहन देगी।

पर्यावरणविदों ने इस कदम की आलोचना की है, यह कहते हुए कि प्रशासन अर्थशास्त्र की अनदेखी कर रहा है, कानून का उल्लंघन कर रहा है, और एजेंसियों को बिना पर्याप्त सामुदायिक सुरक्षा के परियोजनाओं को मंजूरी देने का रास्ता खोल रहा है।

एनटीपीसी ने झारखंड में भारत की पहली CO₂ स्टोरेज वेल की ड्रिलिंग शुरू की, कार्बन कैप्चर प्रयासों की शुरुआत

एनटीपीसी लिमिटेड ने झारखंड के पकरी बरवाडीह कोयला खदान में भारत की पहली कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) भंडारण कुएं की ड्रिलिंग शुरू कर दी है, जिससे देश में कार्बन कैप्चर और स्टोरेज प्रयासों की औपचारिक शुरुआत हो गई है।

लगभग 1,200 मीटर गहराई तक जाने के लिए डिज़ाइन किया गया यह बोरवेल भूवैज्ञानिक और भंडार संबंधी डेटा जुटाने में मदद करेगा, ताकि CO₂ के सुरक्षित और दीर्घकालिक भंडारण को सक्षम बनाया जा सके।

कार्बन कॉपी
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