फोटो: Sachin Mittal/Pixabay

वायु प्रदूषण से काली पड़ रही लाल किले की दीवारें: शोध

दिल्ली का ऐतिहासिक लाल किला वायु प्रदूषण से गंभीर रूप से प्रभावित हो रहा है। भारत और इटली के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि बढ़ते प्रदूषण से किले की लाल बलुआ पत्थर की दीवारें झर रही हैं, नक्काशियां मिट रही हैं और सतह पर काली परत जम रही है।

यह परतें ट्रैफिक, फैक्ट्रियों, धूल और जीवाश्म ईंधन से निकलने वाले उत्सर्जन के कारण बन रही हैं। इनमें सीसा, जस्ता, क्रोमियम और तांबा जैसी भारी धातुएं भी पाई गईं, जो पत्थरों को तेजी से कमजोर करती हैं।

2021 से 2023 तक किले के आसपास पीएम10, पीएम2.5 और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के स्तर लगातार मानक से ऊपर रहे। वैज्ञानिकों ने चेताया कि इससे किले की संरचना को गंभीर खतरा है। उनका सुझाव है कि समय रहते काली परत की सफाई, सुरक्षात्मक परत का उपयोग और नियमित रखरखाव से नुकसान की गति को धीमा किया जा सकता है।

दिल्ली की बस्तियों से गुजरती ट्रेनों का शोर सीमा से 85% तक अधिक

दिल्ली की झुग्गी बस्तियों में ट्रेनों का ध्वनि प्रदूषण गंभीर खतरा बन गया है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (डीटीयू) और सीएसआईआर- सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया कि शोर का स्तर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की सीमा से 85 प्रतिशत तक अधिक है।

शोधकर्ताओं ने 14 स्थानों पर 1,057 बार ट्रेनों के गुजरने की निगरानी की। अध्ययन में मालगाड़ियों को सबसे बड़ा प्रदूषक पाया गया, जिनके शोर का औसत स्तर 100.1 डेसिबल रहा, जबकि रिहायशी इलाकों के लिए सीपीसीबी की सीमा 55 डेसिबल है। इलेक्ट्रिक एक्सप्रेस ट्रेनों का औसत स्तर 91.8 डेसिबल दर्ज किया गया।

पटेल नगर रेलवे स्टेशन पर शोर का स्तर 120 डेसिबल तक पहुंच गया, जो चेनसॉ के पास खड़े होने के बराबर है। शोध दल का नेतृत्व कर रहे डीटीयू के पर्यावरण विज्ञान एवं अभियांत्रिकी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर राजीव मिश्रा ने चेतावनी दी कि यह दिल्ली की बस्तियों में एक पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी की ओर इशारा है।

हिमाचल में नदियों को प्रदूषित करने पर सरकारी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स पर जुर्माना

हिमाचल प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने राज्य की नदियों को प्रदूषित करने के आरोप में 12 सरकारी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स पर 2.82 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने एक रिपोर्ट में बताया कि बोर्ड के अनुसार ये प्लांट्स जल शक्ति विभाग, शिमला जल प्रबंधन निगम लिमिटेड और भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड द्वारा संचालित किए जा रहे थे।

राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने राज्य सरकार से यह भी कहा है कि वह पूरे प्रदेश में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स को जोड़ने वाले सीवर नेटवर्क की स्थिति की जानकारी सार्वजनिक करे।

उत्तर भारत के शहर ग्रामीण इलाकों से अधिक स्वच्छ, दक्षिण में पैटर्न उलटा 

एक नए अध्ययन में पाया गया है कि उत्तर भारत के शहरों में एरोसोल प्रदूषण आसपास के गांवों की तुलना में कम है, जबकि दक्षिण भारत में इसका उलटा पैटर्न देखा गया — यहां शहरों की हवा ग्रामीण इलाकों से ज्यादा प्रदूषित है। अध्ययन के अनुसार यह अंतर शहरों और उनके भौगोलिक-जलवायु परिवेश के परस्पर प्रभाव के कारण पैदा होता है, जो प्रदूषकों के फैलाव को प्रभावित करता है। विशेषज्ञों का कहना है कि शहरों में हरित आवरण घटने और कंक्रीट संरचनाएं बढ़ने से अर्बन हीट आइलैंड प्रभाव बनता है। ऐसे में प्रदूषक फंस जाते हैं और ‘अर्बन पॉल्यूशन आइलैंड्स’ का रूप ले लेते हैं। एरोसोल यानी पार्टिकुलेट मैटर सांस के जरिए शरीर में प्रवेश कर गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा करता है।

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