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केदारनाथ घाटी में हेलीकॉप्टर गिरने से 7 मरे, डेढ़ महीने में पांचवीं दुर्घटना
उत्तराखंड के केदारनाथ से गुप्तकाशी जा रहा एक हेलीकॉप्टर रविवार सुबह खराब मौसम और जीरो विजिबिलिटी के बीच गौरीकुंड के जंगलों में क्रैश हो गया। हादसे में पायलट समेत सात लोगों की मौत हो गई, जिनमें एक दो वर्षीय बच्ची भी शामिल है। हेलीकॉप्टर आर्यन एविएशन प्राइवेट लिमिटेड का था। यह चारधाम यात्रा मार्ग पर बीते 40 दिनों में हुआ पांचवां हेलीकॉप्टर हादसा है, जिससे हेली सेवाओं की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।
ताजा हादसे के संभावित कारणों की बात करें तो प्रारंभिक जांच में “कंट्रोल्ड फ्लाइट इनटू टेरेन” (सीएफआईटी) को कारण माना जा रहा है, जिसमें पायलट के पूर्ण नियंत्रण में होने के बावजूद विमान किसी पहाड़ी या जमीन से टकरा जाता है। हादसे के वक्त घाटी में घना कोहरा और बादल छाए हुए थे, जिससे विजिबिलिटी शून्य हो गई थी। बावजूद इसके हेलीकॉप्टर ने उड़ान भरी, जिससे वह गौरीकुंड और त्रिजुगी नारायण के बीच जंगलों में टकरा गया और उसमें आग लग गई।
जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी के अनुसार, मौसम बेहद खराब था और विजिबिलिटी न के बराबर थी। विशेषज्ञों का मानना है कि ऊंचे हिमालयी इलाकों में मौसम की अनदेखी करना और तकनीकी निरीक्षण की कमी ऐसे हादसों की मुख्य वजह बन रही है।
नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने आर्यन एविएशन की सेवा तत्काल निलंबित कर दी है और डीजीसीए को हेलीकॉप्टर संचालन पर निगरानी बढ़ाने के निर्देश दिए हैं।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने दो दिन के लिए हेलीकॉप्टर सेवाएं रोक दी हैं और सख्त एसओपी लागू करने तथा देहरादून में कमांड सेंटर बनाने के आदेश दिए हैं। घटना की विस्तृत जांच विमान दुर्घटना जांच ब्यूरो करेगा।
उत्तर-पश्चिमी और पूर्वी भारत में भीषण गर्मी
मई में हुई बारिश के बाद अब उत्तर-पश्चिम भारत और पूर्वी भारत में भीषण गर्मी लौट आई है। मौसम विभाग के अनुसार नई दिल्ली में 43.8 डिग्री सेल्सियस, भटिंडा में 47.6 डिग्री सेल्सियस, गंगानगर में 47.4 डिग्री सेल्सियस, अमृतसर में 44.8 डिग्री सेल्सियस, रोहतक में 46.1 डिग्री सेल्सियस और लखनऊ में 42.7 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया। हिन्दुस्तान टाइम्स अखबार ने बताया कि पूर्वी भारत में पटना में 40.4 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया, जबकि कोलकाता में 36.3 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया, जबकि रिलेटिव ह्यूमिडिटी 60% से अधिक रही। उत्तर-पश्चिम भारत में जून के मध्य में लू से कुछ निजात मिलेगी।
पीटीआई के अनुसार भारत में गर्मी की मार और भी बदतर होती जा रही है, लेकिन कोई नहीं जानता कि कितने लोग मर रहे हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय की सलाहकार सौम्या स्वामीनाथन ने इंडिया हीट समिट 2025 में कहा कि भारत में गर्मी से होने वाली मौतों का कोई विश्वसनीय डेटा नहीं है, क्योंकि पूरे देश में रिपोर्टिंग सिस्टम समान रूप से मजबूत नहीं हैं।
पूर्वोत्तर भारत में बाढ़ और भूस्खलन से 46 लोगों की मौत; मेघालय में अचानक आई बाढ़ से 6 की मौत
पूर्वोत्तर भारत में अप्रत्याशित बारिश के कारण बाढ़ और भूस्खलन की स्थिति पैदा हो गई है, कई गांव जलमग्न हो गए हैं और सड़कें कट गई हैं। मोंगाबे इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, “5 जून तक, इस क्षेत्र के सात राज्यों में 46 लोगों की जान जा चुकी है।”
गुवाहाटी में 30 मई से 31 मई के बीच 111 मिमी बारिश दर्ज की गई (मई में यहां अब तक की सबसे ज़्यादा बारिश)। समाचार साइट ने बताया कि सिलचर में 31 मई को 24 घंटों में 415.8 मिमी बारिश दर्ज की गई, जिसने 1893 में 24 घंटों में 290.3 मिमी बारिश के 132 साल पुराने रिकॉर्ड को तोड़ दिया। मेघालय के सोहरा और मौसिनरम में 31 मई को 470 मिमी से ज़्यादा बारिश हुई, जबकि असम के तेज़पुर और उत्तरी लखीमपुर में इसी अवधि के दौरान 150 मिमी से ज़्यादा बारिश हुई।
असम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (ASDMA) ने मुताबिक 19 जिलों में 2,37,783 गांव प्रभावित हैं और 41,415 लोग राज्य भर में 385 राहत शिविरों में शरण लिए हुए हैं। मणिपुर में 165,000 लोग बाढ़ से प्रभावित हैं, खासकर इंफाल के पूर्वी हिस्से में।
उधर मेघालय में 30-31 मई को भारी बारिश हुई, जिससे 10 जिलों के 86 गांव प्रभावित हुए, डाउन टु अर्थ पत्रिका के मुताबिक केंटापारा में बिजली गिरने से दो बच्चों सहित छह लोगों की मौत हो गई। री भोई, ईस्ट खासी हिल्स और वेस्ट गारो हिल्स जिले सबसे ज्यादा प्रभावित हुए, जहां अचानक आई बाढ़, भूस्खलन और तूफान से हजारों लोग विस्थापित हुए।
‘असामान्य रूप से ठंडे’ मई में 1901 के बाद से सबसे अधिक वर्षा दर्ज की गई
भारतीय मौसम विभाग (IMD) के अनुसार, इस साल मई का महीना “असामान्य रूप से ठंडा” रहा, जिसमें औसत दिन का तापमान 1901 के बाद से इस महीने के लिए सातवां सबसे कम और पिछले चार वर्षों में सबसे कम दर्ज किया गया। मई 2025 में 1901 के बाद से इस महीने के लिए 59वां सबसे कम औसत न्यूनतम तापमान दर्ज किया गया।
द हिन्दुस्तान टाइम्स के मुताबिक मौसम विभाग ने इस बात पर प्रकाश डाला कि मई में पूरे देश में औसत वर्षा 126.7 मिमी (लंबी अवधि के औसत का 106.4%) दर्ज की गई, जो 1901 के बाद से इस महीने के लिए सबसे अधिक थी, जब तापमान पहली बार दर्ज किया जाना शुरू हुआ था। इस मई में पिछले पाँच सालों में सबसे ज़्यादा भारी (64.5 से 115.5 मिमी) बारिश की घटनाएँ 1,053 दर्ज की गईं; बहुत भारी (115.6 से 204.5 मिमी) बारिश की घटनाएँ 262 दर्ज की गईं; और अत्यधिक भारी (204.5 मिमी से ज़्यादा) बारिश की घटनाएँ 39 दर्ज की गईं, 2021 को छोड़कर, जब अत्यधिक भारी बारिश की घटनाओं की संख्या 42 थी।
दक्षिण एशिया और तिब्बत में अधिक गर्म और ज़्यादा नमी वाले मॉनसून की संभावना: ICIMOD
इस साल मानसून में पूरे हिंदुकुश हिमालय (एचकेएच) क्षेत्र में औसत से अधिक बारिश के अलावा तापमान औसत से लगभग 2 डिग्री सेल्सियस अधिक होगा। डाउन टु अर्थ पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट बताती है 11 जून, 2025 को इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (आईसीआईएमओडी) द्वारा जारी वैश्विक और राष्ट्रीय मौसम विज्ञान एजेंसियों के आंकड़ों के एक नए विश्लेषण में यह चेतावनी दी गई है। रिपोर्ट के अनुसार, अधिक बारिश वाले मानसून के साथ तापमान में वृद्धि से हीट स्टैस और डेंगू जैसे जलजनित रोग फैलने का खतरा भी बढ़ सकता है।
अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, तिब्बत (चीन), म्यांमार, नेपाल और पाकिस्तान सहित एचकेएच क्षेत्र के लगभग सभी देशों में तापमान वृद्धि का अनुमान लगाया गया था, लेकिन विशेषज्ञों के लिए अधिक चिंता की बात यह है कि पूरे क्षेत्र में मानसून के अधिक वर्षा होने की संभावना है।
रिपोर्ट के अनुसार भारत, नेपाल और पाकिस्तान के साथ-साथ चीन के तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र में औसत से ज़्यादा बारिश होने की उम्मीद है। रिपोर्ट में भारत के बारे में कहा गया है, “इस बात की प्रबल संभावना है कि दक्षिण-पश्चिम मानसून में मौसमी वर्षा सामान्य से ज़्यादा होगी।” नेपाल के लिए भी यही पूर्वानुमान है।
रिपोर्ट में क्षेत्र को “जलवायु जोखिमों और प्रभावों में संभावित वृद्धि” के लिए तैयार रहने का आह्वान किया गया है, यह देखते हुए कि 1980 से 2024 तक सभी बाढ़ों में से लगभग तीन-चौथाई (72.5 प्रतिशत) गर्मियों के मानसून के मौसम में आई हैं।
रिपोर्ट में आगे कहा गया है, “बढ़ते तापमान और अधिक चरम बारिश से बाढ़, भूस्खलन और मलबे के प्रवाह जैसी जल-जनित आपदाओं का खतरा बढ़ जाता है, और ग्लेशियरों, बर्फ के भंडार और पर्माफ्रॉस्ट पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है। इस बीच, कम वर्षा, विशेष रूप से अफगानिस्तान जैसे जल-तनाव वाले देशों में, पहले से ही असाधारण रूप से उच्च स्तर के कुपोषण वाले देश में खाद्य और जल सुरक्षा के लिए जोखिम पैदा कर सकती है।”
CO2 का स्तर बढ़ने से विश्व के महासागरों का तापमान रिकॉर्ड उच्च स्तर पर
फाइनेंसिल टाइम्स अख़बार की रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक महासागर का तापमान मई में दूसरे सबसे ऊंचे रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया, “जो तेजी से बढ़ते तापमान के दो साल के खतरनाक दौर को समाप्त करता है और कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़ते स्तर को अवशोषित करने की समुद्र की क्षमता के बारे में चिंताओं को बढ़ाता है”। अखबार ने यूरोपीय संघ की जलवायु परिवर्तन सेवा, कॉर्पेनिकस के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि “मई में वैश्विक औसत समुद्री सतह का तापमान 20.79C था, जो 2024 में इसी महीने के रिकॉर्ड से 0.14C कम है”।
वायुमंडल में CO2 का स्तर वैश्विक स्तर पर मार्च में औसतन 426 भाग प्रति मिलियन (ppm) पर पहुंच गया, जो एक साल पहले 423 ppm था, और हवाई में मौना लोआ वेधशाला में 430 ppm को पार कर गया। FT की रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले 60 वर्षों में ग्रीनहाउस गैस की सांद्रता लगभग 300 ppm से बढ़ी है।
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सिर्फ 20 से 28 डिग्री तक चलेगा एसी: नया नियम लाने की तैयारी में सरकार
भारत सरकार एक नया नियम लाने की तैयारी कर रही है जिसके तहत घरों, दफ्तरों, गाड़ियों और यहां तक कि होटलों में भी एयर कंडीशनर (एसी) केवल 20 से 28 डिग्री सेल्सियस के दायरे में ही चलाए जा सकेंगे। ऊर्जा मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने इसे एक “अपनी तरह का पहला प्रयोग” बताया है।
इस पहल का उद्देश्य है ऊर्जा ग्रिड पर बढ़ते दबाव को कम करना, अत्यधिक बिजली की खपत पर लगाम लगाना और उपभोक्ताओं के बिल को घटाना।
मुंबई के ग्लेनीगल्स और दिल्ली के सीके बिड़ला अस्पतालों के स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इस प्रस्ताव का स्वागत किया है। उनका कहना है कि बाहर तेज गर्मी के दौरान कमरे के भीतर बहुत अधिक ठंडे वातावरण से बचना श्वसन संबंधी समस्याएं, डिहाइड्रेशन और टेम्परेचर शॉक को कम करने में मदद करता है।
अध्ययनों से पता चलता है कि कमरे के तापमान में सिर्फ 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से एसी की बिजली खपत लगभग 6 प्रतिशत तक घट सकती है, जिससे हर साल करोड़ों रुपए की बचत हो सकती है।
यह नीति भारत को जापान, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया जैसे देशों द्वारा अपनाए गए वैश्विक ऊर्जा बचत मानकों के करीब लाएगी।
पूर्वव्यापी पर्यावरण मंजूरी की नीति को सुप्रीम कोर्ट ने किया रद्द
सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण संबंधी पूर्वव्यापी मंजूरी देने वाली केंद्र सरकार की दो नीतियों को अवैध और पर्यावरण के लिए हानिकारक बताया है। मोंगाबे इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने उन परियोजनाओं को राहत दी थी जो पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (ईआईए) अधिसूचना का उल्लंघन कर बिना पर्यावरण मंजूरी के शुरू की गई थीं या उन्होंने स्वीकृत दायरे का उल्लंघन किया था।
कोर्ट ने 2017 की अधिसूचना और 2021 के कार्यालय ज्ञापन (ओएम) की सख्त आलोचना करते हुए इन्हें गैरकानूनी करार दिया, क्योंकि इनके जरिए अधिकारियों को पूर्वव्यापी पर्यावरण मंजूरी देने का अधिकार मिल गया था — जिसे न्यायालय ने कानून के खिलाफ और पर्यावरण के लिए घातक बताया।
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट के अन्य फैसलों से अलग है और इसका दूरगामी प्रभाव पड़ेगा।
सूत्रों के मुताबिक, पर्यावरण मंत्रालय इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करने या पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 में संशोधन कर ईआईए उल्लंघन करने वाली परियोजनाओं से निपटने के लिए नई व्यवस्था बनाने पर विचार कर रहा है।
बॉन जलवायु वार्ता से पहले भारत ने जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए अधिक योगदान का आह्वान किया
बॉन में इस महीने हो रही जलवायु वार्ता से पहले संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन को दिए गए एक “संक्षिप्त और कड़े शब्दों वाले” निवेदन में भारत ने कहा कि “पर्याप्त जलवायु वित्त के बिना, प्रस्तावित राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) भी साकार नहीं होंगे, भविष्य की कोई महत्वाकांक्षी [प्रतिज्ञा] तो दूर की बात है।” हिन्दुस्तान टाइम्स में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक भारत ने बाकू में हुए क्लाइमेट सम्मेलन में जलवायु वित्त के परिणाम पर अपनी आपत्ति दोहराई।
भारत के सुझावों का हवाला देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि “बाकू से बेलेम रोडमैप…पेरिस समझौते के अनुच्छेद 9.1 के अनुसार वित्तीय चर्चा को सही दिशा में लाने का एक अवसर है”। भारत ने कहा कि रोडमैप में “जलवायु कार्रवाई की देश द्वारा नेतृत्व वाली प्रकृति को मान्यता दी जानी चाहिए” और चेतावनी दी कि “अत्यधिक उधार के माध्यम से जलवायु पहलों के लिए अत्यधिक ऋण लेने से देश की राजकोषीय स्थिरता को खतरा है”।
भारत के दो और वेटलैंड रामसर सूची में शामिल, कुल संख्या हुई 91
भारत के दो और वेटलैंड स्थलों को रामसर सूची में शामिल किया गया है, जिससे देश में ऐसे स्थलों की कुल संख्या अब 91 हो गई है। नए जोड़े गए स्थल राजस्थान के फलोदी स्थित खीचन और उदयपुर का मेनार हैं। मेनार झील, जिसे ‘बर्ड विलेज’ के नाम से भी जाना जाता है, पक्षी प्रेमियों और पर्यावरणविदों के लिए विशेष महत्व रखती है। यहां स्थानीय समुदाय की ओर से पक्षियों के संरक्षण में निभाई जा रही भूमिका को अब वैश्विक मान्यता प्राप्त हुई है।
रामसर सूची का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वेटलैंड्स (आर्द्रभूमियों) का एक ऐसा नेटवर्क विकसित और संरक्षित करना है, जो वैश्विक जैव विविधता के संरक्षण और मानव जीवन के सतत अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण हैं। यह उद्देश्य इन वेटलैंड्स के इकोलॉजिकल फैक्टर्स, प्रक्रियाओं और उनसे मिलने वाले लाभों को बनाए रखने के माध्यम से पूरा किया जाता है।
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एनजीटी ने उत्तर प्रदेश सरकार की सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और अपशिष्ट प्रबंधन पर रिपोर्ट को भारी अंतर के कारण खारिज किया
भारत की हरित अदालत नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने कहा कि ट्रिब्यूनल को सौंपी गई सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) और सीवेज अपशिष्ट प्रबंधन (एसडब्ल्यूएम) की स्थिति पर उत्तर प्रदेश सरकार की रिपोर्ट में भारी अंतर है। कोर्ट ने सरकार को अंतर को भरने के लिए एक निर्धारित प्रारूप सौंपा और उसे अगली सुनवाई की तारीख 28 जुलाई तक छूटे हुए विवरण प्रस्तुत करने का आदेश दिया।
अपने 6 पन्नों के आदेश में कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार की रिपोर्ट “महत्वपूर्ण गैप की पहचान करने में विफल रहा और ठोस कचरा प्रबंधन (एसडब्ल्यूएम) नियम, जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, और प्रासंगिक सुप्रीम कोर्ट (एससी) के निर्देशों का अनुपालन नहीं किया”। राज्य सरकार ने यह रिपोर्ट 24 मई को जमा की थी।
सोलर ऊर्जा क्षमता 100 गीगावॉट पहुंची तो भारत ने तय किये सौर कचरे के नियम, वर्ष 2040 तक 6 लाख टन कचरा
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा जारी ड्राफ़्ट गाइडलाइंस के अनुसार, भारत में 2030 तक 34,600 टन से अधिक सौर फोटोवोल्टिक (पीवी) कचरा उत्पन्न होने का अनुमान है, जिसमें पूरी तरह इस्तेमाल हो चुके सौर मॉड्यूल, पैनल और सेल को संभालने के लिए एक विस्तृत रूपरेखा प्रस्तावित की गई है।
ड्राफ्ट गाइडलाइंस में मौजूदा ई-कचरा (प्रबंधन) नियम, 2022 के तहत निर्माताओं, थोक उपभोक्ताओं, विघटनकर्ताओं (डिस्मेंटल करने वाले) और रीसाइकिल करने वालों की भूमिकाओं और जिम्मेदारियों को तय किया गया है।
मार्च 2023 तक भारत ने 73 गीगावाट से ज़्यादा सौर क्षमता स्थापित की है और देश का संचयी पीवी अपशिष्ट उत्पादन 2020 में लगभग 100 टन से बढ़कर 2040 तक 600,000 टन होने की उम्मीद है। अनुमान है कि 2030 तक अपशिष्ट की मात्रा 34,600 टन तक पहुँच जाएगी।
दिशा-निर्देशों में कहा गया है, “सौर पीवी अपशिष्ट में कांच, एल्यूमीनियम, सिलिकॉन, प्लास्टिक और सीसा, कैडमियम और एंटीमनी जैसी भारी धातुएँ जैसी विभिन्न सामग्रियाँ शामिल हैं। अनुचित तरीके से हैंडलिंग या निपटान मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए गंभीर जोखिम पैदा कर सकता है।”
ट्रम्प प्रशासन के तहत पर्यावरण संरक्षण एजेंसी द्वारा बिजली संयंत्रों को प्रदूषण सीमा में बड़े पैमाने पर ढील
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा प्रस्तावित कानूनों की वापसी हुई तो अमेरिकी बिजली संयंत्रों को आस-पास के समुदायों और व्यापक दुनिया को सेहत को क्षति पहुंचाने वाले वायु विषाक्त पदार्थों और असीमित मात्रा में वॉर्मिंग करने वाली गैसों को उत्सर्जित करने की अनुमति मिल जाएगी।
गार्डियन की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (EPA) ने एक योजना बनाई है जो एक ऐतिहासिक जलवायु नियम को निरस्त करेगी जिसका उद्देश्य 2030 के दशक तक बिजली संयंत्रों से ग्रीनहाउस गैसों को खत्म करना है और अलग से, एक अन्य रेग्युलेशन को कमजोर करेगा जो बिजली संयंत्रों द्वारा पारा जैसे खतरनाक वायु प्रदूषकों के उत्सर्जन को प्रतिबंधित करता है।
कनाडा के जंगलों में लगी आग के धुएं से अमेरिका ही नहीं यूरोप तक वायु प्रदूषण का ख़तरा
ले मोंडे की रिपोर्ट के अनुसार, कनाडा के जंगलों में लगी आग से निकलने वाला धुआं अमेरिका के मध्य-पश्चिम में वायु गुणवत्ता को नुकसान पहुंचा रहा है, साथ ही यूरोप तक “धुएं के विशाल गुबार” पहुंच रहे हैं। समाचार पत्र ने कहा कि जंगल में लगी आग के कारण 26,000 से अधिक लोगों को अपने घरों से निकालना पड़ा है और यह “अत्यधिक फैलती जा रही है”, “जिसके कारण लाखों कनाडाई और अमेरिकी लोगों का दम घुट रहा है और यह यूरोप तक पहुंच रहा है”।
2030 का लक्ष्य पाने के लिए भारत को हर साल जोड़नी होगी दोगुनी अक्षय ऊर्जा: रिपोर्ट
एस&पी ग्लोबल रेटिंग्स की रिपोर्ट के अनुसार भारत को 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता हासिल करने के लिए 2025 से 2030 के बीच हर साल 50 गीगावाट की वृद्धि करनी होगी। यह पिछले वर्ष की 29 गीगावाट की वृद्धि से लगभग दोगुनी है।
इसके लिए 175 अरब डॉलर की निवेश आवश्यकता होगी, जबकि ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क के विस्तार के लिए अतिरिक्त 150 अरब डॉलर लग सकते हैं।
रिपोर्ट में कहा गया कि अधिकांश कंपनियां विस्तार के लिए कर्ज का सहारा लेंगी। भारत में सौर ऊर्जा सबसे सस्ती और लोकप्रिय नवीकरणीय स्रोत बनी हुई है।
बिजली उत्पादन में नवीकरणीय स्रोतों की हिस्सेदारी हुई 19%
भारत में इस साल मई में बिजली की मांग में गिरावट और नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में वृद्धि के चलते कुल बिजली उत्पादन में नवीकरणीय स्रोतों की हिस्सेदारी बढ़कर 17 प्रतिशत हो गई, जबकि जून के पहले 10 दिनों में यह 19 प्रतिशत पहुंच गई। यह पिछले वर्ष की तुलना में उल्लेखनीय वृद्धि है। मई में बिजली की मांग में 4 प्रतिशत और पीक डिमांड में 7 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई, जिसके मुख्य कारण थे सामान्य से अधिक वर्षा और पिछले महीने मांग की अधिकता।
इस बीच, भारत की कुल नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता मई में 17.13 प्रतिशत बढ़कर 226.74 गीगावाट पहुंच गई। इसमें सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी 31.49 प्रतिशत बढ़कर 110.83 गीगावाट और पवन ऊर्जा 10.49 प्रतिशत बढ़कर 51.29 गीगावाट रही।
सरकार ने इस बीच 30 गीगावाट-ऑवर बैटरी भंडारण के लिए 54 अरब रुपए की नई सहायता और आईएसटीएस शुल्क माफी जैसी नीतियों के ज़रिए भंडारण क्षेत्र को प्रोत्साहन दिया है।
भारत सरकार ने बैटरी एनर्जी स्टोरेज निर्माण के लिए नई फंडिंग स्कीम की घोषणा की
भारत ने 30 गीगावाट-ऑवर (जीडब्ल्यूएच) की नई बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली (बीईईएस) विकसित करने के लिए 5,400 करोड़ रुपए (करीब 631 मिलियन डॉलर) की नई योजना की घोषणा की है। इसका उद्देश्य 24×7 नवीकरणीय ऊर्जा सुनिश्चित करना है।
मनीकंट्रोल की रिपोर्ट के अनुसार, यह योजना पहले से लागू 3,700 करोड़ रुपए की योजना के अलग होगी, जिसके तहत 13.2 जीडब्ल्यूएच बीईईएस पर काम चल रहा है।
नई योजना के तहत 15 राज्यों को 25 जीडब्ल्यूएच और सरकारी कंपनी एनटीपीसी को 5 जीडब्ल्यूएच आवंटित किए जाएंगे।
इसके साथ ही केंद्र सरकार ने 30 जून 2028 तक चालू होने वाली बीईईएस परियोजनाओं को इंटर-स्टेट ट्रांसमिशन चार्ज से 100% छूट देने का भी फैसला किया है। लेकिन इसके लिए उन्हें नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के साथ स्थापित करना होगा।
एएलएमएम सूची में 2.98 गीगावाट विनिर्माण क्षमता का इजाफा
केंद्र सरकार ने अप्रूव्ड लिस्ट ऑफ मॉड्यूल्स एंड मैनुफैक्चरर्स (एएलएमएम ) को संशोधित करते हुए 2,988 मेगावाट की नई सोलर मॉड्यूल विनिर्माण क्षमता शामिल की है। मेरकॉम की रिपोर्ट के अनुसार, इसके बाद देश की कुल अनुमोदित सौर मॉड्यूल विनिर्माण क्षमता बढ़कर 90,959 मेगावाट हो गई है।
इस बार रिलायंस इंडस्ट्रीज को पहली बार एएलएमएम सूची में शामिल किया गया है, जिसकी विनिर्माण क्षमता 1,716 मेगावाट है। अवाडा इलेक्ट्रो ने अपनी क्षमता में 1,272 मेगावाट की वृद्धि की है। वहीं, सासा एनर्जी की क्षमता 100 मेगावाट से घटाकर 98 मेगावाट कर दी गई है, जिससे सूची में 2 मेगावाट की कमी दर्ज हुई है।
अब सूची में कुल 105 सोलर मॉड्यूल निर्माता शामिल हो चुके हैं। गौरतलब है कि इसी वर्ष मई में नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने एएलएमएम को 8,653 मेगावाट की नई सौर मॉड्यूल क्षमता के साथ संशोधित किया था।
चीन के निर्यात प्रतिबंध से भारत की इलेक्ट्रिक वाहन इंडस्ट्री संकट में
भारत की इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) इंडस्ट्री पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। कारण है चीन द्वारा दुर्लभ खनिज (रेयर अर्थ मेटल्स) और मैग्नेट्स के निर्यात पर अप्रैल 2025 से लगाए गए नए प्रतिबंध। इन प्रतिबंधों के चलते भारत के कई ऑटो निर्माताओं की आयात याचिकाएं चीन में लंबित हैं, जिससे उत्पादन प्रभावित होने की आशंका बढ़ गई है।
दुर्लभ खनिज जैसे नियोडाइमियम ईवी मोटर्स, विंड टरबाइन और इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए बेहद जरूरी हैं। भारत 85 प्रतिशत से अधिक रेयर अर्थ मैग्नेट चीन से आयात करता है। रिपोर्टों के अनुसार, अगर आपूर्ति जल्द बहाल नहीं हुई तो जुलाई 2025 से उत्पादन बाधित हो सकता है।
सरकार ने त्वरित समाधान के लिए चीन से बातचीत तेज कर दी है। विदेश सचिव विक्रम मिस्री और राजदूत प्रदीप रावत ने बीजिंग में चीनी अधिकारियों से मुलाकात की। साथ ही, दीर्घकालिक समाधान के लिए भारत घरेलू खनन, रीसाइक्लिंग और वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं की ओर भी कदम बढ़ा रहा है।
केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने चीन के कदम को एक “चेतावनी” बताते हुए कहा कि भारत वैकल्पिक आपूर्ति श्रृंखला विकसित कर रहा है।
ईवी निर्माताओं को आयात शुल्क में बड़ी राहत, सरकार ने जारी की गाइडलाइन
भारत सरकार ने देश में इलेक्ट्रिक कारों के निर्माण को बढ़ावा देने के लिए एक नई योजना के तहत विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इसके तहत कंपनियां यदि देश में 4,150 करोड़ रुपए का निवेश कर स्थानीय निर्माण इकाई स्थापित करने का वादा करती हैं, तो उन्हें हर साल 8,000 इलेक्ट्रिक कारें 15% शुल्क पर आयात करने की अनुमति दी जाएगी। वर्तमान में यह शुक्ल 70–100% है। यह छूट पांच वर्षों तक लागू रहेगी।
योजना के तहत तीन वर्षों में निर्माण शुरू करना, तीन साल में 25% और पांच साल में 50 प्रतिशत घरेलू मूल्य वर्धन (डीवीए) हासिल करना जरूरी होगा।
इसके तहत आवेदन करने वाली कंपनी का वैश्विक ऑटोमोटिव कारोबार न्यूनतम 10,000 करोड़ रुपए का होना चाहिए और आवेदक को 5 लाख रुपए की नॉन-रिफंडेबल फीस भी जमा करनी होगी। आवेदन की विंडो 120 दिनों के लिए खुलेगी।
भारत में ईवी निर्माण करने में टेस्ला की रुचि नहीं: सरकार
केंद्रीय भारी उद्योग मंत्री एच डी कुमारस्वामी ने कहा है कि ईलॉन मस्क की कंपनी टेस्ला भारत में अपनी इलेक्ट्रिक कारें बेचना चाहती है, लेकिन यहां मैनुफैक्चरिंग शुरू करने में उसकी कोई रुचि नहीं है। मंत्री ने कहा कि टेस्ला केवल शोरूम खोलने में रुचि दिखा रही है। वहीं, मर्सिडीज-बेंज, स्कोडा-वोक्सवैगन, हंडे और किया जैसी कंपनियों ने भारत में ईवी विनिर्माण को लेकर रुचि जताई है।
एक नई नीति के तहत सरकार भारत में ईवी मैनुफैक्चरिंग को बढ़ावा देने की योजना बना रही है। नई योजना के तहत कंपनियों को आयात शुक्ल में छूट दी जाएगी, लेकिन इसके लिए उन्हें घरेलू विनिर्माण में 4,150 रुपए करोड़ का न्यूनतम निवेश करना होगा।
निकल खनन से इंडोनेशिया के समुद्री इकोसिस्टम को भारी नुकसान: रिपोर्ट
“समुद्रों का अमेज़न” कहे जाने वाले इंडोनेशिया के राजा अंपत द्वीपसमूह में निकल (Nickel) खनन ने जंगलों को उजाड़ दिया है और जल स्रोतों को प्रदूषित कर दिया है। यह पृथ्वी पर सबसे विविध बायोडाइवर्सिटी वाले समुद्री हैबिटैट में से एक है।
बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, ग्लोबल विटनेस की जांच में ड्रोन से लिए गए चित्रों में यह नुकसान देखा गया है। ऊपर से ली गई तस्वीरों में जैव विविधता से भरपूर कोरल रीफ वाले जल क्षेत्रों में जंगलों का नुकसान और मिट्टी का बहाव साफ दिखाई देता है।
निकल का उपयोग इलेक्ट्रिक वाहनों की बैटरियों में होता है, जिनकी मांग बढ़ने से इसका खनन तेज हुआ है। ग्लोबल विटनेस ने बीबीसी को बताया कि 2020 से 2024 के बीच इस द्वीपसमूह के कई छोटे-छोटे द्वीपों पर खनन के लिए भूमि उपयोग में 500 हेक्टेयर की वृद्धि हुई है।
इंडोनेशिया की सरकार ने इस क्षेत्र में काम कर रही पांच में से चार कंपनियों के लाइसेंस रद्द कर दिए हैं। हालांकि, पर्यावरणविदों को डर है कि कानूनी कार्रवाई से यह फैसला पलट सकता है।
कोयला बिजलीघरों में बड़े निवेश की योजना लेकिन घोर जल संकट की चुनौती
अगले 6 सालों में भारत की योजना कोयला बिजलीघरों में 8000 करोड़ डॉलर यानी करीब 7 लाख करोड़ रुपये निवेश करने की है लेकिन उसके सामने सबसे बड़ा संकट पानी का है जो कोल पावर प्लांट के लिए अनिवार्य हैं। समाचार एजेंसी रॉयटर ने पावर मिनिस्ट्री के दस्तावेज़ों के ज़रिये यह दावा किया है कि भारत के अधिकांश प्रस्तावित कोयला बिजलीघर देश के जल संकट ग्रस्त इलाकों में हैं जहां सूखे की समस्या है।
बिजली मंत्रालय की एक 44 नई परियोजनाओं की अनडेटेड सूची का हवाला देते हुए एजेंसी ने कहा है कि इनमें से 37 बिजलीघर ऐसे क्षेत्रों में स्थित होंगे जिन्हें सरकार या तो पानी की कमी या वटर स्ट्रैस से ग्रस्त श्रेणी में रखती है। सरकारी कंपनी एनटीपीसी, जो कहती है कि वह अपना 98.5% पानी जल-संकटग्रस्त क्षेत्रों से खींचती है, उनमें से नौ में उसके प्लांट शामिल है।
रॉयटर का कहना है कि इस रिपोर्ट के लिए जिन 20 लोगों का साक्षात्कार किया गया (जिनमें पावर कंपनियों के अधिकारी और इंडस्ट्री के विश्लेषक शामिल थे) उनके मुताबिक ताप बिजलीघरों के विस्तार से उद्योगों और आम नागरिकों के बीच सीमित जल संसाधनों को लेकर संघर्ष और टकराव होगा।
वर्ष 2024 में गिरावट के बाद चीन में कोयला बिजली संयंत्रों को मंजूरी बढ़ी
चीन ने 2025 की पहली तिमाही में 11.29 गीगावाट (GW) नए कोयला बिजली संयंत्रों को मंजूरी दी, जो पिछले साल की पहली छमाही में स्वीकृत क्षमता 10.34 GW से कहीं अधिक है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने ग्रीनपीस के शोध पर आधारित यह जानकारी दी है। ग्रीनपीस के गाओ यूहे ने चेतावनी दी कि “बड़े पैमाने पर कोयला परियोजनाओं की एक नई लहर को मंजूरी देने से ज़रूरत से अधिक क्षमता, परिसंपत्तियों के फंसने और ऊंची बिजली लागत का जोखिम है”।
पिछले साल, नई कोयला आधारित बिजली क्षमता के लिए चीनी मंजूरी साल-दर-साल 41.5% गिरकर 62.24 GW हो गई, जो 2021 के बाद पहली वार्षिक गिरावट थी। नए डेटा से पता चलता है कि इस साल मंजूरी अधिक हो रही है। जबकि सभी स्वीकृत परियोजनाएं नहीं बन सकती हैं, बढ़ती पाइपलाइन कोयले पर निरंतर निर्भरता का संकेत देती है।
चीन ने वाद किया है वह 2026-2030 की पंचवर्षीय योजना के दौरान कोयले का उपयोग धीरे-धीरे कम करना शुरू कर देगा, लेकिन उसने किसी विशिष्ट लक्ष्य के लिए प्रतिबद्धता नहीं जताई है। यह वर्ष चीन की 2021-2025 पंचवर्षीय योजना का अंतिम वर्ष है, जिसमें चीन ने 289 गीगावाट की नई कोयला क्षमता को मंजूरी दी है, जो 2016-2020 की अवधि के लिए स्वीकृत 145 गीगावाट से लगभग दोगुना है।
भारत में प्राकृतिक गैस की खपत 2040 तक दोगुनी से भी अधिक हो जाएगी: पीएनजीआरबी अध्ययन
भारत में प्राकृतिक गैस की खपत 2030 तक 60% बढ़ सकती है और 2040 तक दोगुनी से भी अधिक हो सकती है, क्योंकि ऑटोमोबाइल में सीएनजी के रूप में और खाना पकाने तथा औद्योगिक उद्देश्यों के लिए इसका उपयोग बढ़ रहा है। ऑइल रेग्युलेटर पीएनजीआरबी द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह बात कही गई है।
प्राकृतिक गैस का उपयोग बिजली उत्पादन, उर्वरक बनाने या ऑटोमोबाइल चलाने के लिए सीएनजी में परिवर्तित करने और खाना पकाने के लिए घरेलू रसोई में पाइप के माध्यम से पहुँचाने के लिए किया जाता है। ईकोनोमिक टाइम्स में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस नियामक बोर्ड (पीएनजीआरबी) द्वारा किए गए अध्ययन में कहा गया है कि इस प्राकृतिक गैस की खपत 2023-24 में 187 मिलियन मानक क्यूबिक मीटर प्रति दिन से बढ़कर 2030 तक 297 एमएमएससीएमडी हो जाने की संभावना है।
जर्मनी एक बार फिर कोयले और गैस से अधिक बिजली पैदा कर रहा है
कार्बन ब्रीफ ने जर्मन अख़बार फ्रैंकफर्टर ऑलगेमाइन ज़ितुंग (FAZ) का हवाला देते हुए बताया कि 2025 की पहली तिमाही में “कम” पवन ऊर्जा उत्पादन के कारण, जर्मनी में नवीकरणीय ऊर्जा से बिजली उत्पादन में दो साल में पहली बार 17% की कमी आई, जबकि जीवाश्म ईंधन स्रोतों से बिजली उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
हालांकि, FAZ ने कहा कि नवीकरणीय ऊर्जा में समग्र गिरावट के बावजूद, पवन ऊर्जा बिजली उत्पादन का सबसे बड़ा स्रोत बनी हुई है, जिसकी हिस्सेदारी लगभग 28% है – कोयले से 27% से थोड़ा आगे। रिपोर्ट में कहा गया है कि गैस की हिस्सेदारी लगभग 21% है – “पिछले वर्ष की तुलना में काफी अधिक” – जबकि सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादन “एक तिहाई से अधिक” बढ़ा, जो कुल बिजली मिश्रण का 9.2% हिस्सा है।
यूनाइटेड किंगडम का जीवाश्म ईंधन आयात सौदा: सेंट्रिका ने 2035 तक नॉर्वे से गैस आयात करने के लिए 20 बिलियन पाउंड का सौदा किया
ब्रिटिश गैस के मालिक ने आने वाले दशक में नॉर्वे से गैस खरीदने के लिए 20 बिलियन पाउंड का सौदा किया है, जो “इस बात का संकेत है कि यू.के. उत्तरी सागर में अन्वेषण को समाप्त करने के साथ ही जीवाश्म ईंधन आयात पर निर्भर रहेगा”। फाइनेंशियल टाइम्स के मुताबिक सेंट्रिका इस अक्टूबर से 2035 तक हर साल नॉर्वे की सरकारी स्वामित्व वाली इक्विनोर से 5 बिलियन क्यूबिक मीटर गैस खरीदेगी। यह “पिछले साल यू.के. की गैस मांग के लगभग 9% के बराबर है और 5 मिलियन घरों की आपूर्ति के लिए पर्याप्त है।” यह सौदा पिछले तीन वर्षों में सालाना खरीदी गई राशि का लगभग आधा है, लेकिन 2015 में पहले हुए सौदे के बराबर है।