नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल (एनजीटी) ने प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान गंगा के पानी की गुणवत्ता पर उत्तर प्रदेश सरकार की रिपोर्ट की आलोचना की है, और कहा कि रिपोर्ट में आवश्यक विवरणों की कमी है। इससे पहले केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने संगम के पानी में भारी मात्रा में मानव और पशु अपशिष्ट से पैदा होने वाले फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया की उपस्थिति की सूचना दी थी।
एनजीटी ने सीपीसीबी और उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) दोनों को पानी की गुणवत्ता की निगरानी करने और एक तय समय सीमा के भीतर निष्कर्ष प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था। सीपीसीबी ने 3 फरवरी को अपनी रिपोर्ट दायर की, जिसमें कहा गया कि संगम का जल नहाने के लिए उपयुक्त नहीं है।
जबकि यूपीपीसीबी कार्रवाई की रिपोर्ट देने करने में विफल रहा, जिसके बाद एनजीटी बोर्ड के अधिकारियों को बुलाकर स्पष्टीकरण माँगा।
सीपीसीबी के निष्कर्षों से पता चलता है कि जनवरी में अलग-अलग तारीखों पर मॉनिटर की जा रही सभी जगहों से एकत्र किए गए पानी के नमूनों में फीकल कोलीफॉर्म का स्तर सीमा से अधिक था।
कैग रिपोर्ट ने दिल्ली में प्रदूषण नियंत्रण उपायों की खामियों को किया उजागर
महालेखापरीक्षक (कैग) की एक हालिया रिपोर्ट ने दिल्ली सरकार के वायु प्रदूषण नियंत्रण प्रयासों में कई विसंगतियों पर प्रकाश डाला है। द इंडियन एक्सप्रेस ने रिपोर्ट की जानकारी रखनेवाले सूत्रों के हवाले से बताया कि वायु गुणवत्ता मॉनिटरिंग स्टेशनों को पेड़ों और सड़कों के पास रखा गया था, जिससे प्रदूषण की सही रीडिंग नहीं मिली। प्रदूषण नियंत्रण प्रमाण पत्र (पीयूसीसी) जारी करने में भी गंभीर समस्याएं पाई गईं। कुछ प्रमाणपत्र एक ही समय में या 1-2 सेकंड के भीतर कई वाहनों के लिए जारी किए गए। इसके अतिरिक्त, 2018 से 2021 के बीच, केवल 46 से 63 प्रतिशत पंजीकृत वाहनों की प्रदूषण जांच की गई।
परिवहन विभाग ने तकनीकी मुद्दों को स्वीकार किया और कहा कि पीयूसीसी जारी करने की प्रक्रिया को राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र में स्थानांतरित कर दिया जाएगा। रिपोर्ट पार्किंग विकास निधि के उपयोग में पारदर्शिता की कमी पर भी चिंता जताई गई है। 2014-15 और 2020-21 के बीच, पार्किंग विकास शुल्क के रूप में 673.60 करोड़ रुपए एकत्र किए गए थे, लेकिन इनका उपयोग कैसे किया गया था, इसका कोई स्पष्ट रिकॉर्ड नहीं है। यह रिपोर्ट मौजूदा सत्र के दौरान विधानसभा में रखी जाएगी।
साफ हवा वाले शहरों में आई 39 फीसदी की गिरावट
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक देश में 26 फरवरी 2025 से साफ हवा वाले शहरों की गिनती में करीब 39 फीसदी की गिरावट आई। वहीं उन शहरों की संख्या में दस फीसदी का इजाफा हुआ है, जिनमें वायु गुणवत्ता ‘खराब’ बनी हुई है।
आंकड़ों के मुताबिक, 27 फरवरी 2025 को बिहार के हाजीपुर में हवा सबसे प्रदूषित रही, जहां वायु गुणवत्ता सूचकांक 272 दर्ज किया गया। इसी तरह बारीपदा देश का दूसरा सबसे प्रदूषित शहर रहा, जहां एक्यूआई 220 दर्ज किया गया।
प्रदूषण के मामले में मोतिहारी तीसरे स्थान पर रहा, जहां सूचकांक 216 दर्ज किया गया है। राजधानी दिल्ली, जो एक दिन पहले प्रदूषण में पहले स्थान पर थी, वहां प्रदूषण में गिरावट दर्ज की गई। हालांकि दिल्ली में अभी भी वायु गुणवत्ता खराब बनी हुई है।
प्रदूषण करने वाली निर्माण गतिविधियों को रोकेगा ग्रेटर चेन्नई कॉरपोरेशन
ग्रेटर चेन्नई कॉरपोरेशन (जीसीसी) ने निर्माण गतिविधियों से प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए प्रस्तावित दिशानिर्देश जारी किए हैं। कॉरपोरेशन पर्यावरण को प्रदूषित करने वाली निर्माण गतिविधियों को रोकने की भी योजना बना रहा है। दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने पर 30,000 से 5 लाख रुपए तक का जुर्माना प्रस्तावित है। यदि 15 दिनों के भीतर उल्लंघन को ठीक नहीं किया जाता है तो काम रोका जा सकता है। उल्लंघनों को उच्च-महत्व, मध्यम-महत्व और निम्न-महत्व की श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है। निम्न-महत्व के उल्लंघनों को ठीक करने के लिए 10 दिनों की सीमा निर्धारित है। प्रस्तावित नियम निर्माण परियोजनाओं, बैचिंग प्लांट और रेडी-मिक्स कंक्रीट साइटों पर लागू होंगे।
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