शुष्क हिस्सों में रिकॉर्ड बारिश, गुजरात में ‘भारी बारिश’ से 28 लोगों की मौत
गुजरात में अत्यधिक बारिश और बाढ़ ने 28 लोगों की जान ले ली है। हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, गुजरात में “96 जलाशयों में पानी खतरे के स्तर से ऊपर है”, राज्य में ” अब तक की औसत वार्षिक वर्षा का लगभग 100%” हो चुका है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने राज्य के कई हिस्सों के लिए ‘रेड’ अलर्ट जारी किया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि क्षेत्र में भारी बारिश पूर्वी राजस्थान और उससे सटे पश्चिमी मध्य प्रदेश पर बने गहरे दबाव के कारण उत्पन्न स्थितियों से हुई है, जो गुजरात की ओर बढ़ गई है। इंडियन एक्सप्रेस ने बताया कि जिन क्षेत्रों में “असाधारण भारी वर्षा” हुई, वे गुजरात और राजस्थान के दो राज्यों के शुष्क, रेगिस्तानी जिलों में थे।
द प्रिंट की रिपोर्ट के अनुसार, त्रिपुरा में बाढ़ से मरने वालों की संख्या बढ़कर 31 हो गई है, “72,000 लोग अभी भी 492 राहत शिविरों में हैं क्योंकि उनके घर बह गए हैं”। इससे पहले इस साल बारिश और भूस्खलन ने वयनाड में 200 से अधिक लोगों की जान ले ली थी। मौसम विभाग ने सितंबर में भी सामान्य से अधिक बारिश का पूर्वानुमान किया है।
चीन में भीषण बाढ़ की रिकॉर्ड संख्या हुई दर्ज
ग्लोबल टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, इस साल चीन की प्रमुख नदियों में 25 बड़ी बाढ़ की घटनाएं देखी गईं, जो 1998 में डाटा संग्रह शुरू होने के बाद से सबसे अधिक संख्या है। जल संसाधन मंत्रालय के अधिकारियों ने सोमवार को एक संवाददाता सम्मेलन में चीन के सामने आने वाली गंभीर चुनौतियों का विवरण देते हुए कहा कि बाढ़ के मौसम में लगातार चरम मौसम की घटनाएं होती हैं, जिसमें उत्तरी और दक्षिणी दोनों क्षेत्रों में भारी वर्षा और गंभीर बाढ़ होती है।
जल संसाधन उप मंत्री वांग बाओएन ने चेतावनी दी कि चीन में अभी भी बाढ़ का यह शुरुआती नज़ारा ही है और उसके सामने कई महत्वपूर्ण चुनौतियाँ हैं। इस वर्ष सामान्य से अधिक संचयी (क्युमलेटिव) वर्षा टाइफून गेमी से प्रभावित थी। देश में संचयी औसत वर्षा 183 मिलीमीटर देखी गई, जो वार्षिक औसत से 10% अधिक है। टाइफून गैमी ने देश के दक्षिणी क्षेत्रों में कुल 216.7 बिलियन क्यूबिक मीटर वर्षा की, जो कि पिछले साल टाइफून डोक्सुरी द्वारा लाई गई 151.8 बिलियन क्यूबिक मीटर से 43% अधिक है। बड़े पैमाने पर बाढ़ वार्षिक औसत से अधिक बार आई, देश भर में लगभग 30 नदियाँ बाढ़ के रिकॉर्ड स्तर पर हैं।
भारी बारिश और बाढ़ से पाकिस्तान में 200 तो बांग्लादेश 23 लोगों की जान गई
मानसून की बारिश के कारण अचानक आई बाढ़ से दक्षिण एशिया में भी भारी तबाही हो रही है। पाकिस्तान में 200 से अधिक और बांग्लादेश में 23 लोगों की जान जा चुकी है। दक्षिणी पाकिस्तान में भारी बारिश के कारण सड़कें बह गईं और उत्तर में एक प्रमुख राजमार्ग अवरुद्ध हो गया। समाचार एजेंसी एपी के मुताबिक 1 जुलाई से अब तक बारिश से जुड़ी घटनाओं में मरने वालों की संख्या कम से कम 209 हो गई है और 2200 से अधिक घर तबाह हो गये हैं।
पाकिस्तान के प्रांतीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के एक अधिकारी इरफान अली ने एजेंसी को बताया कि पंजाब प्रांत में एक दिन में चौदह लोगों की मौत हो गई। अन्य अधिकतर मौतें खैबर पख्तूनख्वा और सिंध प्रांतों में हुई हैं। पाकिस्तान का वार्षिक मानसून सीज़न जुलाई से सितंबर तक चलता है। वैज्ञानिकों और मौसम पूर्वानुमानकर्ताओं ने हाल के वर्षों में भारी बारिश के लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहराया है। 2022 में, जलवायु-प्रेरित बारिश ने देश के एक तिहाई हिस्से को जलमग्न कर दिया, जिससे 1,739 लोगों की मौत हो गई और 30 अरब डॉलर की क्षति हुई।
उधर बांग्लादेश में, मानसून की लंबी बारिश और नदियों के उफान के कारण आई बाढ़ ने 23 लोगों की जान ले ली है और 11 जिलों में लगभग 12 लाख से अधिक परिवार फंसे हुए हैं।
बांग्लादेश मौसम विभाग ने कहा कि अगर मानसून की बारिश जारी रही तो बाढ़ की स्थिति बनी रह सकती है, क्योंकि जल स्तर बहुत धीरे-धीरे कम हो रहा है, रॉयटर्स ने बताया कि लगभग 470,000 लोगों ने बाढ़ प्रभावित जिलों में 3,500 कैंपों में शरण ली है, जहां लगभग 650 चिकित्सा टीमें उपचार के लिए मौजूद हैं। विश्व बैंक संस्थान ने 2015 में अनुमान लगाया था कि दुनिया के सबसे अधिक जलवायु-संवेदनशील देशों में से एक, बांग्लादेश में 3.5 मिलियन लोगों को वार्षिक नदी बाढ़ का खतरा था। वैज्ञानिक ऐसी विनाशकारी घटनाओं के बढ़ने का कारण जलवायु परिवर्तन को मानते हैं।
नेपाल में 2015 का भूकंप और हिमस्खलन जलवायु परिवर्तन और बर्फबारी की विसंगतियों के कारण बढ़ा: अध्ययन
एक नए शोध से पता चलता है कि नेपाल में जो हिमस्खलन 2015 में एक भूकंप से शुरू हुआ, बाद में उसे अधिक घातक बनाने में जलवायु परिवर्तन से जनित कारणों की भूमिका भी रही। शोध के लेखक बताते हैं कि 25 अप्रैल 2015 को, गोरखा भूकंप “लैंगटांग घाटी में एक बड़े हिमशिला स्खलन और एक हवाई विस्फोट आपदा का कारण”, जिसमें 350 लोग मारे गए या लापता हो गए। फ़ील्ड जांच और मॉडल का उपयोग करके घटना का पुनर्निर्माण करते हुए, शोधकर्ताओं ने पाया कि गहरे बर्फ के आवरण और उच्च तापमान दोनों ने आपदा में योगदान दिया। विशेष रूप से, “ऊंची उठी हवा के तापमान से अधिक बर्फ पिघली और पानी बहना तेज हुआ और इससे बहते द्रव्यमान को फिसलने में आसानी हुई”।
उच्च जोखिम वाली हिमनद झीलों का अध्ययन करने के लिए अभियान शुरू
हिमालय में हिमनद (ग्लेशियल) झीलों के ख़तरे का अध्ययन करने के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के अधिकारियों, वैज्ञानिकों और सुरक्षा अधिकारियों की 16 टीमों का गठन किया गया है जो 4500 मीटर और उससे अधिक की ऊंचाई पर स्थित ग्लेशियरों पर अभियान चला रही हैं, ताकि इन हिमनद झीलों के फ़टने की स्थिति में नीचे की ओर आबादी के लिए उत्पन्न होने वाले खतरे का पता लगाया जा सके।
हिमालयी क्षेत्र में 75,00 से अधिक ग्लेशियल लेक हैं जिनमें से NDMA ने 189 हिमनद झीलों को बड़े संकट वाली माना है और ख़तरे से निपटने के लिए रणनीति (मिटिगेशन) बनाई जा रही है। हिमनद झीलों के फटने से पहाड़ी क्षेत्र में अचानक बाढ़ को ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) कहा जाता है और सरकार ने इसके संकट प्रबंधन (रिस्क मैनेजमेंट) के लिए 150 करोड़ रुपये मंज़ूर किये हैं।
हाइ रिस्क वाली इन 189 झीलों का पता लगाने में उपग्रह की तस्वीरों और पिछले कई सालों के आंकड़ों के अध्ययन से काफी मदद मिली लेकिन विशेषज्ञ ज़मीनी तौर पर इस जानकारी का सत्यापन कर रहे हैं। हिमनद झीलों के विस्फोट से होने वाली क्षति को रोकने के लिए स्वचालित मौसम और जलस्तर की निगरानी के साथ पूर्व चेतावनी प्रणाली लगाना ज़रूरी है। इसके अलावा झील के आयतन को कम रखने की कोशिश के उपाय शामिल हैं ताकि इससे होने वाले संकट को कम किया जा सके।
तीस्ता जलविद्युत स्टेशन भूस्खलन में नष्ट, इस आपदा-ग्रस्त स्थल पहले पुनर्निर्माण हो रहा था
पिछली 20 अगस्त को एक बड़े भूस्खलन से राज्य के स्वामित्व वाली एनएचपीसी लिमिटेड का तीस्ता-V जलविद्युत स्टेशन नष्ट हो गया। पिछले साल अक्टूबर में हिमनद विस्फोट के बाद परियोजना का जीर्णोद्धार किया जा रहा था, जिससे काफी क्षति हुई थी। सिंगतम-डिक्चू सड़क पर भी दरारें पड़ गई हैं, जिससे वहां का मार्ग अवरुद्ध हो गया। अंग्रेज़ी अख़बार बिजनेस स्टैंडर्ड के मुताबिक, एनएचपीसी ने कहा कि मौजूदा मानसून के मौसम के दौरान तीस्ता बेसिन क्षेत्र समय-समय पर प्राकृतिक भूस्खलन और भूस्खलन का शिकार होता रहा है, जिसके कारण भूस्खलन हुआ।
सभी निवासियों को निकालकर बलुतर में एनएचपीसी गेस्ट हाउस में स्थानांतरित कर दिया गया है, जिसे अब राहत शिविर के रूप तब्दील कर दिया गया है। डाउन टु अर्थ के अनुसार खान और भूविज्ञान विभाग को भूस्खलन की जांच करने और अल्पकालिक और दीर्घकालिक बहाली प्रयासों के लिए सिफारिशें प्रदान करने का निर्देश दिया गया है।
हिमाचल में 25 जुलाई से बाढ़ के कारण 14 हाइड्रोपॉवर परियोजनाएं क्षतिग्रस्त
एक नए विश्लेषण के अनुसार, हिमाचल प्रदेश में अचानक आई बाढ़ के कारण 25 जुलाई से कम से कम 14 हाइड्रोपॉवर परियोजनाओं को नुकसान हुआ है। इनमें से कुछ परियोजनाएं ऐसी हैं जो पिछले 10 वर्षों में कई बार प्रभावित हुई हैं। इस कारण से विशेषज्ञों का कहना है कि हिमालय में इस तरह की परियोजनाएं लगाने से पहले डिजास्टर रिस्क एनालिसिस करना चाहिए।
विशेषज्ञों का कहना है कि हिमालय की नाजुक पहाड़ियों में लापरवाही से किया गया निर्माण, वनों की कटाई और पर्यावरण नियमों का अनुपालन न करने के कारण इस तरह की घटनाएं हो रही हैं, और जलवायु परिवर्तन इस जोखिम को और बढ़ा रहा है।
साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल (एसएएनडीआरपी) के विश्लेषण के अनुसार, कुल्लू जिले के पलचान क्षेत्र में 25-26 जुलाई की रात को “बादल फटने से अचानक आई बाढ़” के कारण दो हाइड्रोपॉवर परियोजनाओं को काफी नुकसान हुआ। सेराई और ब्यास नदियों पर स्थित यह दोनों परियोजनाएं निजी कंपनियों की हैं।
कुल्लू जिले में ब्यास नदी के बेसिन में छह परियोजनाएं क्षतिग्रस्त हो गईं, जबकि शिमला जिले की रामपुर तहसील में सतलज नदी बेसिन के घनवी खड्ड और समेज खड्ड में सात परियोजनाएं प्रभावित हुईं। मीडिया ख़बरों के अनुसार, 31 जुलाई-1 अगस्त को अचानक आई बाढ़ में सुमेज़ परियोजना के कम से कम आठ श्रमिकों की मौत हो गई।
क्लाइमेट फाइनेंस: अमीरों पर टैक्स लगाकर हर साल जुटाए जा सकते हैं 2 लाख करोड़ डॉलर
एक नए अध्ययन में सामने आया है कि स्पेन की तरह यदि सभी देश अपने 0.5% सबसे अमीर परिवारों पर सपंत्ति कर लगा दें तो वह हर साल 2.1 लाख करोड़ डॉलर जुटा सकते हैं। विकासशील देशों को सालाना जितना क्लाइमेट फाइनेंस चाहिए, यह राशि उसकी दोगुनी है। क्लाइमेट फाइनेंस पर चर्चा इस वर्ष कॉप29 वार्ता के केंद्र में हो सकती है।
भारत अपने 0.5% सबसे अमीर नागरिकों पर टैक्स लगाकर प्रति वर्ष 8,610 करोड़ डॉलर जुटा सकता है।
यह अध्ययन टैक्स जस्टिस नेटवर्क ने किया है, जिसमें अनुमान लगाया गया है कि हर देश अपने सबसे अमीर 0.5% परिवारों की संपत्ति पर 1.7% से 3.5% की मामूली दर से कर लगाकर व्यक्तिगत रूप से कितना राजस्व जुटा सकता है। यह संपत्ति कर इन परिवारों की पूरी संपत्ति के बजाय केवल उसके ऊपरी भाग पर लागू होगा।
जी20 देशों में भी अमीरों पर कर लगाने की मांग बढ़ रही है। इस साल की शुरुआत में ब्राजील, जर्मनी, स्पेन और दक्षिण अफ्रीका ने एक निष्पक्ष कर प्रणाली के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए, ताकि गरीबी और जलवायु संकट से निपटने के लिए प्रति वर्ष 250 बिलियन पाउंड अतिरिक्त मुहैया कराए जा सकें।
सत्रह जी20 देशों में किए गए एक हालिया सर्वे में पाया गया कि उन देशों के अधिकांश वयस्क नागरिक ऐसी नीति का समर्थन करते हैं जिसमें देश की अर्थव्यवस्था और आम लोगों की जीवनशैली में बड़े बदलाव लाने के लिए अमीरों पर अधिक संपत्ति कर लगाया जाए।
स्विट्ज़रलैंड और कनाडा ने रखा क्लाइमेट फाइनेंस डोनर्स की संख्या बढ़ाने का प्रस्ताव
दुनियाभर के राजनयिक अगले महीने संयुक्त राष्ट्र के नए क्लाइमेट फाइनेंस लक्ष्य पर चर्चा के लिए एकत्रित होंगे। लेकिन क्लाइमेट फाइनेंस किन देशों को देना है इसपर अभी भी विवाद जारी है। विकासशील देश चाहते हैं कि यथास्थिति बनी रहे, यानि 1992 में यूएन क्लाइमेट संधि अपनाने के समय जिन देशों को औद्योगिक घोषित किया गया था वही क्लाइमेट फाइनेंस दें। लेकिन अमेरिका और यूरोपीय संघ समेत कई विकसित देशों का कहना है कि पिछले तीन दशकों में स्थिति बहुत बदल चुकी है, इसलिए डोनर्स की सूची में विस्तार करना चाहिए। सभीका ध्यान मुख्य रूप से चीन पर है।
ऐसी में स्विट्ज़रलैंड और कनाडा ने डोनर्स का चुनाव करने के लिए दो अलग-अलग प्रस्ताव रखे हैं। स्विट्ज़रलैंड के प्रस्ताव में दो अलग-अलग मानक हैं। पहले मानक में दस सबसे बड़े वर्तमान उत्सर्जक शामिल हैं, जिनकी प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय (जीएनआई) — क्रय शक्ति समता के समायोजन के बाद — $22,000 से अधिक है। इस मानक के अनुसार सऊदी अरब और रूस डोनर्स की सूची में शामिल होंगे। अगर इसकी गणना वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय डॉलर के आधार पर की जाती है, तो चीन भी इस सूची में होगा।
स्विस प्रस्ताव के दूसरे मानक के अनुसार ऐसे देश डोनर्स होने चाहिए जिनका संचयी और वर्तमान उत्सर्जन प्रति व्यक्ति कम से कम 250 टन है और जीएनआई प्रति व्यक्ति 40,000 डॉलर से अधिक है।
इस मानक के अनुसार इस सूची में दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, इज़राइल, चेकिया और पोलैंड के साथ कतर, संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन भी आ जाएंगे। वहीं कनाडा के प्रस्ताव में शीर्ष दस उत्सर्जक तो हैं ही बल्कि लेकिन प्रति व्यक्ति जीएनआई सीमा $20,000 से थोड़ी कम है। इस कारण से इसमें चीन भी शामिल होगा भले ही जीएनआई की गणना कैसे भी की जाए।
भारत, इंडोनेशिया, ब्राजील और ईरान जैसे बड़ी आबादी वाले उत्सर्जक इन सूचियों से बाहर हैं क्योंकि विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार उनके निवासियों की औसत संपत्ति तय सीमा से कम है।
बंदरगाहों पर ग्रीन टग नौकाएं चलाने के लिए सरकार ने शुरू किया कार्यक्रम
केंद्र सरकार ने 17 अगस्त को ग्रीन टग ट्रांजिशन प्रोग्राम (जीटीटीपी) लॉन्च किया है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य है पारंपरिक ईंधन-आधारित हार्बर टग नौकाओं को सस्टेनेबल हरित वाहनों में परिवर्तित किया जाए।
एक आधिकारिक बयान में कहा गया है कि इसके लिए 1,000 करोड़ रुपए के निवेश की जरूरत होगी। जीटीटीपी का पहला चरण 1 अक्टूबर, 2024 को शुरू होगा और 31 दिसंबर, 2027 तक जारी रहेगा।
बयान में कहा गया है कि “चार प्रमुख बंदरगाह — जवाहरलाल नेहरू बंदरगाह प्राधिकरण, दीनदयाल बंदरगाह प्राधिकरण, पारादीप बंदरगाह प्राधिकरण, और वी.ओ. चिदंबरनार बंदरगाह प्राधिकरण — कम से कम दो ग्रीन टगबोट ख़रीदेंगे या किराए पर लेंगे”। इसमें कहा गया है कि टग नौकाओं का पहला सेट बैटरी-इलेक्ट्रिक होगा, और जैसे-जैसे उद्योग का विकास होगा वैसे हाइब्रिड, मेथनॉल और ग्रीन हाइड्रोजन जैसी अन्य उभरती हरित प्रौद्योगिकियों को अपनाने का भी प्रावधान है।
इस कार्यक्रम के तहत सुनिश्चित किया जाएगा कि प्रमुख भारतीय बंदरगाहों पर संचालित सभी टग नौकाएं ग्रीन हों।
मानसून के बाद कूनो में खुले छोड़ दिए जाएंगे 25 चीते
मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में साल भर पहले स्वास्थ्य जांच और निगरानी के लिए जिन अफ़्रीकी चीतों को बाड़ों में वापस ले जाया गया था, उन्हें मानसून ख़त्म होने के बाद जंगल में छोड़ दिया जाएगा।
पीटीआई ने अधिकारियों के हवाले से खबर दी कि सभी 25 चीते — 13 वयस्क और 12 शावक — स्वस्थ हैं। शुरुआत में कुछ चीतों को जंगल में छोड़ दिया गया था, लेकिन तीन चीतों की मौत के बाद पिछले साल अगस्त में उन्हें वापस उनके बाड़ों में ले जाया गया।
प्रोजेक्ट चीता पर सरकार की सालाना रिपोर्ट के अनुसार, चीतों की मौत सेप्टिसीमिया के कारण हुई थी। चूंकि जून से अगस्त के दौरान अफ्रीका में सर्दी पड़ती है, इसलिए इसके पूर्वानुमान के कारण चीतों की पीठ और गर्दन पर सर्दियों के मोटे कोट विकसित हो गए थे, जिसके नीचे घाव होने के कारण संक्रमण हो गया और उनकी मौत हो गई।
अबतक अफ्रीका से लाए गए सात वयस्क चीतों और भारत में जन्मे पांच शावकों की मौत हो चुकी है। अब कूनो पार्क में शावकों समेत कुल 25 चीते हैं।
औद्योगिक प्रदूषण: सरकार ने दिया ‘विश्वास-आधारित’ नियमों का प्रस्ताव, विशेषज्ञ चिंतित
केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने जन विश्वास (प्रावधानों में संशोधन) अधिनियम, 2023 को लागू करने के लिए कई मसौदा अधिसूचनाएं जारी की हैं। सरकार ने कहा है कि इन प्रावधानों से ‘विश्वास-आधारित शासन, कारोबारी सुगमता और जीवन की सुगमता’ को बढ़ावा मिलेगा।
प्रावधानों में वायु अधिनियम, 1981 और जल अधिनियम, 1974 में संशोधन करने का प्रस्ताव है। इसके तहत एक नया फ्रेमवर्क बनाया जाएगा जिससे कुछ उद्योगों को केंद्रीय या राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों की मंजूरी की अनिवार्यता से छूट मिल सकती है। इसमें वे उद्योग होंगे जिन्हें गैर-प्रदूषणकारी माना जाता है या जिनका पर्यावरणीय प्रभाव के लिए आकलन किया जा रहा है।
मसौदा अधिसूचनाओं में एक नई विश्वास-आधारित व्यवस्था शुरू करने का भी प्रस्ताव है, जिसके तहत पर्यावरणीय अपराधों की सुनवाई के लिए निर्णायक अधिकारियों की नियुक्ति करके उद्योगों के पर्यावरणीय प्रभाव की निगरानी की जाएगी।
विशेषज्ञों ने इन बदलावों के बारे में चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि ऐसे प्रावधानों से कंपनियों के लिए बिना किसी परिणाम के प्रदूषण फैलाना आसान हो सकता है और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड उद्योगों की निगरानी करने से जुड़ी कुछ शक्तियां खो सकते हैं।
भारत के जिलों में वायु प्रदूषण से सभी आयु समूहों में मृत्यु का जोखिम बढ़ा: शोध
एक नए अध्ययन के अनुसार, भारत के जिन जिलों में वायु प्रदूषण राष्ट्रीय मानकों से अधिक है, वहां सभी आयु समूहों में मृत्यु का जोखिम अधिक पाया गया है। मुंबई-स्थित अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान और अन्य संस्थानों से जुड़े रिसर्चरों द्वारा किया गए इस अध्ययन के अनुसार, वायु प्रदूषण के कारण नवजात शिशुओं में मृत्यु का जोखिम 86 प्रतिशत, पांच साल से कम उम्र के बच्चों में 100-120 प्रतिशत और वयस्कों में 13 प्रतिशत बढ़ गया।
शोधकर्ताओं ने भारत के 700 से अधिक जिलों में सूक्ष्म पार्टिकुलेट मैटर (पीएम2.5) प्रदूषण के स्तर का अध्ययन किया।
उन्होंने पाया कि जिन घरों में अलग से रसोई नहीं है, वहां नवजात शिशुओं और वयस्कों में मृत्यु की संभावना अधिक है। शोधकर्ताओं ने कहा कि उत्तर भारतीय उपमहाद्वीप में फैले इंडो-गैंजेटिक प्लेन में पीएम2.5 का स्तर आम तौर पर अधिक है, जिसके कई कारण हैं, मसलन फसलों की पराली को जलाने से लेकर औद्योगिक और विनिर्माण केंद्रों से उत्सर्जन आदि।
ब्रिटेन की नदियों में पाया गया एंटीबायोटिक्स का ‘चिंताजनक’ स्तर
इंग्लैंड स्थित यॉर्क विश्वविद्यालय के एक शोध के अनुसार, खतरनाक फार्मास्यूटिकल्स ग्रामीण इलाकों की नदियों को प्रदूषित कर रहे हैं। यॉर्कशायर डेल्स सहित इंग्लैंड के राष्ट्रीय उद्यानों में किए गए इस अध्ययन में पाया गया कि कई नदियां एंटीडिप्रेसेंट और एंटीबायोटिक जैसी दवाओं से प्रदूषित हो गई हैं।
जिन 54 स्थानों पर शोध किया गया, उनमें से 52 स्थानों पर नदी के पानी में दवाएं पाई गईं। कुछ स्थानों पर तो फार्मास्यूटिकल्स का स्तर मीठे पानी के जीवों और उस पानी के संपर्क में आने वाले मनुष्यों के लिए “चिंताजनक” था। सभी नेशनल पार्कों में एंटीहिस्टामाइन सेटिरिज़िन और फ़ेक्सोफ़ेनाडाइन और टाइप 2 डायबिटीज के उपचार में प्रयोग की जाने वाली मेटफ़ॉर्मिन दवाएं पाई गईं।
डल झील में प्रदूषण से निपटने के लिए एनजीटी ने बनाई समिति
नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल (एनजीटी) ने श्रीनगर की डल झील में प्रदूषण से निपटने के लिए एक संयुक्त समिति का गठन किया है। ट्राइब्यूनल ने अपने आदेश में कहा है कि यह “समिति डल झील में प्रदूषण के स्रोतों और इसके लिए जिम्मेदार व्यक्तियों/संस्थाओं का पता लगाएगी और उचित उपचारात्मक और दंडात्मक कार्रवाई करेगी। समिति हाउसबोटों के लिए पर्यावरण प्रबंधन दिशानिर्देश भी तैयार करेगी।”
ट्रिब्यूनल विभिन्न स्रोतों से नगरपालिका सीवेज और अन्य प्रदूषकों के निर्वहन के कारण डल झील की बिगड़ती स्थिति के संबंध में एक मामले की सुनवाई कर रहा था। एनजीटी ने आदेश दिया कि अनुपचारित सीवेज सहित प्रदूषक डल झील में प्रवेश न करें, इसके लिए शीघ्र कार्रवाई करने की जरूरत है।
रूफटॉप सोलर की मांग बढ़ने से इनवर्टर की कमी, बढ़ सकते हैं दाम
इस साल फरवरी में पीएम सूर्य घर: मुफ्त बिजली योजना शुरू होने के बाद से स्ट्रिंग इनवर्टर की मांग काफी बढ़ गई है। इंस्टॉलरों का कहना है कि मांग के हिसाब से सप्लाई कम है। स्ट्रिंग इनवर्टर निर्माताओं के अनुसार, आवासीय रूफटॉप सोलर कार्यक्रम की शुरुआत के बाद से मांग 300% तक बढ़ गई है। इस महत्वाकांक्षी कार्यक्रम का लक्ष्य 2026-27 तक एक करोड़ घरों की छतों पर सौर प्रणाली स्थापित करना है।
स्ट्रिंग इनवर्टर रूफटॉप सोलर प्रणाली का एक अनिवार्य घटक हैं। यह सौर इन्वर्टर सौर पैनलों से उत्पन्न डायरेक्ट करंट को प्रयोग करने योग्य अल्टेरनेटिंग करंट में बदलता है।
एक सप्लायर ने कहा कि सभी भारतीय कंपनियां चीन से इनवर्टर मंगाती हैं और भारत में उन्हें असेम्बल करती हैं। उसने बताया कि रूफटॉप सोलर योजना शुरू होने के बाद 3.3 किलोवाट और 5.3 किलोवाट सिस्टम की बिक्री अचानक बढ़ गई है, और चीन से भी सप्लाई धीमी है। ऐसे में आनेवाले समय में इनवर्टर के दाम बढ़ सकते हैं।
भारत में रूफटॉप सोलर क्षमता 26 प्रतिशत बढ़ी: रिपोर्ट
भारत ने इस वर्ष जनवरी से जून की अवधि में 1.1 गीगावाट रूफटॉप सोलर क्षमता जोड़ी, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान जोड़ी गए 873 मेगावाट से 26 प्रतिशत अधिक है। 2024 की दूसरी तिमाही में 731 मेगावाट की रूफटॉप सोलर सिस्टम स्थापित किए गए। अमेरिका-स्थित अनुसंधान फर्म मेरकॉम कैपिटल ने एक रिपोर्ट में कहा कि यह पिछले साल अप्रैल-जून में स्थापित किए गए 388 मेगावाट से 89 प्रतिशत अधिक है।
‘इंडिया रूफटॉप सोलर मार्केट रिपोर्ट’ में मेरकॉम कैपिटल ने कहा कि जून 2024 तक भारत में 11.6 गीगावॉट की संचयी स्थापित रूफटॉप सोलर क्षमता थी। पिछली तिमाही के दौरान संचयी स्थापित रूफटॉप सोलर क्षमता के मामले में गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, केरल और कर्नाटक सबसे आगे रहे।
भारी उद्योग कंपनियों ने केवल 6% बिजली नवीकरणीय स्रोतों से प्राप्त की
थिंकटैंक क्लाइमेट रिस्क होराइजन्स (सीआरएच) ने एक अध्ययन में पाया है कि भारत के सीमेंट, इस्पात, एल्यूमीनियम, टेक्सटाइल और फ़र्टिलाइज़र सेक्टर की प्रमुख कंपनियों ने केवल 6 प्रतिशत बिजली नवीकरणीय स्रोतों से प्राप्त की। जिंदल स्टील, अल्ट्राटेक सीमेंट,हिंडाल्को और 30 अन्य कंपनियों के पब्लिक डिस्क्लोज़र में दिए गए आंकड़ों के आधार पर यह स्टडी तैयार की गई है।
बिजली की खपत के विश्लेषण से पता चला कि इन इन कंपनियों ने 169 अरब यूनिट बिजली प्रयोग की जिसमें से केवल आठ अरब यूनिट नवीकरणीय स्रोतों से प्राप्त की। इनमें से कई कंपनियों ने अपने नेट-जीरो टारगेट घोषित किए हैं, लेकिन डीकार्बनाइज़ेशन की दिशा में इस छोटे से प्रयास में भी उनका प्रदर्शन ख़राब रहा है। विश्लेषण में कहा गया है कि औद्योगिक प्रक्रियाओं में हीट उत्पन्न करने के लिए भारी उद्योग अधिक ऊर्जा की खपत करते हैं। लेकिन इस ऊर्जा का एक बड़ा हिस्सा बिजली के उपयोग में जाता है, जो नवीकरणीय स्रोतों से भी प्राप्त किया जा सकता है।
राजस्थान में विंडमिलों से नष्ट हो रही चरागाहों की भूमि
पश्चिमी राजस्थान में थार रेगिस्तान में बसे स्थानीय समुदायों का कहना है कि पवन ऊर्जा के लिए लगाई गई विंडमिलों के कारण चरागाहों की भूमि नष्ट हो रही है और पवित्र वनों को भी नुकसान पहुंच रहा है, जिन्हें यहां “ओरण” नाम से जाना जाता है। एजेंस फ्रांस प्रेस की एक रिपोर्ट में एक स्थानीय किसान के हवाले से कहा गया है कि बड़ी-बड़ी कंपनियों ने यहां पवन चक्कियां बनाई हैं, “लेकिन वे हमारे लिए बेकार हैं”।
यह विंडमिलें देश के अक्षय ऊर्जा लक्ष्यों को पूरा करने के लिए आवश्यक पवन ऊर्जा की आपूर्ति करती हैं। लेकिन चरवाहों का कहना है कि भारी निर्माण ट्रक जल स्रोतों को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे घास के मैदान कम हो जाते हैं और भूमि सूखी हो जाती है। सदियों से इन समुदायों द्वारा संरक्षित रेगिस्तानी मरूद्यान, ऊंटों, मवेशियों और बकरियों की पशुधन-आधारित अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण पानी इकठ्ठा करते हैं।
ओला इलेक्ट्रिक के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर भाविश अग्रवाल ने कहा है कि कंपनी ने इलेक्ट्रिक कार बनाने का इरादा छोड़ दिया है। गौरतलब है कि इसी महीने ओला ने तीन इलेक्ट्रिक मोटरसाइकिल मॉडल लॉन्च किए हैं। अग्रवाल ने 2022 में घोषणा की थी कि उनकी कंपनी 2024 में अपनी पहली इलेक्ट्रिक कार लॉन्च करेगी। हालांकि हाल ही में समाचार एजेंसी पीटीआई के साथ बातचीत में उन्होंने कहा कि कंपनी उन प्रोडक्ट्स का निर्माण करेगी जिनकी भारतीयों को जरूरत है, जिनमें ज्यादातर दोपहिया और तिपहिया वाहन हैं।
अग्रवाल ने कहा कि कंपनी ने एक प्रॉफिटेबिलिटी रोडमैप तैयार किया है, जिसके अनुसार प्रोडक्शन बढ़ाया जाएगा, और बैटरी समेत सभी घटकों का निर्माण कंपनी करेगी। गौरतलब है कि इस महीने ओला इलेक्ट्रिक के दोपहिया वाहनों के मार्केट शेयर में भी करीब 16 प्रतिशत की गिरावट आई है।
अमेरिका, यूरोप के बाद कनाडा ने भी चीनी ईवी पर लगाया 100% टैक्स
कनाडा ने कहा है कि वह अमेरिका और यूरोपीय संघ की तर्ज पर चीन से आयातित इलेक्ट्रिक वाहनों पर 100% और चीनी स्टील और एल्यूमीनियम आयात पर 25% टैरिफ लागू करेगा। रॉयटर्स ने रिपोर्ट किया कि चीन से आयातित सभी इलेक्ट्रिक वाहनों पर शुल्क लगेगा, जिसमें टेस्ला के वाहन भी शामिल होंगे।
टेस्ला ने 2023 में शंघाई-निर्मित इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) को कनाडा में आयात करना शुरू किया था। इसके बाद, कनाडा के सबसे बड़े बंदरगाह वैंकूवर में चीन से कारों का आयात 460% बढ़कर सालाना 44,356 यूनिट तक पहुंच गया। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो का कहना है कि चीनी सरकार की ओवरकेपैसिटी की नीति के कारण ही उन्हें यह कदम उठाना पड़ रहा है। यह टैरिफ 1 अक्टूबर से प्रभावी हो जाएंगे। अमेरिका के बाद चीन ही कनाडा का दूसरा सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है।
ई-मोबिलिटी डैशबोर्ड शुरू करेगी उत्तर प्रदेश सरकार
उत्तर प्रदेश सरकार ईवी एक्सेलेरेटर सेल के लिए एक मोबाइल ऐप और वेब-आधारित ई-मोबिलिटी डैशबोर्ड बना रही है। इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, यह डैशबोर्ड पूरे राज्य में इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) पंजीकरण को ट्रैक करने और प्रबंधित करने के लिए एक केंद्रीकृत मंच प्रदान करेगा। मोबाइल ऐप और वेब-आधारित ई-मोबिलिटी डैशबोर्ड में डेटा की विजिबिलिटी अधिक होगी, निगरानी बेहतर होगी, और कुशल प्रशासन, पारदर्शिता और सार्वजनिक भागीदारी होगी। एक व्यापक डेटाबेस बनाने के लिए इस परियोजना में आवास विभाग, बिजली निगम, परिवहन, शहरी विकास और उत्तर प्रदेश विकास प्रणाली निगम लिमिटेड (यूपीडेस्को) के डेटा को भी शामिल किया जाएगा।
ईवी ट्रांज़िशन के लिए जीएसटी में कटौती आवश्यक: ऑडी इंडिया प्रमुख
ऑडी इंडिया के प्रमुख बलबीर सिंह ढिल्लों ने कहा है कि इलेक्ट्रिक वाहनों पर कम जीएसटी जैसे समर्थन की तब तक आवश्यक है जब तक कि उचित संख्या में लोग ईवी का प्रयोग करना शुरू नहीं कर देते और उद्योग अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो जाता। ढिल्लों ने कहा कि ईवी का प्रयोग “जब तक एक अच्छे स्तर तक नहीं पहुंच जाता” तब तक सेगमेंट की वृद्धि के लिए सब्सिडी की जरूरत है।
वर्तमान में, देश में हाइब्रिड वाहनों पर कुल टैक्स 43 प्रतिशत है, जिसमें जीएसटी भी शामिल है, जबकि बैटरी इलेक्ट्रिक वाहनों पर लगभग 5 प्रतिशत टैक्स लगता है। ढिल्लों ने कहा कि कम जीएसटी से इलेक्ट्रिक वाहनों को तेजी से अपनाने में मदद मिलेगी। वर्तमान में देश में ऑडी की कुल बिक्री में इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी सिर्फ 3 प्रतिशत है।
रूस से तेल आयात के मामले में भारत ने चीन को पीछे छोड़ा
भारत जुलाई में रूसी तेल के दुनिया के सबसे बड़े आयातक के रूप में चीन से आगे निकल गया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि चीनी रिफाइनर्स ने ईंधन उत्पादन लाभ मार्जिन में कमी के कारण अपनी खरीदारी कम कर दी। कुल 2.07 मिलियन बैरल प्रति दिन (बीपीडी) पर, पिछले महीने (जुलाई में) भारत के कुल आयात में रूसी कच्चे तेल की हिस्सेदारी रिकॉर्ड 44% थी। व्यापार और उद्योग स्रोतों से प्राप्त भारतीय शिपमेंट के आंकड़ों के अनुसार, यह एक साल पहले की तुलना में 12% की वृद्धि और जून की तुलना में 4.2% की वृद्धि दर्शाता है।
चीनी सीमा शुल्क आंकड़ों के अनुसार, जुलाई में पाइपलाइनों और जहाजों के माध्यम से रूस से चीन का आयात प्रति दिन 1.76 मिलियन बैरल रहा था जिससे भारत आगे निकल गया। पश्चिमी देशों द्वारा मॉस्को के खिलाफ प्रतिबंध लगाने और ऊर्जा आपूर्ति में कटौती के बाद, भारतीय रिफाइनर ने रियायती रूसी तेल के आयात में वृद्धि की है।
दो साल लगातार उछाल के बाद चीन में इस साल कोल पावर प्लांट को मंज़ूरी का ग्राफ गिरा
मंगलवार को जारी एक विश्लेषण के अनुसार, इस साल की पहली छमाही में चीन में नए कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों के लिए स्वीकृतियों का ग्राफ तेजी से गिर गया है, क्योंकि पिछले दो वर्षों में चीन ने कोयला बिजलीघरों के लिए परमिटों की जो झड़ी लगाई उससे जलवायु परिवर्तन को सीमित करने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता के बारे में चिंता बढ़ा दी थी। ग्रीनपीस ईस्ट एशिया द्वारा परियोजना दस्तावेजों की समीक्षा में पाया गया कि जनवरी से जून तक 10.3 गीगावाट की कुल क्षमता के साथ 14 नए कोयला संयंत्रों को मंजूरी दी गई थी, जो पिछले साल की पहली छमाही में 50.4 गीगावाट के मुकाबले 80% कम है। ग्रीनपीस ने यह विश्लेषण सरकार से जुड़े थिंक टैंक, शंघाई इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल स्टडीज के साथ मिलकर जारी किया।
चीनी अधिकारियों ने वर्ष 2022 में 90.7 गीगावाट और 2023 में 106.4 गीगावाट क्षमता के कोयला बिजलीघरों को मंजूरी दी, और इस वृद्धि ने जलवायु विशेषज्ञों के बीच चिंता बढ़ा दी। चीन सौर और पवन ऊर्जा संयंत्रों में भी दुनिया में सबसे आगे है लेकिन सरकार ने कहा है कि पीक डिमांड को पूरा करने के लिए कोयला बिजलीघरों की अभी भी आवश्यकता है क्योंकि पवन और सौर ऊर्जा कम विश्वसनीय हैं। जबकि चीन का ग्रिड ऊर्जा के हरित स्रोतों को प्राथमिकता देता है, विशेषज्ञों को चिंता है कि नई क्षमता बनने के बाद चीन के लिए कोयले से खुद को दूर करना आसान नहीं होगा।
विज्ञापन के लिए बड़े प्रदूषकों की नजर है ई-स्पोर्ट्स उद्योग पर: रिपोर्ट
अंग्रेज़ी अख़बार द गार्डियन की रिपोर्ट के अनुसार, एक नई रिपोर्ट में पाया गया है कि प्रमुख प्रदूषक अब विज्ञापनों के लिए ई-स्पोर्ट्स उद्योग का इस्तेमाल कर रहे हैं – जो युवाओं के बीच बड़ा लोकप्रिय है। ये प्रदूषक तेल कंपनियां, पेट्रोस्टेट, एयरलाइंस और वाहन निर्माता हैं। इलेक्ट्रॉनिक स्पोर्ट्स, या ईस्पोर्ट्स, प्रतिस्पर्धी वीडियो गेम ऐसे ई-स्पोर्ट्स हैं, जिनमें से कुछ की दर्शक संख्या करोड़ों में पहुंच जाती है। ख़तरनाक विज्ञापनों पर इस पर नज़र रखने वाले अभियान संगठन बैडवर्टाइजिंग के अनुसार, 2017 के बाद से, कार्बन-सघन कार्पोरेशनों ने बढ़ते उद्योग के साथ कम से कम 33 महत्वपूर्ण समझौते किए हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि अधिकांश समझौतों में वाहन निर्माता शामिल थे। पांच अन्य में जीवाश्म ईंधन कार्पोरेशन, तीन में एयरलाइंस, दो में पेट्रोस्टेट और दो में अमेरिकी सेना शामिल थी।
पेरिस संधि के अनुरूप काम न करने वाली जीवाश्म ईंधन कंपनियों को कर्ज़ नहीं देगा कॉमनवेल्थ बैंक
अपने प्रतिद्वंदियों से अलग राह चुनते हुए ऑस्ट्रेलिया के सबसे बड़े कर्ज़दाता संस्थान कॉमनवेल्थ बैंक (सीबीए)ने फैसला किया है कि वह उन जीवाश्म ईंधन कंपनियों को कर्ज़ नहीं देगा जो खुद को इस साल के अंत तक पेरिस संधि के नियमों के अनुरूप नहीं ढालते।
सीबीए ने कहा, जो कंपनियां वैश्विक तापमान में वृद्धि को “पेरिस समझौते के 2 डिग्री सेंटीग्रेड लक्ष्य से पर्याप्त नीचे” रखने के अनुरूप नहीं चलेंगी उन्हें “31 दिसंबर 2024 के बाद नए कॉर्पोरेट या व्यापार वित्त, या बांड सुविधा” नहीं मिलेगी। बैंक ने अपनी सालाना क्लाइमेट रिपोर्ट में कंपनियों के लिए 2035 तक इमीशन घटाने के लक्ष्य तय करने और कोयला खनन और प्रोसेसिंग में कम से कम 95 प्रतिशत उत्सर्जन कम कर नेट ज़ीरो का एक रोडमैप बनाने की शर्तें रखी हैं।
क्लाइमेट पर काम करने वाले संगठनों में सीबीए के इस कदम का स्वागत किया है और जीवाश्म ईंधन कंपनियों के लिए इसे बैंक की ओर से एक स्पष्ट संकेत बताया है।