भारत ने किगाली संशोधन को मंजूरी दी, ताकि हाइड्रोफ्लोरोकार्बन गैसों के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से बंद किया जाएगा
भारत ने हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (एचएफसी) गैसों के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से बंद करने के लिए किगाली संशोधन को अपनाने की पुष्टि कर दी है। गौरतलब है कि जलवायु परिवर्तन को रोकने और पर्यावरण को बचाने के लिए अक्टूबर, 2016 में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में किया गया किगाली संशोधन बहुत मायने रखता है। जिसमें एचएफसी के उपयोग में वृद्धि को स्वीकार करते हुए 2040 के अंत तक इनमें 80 से 85 फीसदी तक की कमी करने पर सहमति जताई थी।
निर्णय के अनुसार एचएफसी को चरणबद्ध तरीके से कम करने के लिए भारत अपनी राष्ट्रीय रणनीति को 2023 तक तैयार करेगा। इसके लिए हाइड्रोफ्लोरोकार्बन से जुड़े उद्योगों और हितधारकों के साथ परामर्श करने के बाद अंतिम फैसला लिया जाएगा। साथ ही किगाली संशोधन के अनुपालन को सुनिश्चित करने और हाइड्रोफ्लोरोकार्बन के उत्पादन और खपत पर उचित नियंत्रण के लिए वर्तमान कानूनी ढांचे में भी संशोधन किया जाएगा। इसके लिए ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने वाले पदार्थ (विनियमन और नियंत्रण) नियमों को 2024 के मध्य तक बनाया जाएगा।
गौरतलब है कि भारत 2032 से 4 चरणों में एचएफसी में कमी लाएगा। जिसके पहले चरण के तहत 2032 में एचएफसी में 10 फीसदी, 2037 में 20 फीसदी, 2042 में 30 फीसदी और 2047 तक 80 फीसदी की कटौती करेगा।
क्या हैं यह हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (एचएफसी) गैसें और क्यों हैं इतनी खतरनाक
हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (एचएफसी) गैसें विशेष रूप से एयर कंडीशनिंग और रेफ्रिजरेशन उद्योग में बड़े पैमाने पर उपयोग की जाने वाली 19 गैसों का एक समूह है जो ग्लोबल वार्मिंग के मामले में कार्बन डाइऑक्साइड से हजारों गुना ज्यादा शक्तिशाली है। ऐसे में इन गैसों में की गई कटौती जलवायु परिवर्तन को रोकने के दृष्टिकोण से बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है।
जुलाई 2020 में जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक इस समय दुनिया भर में करीब 360 करोड़ कूलिंग उपकरण उपयोग में हैं, जिनमें हर सेकंड 10 का इजाफा हो रहा है। इस तरह अनुमान है कि 2050 तक इनकी संख्या बढ़कर 1,400 करोड़ पर पहुंच जाएगी। ऐसे में यदि इन एचएफसी गैसों पर अभी रोक न लगाई गई तो वो भविष्य में काफी हानिकारक होंगी।
क्या है मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल और उसमें किया गया किगाली संशोधन
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल, ओजोन परत को बचाने के लिए की गई एक अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण संधि है। इस संधि के तहत ओजोन परत को नष्ट करने वाले पदार्थों, जिन्हें ओजोन डिप्लीटिंग सबस्टेन्स (ओडीएस) भी कहा जाता है, के उत्पादन और खपत को चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जाना है। यदि देखा जाए तो ओजोन परत हमारे लिए बहुत मायने रखती है। यह सूर्य से आने वाली पराबैंगनी विकिरण को रोककर उससे हमारी और पर्यावरण की रक्षा करती है।
वहीं यदि किगाली संशोधन की बात करें तो यह अक्टूबर 2016 में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में किया गया संशोधन है, जिसपर रवांडा की राजधानी किगाली में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के पक्षकारों की 28वीं बैठक (एमओपी) में फैसला लिया गया था। इसमें पक्षकारों द्वारा एचएफसी के उपयोग में विशेष रूप से रेफ्रिजरेशन और एयर कंडीशनिंग क्षेत्र में वृद्धि को स्वीकार करते हुए, इस पर रोक लगाने पर अपनी सहमति जताई थी।
इस बैठक में ओजोन को नुकसान पहुंचाने वाले पदार्थों में क्रमबद्ध तरीके से 2040 के अंत तक 80 से 85 फीसदी तक की कमी करने पर सहमति जताई थी। 19 जून 1992 को भारत ओजोन परत को नष्ट करने वाले पदार्थों को रोकने के लिए बनाए मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल का एक पक्षकार बन गया था।
पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के दृष्टिकोण से क्यों मायने रखता है यह फैसला
यदि वैश्विक स्तर पर हाइड्रोफ्लोरोकार्बन को चरणबद्ध तरीके से कम करने में सफल रहते हैं तो इससे 10.5 करोड़ टन कार्बनडाइऑक्साइड के बराबर ग्रीनहाउस गैसों को रोकने में मदद मिलेगी। अनुमान है कि यदि वैश्विक स्तर पर 2050 तक इन गैसों का उत्सर्जन पूरी तरह बंद कर दिया जाए तो उससे सदी के अंत तक तापमान में होने वाली वृद्धि को 0.5 डिग्री सेल्सियस तक कम किया जा सकता है। जो जलवायु परिवर्तन के लिए बहुत मायने रखता है। यही नहीं इससे ओजोन परत की सुरक्षा को भी सुनिश्चित किया जा सकेगा।
एचएफसी को चरणबद्ध तरीके से रोकने और बेहतर तकनीकों को अपनाने से ऊर्जा दक्षता में भी इजाफा होगा, साथ ही उत्सर्जन में भी कमी आएगी। इससे पर्यावरण के साथ-साथ आर्थिक और सामाजिक रूप से भी लाभ पहुंचेगा। इस फैसले से उपकरणों के घरेलू निर्माण को भी बल मिलेगा। साथ ही उद्योगों को ऐसे केमिकल और तकनीकों को अपनाने के लिए भी सक्षम बनाया जा सकेगा जो कम उत्सर्जन करते हैं। इसके अलावा नई पीढ़ी के वैकल्पिक रेफ्रिजरेंट और संबंधित प्रौद्योगिकियों को घरेलू स्तर पर बढ़ावा देने के अवसर भी मिलेंगे।
ये स्टोरी डाउन टू अर्थ हिन्दी से साभार ली गई है।
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