जानकार बताते हैं कि 15 जुलाई तक बारिश न होना बेहद असामान्य, यह गंभीर सूखे का संकेत, 2002 में हुआ था ऐसा
बुंदेलखंड क्षेत्र इस साल भीषण सूखे की चपेट में है। बारिश न होने और खेतों में नमी न होने के कारण ज्यादातर खेतों में बुवाई नहीं हुई है। बहुत से किसान ऐसे हैं जिन्होंने बारिश की उम्मीद से तिल, उड़द आदि बो दी थी लेकिन बारिश न होने के बाद बीज सूख गए और उन्हें हजारों रुपए का नुकसान हो गया। बुंदेलखंड में मॉनसून सामान्यत: 15 जून तक पहुंच जाता था। लेकिन इस बार एक महीने की देरी के बावजूद मॉनसून के बादल नहीं बरसे हैं।
जन जल जोड़ो अभियान के संयोजक संजय सिंह ने डाउन टू अर्थ को बताया कि बुंदेलखंड भीषण सूखे की जद में है। उनका कहना है, “इस साल कोविड-19 के कारण किसानों की अधिकांश आय इलाज पर खर्च हो गई है। उन्हें मौजूदा फसल से बहुत उम्मीद थी लेकिन उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया है। 15 जुलाई तक इतनी कम बारिश बुंदेलखंड में नहीं देखी गई है।” मौजूदा वर्ष की तुलना 2002 के सूखे से करते हुए संजय सिंह बताते हैं कि 2002 में 15 जुलाई तक राज्य में सूखे की घोषणा कर दी गई थी। उनका कहना है कि अगर 15 जुलाई तक 50 प्रतिशत बारिश न हो तो नियमों के अनुसार, सूखे की घोषणा करनी पड़ती है। हालांकि इस साल ऐसी किसी घोषणा की सुगबुगाहट नहीं है। वह बताते हैं कि मौजूदा सीजन में नुकसान का असर अगले फसल चक्र पर भी पड़ेगा।
बुंदेलखंड में पृथक राज्य का आंदोलन चला रहे सामाजिक कार्यकर्ता तारा पाटकर ने 16 जुलाई की सुबह एक वीडियो जारी कर बताया, “महोबा के सिद्धबाबा का सिद्ध कुंड जो कभी नहीं सूखा, इस साल बेपानी है। इस वर्ष हालात बहुत खराब होने के आसार हैं। बांदा, महोबा, झांसी, ललितपुर और जालौन में वर्षा आंशिक भी नहीं हो रही है। पूरा आषाढ़ बीत रहा है। बांदा और महोबा के हालात इस वर्ष जलसंकट से बद्दतर होने की स्थिति बन रही है। बुंदेलखंड भीषण सूखे की तरफ जा रहा है।”
सूख गया तिल
उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के मीगनी गांव के माताप्रसाद तिवासी ने अपने 4 हेक्टेयर के खेत में करीब 50 हजार रुपए खर्च कर पिछले महीने जून के मध्य में तिल बोया था लेकिन खेतों में बारिश की एक बूंद नहीं गिरी जिससे खेतों को नमी नहीं मिल पाई और तिल का बीज सूख गया। 60 साल के माताप्रसाद बताते हैं कि उन्होंने 1988-89 में ऐसी परिस्थिति देखी थी। उस साल बुंदेलखंड में भीषण सूखा पड़ा था। यह सूखा बुंदेलखंड के सबसे खतरनाक सूखों में एक था। तब से पहली बार मॉनसून की बारिश में इतनी देर हुई है। उन्होंने माना कि इस साल सूखे के पूरे आसार हैं। माताप्रसाद के अनुसार, “अगर तीन-चार दिन में बारिश नहीं हुई तो किसानों के लिए पूरा सीजन बेकार चला जाएगा।”
महोबा जिले के पुपवारा गांव निवासी बिंद्रावन प्रसाद बताते हैं कि इस साल मॉनसून से पहले वाली बारिश भी नहीं हुई। इस बारिश से खेतों में थोड़ी बहुत नमी आ जाती थी और किसान बुवाई कर देते थे। बिंद्रावन के करीब 25 बीघा खेत हैं। उन्होंने तिल, अरहर और मूंग की फसल की तैयारी की थी। वह बताते हैं कि अगर इस साल अच्छी खेती नहीं हुई तो उनकी माली हालत बहुत खराब हो जाएगी। बिंद्रावन की पिछले साल की सारी बचत परिवार की बीमारी पर खर्च हो गई है। कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान उनके परिवार के सभी 6 सदस्य बीमार हो गए थे। बिंद्रावन बताते हैं, “मेरा परिवार पहले से कर्ज में डूबा है। मेरी आर्थिक स्थिति इतनी बुरी हो चुकी है कि मैंने अपने दो बेटों को कमाने के शहर में भेज दिया है क्योंकि इस साल खेती से उम्मीद न के बराबर है।”
बुवाई क्षेत्र में गिरावट
बांदा जिले के बसहरी गांव के बच्ची प्रसाद ने भी अपने 10 बीघा के खेत में तिल की बुवाई कर दी थी लेकिन बारिश न होने पर बीज सूख गए। बच्ची प्रसाद के बेटे घनश्याम कुमार बताते हैं कि यह मौसम तो बेकार हो गया। बीज सूखने के बाद खेतों में पैदावार की उम्मीद नहीं है। घनश्याम के मुताबिक, “इस समय तक तिल की फसल खड़ी हो जाती थी लेकिन इस बार बीज ही नहीं डाला गया। अब रबी के मौसम से ही उन्हें उम्मीद बची है।” बसहरी के अधिकांश किसानों की स्थिति बच्ची प्रसाद जैसी ही है। इस गांव में बहुत से किसान खरीफ के मौसम में तिल की फसल बोते हैं। गांव में बहुत से किसान ऐसे हैं जिन्होंने किराए के ट्रैक्टर के जरिए दो- दो बार अपने खेतों की जुताई करा दी है लेकिन वे अब तक बुवाई नहीं कर पाए हैं। उनका बीज और जुताई का खर्च व्यर्थ हो गया है। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के डायरेक्टोरेट ऑफ इकॉनोमिक्स एंड स्टेटिस्टिक्स के अनुसार, उत्तर प्रदेश में सामान्यत: 3.75 लाख हेक्टेयर में तिल की बुवाई की जाती है लेकिन 8 जुलाई 2021 तक 0.69 लाख हेक्टेयर में ही तिल बोया गया है। यानी इस साल तिल की बुवाई काफी कम हुई है और इसका असर उसकी कीमत पर भी पड़ सकता है।
9 जुलाई 2021 को जारी खरीफ की बुवाई के आंकड़े बताते हैं कि खरीफ की दलहन का बुवाई क्षेत्र कम हुआ है। आंकड़ों के अनुसार, दलहन के 135.29 लाख हेक्टेयर के कुल बुवाई क्षेत्र में अब तक 52.49 लाख हेक्टेयर में ही बुवाई हुई है जो पिछले साल के कुल क्षेत्र 53.35 लाख हेक्टेयर से कम है। तिलहन की बुवाई भी पिछले साल के 126.13 लाख हेक्टेयर के मुकाबले 112.55 लाख हेक्टेयर में हुई है। यानी पिछले साल के मुकाबले 13.58 लाख हेक्टेयर के क्षेत्र में कमी आई है। बुंदेलखंड का असिंचित क्षेत्र दलहन और तिलहन के लिए जाना जाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि इस क्षेत्र में इन फसलों की बुवाई बारिश के अभाव में कम हुई है।
बांदा जिले का कमासिन, अतर्रा, बबेरू और जसपुरा इलाका धान की खेती के लिए जाना जाता है लेकिन बारिश के अभाव में अब तक वहां धान की रोपाई नहीं हो पाई है। बांदा में गैर लाभकारी संस्था विद्याधाम समिति के संचालक राजा भैया मानते हैं कि यह साल काफी विकट है और किसानों के लिए काफी मुश्किलें आने वाली हैं। उनका कहना है कि आमतौर पर मॉनसून में इतनी देर नहीं होती। इस बार इतनी देर हो चुकी है कि किसानों को हुए नुकसान की भरपाई संभव नहीं है। उनका कहना है कि धान की रोपाई में देरी से रबी की अगली फसल भी प्रभावित होगी। इससे पूरा का पूरा फसल चक्र बिगड़ सकता है।
चित्रकूट स्थित गैर लाभकारी संस्था अखिल भारतीय समाज सेवा संस्थान के प्रमुख गोपाल भाई बताते हैं कि जिले में जून के दूसरे सप्ताह ठीक ठाक बारिश हुई थी, लेकिन उसके बाद से बारिश नसीब नहीं हुई है। उनका कहना है कि जून में हुई बारिश वनों और पशु पक्षियों के लिए तो उपयोगी साबित हुई लेकिन उससे किसानों को विशेष फायदा नहीं मिला। अब जब बारिश की सख्त जरूरत है तो बादल नहीं बरस रहे हैं। उनका कहना है कि पूरा बुंदेलखंड ही नहीं यूपी के करीब 60 जिले गंभीर सूखे की ओर बढ़ रहे हैं। गोपाल भाई इस साल मॉनसून को अप्रत्याशित और सामान्य से अलग मान रहे हैं।
मौसम विभाग के 1 जून से 15 जुलाई तक के मॉनसून के आंकड़े बताते हैं कि चित्रकूट में सामान्य से 91 प्रतिशत अधिक बारिश हुई है। जिले में 395.4 एमएम बारिश दर्ज की गई जबकि 206.7 एमएम के औसत से काफी अधिक है। लेकिन जब डाउन टू अर्थ ने चित्रकूट से जानकारी ली तो पता चला कि यह बारिश बुवाई से मौसम में नहीं हुई और न ही किसानों को इससे विशेष लाभ मिला है।
अधिकांश जिलों में कम बारिश
मौसम विभाग के अनुसार, बांदा जिले में औसत से 48 फीसदी कम बारिश, झांसी में 58 प्रतिशत कम बारिश, ललितपुर में 80 फीसदी कम बारिश, महोबा में 69 प्रतिशत कम बारिश हुई है। हालांकि जालौन में 17 फीसदी ही कम बारिश दर्ज की गई है लेकिन यहां भी स्थिति चित्रकूट जैसी है। बारिश उस समय हुई जब किसानों को इसकी ज्यादा जरूरत नहीं थी। जालौन जिले के मीगनी गांव के प्रधान राजेश कुमार बताते हैं, “जुलाई का महीना अब तक सूखा रहा है। किसान बुवाई के लिए बारिश का इंतजार कर रहे हैं। जिन खेतों में सिंचाई की व्यवस्था नहीं है, वहां फसल की उम्मीद धूमिल हो गई है।” राजेश कुमार को लगता है कि यह साल खेती के लिहाज से काफी मुश्किल रहने वाला है।
मध्य प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड में भी सूखे की स्थितियां बन रही हैं। छतरपुर जिले में सामान्य से 51 फीसदी कम बारिश, पन्ना में 69 प्रतिशत कम बारिश, टीकमगढ़ में 58 प्रतिशत कम बारिश, सागर में 17 फीसदी कम बारिश दर्ज की गई है। झांसी निवासी परमार्थ समाजसेवी संस्थान में सामाजिक कार्यकर्ता जितेंद्र यादव बताते हैं कि पूरा बुंदेलखंड इस साल भीषण सूखे की चपेट में है। सूखे की एक बड़ी वजह बताते हुए संजय सिंह कहते हैं कि इस साल मध्य प्रदेश के कई हिस्सों में बारिश नहीं हुई है। इन हिस्सों का पानी बहकर बुंदेलखंड की नदियों और नहरों में आता है लेकिन इस साल ये सब सूखी पड़ी हैं।
ये स्टोरी डाउन टू अर्थ हिन्दी से साभार ली गई है।
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