कोरोना की लहर ने साफ ऊर्जा मिशन को दिया झटका

क्लाइमेट साइंस

Newsletter - May 7, 2021

मैंग्रोव कटने से बढ़ेगा कार्बन: दुनिया के तमाम तटीय इलाकों में मैंग्रोव का विनाश कार्बन डाई ऑक्साइड के हॉट-स्पॉट बढ़ेंगे। फोटो - Canva

मैंग्रोव कटने से बनेंगे CO2 इमीशन के प्रभाव क्षेत्र : शोध

एक नये शोध से पता चलता है कि दुनिया के तटीय क्षेत्रों में मैंग्रोव कटने से वहां कार्बन-डाइ-ऑक्साइड के प्रभाव क्षेत्र (हॉट स्पॉट) बनेंगे। इस शोध के तहत 6 क्षेत्रों को शामिल किया गया जिसमें बंगाल की खाड़ी शामिल है जहां मैंग्रोव को बड़ा ख़तरा है। ऑस्ट्रेलिया की ग्रिफिथ यूनिवर्सिटी द्वारा रिसर्च में यह आंका गया है कि इस क्षति के कारण सदी के अंत तक 2,391 टेराग्राम कार्बन-डाई-ऑक्साइड उत्सर्जन के बराबर नुकसान होगा। सबसे अधिक इमीशन दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के इलाकों में आंके गये। इसके अलावा कैरिबियाई क्षेत्र, अंडमान तट (उत्तरी म्यांमार) और उत्तर ब्राज़ील भी मैंग्रोव को क्षति के कारण हॉट-स्पॉट लिस्ट में हैं। 

हिमनदों के पिघलने की रफ्तार पिछले 20 साल में तेज़ हुई 

पूरे विश्व में 2015 और 2019 के बीच धरती के हिमनदों की कुल 298 गीगाटन बर्फ पिघल गई। यह बात ईटीएच जूरिच और यूनिवर्सिटी ऑफ टॉलाउस के शोध में पता चली है जिसके तहत 2.2 लाख ग्लेशियरों का विश्लेषण किया गया। इनमें ग्रीनलैंड और अंटार्कटिक आइस शीट शामिल नहीं है। शोध बताता है कि साल 2000 और 2019 के बीच  विश्व के ग्लेशियरों की बर्फ हर साल करीब 267 गीगाटन की रफ्तार से पिघली और यह दर तेज़ी से बढ़ रही है। साल 2000 और 2020 के बीच इसकी वजह से समुद्र जल स्तर बढ़ोतरी में 21% वृद्धि हुई। इस बर्फ के पिछलने से समुद्र सतह में सालाना 0.74 मिमी की बढ़ोतरी हुई।   

जंगलों की आग से उत्तरी गोलार्ध में बढ़ेगा क्लाइमेट चेंज 

एक शोध के मुताबिक दुनिया के सबसे उत्तरी क्षेत्र के वनों पर जंगलों की आग और शुष्क होती जलवायु के प्रभाव को काफी कम करके आंका जा रहा है। साइंस डेली  में छपा यह शोध – जो कि अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा से मिले 30 साल के उपग्रह तस्वीरों और डाटा पर आधारित है – कहता है कि अगर उत्सर्जन तत्काल नहीं रोके गये तो यह जंगल आने वाले दिनों में अधिक कार्बन नहीं सोख पायेंगे। 

शोधकर्ताओं के मुताबिक इन क्षेत्रों में आग तेज़ी से वन भूमि को खत्म कर रही है जिससे जंगलों के बायोमॉस में तेज़ी से गिरावट होगी। यह काफी महत्वपूर्ण जानकारी है क्योंकि उत्तरी क्षेत्र के जंगल दुनिया के कार्बन का बड़ा हिस्सा सोखते हैं। 


क्लाइमेट नीति

आंखें बन्द: दुनिया के बड़े वित्तीय संस्थान नेट-ज़ीरो की घोषणायें तो कर रहे हैं पर अपनी गतिविधियों के क्लाइमेट पर असर को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं। फोटो - The Revelator

जलवायु परिवर्तन के ख़तरों को छुपा रहे हैं वित्तीय संगठन: रिपोर्ट

वैश्विक वित्तीय संस्थान भले ही अपनी नेट ज़ीरो घोषणाओं को लेकर एक दूसरे से स्पर्धा करते दिख रहे हों लेकिन अगर थोड़ा गहराई से पड़ताल की जाये तो पता चलता है कि ये संस्थान अपने क्लाइमेट रिस्क को काफी कम करके आंक रहे हैं। एक सीडीपी रिपोर्ट के मुताबिक आधे से अधिक संस्थान अपने क्लाइमेट रिस्क की रिपोर्टिंग ही नहीं कर रहे। रिपोर्ट कहती है कि ये संस्थान कोई ऐसा विश्लेषण नहीं करते जो यह बताता हो कि संस्थान की गतिविधि क्लाइमेट पर क्या असर डाल रही है। इनमें से केवल आधे संस्थान ही अपने लो कार्बन ट्रांजिशन प्लान के बारे में बताना चाहते हैं जबकि एक चौथाई ने जीवाश्म ईंधन की फाइनेंसिंग के बारे में जानकारी दी। 

भारत, यूके 2030 तक जलवायु परिवर्तन के खिलाफ रास्ता निकालेंगे

भारत और यूके ने इस हफ्ते तय किया कि दोनों देश 2030 तक क्लाइमेट चेंज के प्रभावों से लड़ने के लिये संयुक्त रूप से काम करेंगे। एक इंटरनेट मीटिंग में दोनों देश जंगल बचाने और साफ ऊर्जा टेक्नोलॉजी पर मिलकर काम करने को सहमत हुये। दोनों ही देश क्लाइमेट के प्रभावों को बर्दाश्त करने वाला मूलभूत ढांचा बनाने के लिये भी मिलकर काम करेंगे। दोनों देशों का इरादा यूके-इंडिया रोडमैप के तहत इस साल के अंत में ग्लासगो में होने वाली बैठक से पहले महत्वाकांक्षी नतीजे हासिल करना 

नेट-ज़ीरो लक्ष्य के लिये क्लाइमेट लॉ को करो सख्त

जर्मनी की सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा है कि अगले साल तक मौजूदा क्लाइमेट लॉ को सख्त और अपडेट किया जाये ताकि साल 2050 के तय नेट-ज़ीरो लक्ष्य हासिल करने के लिये ज़मीनी योजनायें लागू हों। अदालत ने एक महिला की याचिका सुनते हुए यह बात कही जिसने गुहार लगाई थी कि समुद्र के बढ़ते जलस्तर के कारण उसका फार्म नष्ट हो जायेगा। कोर्ट का कहना था कि जर्मनी का 2019 का क्लाइमेट लॉ कार्बन इमीशन कम करने के मामले में 2030 से आगे की सोच नहीं रखता।


वायु प्रदूषण

खुद ही कोतवाल: भारत में पहले ही प्रदूषण की निगरानी बहुत ढीली है और नये नियम कंपनियों और छूट देंगे। फोटो - Canva

नये नियम: कंपनियां खुद को देंगी प्रदूषण न करने का प्रमाण पत्र

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी नये नियमों के तहत कंपनियां अब खुद को “प्रदूषण लोड में बढ़ोतरी नहीं” सर्टिफिकेट देकर अपना काम और फैला सकती हैं। अंग्रेज़ी अख़बार हिन्दुस्तान टाइम्स के मुताबिक सरकार के नये नियमों के तहत कोल वॉशिंग, मिनरल प्रोसेसिंग, खाद, कीटनाशक, पेन्ट और पेट्रोकैमिकल के कारोबार में लगी कंपनियां इस सेल्फ सर्टिफिकेशन का फायदा उठा सकती हैं। 

जानकार कहते हैं कि जिस देश में मॉनिटरिंग काफी कमज़ोर हो वहां इस तरह का सेल्फ सर्टिफिकेशन नियमों की अवहेलना और अनदेखी का खुला आमंत्रण है। मंत्रालय का कहना है कि उन्हें प्रोसेसिंग, प्रोडक्शन और निर्माण क्षेत्र से बहुत सारी अर्जियां मिली थी जिसमें पर्यावरण क्लीयरेंस की पूरी प्रक्रिया के बगैर उत्पादन क्षमता बढ़ाने की अनुमति मांगी गई थी। 

दिल्ली-एनसीआर की प्रदूषण निगरानी के लिये फिर आयोग 

प्रदूषण निगरानी पर ढिलाई के लिये आलोचना से घिरी सरकार ने फिर से अध्यादेश के ज़रिये एयर क्वॉलिटी मैनेजमैंट कमीशन (सीएक्यूएम) को प्रभावी कर दिया है। यह आयोग दिल्ली और उससे लगे इलाकों में वायु प्रदूषण निगरानी के लिये है। सरकार इस कमीशन को गठित करने के 5 महीने बाद अध्यादेश को संसद से पास नहीं करा पाई थी जिससे कमीशन निष्प्रभावी हो गया था लेकिन अब एक बार फिर से अध्यादेश के ज़रिये ये प्रभावी है। 

पेट्रोलियम मंत्रालय के पूर्व सचिव और दिल्ली के पूर्व मुख्य सचिव रहे एमएम कुट्टी इस आयोग के चेयरमैन हैं। एयर पॉल्यूशन एक्शन ग्रुप के आशीष धवन इस पैनल में अकेल एनजीओ सदस्य हैं। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के पूर्व सचिव रमेश केजे इस आयोग में एकमात्र पूर्ण कालिक तकनीकी सदस्य हैं। इस ख़बर को यहां विस्तार से पढ़ा जा सकता है। 

नीतिगत विफलता: दिल्ली, कानपुर की हवा में NO2 और PM 2.5 का स्तर बढ़ा  

दिल्ली और कानपुर की हवा में पीएम 2.5 और नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड का स्तर बढ़ रहा है। यह बात उपग्रह से मिले डाटा के विश्लेषण से पता चली है। यह एनालिसिस यूनिवर्सिटी ऑफ बर्मिंघम और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन ने किया। वैज्ञानिकों के मुताबिक इसके पीछे बढ़ते वाहनों की संख्या, उद्योगों से उत्सर्जन और नियमों के पालन में ढिलाई के साथ वायु प्रदूषण नियंत्रण नीति को लागू करने में सुस्ती प्रमुख वजह हैं। शोध कहता है कि भारत के इन दो शहरों के उलट लंदन में पीएम 2.5 और नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड का स्तर गिरा है क्योंकि वहां सोर्स (यानी उत्पादन के स्रोत)  पर प्रदूषण रोकने की नीति ठीक से लागू की गई।


साफ ऊर्जा 

कोरोना का असर: भारत के साथ ऊर्जा मिशन पर भी कोरोना ने अपना असर दिखाया है और नये प्रोजेक्ट्स में देरी तय है फोटो - Canva

कोरोना लहर से प्रभावित होंगे सौर और पवन ऊर्जा के प्रोजेक्ट

कोरोना की वर्तमान लहर से लागू लॉकडाउन के कारण पूरे देश में सोलर प्रोजेक्ट को मंज़ूरी में देरी होगी। जानकार कहते हैं कि अगर सरकार सोलर कंपनियों को 3-4 महीने का एक्सटेंशन देती है तो अनुमान है कि करीब 4 गीगावॉट के सौर और पवन ऊर्जा प्रोजेक्ट   प्रभावित होंगे जिन्हें 2022 में मंज़ूरी मिल पायेगी। 

केंद्र सरकार ने सोलर प्रोजेक्ट के लिये बिजली खरीद अनुबंध (पीपीए) पर दस्तखत करने की समय सीमा 31 मई 2021 तक बढ़ा दी है। कंपनियों ने प्रोजेक्ट्स को सीधा 4 महीने की छूट देने की मांग की है। जानकारों ने चेतावनी दी है कि कोरोना से व्यापार और औद्योगिक इकाइयों पर पड़े असर के कारण रूफ टॉप सोलर मार्केट में भुगतान संबंधी समस्या हो सकती है जिससे कंपनियों के पास पैसे की दिक्कत होगी। 

सौर ऊर्जा: निर्माण को बढ़ाने के लिये 4,500 करोड़ का प्रोडक्शन लिंक इंसेंटिव 

भारत सरकार ने उच्च दक्षता वाले सोलर फोटो वोल्टिक मॉड्यूल के निर्माण के लिये 4,500 करोड़ रुपये का प्रोडक्शन-लिंक-इंसेंटिव (पीएलआई) मंज़ूर किया है ताकि सोलर उपकरणों का आयात कम हो। इसे लागू करने वाली एजेंसी – इंडियन रिन्यूएबिल एनर्जी डेवलपमेंट एंजेंसी (आईआरईडीए) को सालाना फीस के तौर पर पीएलआई का 1% मिलेगा। आईआरईडीए गर तिमाही में रिपोर्ट जमा करेगी कि क्या तरक्की हुई। इसमें कंपनियों को बिडिंग द्वारा चुना जायेगा जिन्हे देश में सोलर सेल और मॉड्यूल के बीच न्यूनतम जुड़ाव (इंटीग्रेशन) सुनिश्चित करना होगा। अधिक क्षमता वाले प्लांट्स को तरजीह मिलेगी। 

जर्मनी 2022 के साफ ऊर्जा लक्ष्य को व्यापक करेगा 

जर्मनी ने अगले साल के लिए अपने क्लाइमेट लक्ष्य बढ़ाये हैं लेकिन लंबी अवधि के लिये – साल 2030 तक के – लक्ष्य तय करने में वह फिलहाल विफल रहा है। यूरोपियन यूनियन द्वारा 2030 के इमीशन कम करने के कुल लक्ष्य 55% कर दिये जाने के बावजूद जर्मन सांसद 2030 के लिये देश के नये लक्ष्य नहीं बना पाये लेकिन अगले साल (2022) सौर और पवन ऊर्जा के अधिक प्रोजेक्ट लगाने का इरादा जताया है। क्लीन एनर्ज़ी वायर के मुताबिक अब यह सितंबर में नई सरकार के चुने जाने के बाद तय होगा। सरकार ने उपभोक्ताओं के लिये साफ ऊर्जा सरचार्ज भुगतान पर भी – 2023 और 2024 के लिये – 5 प्रतिशत प्रति किलोवॉट की सीमा तय कर दी है।


बैटरी वाहन 

पुरानी बैटरी सुरक्षित: अब यह तथ्य सामने आ रहे हैं कि कार बैटरी पुरानी होने के साथ आग लगने का का ख़तरा घटता जाता है। फोटो -Morris Garages

ईवी बैटरियों की उम्र बढ़ने के साथ घटता है आग का ख़तरा

ऑस्ट्रिया की यूनिवर्सिटी ऑफ ग्राज़ ने अपने शोध में पाया है कि ईवी बैटरियों की उम्र बढ़ने के साथ उनमें आग लगने का खतरा कम होता जाता है और इस लिहाज़ से अधिक दिनों तक उनका इस्तेमाल उन्हें अधिक सुरक्षित ही बनाता है। तकनीकी भाषा में इसे “थर्मल रनअवे” कहा जाता है। वजह ये है कि पुरानी बैटरी में चार्ज संरक्षित करने की घटी ताकत के कारण आग की घटना का ख़तरा कम हो जाता है। हज़ारों किलोमीटर की यात्रा के बाद कई बार चार्जिंग और डिस्चार्जिंग की वजह ये ये बैटरियां यांत्रिक दृष्टिकोण से भरोसेमंद भी हो जाती है। 

बैटरी वाहनों में अग्नि दुर्घटना एक चिन्ता का विषय रहा है। मिसाल के तौर पर 13 आग की घटनाओं के बाद ह्युन्दई कोना अपने घरेलू देश दक्षिण कोरिया में नहीं बेची जा सकती लेकिन पुरानी बैटरियों के सुरक्षित होने संबंधित जानकारियां क्रेश टेस्ट और भारी कंपन और एक्सीलेरेशन जैसे प्रयोगों से हासिल की गईं। 

बैटरी वाहनों को लेकिर यूरोपियन यूनियन की “सनक” !

क्या बैटरी वाहनों को लेकर यूरोपियन यूनियन पर “सनक” सवार है? कम से कम परम्परागत आईसी इंजन और ईंधन सिस्टम तैयार करने वाली कंपनी बोश का तो यही मानना है।  कंपनी ने कहा है कि “क्लाइमेट एक्शन का मतलब आई सी इंजनों को खत्म कर देना भर नहीं है।” स्पार्क प्लग और फ्यूल इग्निशिन सिस्टम बनाने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में शामिल बोश कहती है कि आधुनिक पेट्रोल और डीज़ल कारें एयर क्वॉलिटी पर वैसा ख़राब असर नहीं डालती। 

कंपनी की इस आलोचना के पीछे नये यूरो-7 मानक भी कहे जा रहे हैं जिनके तहत ईंधन गुणवत्ता स्तर और कड़े किये गये हैं। वैसे यह दिलचस्प है कि बोश ने ईवी टेक्नोलॉजी में 500 करोड़ यूरो निवेश किये हैं लेकिन अगले 20-30 साल तक वह आईसी इंजन वाहनों का काम जारी रखना चाहती है। 

अमेरिका में 20% लोग छोड़ रहे हैं बैटरी वाहनों का इस्तेमाल 

साल 2015 और 2019 के बीच अमेरिका में कार उपभोक्ताओं के बीच किये सर्वे से पता चलता है कि बैटरी वाहन इस्तेमाल करने वाले हर पांच में से एक (20%) ने ईवी चलाना दो वजहों से बन्द कर दिया। पहली वजह कार की ड्राइविंग रेन्ज रही और दूसरी घर पर फास्ट चार्जिंग की सुविधा का न मिल पाना।  बैटरी कार छोड़कर गैसोलीन पर वापस जाने वाले उपभोक्ताओं में से 29% लोगों के पास ही घर पर फास्ट चार्जिंग सुविधा थी। हालांकि सड़क पर बैटरी कार के भरोसे, सुरक्षा और चार्जिंग कॉस्ट को लेकर उन्हें कोई शिकायत नहीं थी। 

यूसी डेविस के इस सर्वे में यह पाया गया कि टेस्ला और जीएम के मालिकों ने बैटरी कार का साथ नहीं छोड़ा – केवल 11% और 14.2% ने ही वापस गैसोलीन कारों का रुख किया – और खासकर महिलाओं में बैटरी कारों के प्रति ज़बरदस्त वफादारी रही।


जीवाश्म ईंधन

प्लेन से ट्रेन पर: यूरोप में क्लाइमेट एक्शन के तहत प्लेन के बजाय ट्रेन से घरेलू सफर के नियम बनाये जा रहे हैं। अब जर्मनी ने भी इस पर पहल की है। फोटो -Canva

जर्मनी की 20% घरेलू उड़ानों के यात्री जायेंगे ट्रेन से

जर्मनी के उड्डयन उद्योग और रेलवे ने सहमति बनाई है कि रेल नेटवर्क देश की घरेलू उड़ानों के 20% यात्रियों को ले जायेगा ताकि “सक्रिय जलवायु संरक्षण” हो सके। साल 2019 में जर्मनी की 1.5 करोड़ फ्लाइट पूरी तरह से घरेलू थी और इस कदम से देश की घरेलू उड़ानों का कार्बन इमीशन करीब 17% कम हो सकेगा। हालांकि देश की सबसे बड़ी लुफ्तांसा घरेलू उड़ान भरते रहेगी जबकि पर्यावरणविद् सारी घरेलू उड़ानों को रद्द कर देश के भीतर ट्रेन यात्रा की ही मांग कर रहे हैं।  इससे पहले फ्रांस ने उन घरेलू उड़ानों पर रोक लगाई थी जहां दूरी 2.5 घंटे या उससे कम समय में पूरी की जा सकती है। 

पोलैंड ने 2049 तक कोयला प्रयोग बन्द करने का करार किया 

पोलैंड में 70% बिजली अभी भी कोयले से ही बनती है लेकिन अब उसने कोयला उद्योग के साथ करार किया है कि साल 2049 तक वह अपने सभी कोयला बिजलीघरों को बन्द कर देगा। इस प्रक्रिया के दौरान प्रभावित होने वाले सभी मज़दूरों को मुआवज़ा दिया जायेगा  और उनके लिये वैकल्पिक रोज़गार पैदा किये जायेंगे। माना जा रहा है कि योजना के तहत 2040 तक पोलैंड में पावर जेनरेशन में कोयले का रोल 11% तक रह जायेगा। इसे एक बहुत एतिहासिक करार माना जा रहा है क्योंकि पोलैंड में कोयला लॉबी बहुत मज़बूत और प्रभावशाली है और उसने अब तक देश के एनर्ज़ी मैप में किसी तरह के बदलाव का मुखर विरोध किया है। पोलैंड पूरे यूरोपियन यूनियन में सबसे बड़ा कोयला प्रयोग करने वाला देश है।  

जिन्दल स्टील कोल पावर से खींचेगा हाथ 

भारत की सबसे बड़ी निजी स्टील कंपनियों में से एक जिन्दल स्टील ने ऐलान किया है कि वह अपनी सहयोगी कंपनी जिन्दल पावर से 96.42% शेयर निकाल लेगा। यह कदम कंपनी ने अपना कार्बन फुट प्रिंट और कर्ज़ घटाने के लिये किया है। कंपनी अब दुनिया की उन 10 टॉप स्टील कंपनियों में  आने की कोशिश करेगी जो उत्पादन के लिये साफ ऊर्जा का इस्तेमाल करते हैं। भारत के इस्पात उद्योग के लिये यह बड़ा बदलाव होगा जिसका कार्बन उत्सर्जन 2050 तक वर्तमान स्तर का 3 गुना यानी करीब 837 मिलियन टन हो जायेगा।

कार्बन कॉपी
Privacy Overview

This website uses cookies so that we can provide you with the best user experience possible. Cookie information is stored in your browser and performs functions such as recognising you when you return to our website and helping our team to understand which sections of the website you find most interesting and useful.