साल 2020 – कोरोना कर गया पर्यावरण क़ानूनों को कमज़ोर

क्लाइमेट साइंस

Newsletter - December 27, 2020

साल 2020 – पूरा साल दुनिया में भयानक आग और विनाशकारी चक्रवातों जैसी मौसमी घटनाओं, कोरोना के कारण CO2 इमीशन में रिकॉर्ड कमी भी दर्ज हुई | Photo: Earthjustice.org

दुनिया के कई हिस्सों में आग से तबाही

ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में साल 2019 में भड़की आग इस साल भी जारी रही और देश में गर्मियों का पूरा मौसम इसकी भेंट चढ़ गया। यह आग करीब 10 हज़ार वर्ग किलोमीटर में फैली और इसकी वजह से ऑस्ट्रेलिया में 50 करोड़ से अधिक जानवर मर गये। संकट यह है कि ऑस्ट्रेलिया में एक और आग भड़क गई है और कुछ जानकार मानते हैं कि यह आग पहले से अधिक विनाशकारी हो सकती है। 

उधर अमेरिका के पश्चिमी क्षेत्र में साल 2019 के आखिरी महीनों में रिकॉर्ड खुश्क मौसम रहा। जिसके बाद वहां इस साल जंगल में आग की कई घटनायें हुईं। यह आग अप्रैल में शुरु हुईं और इसने कैलिफोर्निया, ओरेगॉन और वॉशिंगटन में भारी नुकसान किया। हज़ारों लोगों को सुरक्षित जगहों पर ले जाया गया और 82 लाख एकड़ से अधिक क्षेत्रफल जल गया। रूस में भी साल 2020 की शुरुआत असामान्य रूप से अधिक तापमान वाली सर्दियों और वसंत के साथ हुई। आर्कटिक के वर्खोयान्स्क में पारा रिकॉर्ड 38°C तक पहुंच गया। फरवरी में साइबेरिया में लगी आग कई महीने चली और इसने  2 करोड़ हेक्टेयर ज़मीन जला डाली।

भारत में बाढ़ का कहर, अटलांटिक में नाटकीय चक्रवात


भारत में इस साल मॉनसून ‘सामान्य से अधिक’ रहा और पिछली 30 साल में यह दूसरी सबसे अधिक बारिश थी। इसकी वजह से देश में कई हिस्सों में बाढ़ आई और विशेष रूप से उत्तर-पूर्व के असम में इसका बड़ा असर दिखा। लाखों हेक्टेयर में फसल बर्बादी के अलावा इसमें 100 से अधिक लोग मारे गये और 50 लाख विस्थापित हुए।

अमरीका के अटलांटिक में यह साल चौंकाने वाले चक्रवातों का रहा और इस साल यहां – एक जून से 30 नवंबर के बीच – अब तक के सर्वाधिक चक्रवाती तूफान आये। इतिहास में केवल दूसरी बार ‘फाइव स्टॉर्म सिस्टम’ नामक दुर्लभ मौसमी घटना भी देखने को मिली। एशिया में अम्फान, निसर्ग, ब्रुएवी और गति जैसे चक्रवाती तूफानों ने तबाही की।  

कोरोना: CO2 इमीशन में क्षणिक गिरावट

दिसंबर में प्रकाशित हुई ग्लोबल कार्बन बजट रिपोर्ट के मुताबिक इस साल दुनिया का कुल कार्बन इमीशन 3400 करोड़ टन रहा जो पिछले साल (2019) की तुलना में 7% कम है। कार्बन इमीशन में यह गिरावट मूलत: कोरोना महामारी के कारण है लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्टेट ऑफ ग्लोबल क्लाइमेट रिपोर्ट में कार्बन इमीशन में इस कमी को क्षणिक उपलब्धि बताया गया है।   रिपोर्ट में यहां तक कहा गया है कि साल 2020 में CO2, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड के इमीशन का ग्राफ बढ़ रहा था।

अफ्रीका, एशिया में टिड्डियों के हमले के पीछे जलवायु परिवर्तन

कीनिया में टिड्डयों का नया हमला जारी है जो फसल को नुकसान पहुंचा रहा है। इन टिड्डियों ने इस साल इथियोपिया, युगांडा, सोमालिया, एरिट्रिया, भारत, पाकिस्तान, ईरान, यमन, ओमान और सऊदी अरब समेत दुनिया के कई देशों में कहर बरपाया। कोरोना से जूझ रहे भारत के राजस्थान, गुजरात के साथ मध्य प्रदेश में भी – जहां अब तक टिड्डियों का कहर नहीं दिखा था – टिड्डियों ने फसल बर्बाद की।  जानकारों के मुताबिक अरब सागर में साइक्लोनिक बदलाव इस असामान्य हमले का कारण है।

अच्छी ख़बर, सवा सौ साल पुराना ऑर्किड दिखा उत्तराखंड में

हिमालयी राज्य उत्तराखंड के चमोली ज़िले में इस साल ऑर्किड की वह दुर्लभ प्रजाति पाई गई  जो 124 साल पहले सिक्किम में दिखी थी। इस प्रजाति की पहचान लिपरिस पाइग्मिया के नाम से की गई है। इससे पहले यह प्रजाति 1896 में देखी गई थी। ऑर्किड पहाड़ी इलाकों में जून-जुलाई के वक्त खिलाने वाला दुर्लभ फूल है जिसके वजूद पर संकट को देखते हुये इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) ने अपनी रेड लिस्ट में रखा है। हिमालय जैव विविधता का अनमोल खज़ाना है और इस पर छाये संकट की वजह से ऑर्किड जैसी प्रजाति का महत्व अधिक बढ़ जाता है।  उत्तराखंड वन विभाग के फॉरेस्ट रेंजर हरीश नेगी और जूनियर रिसर्च फेलो मनोज सिंह का कहना है उन्होंने यह पुष्प चमोली ज़िले में सप्तकुंड के रास्ते में 3800 मीटर दिखा और वहां भेजे गये सेंपल की पुष्टि पुणे स्थित बॉटिनिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने कर दी है।  प्रतिष्ठित फ्रेंच साइंस जर्नल रिचर्डियाना में इसे प्रकाशित किया गया है।


क्लाइमेट नीति

साल 2020 – कोरोना काल में पर्यावरण सुरक्षा और आदिवासियों के अधिकारों से जुड़े क़ानून कमज़ोर हुए। ईआईए नोटिफिकेश और कोयला खदानों की नीलामी इसकी मिसाल हैं | Photo: Twitter/@LetIndiaBreathe

पर्यावरण प्रभाव आंकलन के नये नियमों से उठा विवाद

इस साल कोराना महामारी से निपटने के लिये लॉकडाउन लागू होने के साथ ही भारत सरकार ने पर्यावरण प्रभाव आंकलन का एक मसौदा (ड्राफ्ट नोटिफिकेशन) जारी किया जिसका पर्यावरणविदों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने जमकर विरोध किया।  विरोध के मुख्य तर्क विकास योजनाओं के लिये जन सुनवाई की प्रक्रिया को हटाना और बिना अनुमति के शुरू किये गये प्रोजेक्ट्स को बाद में हरी झंडी (एक्स पोस्ट फेक्टो क्लीयरेंस) देना शामिल है। हालांकि कर्नाटक हाइकोर्ट के स्टे के कारण केंद्र सरकार नये नियमों को अब तक लागू नहीं कर पाई है।

कोयला खदान नीलामी से उठे सवाल, विदेशी निवेशकों की दिलचस्पी नहीं 

“आत्मनिर्भर” अभियान के तहत मोदी सरकार ने 18 जून को पांच राज्यों की 41 कोयला खदानों की नीलामी का ऐलान किया। इनमें से 29 खदानें तो देश के तीन राज्यों झारखंड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में ही हैं। हालांकि झारखंड, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के विरोध के बाद केवल 38 खदानों की नीलामी हुई। सरकार ने इन खदानों का अधिकतम उत्पादन 22.5 करोड़ टन तक बताया और कहा इससे करीब ₹ 33,000 करोड़ का निवेश आयेगा और राज्यों को हर साल ₹ 20,000 करोड़ की राजस्व मिलेगा। साथ ही 2.8 लाख नौकरियों का दावा किया गया है। विदेशी निवेशकों ने हालांकि इन खदानों में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई लेकिन अडानी और वेदांता समेत भारतीय कंपनियों को कोयला खदान मिली हैं।

कई देशों ने बताई कार्बन न्यूट्रल होने की समय सीमा

दुनिया कुल 65% ग्रीन हाउस गैस छोड़ने वाले देश जनवरी के अंत तक यह बता देंगे कि वह किस साल कार्बन न्यूट्रल बन जायेंगे। यानी उनके द्वारा किया गया नेट कार्बन उत्सर्जन शून्य होगा। इन देशों का वर्ल्ड इकोनोमी में 70% से अधिक हिस्सा है। यूरोपीय यूनियन ने इस दिशा में पहल की लेकिन हौसला बढ़ाने वाली बात यह है कि दुनिया के सबसे बड़े प्रदूषक देश चीन ने भी कह दिया है कि वह 2060 तक कार्बन न्यूट्रल बन जायेगा। इसके अलावा जापान, दक्षिण कोरिया और यूके समेत 110 देशों ने बता दिया है कि किस साल तक वह अपना नेट कार्बन इमीशन ज़ीरो कर पायेंगे।  भारत ने अब तक इस समय सीमा की घोषणा नहीं की है लेकिन यह ज़रूर कहा है कि वह अपना कार्बन फुट प्रिंट 30-35 प्रतिशत घटायेगा। साफ ऊर्जा की दिशा में पहल करने में यूरोपियन यूनियन एक बार फिर सबसे आगे है।

कोरोना पैकेज में ग्रीन रिकवरी के बजाय जीवाश्म ईंधन को तरजीह

क्लाइमेट ट्रांसपरेंसी की रिपोर्ट बताती है कि कोरोना महामारी से निपटने में दुनिया के सबसे अमीर देशों की प्राथमिकता साफ ऊर्जा को बढ़ावा देना नहीं है। ज़्यादातर देशों ने जीवाश्म ईंधन (तेल, गैस, कोयला) पर सब्सिडी बनाये रखी है जिसकी वजह से महामारी से पहले कार्बन इमीशन कम करने के उपायों को धक्का लगेगा। हालांकि EU ने इस दिशा में कुछ दिलचस्पी दिखाई है। कुल $ 83000 करोड़ के रिकवरी पैकेज में करीब 30% धन उस कारोबार के लिये रखा है जिससे साफ ऊर्जा के प्रयोग बढ़े और जीवाश्म ईंधन (तेल, गैस, कोयला) पर निर्भरता कम हो। जर्मनी और फ्रांस ने (ईयू का हिस्सा होने के बावजूद) अलग से अपने रिकवरी पैकेजों की घोषणा की है। लेकिन अमेरिका और जापान जैसे देश इस दिशा में नाकाम दिखे हैं। भारत ने कोरोना से लड़ने के लिये $ 26,000 करोड़ ( 20 लाख करोड़ रुपये) का पैकेज बनाये है लेकिन ‘ग्रीन स्टिम्युलस इंडेक्स’ पैकेज पर वह पांचवां सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले देश है।


वायु प्रदूषण

साल 2020 – कोरोना काल में लॉकडाउन से वायु प्रदूषण में क्षणिक राहत मिली लेकिन फिर हालात पहले की तरह ख़राब हो गये। PM 2.5 के मामले में भारत के महानगर दुनिया में सबसे निचले पायदान पर रहे | Photo: Free Press Journal

नियमों के पालन में 65% कोयला बिजलीघर फेल

देश के 65 प्रतिशत कोयला बिजलीघर 2022 की उस तय समय सीमा का पालन नहीं कर पायेंगे जिसके भीतर उन्हें धुंआं रोकने के लिये चिमनियों में यंत्र लगाने थे। दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरेंमेंट (सीएसई) की ताज़ा आंकलन रिपोर्ट में यह बात कही गई है। रिपोर्ट कहती है कि बहुत बड़ी संख्या में कोयला बिजलीघर मानकों को पूरा करने के मामले में “लापरवाह और आलसी” हैं।

उद्योगों से होने वाले प्रदूषण में पावर प्लांट्स का 60% हिस्सा है। कुल 45% SO2, 30% NOx और 80% मरकरी बिजलीघरों से निकलता है। सीएसई की नई रिपोर्ट, जिसमें इस साल अगस्त तक के हालात का आंकलन किया गया है, कहती है  कि कुल बिजलीघरों में से केवल 56% नये पीएम (पार्टिकुलेट मैटर) मानकों का पालन करते हैं और मात्र 35% SO2 से जुड़े उत्सर्जन मानकों के हिसाब से हैं।

लॉकडाउन: प्रदूषण में रिकॉर्ड गिरावट लेकिन क्षणिक कामयाबी

कोरोना महामारी के कारण की गई तालाबन्दी ने पूरे देश में वायु प्रदूषण का स्तर कम कर दिया जिससे शोधकर्ताओं को महानगरों में पॉल्यूशन के बेस लेवल का अध्ययन करने का अवसर मिला। यह एक ऐसी जानकारी है जो अब तक हासिल करना दुश्वार रहा है। लॉकडाउन में दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और बेंगलुरू का प्रदूषण स्तर मापा गया और पहले 74 दिन में ही नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (NCAP) के तहत  2024  के लिये तय किये गये प्रदूषण नियंत्रण लक्ष्य का 95% हासिल किया गया।  इन पाबंदियों के चलते तराई के इलाकों से ही लोगों को हिमालय के दर्शन हो गये।

ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट के मुताबिक इस साल के अंत तक पूरी दुनिया में कार्बन इमीशन में 7% (जीवाश्म ईंधन और उद्योगों से निकलने वाला)  गिरावट हो सकती है जो पिछले साल की तुलना में 2.4 गीगाटन CO2 के बराबर गिरावट होगी। अमेरिका में इस साल CO2 इमीशन में 12%, ईयू में 11%  और चीन में 1.7% गिरावट हुई है।  

वायु प्रदूषण: PM 2.5 के मामले में भारत के हाल सबसे बुरे 

वायु प्रदूषण से लड़ने के लिये भारत ने भले ही कागज़ों पर पहल की हो लेकिन दुनिया में उसकी रेंकिंग सबसे खराब बनी हुई है। इस साल जाड़ों में उत्तर भारत एक बार फिर से घातक प्रदूषण की गिरफ्त में आ गया। हीर साल अक्टूबर-नवंबर की तरह इस साल भी इन महीनों में दिल्ली के ज़्यादातर इलाकों में एयर क्वॉलिटी इंडेक्स अति हानिकारक (हज़ॉर्डस) स्तर पर था और आपातकालीन स्थिति बनी रही। कुछ जगहों में एयर क्वॉलिटी इंडेक्स (AQI) 700 से अधिक दर्ज किया गया। इसी तरह उत्तर भारत  और देश के कई शहरों में एयर क्वॉलिटी बहुत खराब रही। केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के मुताबिक इस दौरान पीएम 2.5 सबसे बड़ा प्रदूषक रहा है। गुड़गांव, नोयडा, फरीदाबाद और गाज़ियाबाद के लोनी इलाकों में प्रदूषण 500 के सूचकांक तक पहुंच गया।

वायु प्रदूषण: इमरजेंसी में भर्ती बच्चों की संख्या 30% बढ़ी

राजधानी दिल्ली में दो साल तक की गई एक स्टडी बताती है कि प्रदूषण के बढ़ने के साथ-साथ इमरजेंसी रुम में उन बच्चों के संख्या भी बढ़ रही है जिन्हें सांस की तकलीफ है। इस अध्ययन के तहत इस साल जून 2017 से फरवरी 2019 के बीच अस्पताल में भर्ती 19,120 बच्चों के डाटा का विश्लेषण किया गया। इसमें पाया गया कि अधिक और मध्यम प्रदूषण स्तर वाले दिनों में सांस की तकलीफ के साथ अस्पताल पहुंचने वाले बच्चों की संख्या कम प्रदूषण वाले दिनों के मुकाबले 21%-28% अधिक थी। बड़े प्रदूषकों के रूप में सल्फर डाइ ऑक्साइड और कार्बन मोनो ऑक्साइड की पहचान की गई है। हालांकि अस्पताल में इन भर्तियों का पीएम 2.5 और पीएम 10 में बढ़ोतरी के साथ कोई बड़ा संबंध नहीं दिखा। शोधकर्ताओं का कहना है कि स्वास्थ्य पर पार्टिकुलेट मैटर का हानिकारक प्रभाव तुरंत न दिखना इसकी वजह हो सकती है।

मद्रास हाइकोर्ट ने स्थाई रूप से बन्द किया वेदांता का प्लांट

मद्रास हाइकोर्ट ने वेदांता की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें कंपनी ने अपने कॉपर स्मेल्टर  को फिर से चलाने की अनुमति मांगी थी।  यह प्लांट दो साल पहले 13 प्रदर्शनकारियों की पुलिस फायरिंग में मौत के बाद बन्द किया गया था। वेदांता का कहना है कि उस पर पर्यावरण को क्षति पहुंचाने आरोप गलत हैं और पुलिस फायरिंग के बाद प्लांट को बतौर “राजनीतिक कार्रवाई” बन्द किया गया है। हालांकि अदालत ने अपना आदेश प्रदूषण पर आधारित रखा और कहा है “प्रदूषण करने वाले भुगते” सिद्धांत लागू होना चाहिये। साल 2018 में हज़ारों लोग दक्षिण भारत के टूथकुंडी में वेदांता के खिलाफ सड़कों पर उतरे। वेदांता ने अपनी याचिका में कहा कि प्लांट का बन्द होना “अर्थव्यवस्था पर चोट” है लेकिन कोर्ट ने 815 पन्नों के फैसले में कहा, “अदालतों का हमेशा मानना रहा है कि जब भी अर्थव्यवस्था और पर्यावरण में से किसी एक को चुनना हो तो पर्यावरण सर्वोपरि है।”

वायु प्रदूषण से घटती है ज़िंदगी 5 साल: रिपोर्ट

देश में वायु प्रदूषण के कारण औसत उम्र में 5 साल से अधिक कटौती हो रही है। देश की एक चौथाई आबादी अभी इतना प्रदूषण झेल रही है जितना किसी और देश में नहीं है। यह तथ्य शिकागो यूनिवर्सिटी के एनर्जी पॉलिसी संस्थान (EPIC) द्वारा बनाये गये एयर क्वॉलिटी लाइफ इंडेक्स (AQLI) रिपोर्ट में सामने आये हैं।  AQLI एक वायु प्रदूषण इंडेक्स है जो मानव जीवन पर प्रदूषण के प्रभाव को बताता है।  रिपोर्ट कहती है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानकों के उलट अभी हवा की जो क्वॉलिटी है वह उम्र को 5 साल से अधिक कम करने वाली है। देश की राजधानी दिल्ली में रहने वाले एक इंसान की औसत उम्र 9.4 साल और सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य यूपी में 10.3 साल घट रही है।  रिपोर्ट के मुताबिक वायु प्रदूषण  कोरोना महामारी से अधिक घातक है और बना रहेगा। पिछले 2 दशकों में देश में पार्टिकुलेट मैटर 42% बढ़े हैं और भारत की 84% आबादी देश के तय मानकों से खराब हवा में सांस ले रही है।


साफ ऊर्जा 

साल 2020 – भारत में सोलर पावर की दरों में रिकॉर्ड गिरावट दर्ज की गई लेकिन सच ये भी है कि दुनिया में पावर कंपनियां अब भी जीवाश्म ईंधन को बढ़ावा दे रही है | Photo: Mercom India

सोलर पावर की दरों में रिकॉर्ड गिरावट

साल 2020 में भारत में सोलर पावर की दरों में गिरावट जारी रही। सबसे सस्ती दरों पर करार हाल में ही गुजरात ऑक्शन के दौरान हुय जिसमें 1.99 रुपये प्रति यूनिट पर नीलामी हुयी। इससे पहले नवंबर में राजस्थान में सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (SECI) की 1,070 मेगावॉट प्रोजेक्ट की बिडिंग में पहले के 2.36 रु प्रति यूनिट का रिकॉर्ड टूट गया। इस नीलामी में 2 रुपये प्रति यूनिट का दाम तय हुआ है। IEEFA के टिम बकले ने इस डील के बाद ट्वीटर पर कोयले के लिये “गेम ओवर” लिखा। नीलामी में 2 रु की दर पर सिंगापुर की कंपनी ने 400 मेगावॉट और सऊदी अरब की कंपनी ने  200 मेगावॉट का ठेका हासिल किया। बचा हुआ 470 मेगावॉट का ठेका एनटीपीसी  को 2.01 रु की दर पर मिला।

कोल इंडिया का मेगा सोलर प्लान 

भारत की सबसे बड़ी कोयला खनन कंपनी अब सोलर पावर के क्षेत्र में प्रवेश कर रही है। कोल इंडिया 3,000 मेगावॉट के सोलर प्लांट्स में 5,650 करोड़ रुपये निवेश कर रही है। कोल इंडिया अभी देश की सबसे बड़ी ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जक कही जाती है लेकिन उसका इरादा साल 2023-24 तक नेट ज़ीरो इमीशन कंपनी बनना है। अभी देश की 55% से अधिक बिजली कोयला बिजलीघरों से आती है और कुल बिजली स्थापित (installed capacity) क्षमता (373 GW) का केवल 10% (36 GW) ही सोलर पावर है। हालांकि स्थापित क्षमता में कुल साफ ऊर्जा – जिसमें सोलर के साथ पवन, हाइड्रो, न्यूक्लियर आदि भी शामिल है – का हिस्सा 25% है।

ACME ने राजस्थान में 200 मेगावॉट के प्लांट से पल्ला झाड़ा

देश के 12 राज्यों में काम कर रही साफ ऊर्जा कंपनी ACME ने राजस्थान में सरकारी कंपनी सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन के साथ किया करार तोड़ दिया है। यह करार रिकॉर्ड बिजली दरों (₹ 2.44 प्रति यूनिट) पर किया गया था। ACME ने प्रोजेक्ट के लिये ज़मीन मिलने में देरी और कोरोना संकट से चीन से सप्लाई के संकट की वजह से यह फैसला किया है।

 UAE और सऊदी अरब में सौर ऊर्जा भारत से सस्ती

IEEFA और JMK की रिसर्च के मुताबिक संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब में सौर ऊर्जा एक रुपये प्रति यूनिट से सस्ती है जो कि भारत के (2.36 रु प्रति यूनिट) मुकाबले काफी सस्ती है। असल में किसी देश में सौर ऊर्जा की दरें इस बात पर निर्भर हैं कि वहां टैक्स कितना है और सरकार की नीति क्या है। इन दोनों ही देशों में लंबी अवधि के लिये सस्ते कर्ज़ की व्यवस्था है और वहां कॉर्पोरेट टैक्स नहीं है। इसके अलावा ज़मीन भी काफी कम कीमत पर उपलब्ध है। जानकार कहते हैं कि अगर सरकार चीन से आने वाले उपकरणों पर बेसिक कस्टम ड्यूटी जारी रखती है तो यूएई और सऊदी जैसे देशों के मुकाबले भारत की सोलर दरों ऊंची होती जायेंगी।

पावर कंपनियां साफ ऊर्जा के बजाय तेल, कोयले में कर रहीं  निवेश

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की ताज़ा रिसर्च में यह बात सामने आयी है कि दुनिया की हर 10 बिजली कंपनियों में से केवल एक ही जीवाश्म ईंधन के बजाय साफ ऊर्जा में निवेश कर रही है। इस रिसर्च के तहत दुनिया की 3,000 पावर कंपनियों पर शोध किया गया और पता चला कि 90% पावर कंपनियां तेल, कोयले और गैस जैसे प्रदूषण करने वाले ईंधन में ही निवेश कर रही हैं और इन पावर प्लांट्स को प्रमोट भी कर रही हैं।


बैटरी वाहन 

साल 2020 – बैटरी कार क्षेत्र में टेक्नोलॉजी तेज़ी से आगे बढ़ रही है। भारत में हाइड्रोज़न से चलने वाली कार का सफल ट्रायल भी हुआ है | Photo: Autocar India

दिल्ली, तेलंगाना ने अपनाई ईवी नीति, ओला बनायेगा दुनिया की सबसे बड़ी स्कूटर फैक्ट्री

दिल्ली सरकार ने आखिरकार बैटरी वाहन नीति को औपचारिक रूप से नोटिफाई कर दिया। इस नीति के तहत शहर में बिकने वाले कम से कम 25% वाहन इलैक्ट्रिक होंगे और इनकी खरीद पर 5000 रुपये प्रति किलोवॉट घंटा के हिसाब से छूट दी जायेगी। इस प्रकार बैटरी दुपहिया की खरीद पर 30,000 रुपये की अधिकतम छूट और बैटरी कार की खरीद पर 1,50,000 की छूट की सीमा तय की गई है।

उधर तेलंगाना ने भी EV पॉलिसी को लागू कर दिया है जिसके तहत सभी कैटेगरी के वाहनों पर छूट मिलेगी। राज्य सरकार का लक्ष्य है कि इस क्षेत्र में 30,000 करोड़ का निवेश आये।  इस धन से दिवितिपल्ली में एनर्जी पार्क लगा जायेगा ताकि बैटरी वाहन निर्माता राज्य में कारखाना लगायें। सरकार करीब 1.2 लाख रोज़गार पैदा करना चाहती है। संयोग से तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में पिछले साल के मुकाबले बैटरी वाहनों की बिक्री 23% बढ़ गई है और इस तेज़ी में घटी हुई जीएसटी दरों (12% से 5%) का भी असर है।

उधर टैक्सी सर्विस कंपनी ओला ने तमिलनाडु में दुनिया की सबसे बड़ी स्कूटर फैक्ट्री के लिये 32.7 करोड़ डॉलर के निवेश का फैसला किया है। ओला गांवों और छोटे शहरों तक अपनी पहुंच बनाने के लिये ज़ोर लगा रही है।  माना जा रहा है कि यह फैक्ट्री 2 लाख बैटरी स्कूटर हर साल बनायेगी। 

बैटरी की कीमत $110 /kWh तक गिरी

लीथियम आयन इंटेलिजेंस फर्म, बेंचमार्क मिनिरल इंटेलिजेंस (BMI) के मुताबिक लीथियम आयन बैटरी की कीमत $110 प्रति किलोवॉट-घंटा तक गिर गई है। यह कार इंडस्ट्री के “टिपिंग पॉइंट” यानी लक्ष्य $100 प्रति किलोवॉट-घंटा के बहुत करीब है। बैटरी की कीमत साल 2010 में $1100 प्रति किलोवॉट-घंटा थी और 2019 आते-आते यह $156 तक पहुंची। बैटरी के दामों में यह क्रांतिकारी बदलाव टेक्नोलॉजी में बड़ी छलांग के कारण संभव हो पाया है। इसे दुनिया की सबसे बड़ी बैटरी कार निर्माता टेस्ला भी मान रही है। यह बदलाव उपभोक्ताओं को पुरानी आईसी इंजन कारों से हटकर बैटरी कारों के इस्तेमाल के लिये प्रेरित करेगा।

भारत में हाइड्रोजन सेल से चलने वाली कार का सफल ट्रायल

भारत ने एक सफल ट्रायल रन किया है जिसमें वाहन हाइड्रोजन ईंधन सेल  से चलता है। इसमें जिस आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया गया है उसे प्रोटोन एक्सचेंज मेम्ब्रेन (PEM) कहा जाता है। यह बैटरी के तापमान को 65-75 डिग्री सेल्सियस तक रखती है जो इसे सड़क के हालात के अनुकूल है।  इस तकनीक को विकसित करने में काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR) और पुणे स्थित KPIT टेक्नोलॉजी का हाथ है। अभी माना जा रहा है कि इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल मालवाहकों (बड़े ट्रकों)  के लिये होगा क्योंकि जो फ्यूल सेल बनाये गये हैं वह अधिक भारी इंजन के साथ किफायती साबित होंगे।

टेस्ला भारत में 2021 से बेचेगी कारें

ऑटोमोबाइल की दुनिया में लगातार यह बहस चल रही है कि भारत कितनी जल्दी और प्रभावी तरीके से देश में बैटरी कारों की बिक्री और इस्तेमाल के लिये मूलभूत ढांचा तैयार करता है। इस बीच जानी मानी अमेरिकी बैटरी कार कंपनी टेस्ला ने घोषणा की है कि वह 2021 भारत में कार बेचना शुरू करेगी। इसके लिये जनवरी से ऑर्डर बुक किये जायेंगे। माना जा रहा है कि टेस्ला का कदम भारत में बैटरी वाहनों के लिये इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करने में बड़ा रोल अदा करेगा। टेस्ला एक बड़ा कारखाना (गीगा-फैक्ट्री) लगाने के लिये कर्नाटक सरकार से बात कर रही है। इससे पहले टेस्ला चीन के शंघाई में ऐसा कारखाना लगा चुकी है। वैसे भारत की इम्पोर्ट ड्यूटी को लेकर टेस्ला के सीईओ ईलोन मस्क असंतोष ज़ाहिर कर चुके हैं


जीवाश्म ईंधन

साल 2020 – सस्ती होती सोलर पावर के कारण इस साल कोयले का बाज़ार ठंडा रहा, दुनिया के 47 धर्म संस्थानों ने जीवाश्म ईंधन से दूर रहने की घोषणा भी की | Photo: Bloomberg

तमाम कोशिशों के बाद कोयले का बाज़ार ठंडा

भारत में साल 2019 में कोयले पर निवेश (साल 2018 के मुकाबले) 126% कम हुआ है जिससे स्पष्ट है कि ईंधन के तौर पर कोयले की मांग कम हो रही है।  उधर कोयला मंत्रालय द्वारा जारी किये गये आंकड़े बताते हैं कि इस साल कोयला ब्लॉक नीलामी की घोषणा के बाद 38 में से 15 कोयला खदानों के लिये कोई बोली लगाने वाला नहीं मिला जबकि 20 खदानों के लिये केवल एक बिडर आया। यह नीलामी कोल सेक्टर में तेज़ी लाने के उद्देश्य से की गई। वैसे कोयले की मांग गिर रही है और कोयला बिजलीघर वायु प्रदूषण रोकने के लिये तय मानकों को पूरा न करने के कारण अदालत में हैं। कोयला खदान नीलामी के वक्त यह भी कहा गया कि इससे 2.8 लाख करोड़ नौकरियां मिलेंगी हालांकि कोयला मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि इस आंकड़े के लिये उनके पास कोई आधार नहीं है। यह दिलचस्प है कि अडानी ग्रुप ने भी बोली लगाई हालांकि उसने पहले कहा था कि नीलामी में उसकी दिलचस्पी नहीं है।

सिंगापुर-कतर के बीच उत्सर्जन पर समझौता

इस साल दुनिया के दो देशों के बीच लिक्विफाइड नेचुरल गैस (LNG) के प्रयोग को लेकर हुए समझौते को  जलवायु परिवर्तन के खिलाफ जंग में – कम से कम पारदर्शिता के लिहाज से –  अहम माना जा रहा है। यह एक स्थापित सच है कि नेचुरल गैस दुनिया के सबसे तेज़ी से बढ़ते जीवाश्म ईंधनों में एक है और इसे अपेक्षाकृत साफ ईंधन माना जाता है। कतर और सिंगापुर के बीच हुए समझौते के मुताबिक अगले 10 साल तक गैस की हर खेप के साथ यह विवरण स्पष्ट रूप से दिया जायेगा कि उससे (कुंए से निकालने से लेकर डिलीवर करने तक) कितना कार्बन या ग्रीन हाउस गैस इमीशन हुआ।

ये गैस पैवेलियन एनर्जी नाम की कंपनी द्वारा डिलीवर होगी जिसे मार्च में यह ठेका मिला। यद्यपि कंपनी के सीईओ ने कहा है कि वह पूरी प्रक्रिया में होने वाले इमीशन को ऑफसेट करने के लिये कृतसंकल्प हैं लेकिन इस डील में कंपनी पर ऐसी कोई पाबंदी नहीं है कि वह अपने इमीशन को किसी तकनीक द्वारा निरस्त करे। हालांकि इस डील से यह रास्ता खुल सकता है कि अमेरिका, रूस और दूसरे OPEC सदस्य देश जो गैस बेचते हैं उसका विवरण इसी तरह जारी करें।  

जीवाश्म ईंधन: 47 धर्म संस्थानों ने दूर रहने की घोषणा की

दुनिया के  47 धर्म संस्थानों ने इस साल एक साथ घोषणा की है वो जीवाश्म ईंधन के प्रयोग को बन्द करेंगे। घोषणा करने वाले संस्थानों में 21 देशों के कैथोलिक, प्रोटेस्टेंट और यहूदी समुदाय शामिल हैं और जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल बन्द करने या घटाने के लिये यह धर्म संस्थानों द्वारा अब तक का सबसे बड़ा ऐलान है। यह घोषणा क्लाइमेट चेंज को लेकर हुई पेरिस संधि की पांचवीं वर्षगांठ के मौके पर हुई। उम्मीद है कि जी-20 देशों की बैठक से पहले हुई इस घोषणा से उन देशों पर दबाव पड़ेगा जहां जीवाश्म ईंधन का बड़े स्तर पर इस्तेमाल हो रहा है।