क्लाइमेट साइंस
अर्जेंटीना में उगेगा जलवायु प्रतिरोधक गेहूं
जलवायु परिवर्तन के असर के साथ पानी की कमी और खाद्य समस्या बढ़ रही है। ऐसे में अर्जेंटीना में क्लाइमेट रजिस्टेंट सुपर व्हीट यानी जलवायु प्रतिरोधक गेहूं उगाने की तैयारी है। यह जीन परिवर्तित गेहूं BIOX.BA GB4 कहलाता है जो पानी की कमी से उत्पन्न शुष्क हालात में उगाया जा सकता है। फील्ड ट्रायल से पता चला है कि पिछले 10 सालों में इस गेहूं की पैदावार उन परिस्थितियों में 20% बढ़ी है जब सूखा पड़ा। हालांकि अभी इस गेहूं को लेकर चिन्तायें हैं क्योंकि किसी देश ने इसके आयात को मंज़ूरी नहीं दी है।
उत्तरी ध्रुव में अब तक समंदर का जमना शुरू नहीं
अक्टूबर का महीना खत्म होने को है लेकिन उत्तरी ध्रुव के साइबेरिया इलाके में समुद्र का पानी अब तक जमना शुरू नहीं हुआ हैऔर इसमें बर्फ नहीं बनी। वैज्ञानिकों का कहना है उत्तरी रूस के लाप्टेव-सी क्षेत्र में गर्मी का लम्बा होता मौसम और अटलांटिक के पानी का यहां भरना इस बदलाव की वजह है। क्लाइमेट साइंटिस्ट चेतावनी दे रहे हैं कि इस बदलाव का असर पूरे ध्रुवीय क्षेत्र में दिख सकता है। रिकॉर्ड तोड़ हीटवेव और पिछली सर्दियों के जल्द खत्म हो जाने से इस बार समंदर का तापमान औसत से 5 डिग्री अधिक रहा और इस साल बर्फ जल्दी पिघल गई थी।
कोलारेडो: आग से पर्वतीय समुदाय विस्थापन को मजबूर अमेरिका में कोलारेडो के जंगलों में लगी आग ने पर्वतीय इलाकों में रहने वाले कई समुदायों को विस्थापन पर मजबूर कर दिया है। समाचार एजेंसी रायटर के मुताबिक पिछली 14 अक्टूबर से धधक रही इस आग ने अब तक 68,800 हेक्टेयर ज़मीन को खाक कर दिया है। यह आग कोलारेडो की दूसरी सबसे बड़ी विनाशकारी आग मानी जा रही है और इसकी वजह से रॉकी माउन्टेन नेशनल पार्क के पास 18,000 हेक्टेयर से अधिक ज़मीन काली हो चुकी है। नेशनल वेदर सर्विस का पूर्वानुमान है कि अभी मौसम गर्म, खुश्क और तेज़ हवा वाला बना रहेगा लेकिन सप्ताहांत में ठंड बढ़ने और हिमपात का अनुमान है।
क्लाइमेट नीति
संरक्षित वनों को खनन के लिये खोलने की तैयारी
कोयला मंत्रालय छत्तीसगढ़ के सरगुजा में माइनिंग के लिये 1,760 हेक्टेयर ज़मीन अधिग्रहित करेगा लेकिन जो ज़मीन खनन के लिये ली जा रही है उसमें 98% संरक्षित वन क्षेत्र है। मंत्रालय ने इसी महीने रायपुर के अख़बार में नोटिस प्रकाशित कर अपने इरादे ज़ाहिर कर दिये हैं। महत्वपूर्ण है कि सरकार ने यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के 30 सितम्बर के उस ऑब्ज़रवेशन के बावजूद लिया है जिसमें कोर्ट ने कहा था कि केंद्र या राज्य को पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील ज़ोन में खनन का अधिकार नहीं है।
हालांकि कोयला मंत्रालय कोल बियरिंग एरिया (एक्विजिशन एंड डेवलपमेंट) एक्ट की एक विशेष धारा के तहत अधिग्रहण कर रही। इसमें यह प्रावधान है कि सरकार उस क्षेत्र को माइनिंग के लिये अपने क़ब्ज़े में ले सकती है जिसमें उसने यह सुनिश्चित कर लिया हो कि वह नोटिफिकेशन के 2 साल के भीतर खनन कर सकती है।
फुकुशिमा प्लांट का पानी डीएनए को नष्ट करेगा
ग्रीनपीस ने चेतावनी दी है कि जापान के फुकुशिमा दायची न्यूक्लियर पावर प्लांट का प्रदूषित पानी अगर समुद्र में छोड़ा गया तो यह मानव डीएनए को नुकसान पहुंचा सकता है। ग्रीनपीस ने जापानी मीडिया में आई उन ख़बरों के बाद यह रिपोर्ट जारी की है जिनमें कहा गया कि सरकार मछुआरों के विरोध के बावजूद रेडियोएक्टिव तत्वों से भरे प्रदूषित पानी को समंदर में छोड़ने की अनुमति देने वाली है। ग्रीनपीस का कहना है कि कुल 1000 से अधिक टैंकों में करीब 12.3 लाख टन प्रदूषित पानी जमा है जिसमें रेडियोएक्टिव आइसोटोप कार्बन-14 और ट्राइटियम खतरनाक स्तर पर है।
क्लाइमेट फाइनेंस का बोझ गरीब देशों पर
जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से लड़ना ग़रीब देशों पर भारी पड़ रहा है। ऑक्सफेम की रिपोर्ट बताती है कि क्लाइमेट फाइनेंस के नाम अरबों डॉलर के कर्ज़ ऊंची ब्याज़ दरों पर उन देशों को दिये जा रहे हैं जो क्लाइमेट चेंज के कारण पैदा हो रही मुसीबतों से लड़ रहे हैं। रिपोर्ट कहती है कि कर्ज़ की शर्तें ऐसी हैं जो इन देशों के भविष्य पर असर डालेंगी। ग़रीब देशों को साल 2017-18 में अमीर देशों और सरकारी वित्तीय संस्थाओं से कुल 6000 अरब डॉलर का कर्ज़ मिला लेकिन अगर ब्याज इत्यादि को हटा दें तो कुल राशि 1900 से 2250 अरब डॉलर के आसपास ही बनती है।
क्लाइमेट फाइनेंस वह पैसा है जो ग्रांटस कर्ज़ या फिर मदद के रूप में अमीर देश, ग़रीब देशों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से लड़ने के लिये देते हैं। महत्वपूर्ण है कि गरीब देश उस ग्लोबल वॉर्मिंग के असर की कीमत चुका रहे हैं जिसके लिये वह खुद ज़िम्मेदार नहीं है क्योंकि स्पेस में तकरीबन सारा कार्बन अमीर या बड़े विकासशील देशों ने फैलाया है।
इकोसिस्टम संरक्षण के हैं दोहरे फायदे
एक नया शोध बताता है कि पारिस्थितिक तंत्र (इकोसिस्टम) को संरक्षित करने से धरती बचाने की मुहिम में दोहरा फायदा हो सकता है। यह प्रयास क्लाइमेट चेंज से लड़ने और जैव विविधता को बचाने का सबसे प्रभावी और किफायती तरीका होगा। उपग्रह से मिले आंकड़ों के आधार पर शोधकर्ताओं का कहना है कि 15% परिवर्तित भूमि को उसके प्राकृतिक रूप में लौटाने से 60% वनस्पति और जन्तु प्रजातियों को विलुप्ति को रोका जा सकता है और 299 गीगाटन CO2 को सोखा जा सकता है – जो कि औद्योगिक क्रांति के बाद से उत्सर्जित कार्बन का 30% है।
वायु प्रदूषण
लगभग आधे प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड जनता को नहीं बताते आंकड़े
देश में सभी राज्यों ने भले ही प्रदूषण को रियल टाइम नापने के लिये (CEMS डाटा) उपकरण लगा लिये हों लेकिन देश के करीब आधे राज्यों के प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड (SPCB) या प्रदूषण नियंत्रण कमेटियां (PCC) ही अपना CEMS डाटा जनता को बताती हैं। दिल्ली स्थिति सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरेंमेंट (CSE) की ताज़ा रिपोर्ट में यह बात कही गई है जिसमें 19 अक्टूबर तक के डाटा रिकॉर्ड किये गये हैं । की जानकारी नापी गई।
CEMS उपकरण हर 15 मिनट में डाटा प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड को भेजते हैं जो बोर्ड के साथ साथ उद्योगों को भी प्रदूषण नियंत्रित करने में मदद करते हैं। देश में अभी कुल 30 राज्य प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड और 5 प्रदूषण कंट्रोल समितियां हैं लेकिन इस डाटा को केवल 17 बोर्ड/कमेटियां ही पब्लिक डोमेन में डाल रही थी।
वायु प्रदूषण लेता है हर साल 5 लाख बच्चों की जान
यह बात किसी से छुपी नहीं है कि वायु प्रदूषण का असर सबसे अधिक छोटे बच्चों और बुज़ुर्गों पर पड़ता है। स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर (SoGA) की ताज़ा रिपोर्ट कहती है कि पिछले साल दुनिया भर में 5 लाख बच्चों की मौत दूषित हवा के कारण हुई। रिपोर्ट के मुताबिक हवा में मौजूद ज़हरीले प्रदूषक मां के गर्भ में ही बच्चे पर हमला कर रहे हैं। इसकी वजह से बच्चे वक्त से पहले (प्रीमैच्योर) पैदा हो रहे हैं, उनका वजन सामान्य से कम दर्ज किया जा रहा है औऱ मृत्यु दर काफी बढ़ रही है। महत्वपूर्ण है कि पांच लाख में से दो-तिहाई बच्चों की मौत के पीछे वजह इनडोर पॉल्यूशन है। दक्षिण एशिया में सबसे अधिक 1.86 लाख बच्चों की मौत वायु प्रदूषण से हुई।
चीन ने कैसे किया वायु प्रदूषण पर नियंत्रण
स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर (SoGA) की रिपोर्ट यह भी बताती है कि चीन ने वायु प्रदूषण से लड़ने में बड़ी कामयाबी हासिल की है। यह जहां भारत को वायु प्रदूषण के मामले में पहले नंबर पर रखती है वहीं चीन 29वें नंबर पर है। हालांकि दुनिया में वायु प्रदूषण से हर साल होने करीब 58% इन दो देशों में हो रही हैं। चीन में मरने वालों की संख्या 12.4 लाख है तो भारत में सालाना मौतों का आंकड़ा 9.8 लाख है। फिर भी चीन ने हवा में पीएम 2.5 कणों को पिछले 9 साल में 30% कम किया है। चीन ने साल 2013 में ही एक व्यापक प्रदूषण नियंत्रण कार्यक्रण शुरू किया और अपने कई बिजलीघरों को कोयला आधारित ईंधन से हटाकर गैस पर चलाना शुरू किया है। इसके अलावा मॉनिटरिंग और नियमों को लागू करने में चीन ने काफी चुस्ती दिखाई है।
दिल्ली में अगले आदेश तक डीज़ल जेनरेटरों पर पाबंदी दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी (DPCC) ने अगले आदेश तक राजधानी में डीज़ल जनरेटरों पर पाबंदी लगा दी है। वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर को देखते हुये यह कदम ग्रेडेड रेस्पोंस एक्शन प्लान (GRAP) के तहत उठाया गया है। GRAP प्रदूषण बढ़ने की स्थिति में लिये गये आपातकालीन कदम हैं जिन्हें 2017 में लागू किया था। सरकारी आदेश के बाद 15 अक्टूबर से ज़रूरी और आपातकालीन सेवाओं को छोड़कर किसी भी अन्य कार्य के लिये डीज़ल जेनरेटरों पर पाबंदी लगा दी गई है। ज़रूरी सेवाओ में लिफ्ट, अस्पताल, रेलवे और एयरपोर्ट जैसी सेवायें शामिल हैं।
बैटरी वाहन
ताइवान की कंपनी बना रही “बैटरी वाहनों का एन्ड्रॉइड”
ताइवान की कंपनी फॉक्सकॉन टेक्नोलॉजी ग्रुप एक नया सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर विकसित कर रही है जो अलग अलग बैटरी वाहन निर्माताओं के लिये एक साझा प्लेटफॉर्म होगा। “एमआईएच” नाम के इस प्लेटफॉर्म पर सभी इलैक्ट्रिक वेहिकल निर्माता का बेसिक डिज़ाइन शेयर कर सकेंगे। इसे गूगल के एन्ड्रॉइड ऑपरेटिंग सिस्टम के मुकाबले – जिसका कि स्मार्टफोन इंटरफेस में दबदबा है और जो कस्टमाइज़ेशन के काफी विकल्प देता है – “एन्ड्रॉइड ऑफ इलैक्ट्रिक वेहिकल” के नाम से प्रचारित किया जा रहा है।
अगर इस प्लेटफॉर्म को जमकर अपनाया गया तो यह वाहन निर्माताओं की लागत काफी घटा सकता है। फॉक्सकान कंपनी कहना है कि वह इसे केवल मुनाफे के लिये नहीं बल्कि वैश्विक तौर पर इलैक्ट्रिक मोबिलिटी ट्रांजिशन की रफ्तार बढ़ाने के लिये भी विकसित कर रही है।
UK: 50% से अधिक बच्चे चाहते हैं इलैक्ट्रिक कार
यूके में बैटरी वाहनों को लेकर एक सर्वे कराया गया। यह सर्वे प्यूजो कंपनी ने कराया जिसमें 7 से 12 साल के 1250 बच्चों से सवाल किये गये। कुल 67.8% बच्चों ने कहा कि “इलैक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहन धरती के लिये अच्छे हैं।” इसी सर्वे में जिन माता-पिता से सवाल किये गये उनमें से आधे से अधिक ने कहा कि बच्चों ने अगला वाहन इलैक्ट्रिक वेहिकल ही खरीदने को कहा है। इस सर्वे में कहा गया है कि 72% मां-बाप अपनी नई गाड़ी खरीदने से पहले बच्चों से मशविरा कर रहे हैं जो ई-मोबिलिटी की दिशा में एक सकारात्मक कदम है।
साफ ऊर्जा
देश भर में लगेंगे सोलर उपकरण
साफ ऊर्जा मंत्रालय ने तेज़ी से देश भर में सौर ऊर्जा से चलने वाले उपकरण लगाने के लिये एक नीति का प्रस्ताव रखा है। सरकार चाहती है सोलर सेल से चलने वाले ड्रायर, कोल्ड स्टोरेज और चरखा जैसे उपकरणों का इस्तेमाल बढ़े। सरकार ने इसके लिये एक पॉलिसी ड्राफ्ट बनाया है जिस पर 2 नवंबर तक सुझाव दिये जा सकते हैं। सरकार का कहना है कि कई एजेंसियों वे कृषि, एग्रो प्रोसेसिंग, डेयरी, मुर्गी पालन और मछली पालन जैसे क्षेत्रों में ऐसे उपकरणों का टेस्ट किया है। देश भर में करीब 6 लाख गांव हैं और इस नीति की कामयाबी इस बात पर निर्भर करेगी कि वहां तक यह उपकरण कितनी कामयाबी से पहुंचते हैं।
सौर उत्पाद कंपनियों को मानकों पर एक और छूट
केंद्र सरकार ने सौर मॉड्यूल बनाने वाली कंपनियों को ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड (BIS) मानकों में दी गई छूट की सीमा बढ़ा दी है। यह छूट उन उत्पादकों के लिये है जिनकी कुल क्षमता 50 मेगावॉट से कम है। वेबसाइट मरकॉम के मुताबिक देश में करीब 80 मॉड्यूल उत्पादक हैं जिनकी उत्पादन क्षमता 50 मेगावॉट से कम है। घरेलू उत्पादकों ने सरकार से कहा था कि उन्हें तब तक BIS सर्टिफिकेशन में छूट दी जाये जब तक उनके इंटरनेशनल इलेक्ट्रोनिकल कमीशन (IEC) सर्टिफिकेट वैध हैं।
कोरोना: ऑफ ग्रिड सोलर प्रोडक्ट की बिक्री गिरी पिछले साल (2019) की दूसरी छमाही के मुकाबले इस साल की पहली छमाही में ऑफ ग्रिड सोलर उत्पादों की बिक्री में 50% की गिरावट दर्ज की गई। यह कोरोना महामारी का असर है। बिक्री में यह गिरावट 2019 की पहली छमाही के मुकाबल 59% कम है। यह बात ग्लोबल ऑफ ग्रिड लाइटनिंग एसोसिएशन (GOGLA) की ताज़ा रिपोर्ट में सामने आयी है। सबसे अधिक गिरावट पोर्टेबल लालटेन सिस्टम की बिक्री में दिखी जबकि मल्टी लाइट सिस्टम में पिछले साल की दूसरी छमाही के मुकाबले 36% का उछाल आया। रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना का व्यापक प्रभाव दिखा है और ऑफ ग्रिड सोल उत्पादों के मुख्य डिस्ट्रिब्यूशन चैनल कहे जाने वाले माइक्रो फाइनेंस इंस्टिट्यूशन महामारी से बर्बाद हो गये हैं।
जीवाश्म ईंधन
कोयला खनन से हटने का कोई मतलब नहीं: ग्लेनकोर
एंग्लो-स्विस माइनिंग कंपनी ग्लेनकोर के प्रमुख इवान ग्लासेनबर्ग ने कंपनियों द्वारा खनन से हटने के चलन को ठुकरा दिया है। ग्लासेनबर्ग के मुताबिक यह कदम तर्कहीन हैं क्योंकि इससे स्कोप – 3 उत्सर्जन रोकने में कोई मदद नहीं मिलेगी। उन्होंने कहा कि खनन से पीछे हटने का मतलब है कि चीनी फर्म उन खदानों को खरीदेंगी और कम कड़े मानकों के तहत ईंधन जलायेंगी। यह पूरे मकसद के उलट है।
ग्लासेनबर्ग का सुझाव है कि अब फोकस निकिल, कोबाल्ट और कॉपर जैसी धातुओं के खनन पर होना चाहिये जिन्हें साफ ऊर्जा क्षेत्र में इस्तेमाल किया जाता है। ग्लेनकोर अभी कोयला खनन को कम करके 2035 तक अपने स्कोप- 3 इमीशन 35% करने की योजना पर विचार कर रहा है
कार्बन फैलाने वाले प्रोजेक्ट को फंडिंग: सवालों में वर्ल्ड बैंक कार्बन फैलाने वाले ईंधन को बढ़ावा देने के मामले में विश्व बैंक लगातार सवालों के घेरे में है। नई ग्रीन पॉलिसी के बावजूद बैंक की प्राइवेट लैंडिंग शाखा अप्रत्यक्ष रूप से दुनिया सबसे बड़े कोल कॉम्प्लेक्सों में से एक को फंड दे रही है। इसी साल सितंबर में विश्व बैंक से जुड़ी इंटरनेशनल फाइनेंस कॉर्पोरेशन अपनी ग्रीन इक्विटी एप्रोच (GEA) रिपोर्ट छापी जिसमें साफ तौर पर ये कहा गया कि कॉर्पोरेशन अब उन वित्तीय संस्थाओं में निवेश नहीं कर रहा जिनके पास क्रमबद्ध तरीके से फॉसिल फ्यूल (तेल, कोयला, गैस जैसे कार्बन छोड़ने वाले ईंधन) के बिजनेस से हटने की योजना नहीं है। इसके बावजूद कॉर्पोरेशन ने एप्रोच का पायलट हाना इंडोनेशिया नाम के बैंक को दिया जिसने 2000 मेगावॉट के कोल पावर स्टेशन में निवेश किया है। इससे पहले जर्मनी के पर्यावरण लॉबी ग्रुप अर्जवाल्ड ने कह चुका है कि पिछले दो सालों में वर्ल्ड बैंक ने फॉसिल फ्यूल से जुड़े प्रोजेक्ट्स को करीब 200 करोड़ डॉलर की फंडिंग की है।