भारत ने अपनी स्वच्छ ऊर्जा (ग्रीन एनर्जी ) यात्रा में एक बड़ा पड़ाव पार कर लिया है। सरकार ने घोषणा की है कि अब देश की आधी बिजली उत्पादन क्षमता गैर-फॉसिल स्रोतों (यानी सौर, पवन, जल और परमाणु) से है। यह पेरिस समझौते का लक्ष्य समय से पहले हासिल हो गया।
– पिछले दस सालों में भारत की नवीकरणीय ऊर्जा (सौर + पवन + छोटे जलविद्युत) क्षमता चार गुना हो गई।
– 2024 में बड़े जल विद्युत को भी शामिल करने पर भारत ने 200 GW ग्रीन एनर्जी क्षमता पार कर ली।
– कुल स्थापित क्षमता लगभग 490 GW है, जिसमें से करीब आधा हिस्सा अब हरित ऊर्जा का है।
लेकिन एक समस्या भी है:
बिजली उत्पादन क्षमता बढ़ना और असली आपूर्ति होना, दोनों अलग बातें हैं।
– कागज़ पर क्षमता 50% से ऊपर है, पर असल बिजली आपूर्ति में इसका हिस्सा सिर्फ 15–20% ही है।
– कम मांग के समय सौर ऊर्जा को पीछे करना पड़ता है ताकि ग्रिड असंतुलित न हो।
– कई परियोजनाएं इसलिए रुकी हैं क्योंकि राज्य उनसे बिजली खरीदने में रुचि नहीं दिखा रहे।
यानी अब सिर्फ क्षमता बढ़ाना काफी नहीं है। असली चुनौती है – स्टोरेज, ट्रांसमिशन और स्मार्ट योजना बनाना।
आधार और सेतु (The Base and the Bridge)
भारत का बिजली उत्पादन ढांचा कोयले पर बना है। अब जब बहुत ज्यादा नवीकरणीय ऊर्जा (RE) ग्रिड में आ रही है, तो समस्याएँ बढ़ रही हैं।
– बैटरी स्टोरेज एक समाधान है, लेकिन यह पूरा हल नहीं है।
– उच्च मांग वाले महीनों (अप्रैल से अगस्त) में ग्रिड ऑपरेटर (Grid India) फिर से कोयले का प्रयोग करने लगता है।, जबकि उसी समय सौर और पवन उत्पादन भी चरम पर होता है।
विशेषज्ञों की राय:
– बेस पावर ज़रूरी है — यानी एक स्थायी स्रोत जो लगातार बिजली दे सके। भारत में यह भूमिका अभी भी कोयले को निभानी होगी, जब तक परमाणु ऊर्जा बड़े स्तर पर न बढ़े।
– गैस को एक ‘ब्रिज फ्यूल’ (सेतु ईंधन) माना जा सकता है, जैसे यूरोप कर रहा है।
– भारत की प्रति व्यक्ति खपत अभी सिर्फ 1500 किलोवॉट घंटे है, जबकि वैश्विक औसत 3500 है। खपत बढ़ेगी, तो हमें तुरंत मांग पूरी करनी होगी — नए स्वच्छ तकनीक का इंतजार नहीं कर सकते।
– गैस से भविष्य में हाइड्रोजन ब्लेंडिंग भी संभव है।
ट्रांसमिशन की समस्या
नवीकरणीय ऊर्जा के ग्राफ में पहला उछाल राजस्थान और गुजरात में आया, लेकिन अब वहाँ 60 GW की परियोजनाएं फंसी हुई हैं क्योंकि ट्रांसमिशन लाइनें नहीं हैं।
– यह वही समस्या है जो पहले थर्मल पावर के समय भी आई थी, जब 40 GW कोयला परियोजनाएं खरीदार न मिलने से एनपीए बन गईं।
– करीब 40 ट्रांसमिशन परियोजनाएं अभी भी मंजूरी या निर्माण विस्तार का इंतजार कर रही हैं।
– डेवलपर कहते हैं कि ‘राइट-ऑफ-वे’ (जमीन और अनुमति) और सप्लाई चेन बाधाएँ भी हैं।
विशेषज्ञ सुझाव:
– केंद्र सरकार RE निविदाओं को धीमा कर रही है ताकि ट्रांसमिशन तैयार हो सके।
– लेकिन गहरी समस्या केंद्रीकृत योजना है। राज्यों को अपने ऊर्जा मिश्रण तय करने का अधिकार होना चाहिए।
मांग प्रबंधन और राज्यों की भूमिका
भारत की ऊर्जा योजना अक्सर सिर्फ आपूर्ति (सौर, पवन, परमाणु) पर केंद्रित होती है। लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं कि डिमांड साइड मैनेजमेंट (DSM) यानी मांग का सटीक आकलन और खपत नियंत्रण उतना ही ज़रूरी है।
मोहित भार्गव (पूर्व सीईओ, एनटीपीसी ग्रीन) कहते हैं कि हमें मांग प्रबंधन पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। राज्यों को अपनी ज़रूरत के अनुसार विकल्प मिलने चाहिए — जैसे ‘सौर + 2 घंटे स्टोरेज’ या ‘सौर + 4 घंटे स्टोरेज’।
– सभी राज्यों को 50 GW की ज़रूरत नहीं है। अगर किसी को सिर्फ 10 GW चाहिए तो उतना ही दिया जाए।
– अभी कई परियोजनाओं के PPA (बिजली खरीद समझौते) बिक नहीं रहे क्योंकि राज्यों को उतनी ज़रूरत ही नहीं है।
– यही कारण है कि कोयले की मांग अभी भी बनी हुई है — राज्यों को भरोसेमंद आपूर्ति चाहिए।
आलोक कुमार (पूर्व ऊर्जा सचिव) का सुझाव: राज्यों को अपने RE लक्ष्यों की योजना खुद बनानी चाहिए और राष्ट्रीय लक्ष्य उसी से 5–7 साल में हासिल हो सकता है।
डेटा, तकनीक और डिजिटल बदलाव
भारत के 2030 तक 500 GW नवीकरणीय क्षमता और ‘सतत ऊर्जा पहुंच’ जैसे लक्ष्य तकनीक और डेटा पर निर्भर करते हैं।
– भारत के बिजली बाजार में बहुत प्रगति हुई है, लेकिन डेटा इंटरचेंज स्टैंडर्ड की कमी है।
– विशेषज्ञ कहते हैं कि हर ग्रिड इकाई का “आधार कार्ड जैसी आईडी” होनी चाहिए ताकि सभी लेनदेन एकसमान हों।
– इसी दिशा में केंद्र ने India Energy Stack (IES) योजना शुरू की है। यह ऊर्जा क्षेत्र की ‘डिजिटल रीढ़’ बनेगी।
– आईईएस से नवीकरणीय एकीकरण, डिस्कॉम की दक्षता और पारदर्शी, भविष्य-तैयार बिजली सेवाएँ संभव होंगी।
विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर राज्यों और केंद्र का डेटा एकीकृत होकर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराया जाए, तो बेहतर नीति और निवेश निर्णय लिए जा सकेंगे।
आगे की राह
भारत ने 50% स्वच्छ क्षमता का लक्ष्य हासिल करके बड़ी उपलब्धि दर्ज की है।
लेकिन असली चुनौती है:
क्षमता को वास्तविक आपूर्ति में बदलना,
ग्रिड को संतुलित और मज़बूत बनाना,
ऊर्जा भंडारण और ट्रांसमिशन को दुरुस्त करना
राज्यों को लचीलापन और स्वतंत्रता देना और तकनीक व डेटा का उपयोग करके योजना को स्मार्ट बनाना।
भारत की पावर स्टोरी अब और जटिल हो रही है लेकिन इसमें नए निवेश और नीतियों के लिए बड़े अवसर भी हैं।
(इस रिपोर्ट को विस्तार से अंग्रेजी में यहां पढ़ा जा सकता है।)
Shreya Jai
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