विकास परियोजनाओं को तेज़ी से पास करने के लिये अब एक्सपर्ट अप्रेज़ल कमेटी (EAC) की बैठक महीने में दो बार हुआ करेगी। यह कमेटी डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स की पर्यावरण प्रभाव आंकलन रिपोर्ट को देखती है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 18 नवंबर को फैसला लिया जिसमें कहा गया है कि महीने में कम से कम दो बार इस कमेटी की बैठक हो यानी किसी भी दो बैठकों के बीच में 15 दिन से अधिक का फासला न हो। इस शासनादेश में कहा गया है कि सरकार के संज्ञान में आया है कि पर्यावरणीय क्लीयरेंस (EC) देने में कई कारणों से देरी हो रही है जिससे बचा जा सकता है। अब नये आदेश के मुताबिक EAC उन प्रोजक्ट्स को क्लीयर कर सकती है जिन्हें कमेटी की बैठक के 10 दिन पहले जमा किया गया हो। पहले यह मियाद न्यूनतम 15 दिनों की थी यानी कमेटी उसी प्रोजेक्ट का मूल्यांकन करती थी जो बैठक से कम से कम 15 दिन पहले जमा किया गया हो।
मेगा प्रोजेक्ट कर रहे हैं जंगलों को तबाह
खनन, बिजलीघर, रेल लाइन और सड़क निर्माण से जुड़े बड़े-बड़े प्रोजेक्ट दुनिया भर में जंगलों को तबाह कर रहे हैं और इससे जलवायु परिवर्तन को काबू करने की दिशा में किये जा रहे प्रयास निष्फल हो रहे हैं। दक्षिण अमेरिका, दक्षिण-पूर्व एशिया और मध्य अफ्रीका में खासतौर पर यह देखने में आ रहा है घने जंगलों को इन प्रोजेक्ट्स के लिये तबाह किया जा रहा है। यह बात शोध और पर्यावरण संरक्षण से जुड़े संगठन न्यूयॉर्क डिक्लयरेशन ऑफ फॉरेस्ट एसेसमेंट पार्टनर्स की एक रिपोर्ट में कही गई है। रिपोर्ट के मुताबिक आज दुनिया के आधे से अधिक बड़े माइनिंग प्रोजेक्ट – जिनकी संख्या 1,500 से अधिक है – घन जंगलों में हैं।
साल 2014 में 50 देशों और दुनिया की 50 बड़ी कंपनियों ने इस घोषणापत्र में दस्तखत किये कि 2020 तक जंगलों का कटान 50% घटाया जायेगा और 2030 तक बन्द कर दिया जायेगा लेकिन 2020 का लक्ष्य बिल्कुल हासिल नहीं हो सका और जंगलों का कटान बढ़ रहा है।
युवाओं का जलवायु परिवर्तन महासम्मेलन
कोरोना महामारी के कारण इस साल ग्लासगो में होना वाला जलवायु परिवर्तन महासम्मेलन (CoP-26) नहीं हो रहा है और उसे अगले साल नवंबर तक टाल दिया गया है लेकिन दुनिया के युवा क्लाइमेट एक्टिविस्ट्स ने जलवायु परिवर्तन के खिलाफ आवाज़ उठाने का तरीका ढूंढ लिया है। दुनिया भर के 150 देशों के 350 से अधिक क्लाइमेट एक्टिविस्ट अलग अलग टाइम ज़ोन में कई वर्कशॉप और संवाद कर रहे हैं। आयोजकों का कहना है कि इससे वह पिछले सम्मेलनों के मुकाबले करीब 1500 गुना कार्बन इमीशन रोक पायेंगे। गुरुवार, 19 नवंबर से शुरूहुए इस सम्मेलन में क्लाइमेट एक्सपर्ट्स से विमर्श और संवाद के बाद दुनिया की सरकारों के आगे क्लाइमेट एक्शन के लिये एक मांग पत्र रखा जायेगा। इसका मकसद है कि सरकारें जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को रोकने के लिये प्रभावी कानून बनायें और उचित कदम उठायें।
जापान में क्लाइमेट इमरजेंसी
जापान द्वारा ज़ीरो इमीशन का लक्ष्य घोषित किये जाने के कुछ ही दिनों के बाद वहां के सांसदों ने क्लाइमेट आपातकाल घोषित करने के पक्ष में वोट दिया। इसका मकसद सरकार पर ज़ीरो इमीशन हासिल करने के लिये कड़े कदम हेतु दबाव बनाना है। जापान से पहले ब्रिटेन, कनाडा, फ्रांस और यूरोपीय यूनियम ने इस लक्ष्य को हासिल करने का संकल्प किया है। यह लक्ष्य हासिल करना कानूनी रूप से अनिवार्य नहीं है पर चक्रवातों, जंगल में लग रही भीषण आग और भयानक बाढ़ के प्रभावों को देखते हुये इन देशों ने ज़ीरो इमीशन लक्ष्य हासिल करने का संकल्प लिया है।
दो साल पहले, हमने अंग्रेजी में एक डिजिटल समाचार पत्र शुरू किया जो पर्यावरण से जुड़े हर पहलू पर रिपोर्ट करता है। लोगों ने हमारे काम की सराहना की और हमें प्रोत्साहित किया। इस प्रोत्साहन ने हमें एक नए समाचार पत्र को शुरू करने के लिए प्रेरित किया है जो हिंदी भाषा पर केंद्रित है। हम अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद नहीं करते हैं, हम अपनी कहानियां हिंदी में लिखते हैं।
कार्बनकॉपी हिंदी में आपका स्वागत है।
आपको यह भी पसंद आ सकता हैं
-
बाकू सम्मेलन: राजनीतिक उठापटक के बावजूद क्लाइमेट-एक्शन की उम्मीद कायम
-
क्लाइमेट फाइनेंस पर रिपोर्ट को जी-20 देशों ने किया कमज़ोर
-
महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में खनन के लिए काटे जाएंगे 1.23 लाख पेड़
-
अगले साल वितरित की जाएगी लॉस एंड डैमेज फंड की पहली किस्त
-
बाकू वार्ता में नए क्लाइमेट फाइनेंस लक्ष्य पर नहीं बन पाई सहमति