चढ़ता पारा: धरती का बढ़ता तापमान और अमेरिका, साइबेरिया और ऑस्ट्रेलिया के जंगलों की भीषण आग के बीच माना जा रहा है कि 2020 अब तक दूसरा सबसे गर्म साल होगा। फोटो: CalMatters

धरती पर दूसरा सबसे अधिक गर्म साल हो सकता है 2020

जहां देश के भीतर अगले कुछ महीने कड़कड़ाती ठंड का पूर्वानुमान है उधर विश्व मौसम संगठन (WMO) का कहना है कि साल 2020 धरती पर दूसरा सबसे गर्म साल हो सकता है। इससे पहले साल 2016 धरती पर सबसे अधिक गर्म साल रिकॉर्ड किया गया था। संयुक्त राष्ट्र की संस्था WMO की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2020 में तापमान 1850-1900 के बीच वैश्विक औसत तापमान से 1.2 डिग्री  ऊपर दर्ज किया गया है जो 2016 के बाद से सबसे गर्म है और 2019 से थोड़ा ही कम है। इस साल अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और साइबेरिया में जंगलों की आग और सूखे जैसी घटनाओं के साथ कई हिस्सों में अत्यधिक गर्मी महसूस की गई।  

सर्दियों में इस बार सामान्य से अधिक ठंड

सामान्य से अधिक मॉनसून के बाद अब इस साल नॉर्मल से अधिक ठंड के लिये तैयार रहिये। मौसम विभाग (IMD) का पूर्वानुमान है कि  इस बार दिसंबर से फरवरी के बीच पारा सामान्य से अधिक गिरेगा हालांकि इसमें यह नहीं बताया गया है कि देश के किस हिस्से में सबसे अधिक शीतलहर महसूस होगी। जानकारों के मुताबिक इस असामान्य ठंड की वजह प्रशांत महासागर के भूमध्यरेखीय क्षेत्र में ला निना प्रभाव हो सकता है जो साउथ चीन और साइबेरिया से शीतलहर लाता है। 

छत्तीसगढ़: कोयला बिजलीघर से हुआ राख रिसाव  

छत्तीसगढ़ के रायगढ़ ज़िले में एनटीपीसी प्लांट की फ्लाई एश (कोयले की राख) के कारण जल प्रदूषण का ख़तरा पैदा हो गया है। नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन का लारा प्लांट उड़ीसा की सीमा पर है। पिछले महीने 23 नवंबर को करीब 9 घंटे तक इस प्लांट से प्रदूषित राख निकलती रही और प्लांट के करीब सुखनारा नाले में गई। इससे राख मिश्रित गारा फसल लगे खेतों में फैल गया और डर है कि यह महानदी में बने हीराकुंड जलाशय को प्रदूषित करेगा। उड़ीसा के लखनपुर ब्लॉक की 6 ग्राम पंचायतें इस पावर प्लांट की ज़द में आती हैं और राख के रिसाव का यह मामला उड़ीसा विधानसभा में भी उठा।  कोयला बिजलीघरों से राख का रिसाव पावर प्लांट्स की लापरवाही को दिखाता है और यूपी के सोनभद्र सिंगरौली ज़िले से इस तरह रिसाव की ख़बरें लगातार आती रही हैं। 

वृक्षारोपण और जंगल बचाने का खर्च तेज़ी से बढ़ेगा 

वृक्षारोपण और वन संरक्षण, क्लाइमेट चेंज के खिलाफ सबसे कारगर उपायों में गिना जाता है लेकिन शोध बताते हैं कि अब आने वाले दिनों में पेड़ लगाने और जंगलों को बचाने की कीमत तेज़ी से बढ़ती जायेगी। नेचर कम्युनिकेशन में छपे एक अध्ययन के मुताबिक साल 2055 तक इमीशन में ज़रूरी 10% कमी के लिये भूस्वामी को प्रति वर्ष $39300 करोड़ देने होंगे ताकि धरती की तापमान वृद्धि 1.5 डिग्री से नीचे रखी जा सके। शोधकर्ताओं ने ग्लोबल टिंबर नाम के प्राइस मॉडल के आधार पर यह गणना की है।

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