आंखें बन्द: दुनिया के बड़े वित्तीय संस्थान नेट-ज़ीरो की घोषणायें तो कर रहे हैं पर अपनी गतिविधियों के क्लाइमेट पर असर को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं। फोटो - The Revelator

जलवायु परिवर्तन के ख़तरों को छुपा रहे हैं वित्तीय संगठन: रिपोर्ट

वैश्विक वित्तीय संस्थान भले ही अपनी नेट ज़ीरो घोषणाओं को लेकर एक दूसरे से स्पर्धा करते दिख रहे हों लेकिन अगर थोड़ा गहराई से पड़ताल की जाये तो पता चलता है कि ये संस्थान अपने क्लाइमेट रिस्क को काफी कम करके आंक रहे हैं। एक सीडीपी रिपोर्ट के मुताबिक आधे से अधिक संस्थान अपने क्लाइमेट रिस्क की रिपोर्टिंग ही नहीं कर रहे। रिपोर्ट कहती है कि ये संस्थान कोई ऐसा विश्लेषण नहीं करते जो यह बताता हो कि संस्थान की गतिविधि क्लाइमेट पर क्या असर डाल रही है। इनमें से केवल आधे संस्थान ही अपने लो कार्बन ट्रांजिशन प्लान के बारे में बताना चाहते हैं जबकि एक चौथाई ने जीवाश्म ईंधन की फाइनेंसिंग के बारे में जानकारी दी। 

भारत, यूके 2030 तक जलवायु परिवर्तन के खिलाफ रास्ता निकालेंगे

भारत और यूके ने इस हफ्ते तय किया कि दोनों देश 2030 तक क्लाइमेट चेंज के प्रभावों से लड़ने के लिये संयुक्त रूप से काम करेंगे। एक इंटरनेट मीटिंग में दोनों देश जंगल बचाने और साफ ऊर्जा टेक्नोलॉजी पर मिलकर काम करने को सहमत हुये। दोनों ही देश क्लाइमेट के प्रभावों को बर्दाश्त करने वाला मूलभूत ढांचा बनाने के लिये भी मिलकर काम करेंगे। दोनों देशों का इरादा यूके-इंडिया रोडमैप के तहत इस साल के अंत में ग्लासगो में होने वाली बैठक से पहले महत्वाकांक्षी नतीजे हासिल करना 

नेट-ज़ीरो लक्ष्य के लिये क्लाइमेट लॉ को करो सख्त

जर्मनी की सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा है कि अगले साल तक मौजूदा क्लाइमेट लॉ को सख्त और अपडेट किया जाये ताकि साल 2050 के तय नेट-ज़ीरो लक्ष्य हासिल करने के लिये ज़मीनी योजनायें लागू हों। अदालत ने एक महिला की याचिका सुनते हुए यह बात कही जिसने गुहार लगाई थी कि समुद्र के बढ़ते जलस्तर के कारण उसका फार्म नष्ट हो जायेगा। कोर्ट का कहना था कि जर्मनी का 2019 का क्लाइमेट लॉ कार्बन इमीशन कम करने के मामले में 2030 से आगे की सोच नहीं रखता।

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